मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 29 सितंबर 2020

अमृतसर की यात्रा भाग 14


अमृतसर यात्रा :--
भाग 14
हरिद्वार भाग 3
5 जून 2019

28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम  में मेरी भाभी भी आ  गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से ज्वाला माता,चिंतपूर्णी माता आनन्दपुर साहेब ओर मनिकरण के बाद हमारा काफिला हरिद्वार में कल से आ गया..कल हरिद्वार घूम लिया...
अब आगे.....
आज हमको ऋषिकेश जाना था तो सुबह जल्दी उठकर दोनों तैयार हो गई फिर मैं शान से उठकर तैयार हुई ,इतने में रुकमा भारत भवन में बने मन्दिरों का एक चक्कर लगा आई,उसने आते ही घोषणा कर दी कि शाम को जल्दी आकर सारे मन्दिर-दर्शन करेंगे,बहुत खूबसूरत मन्दिर बने हैं  ख़ेर, ये पुजारन टाइप की हैं इसके साथ तो हमको भी थोड़ी भक्ति करने का मौका मिल जाता हैं थोड़ा पुण्य हमारे हिस्से में भी आ जाता हैं😜
तो हम तीनों राजा बाबू बने सुबह 7 बजे धर्मशाला से बाहर निकले,अब तक बाहर की कोई भी दुकान खुली हुई नहीं थी और हमको चाय पीने की जबरिया हुक लगी पड़ी थी तो मैंने पास सोए हुए होटल के एक नोकर को उठाया कि---"भाई, कब तक सोओगे, उठो ग्राहक आये है चाय बना दो"।
लेकिन उस बंदे के जूं तक नही रेंगी ,वो दूसरी तरफ अपना मुंह मोड़कर कर फिर सो गया..मुझे मायूसी हाथ लगी,मैं अपना सा मुंह लेकर पास ही पड़ी कुर्सियों पर बैठ गई ....इतने में भाभी ने देखा कि आगे की दुकान पर कुछ हलचल दिख रही हैं ...मैं तुरंत दौड़ी...उस दुकान पर कुछ लोग खड़े बातें कर रहे थे ओर उनकी चाय उबल रही थी तो मैंने भी फटाफट गंगा में अपने हाथ धो लिए यानी कि अपना ऑर्डर पेश कर दिया और कुछ ही मिनटों में हम चाय और टोंस खा रहे थे।

चाय पीकर शरीर में थोड़ी जान आई अब हम गुलफाम बने सड़क पर बस रोक रहे थे ...एक बस में 3 सीट खाली देख हम तुरंत उसमें बैठ गए।

कुछ ही देर में हमारी बस ऋषिकेश के बस स्टॉप पर रुकी ओर हम उतरकर आगे को चल दिये ... कुछ आगे चलकर एक ऑटो में बैठ गए।बाहर गर्मी बहुत थी सुबह 9 बजे भी धूप गर्मी के गोले फैक रही थी हमारा सर गोलगप्पे के पानी की तरह तीखा हो गया था...आंखों पर धूप का चश्मा ओर सर पर ओढ़नी लपेटे हम ऑटो से उतरकर उधर ही जा रहे थे जिधर सबलोग जा रहे थे...आगे गंगा नदी का घाट था जहां कई नावे खड़ी हुई थी...सब लोग एक खाली बड़ी सी नाव की तरफ चल दिये तो हम भी उनके पीछे हो लिए क्योकि हमको गंगानदी पार कर के  लक्ष्मण झूला तक जाना था.. 10₹ का टिकिट कटवाकर हम नाव में बैठ गए...गंगा में लबालब पानी भरा हुआ था.... ऊपर से ठंडी हवा चल रही थी..गर्मी को जैसे सारी हवा ने सोख लिया हो इसलिए वहां ठंडक भी थी। नाव में यात्रा करने का अपना ही मजा होता हैं...बहुत शुकुन मिलता हैं...ऐसा लगता हैं आगे बढ़ते रहो...पर बहुत जल्दी ही किनारा आ गया और हमारी इस छोटी सी यात्रा को ब्रेक लग गया।
हम भी सबके साथ नदी के उस तरफ  उतर पड़े...इस तरफ पुराना ऋषिकेश बसा हुआ हैं। यहां काफी भीड़भाड़ थी...छोटी -छोटी गलियों को पार करके हम थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि एक रेस्तरां पर नजर गई चोटीवाला नाम का होटल था,नाम अजीब था वही एक चोटी वाले का स्टेच्यू भी बना था ☺️ पहले तो हम खूब हंसे फिर हमने सोचा आज नाश्ता यही करते हैं लेकिन वो 11 बजे खुलने वाला था ओर अभी 10 भी नही बजे थे तो हम आगे बढ़ गए... इतने में एक जगह पर 10-15 लोगों का हुजूम खड़ा देखा वो एक दुकान का शटर खुलने का इंतजार कर रहे थे...मेरी निगाह जब बोर्ड पर गई तो में उछल पड़ी😳 नाम लिखा था ---"गीताभवन!" 
अरे, मैंने फ़ौरन सबको रोका,मैं इसी को तो ढूंढ रही थी, मैंने मेरे ग्रुप में इतनी बार इस दुकान का नाम सुना है और यहां के खाने की तारीफ सुनी है कि अब तो मुझे कंठस्थ याद हो गया हैं😄 
लेकिन अभी गीताभवन खुला नही था इसलिए भीड़ के साथ हम भी इंतजार करते रहे...थोड़ी देर बाद जब दरवाजा खुला तो सब ऐसे घुसे मानो फोकट का भंडारा लगा हुआ हो।😜

अंदर घुसकर हमने भी एक जगह आराम वाली कुर्सियां खोजकर अपना आसन जमा लिया...
इतने में रुकमा ने काउंटर पर धावा बोल दिया और फटाफट आगे लाईन में लगकर हमारे लिए 3 प्लेट पूरी-भाजी ओर जलेबी का आर्डर दे दिया क्योंकि सभी को तेज भूख लग रही थी...बढिया पूरी आलू की सब्जी और जलेबी का आनन्द लिया गया... मुझे हरिद्वार ओर ऋषिकेश में कचौरी सिर्फ यही नजर आई तो अपने आपको रोक नही पाई ☺️ इसलिये सबने एक -एक कचौरी पर भी हाथ साफ किया और रास्ते के लिए आधा किलो बेसन की बर्फी भी बंधवाई ।
चाय पीकर तसल्ली होने तक हम वही बैठे रहे फिर उठकर आगे बढ़ गए अब हमारा अगला डेस्टिनेशन था नीलकंठ महादेव जाना। लेकिन हम उधर न जा सके😢

तो इंतजार करे अगले एपिसोड का...

  



                         गीताभवन




                        चोटीवाला

बुधवार, 16 सितंबर 2020

अमृतसर की यात्रा भाग 13


अमृतसर यात्रा :--
भाग 13
हरिद्वार भाग 2
4जून 2019

28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम  में मेरी भाभी भी आ  गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से ज्वाला माता,चिंतपूर्णी माता आनन्दपुर साहेब ओर मनिकरण के बाद हमारा काफिला हरिद्वार में आ गया..
अब आगे.....
शाम 5 बजे हमने भारत भवन(इंडिया टेम्पल) से ऑटो पकड़ा उसने 100 रु लिए ओर काफी पहले ही हमको बैरियर के पास उतार दिया और बोला--"अब आप यहां से पैदल ही जाए, क्योंकि ईसके आगे ऑटो नही जाते हैं " 
इसलिए हमने आगे बढ़ने में ही अपनी भलाई समझी ओर भीड़ के साथ साथ हम भी दुकानों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे,एक दुकान पर सेल देख मैंने अपने लिए एक कम्फ़र्टेबल चप्पल महज 100 रु में खरीद ली।

अब हम माँ गंगा की आरती में शामिल होने के लिए तट पर पहुंच गये थे. .. मेरा गंगा आरती देखने का ये पहला मौका था तो मुझे थोड़ा उत्साह ज्यादा हो रहा था..क्योकि इससे पहले भी मैं वाराणसी में आरती के टाइम जाम में फंस गई थी और आरती देखने घाट तक न जा सकी थी... इसका मुझको बहुत अफ़सोस था।

लेकिन आज हम आरती से पहले ही घाट पर पहुंच गए थे..हमारे चारों ओर सैकडों की तादात में लोग नदी के दोनो तरफ दिखाई दे रहे थे इतने सारे लोग एक ही जगह देख रहे थे.. शायद वही से आरती शुरू होनी होगी..

हमारे सामने पतित पावनी गंगा होले - होल बह रही थी, मानो कोई स्वर लहरी धीरे धीरे फ़िजा में फैल रही हो...जिसकी सुरीली तान सुनने सैकड़ों की तादाद में कान एक ही जगह पर लगे हुए हो। 
हम भी थोड़ा पीछे एक खाली जगह देखकर खड़े हो गए..थोड़ी देर बाद अनुराधा पोडवाल की आवाज में माँ गंगा की आरती गूंजने लगी और नदी के दूसरे छोर पर जगह-जगह दीपों से आरती होने लगी सभी लोग तालियां बजाकर आरती गाने लगे बहुत ही भक्तिमय वातावरण हो गया था..एक निश्छल बहती नदी की आरती, इतना बड़ा जन समुदाय कर रहा था ये सब हमारे देश मे ही सम्भव हो सकता हैं इसीलिए तो हमारा देश इतना महान हैं....
मेरा भारत महान!

कुछ महिलाएं और पुरुष अपने हाथों में दीपक की थाली पकड़े हुए थे और अपनी जगह से ही माँ की आरती कर रहे थे। 
बाद में हमने भी दीप जलाकर आरती की ओर दीपक को गंगा में छोड़ दिया...काफी दूर तक हमारा दीप दोने में तैरता हुआ हमको दिखाई देता रहा ... हमारा दीपदान माँ गंगा ने स्वीकार कर लिया था।
 वही हमने नदी में दूध अर्पण किया और फूल चढ़ाये ।
जय माँ गंगे👏
गंगा को नमस्कार कर हमने हर की पौड़ी से बिदा ली ओर बाजार में खाना खाने रुक गए... हम एक शाकाहारी रेस्तरां में गए तो वहां 180 ₹ की थाली थी 3-4 तरह की सब्जियां चटनी,अचार, पुलाव तो हमने थोड़ा कम वाला खाना पूछा तो वो बोला कि आपको 80 ₹ वाली थाली बना देता हूँ जिसमे 1दाल1सब्जी,कढ़ी 4 रोटी और चावल होंगे...हमने 2 थाली खाना मंगवा लिया इतना खाना तीनों के लिए काफी था...खाना ठीक ठीक था ज्यादा खाया नही गया 1प्लेट चावल और 4 रोटियां बच गई ।

रोटियां हमने बंधवा ली ताकि रास्ते में किसी कुत्ते को खिला सके ओर वही से ऑटो पकडकर हम भारत मन्दिर वापस आ गए ।
आज काफी थक गए थे इसलिए कल का प्रोग्राम ऋषिकेश का बनाया ओर उसके लिए बस सामने से ही मिलती हैं इसलिये निश्चिंत हो हम चादर ओढ़कर सो गए।

शेष अगले एपिसोड में---



रविवार, 13 सितंबर 2020

★अकेलापन★

★अकेलापन ★

मैं अकेली हूँ ? 
कल भी थी --
आज भी हूँ ?
ओर कल भी रहूंगी !!!!
दूर निकलना चाहती हूं ---
तेरी यादों के खंडहर से ?
खुली सांस में जीना चाहती हूँ।
रोज - रोज की पीड़ा से मुक्त होना चाहती हूँ।
थक गई हूँ तेरी सलीब को ढोते हुए,
पिंजर बनकर रह गई हूं।
अब मुक्कमल खामोशी चाहिए।
मुझे आजादी चाहिए।

कहने को तो मैं जिंदा हूं ?
होश भी है मुझको ---
फिर ये भटकाव कैसा ?
क्यों खोजती फिरती हूँ ---
उन अवशेषों को,
जो राख बन चुके है---
फिर भी उम्मीद पर जिंदा हूँ ।

अकेलेपन का ये अहसास,
मुझे महफ़िलों में जाने नही देता
खिलखिलाने नही देता !
मैं हंसना चाहती हूँ ...
गुनगुनाना चाहती हूं...
अपनी पूंजी किसी ओर पर लुटाना चाहती हूं।
काश, की कोई होता ---???
मेरी अधूरी चाहत को पूरा करता ?
काश, कोई होता ...............?

उम्मीद का दामन पकड़े आज भी इंतजार में हूँ !!!

---दर्शन के दिल से

गुरुवार, 10 सितंबर 2020

अमृतसर की यात्रा भाग 12

अमृतसर यात्रा :--
भाग 12
हरिद्वार भाग 1
4जून 2019

28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम  में मेरी भाभी भी आ  गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से निकलकर हम माता चिंतपूर्णी ओर ज्वालादेवी के दर्शन कर आनंदपुर साहिब रुके,1जून को किरतपुर गुरद्वारे घूमकर रात को मनिकरण साहब पहुंच गए ... मनिकरण से 2 दिन बाद हम निकले हरिद्वार की ओर ...
अब आगे.....

कल रात भुन्तर से हमने जो वोल्वो बस पकड़ी थी हरिद्वार के लिए उसका किराया था 1400 सो रुपिया! बस में रात बहुत परेशानी में गुजारी... सेमी स्लीपर Ac बस थी फिर भी सारी रात बैठकर, जागकर, फ़िल्म देखते हुए करवट बदलते हुए गुजरी... मुझे बस का सफर कभी भी पसन्द नही रहा, चाहे कितनी भी आरामदायक बस क्यों न हो !सफर तो ट्रेन का होता हैं वाह!!!

सुबह का धुंधलका जब छाने लगा तो हमारी बस चंडीगढ़ की सड़कों पर दौड़ रही थी ..कुछ लोग उतरे और कुछ चढ़ गए ...बस आगे चल दी तो मन हुआ कि यही उतर जाते है 2 दिन इधर ही घूमेंगे पर...इंसान जो सोचता है वो हो जाये तो क्या बात हैं।

 ख़ेर, रातभर की जागी हुई आंखों में खुमारी छाई हुई थी ओर झपकी भी आने लगी थी..रातभर बैठने से कमर भी अकड़ गई थी, लेकिन क्या करे मरता क्या न करता! मजबूरी थी और उस मजबूरी का नाम रुकमा था, जिसके कारण हम हरिद्वार आ रहे थे। हरिद्वार को उत्तराखंड का दरवाजा भी कहते है ये देवभूमि कहलाता हैं क्योंकि यहां से ही लोग आगे  पहाड़ो पर या तीर्थस्थान जाते हैं।मेरा हरिद्वार का ये चौथा चक्कर था।

खेर, सुबह हरिद्वार में तगड़ा जाम मिला...बस रुक रुककर चल रही थी...भयंकर गर्मी लग रही थी Ac भी फ़ेल हो रहा था...नींद खुली तो देखा, लोग झुंड के झुंड हाथों में अटैची ओर थैले लिए इधर उधर आ जा रहे थे... किधर जा रहे थे कुछ पता नही था... बस रास्ता दोनों ओर से भीड़ से लदा हुआ दिख रहा था... सुबह का ये आलम हैं तो शाम का आलम क्या होगा खुदा ख़ेर करें😂🤣😂

सब मिलाकर ये कहूँ की यहां जबरजस्त भीड़ उमड़ी हुई थी !
मुझे याद आया कल मनिकरण से ही मैंने हमारे Gds ग्रुप के सदस्य हरिद्वार निवासी पंकजजी से बात की थी, उन्होंने साफ शब्दों में बोल दिया था कि---"बुआ,अभी इधर का रुख बिल्कुल मत करना क्योंकि कल यहां (हरिद्वार में) 53 लाख पब्लिक थी..ओर प्रशासन से संभाली नहीं जा रही थी उनको संभालने के लिए स्थानीय नागरिक भी लगे हुए हैं"

 अब ,मालूम तो पड़ गया था कि इस समय हरिद्वार आना हमारी सबसे बड़ी बेवकूफी हैं,लेकिन कुछ कर नही सकते थे क्योंकि पंकज से बात हमने वॉल्वो बुक करने के बाद कि थी वरना कदापि नही आते..
खेर, गंगा माता का बुलावा आया था तो आना तो था।
"मन को तसल्ली देने का दर्शन ये ख्याल अच्छा है।"

अब हमारी किस्मत देखिए-- "सर मूढाते ही ओले पड़े" यानी कि जहां हमको उतरना था वही से निकलकर,  जाम में 2 घण्टे फंसकर हमारी बस, बस स्टैंड पहुंची तो पता चला कि हम बेवकूफ 11 km अंदर आ गए है।ओर वापस जाने का मतलब है फिर से 2 घण्टे जाम में फंसना ओर वो भी इस भयंकर गर्मी और धूप में, हमने एक ठंडी सांस भरी मनिकरण की ठंडक जाने कहाँ लुप्त हो चुकी थी और अब हम इस गर्मी से लड़ने को बिल्कुल तैयार थे।
अब, हमारा सबसे पहला काम था अपने ढिकाने पर पहुंचना जो मुश्किल लग रहा था क्योंकि कोई भी ऑटो वाला वापस जाम में फसना नही चाह रहा था...आखिर आधे घण्टे की मशक्कत के बाद एक ऑटो वाले ने हाँ बोली लेकिन 500₹ लेने के बाद, पर 500 ₹का वजन ज्यादा लग रहा था हम 300 बोल रहे थे। अचानक 3 सवारी महादेव की कृपा से ओर मिल गई और हमारा मामला सुलझ गया हम 6 लोग ऑटो में बैठकर अपने गतंव्य स्थान की ओर चल दिये...
 
भारत-दर्शन आश्रम को ढूंढने  में ज्यादा वक्त नही लगा और हम अब आश्रम के सामने थे...ऑटो वाले को धन्यवाद देकर हम अपने कमरे में पहुँचे तब जाकर चैन मिला... कमरा ठीक ठीक था.. Ac तो नहीं था लेकिन कूलर जरूर था जो कमरे की दयनीय स्थिति दर्शा रहा था आखिर फ्री का कमरा था तो एडजेस्ट करना हमारी मजबूरी थी। 
 "भारत भवन" आश्रम का रूम रुक्मणी के गुरुजी की वजय से मिला था ...लँगर भी वही मिलता था... इसलिए कमरे में समान रखकर एक एक जोड़ कपड़े लेकर हम तीनों  नजदीक के गंगा किनारे पहुंच गए...काफी देर तक पानी में मस्ती करते रहे, जब मन भर गया और पूरी तरह तृप्त हो गए तो वापस रूम में आ गए... इतने में आश्रम का सेवादार भोजन करने के लिए बुलाने आ गया ...आश्रम में खुद ही थाली प्लेट लेकर पंगत में बैठना पड़ता हैं खाना परोसने वाले लोग आपको खाना खिलाते हैं ...सादा बगैर कन्दा लशन का खाना होता हैं जो मुझे बिल्कुल पसन्द नही आया,बड़ी मुश्किल से आधा पेट खाकर मैंने इतिश्री की ओर अपनी प्लेट जाकर साफ कर के रख दी...लेकिन रुकमा ने बड़े मजे से पेटभर खाना खाया... मैं उसको जहरीली आंखों से घूर रही थी।
खाना खाने के बाद  हम वापस  कमरे में आ गए ओर लंबी तान लगाकर सो गए रातभर न सोने के कारण सारा शरीर दुख रहा था ..लेकिन थोड़ी देर बाद ही रुकमा ने किसी विलेन की भांति हमको झिंझोड़कर उठा दिया क्योंकि शाम होने वाली थी और हमको गंगा मैया पुकार रही थी, हम भी फटाफट तैयार हो गए और थोड़ी देर बाद हम तीनों हरिद्वार की फ़ेमस हर की पौड़ी की तरफ जाने के लिए ऑटो पकड़ रहे थे।

शेष अगली किस्म में ...

 


                   भारत भवन

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

पेड़ की दास्तां


               ★ पेड़ की दास्तां★  


 मैं एक बूढ़ा पेड़ हूँ
मैं अब बूढा हो गया हूँ!
मुझमें अब वो साहस नही
तूफान से लड़ने की ताकत नहीं..
मेरे पैर जमीन से उखड़ने लगे हैं..
मुझमें अब फूल नही आते,
फल का तो सवाल ही नही हैं...
मेरी सारी पत्तियां झर चुकी हैं,
यदाकदा कोई पीली पत्ती मेरा मजाक उड़ाती हुई हवा में विलीन हो जाती हैं!
अब मुझमें नई कपोलों का सृजन नही होता ।
पतझर ही मेरा बसेरा हैं।

क्योकिं अब में बूढ़ा हो गया हूँ
मेरे शरीर की छाल अब खुरदरी हो गई हैं, 
कुछ कुछ काली भी पड़ गई हैं!
मुझमें अब वो रौनक नही रही
अब मैं हवा से भी डरने लगा हूँ!!
तेज हवा से कांपने लगता हूँ...
कहीं कोई मजबूत झोंका मेरी शाखों को मुझसे जुदा न कर दें!
कोई बवंडर मेरे वजूद को ही न उखाड़ फैके;
बस इसी डर के अंधकार में हमेशा खोया रहता हूँ!
इसी आशंका से डरता हूँ!

 बारिश की नन्ही बूंदे मुझमें अब कोई उमंग नही ला पाती,
सावन के गीत अब कोई गौरी  मेरी बाहों में आकर नही गाती!
अब कोई हसीना मेरे वक्ष पर झूला नही झूलती!
कोई रोमांटिक बातें मेरी जड़ में बैठकर नहीं होती!
क्योंकि अब मेरे चारों तरफ छांव नहीं होती!
कोई चिड़ियां मेरी टहनी पर अपना घोंसला नहीं बनाती!
क्योंकि अब मैं बूढा हो गया हूँ।

अब सावन को देख मेरी पत्तियां खुशी से झूमने नही लगती!
मेरा रोम रोम पुलकित  नही होता!
मेरे गेसू हवा में नही उड़ते!
मेरी आँखें खुशी से नही नाचती !
मेरा मन मयूर बन  नही डोलता,
क्यों???
क्योंकि अब मैं बूढ़ा हो गया हूं ---
अपनी मांद में ही पड़ा रहता हूँ!

लेकिन मैं तब प्रसन्न हो जाता हूँ 
जब कोई नन्ही टहनी मेरी कोख से अंगड़ाई लेती हुई निकलती हैं...
तब मैं पुनः जीवित हो उठता हूं!
अपना पुराना चोला फैक एक नए जीवन की तलाश में फिर से अपना सर आसमान पर उठाकर दूर देखता हूँ, पथिक को रिझाने के लिए------
"ऐ पथिक,अब मेरे जीवन में फिर से बहार आएगी और मेरी नई पत्तियों की छांव में तुम आराम कर सकोगें!"

अब मैं नई कपोलों के इंतजार में हूँ
नए फूलों के इंतजार में हूँ
कोयल की कुक सुनने को बेकरार हूँ!
मैं फिर से जवां हो जाऊंगा !
तब मुझे कहाँ याद  रहेगा कि,
मैं एक बूढ़ा पेड़ हूं😀

शनिवार, 5 सितंबर 2020

अमृतसर की यात्रा भाग11

    
अमृतसर यात्रा                     
भाग 11
मनिकरण भाग 3
3जून 2019

28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम  में मेरी भाभी भी आ  गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से निकलकर हम माता चिंतपूर्णी ओर ज्वालादेवी के दर्शन कर हम आनंदपुर साहिब रुके,1जून को किरतपुर गुरद्वारे घूमकर रात को मनिकरण साहब पहुंच गए ...कल हमने काफी मनिकरण घुमा ...
अब आगे..... 
सुबह-सुबह फटाफट ठंड से सुकड़ते हुए हम गरम पानी के कुंड में स्नान करने चल दिये...यहां यही खूबसूरत मौका होता हैं जब हम कुंड में होते है ,बाहर निकलने का मन ही नही होता हैं ...खूब मस्ती कर के हम कपड़े पहन कुंड से बाहर आये तो पता चला कि मेरी कम्फ़र्टेबल चप्पल किसी ओर को पसन्द आ गई थी और वो अपने स्थान से नदारत थी।
काफी देखा ,पर कुछ पता नही चला,लोग तीर्थ स्थान में भी चोरी करना अपना धर्म समझते हैं ।ख़ेर,मैंने भी किसी ओर की पड़ी स्लीपर पहन ली ,क्या करूँ बाजार तक तो जाना था ओर मैं एक कदम भी नँगे पांव चल नही सकती थी ,पर उस स्थान को बोलकर गई कि अभी नई चप्पल पहनकर आती हूं फिर जिसकी सम्पत्ति हैं उसको लौटा दूँगी।
बाजार में घूमते रहे पर मजाल हैं जो 10 नम्बर की चप्पल मिल जाये।
जैसे तैसे एक दुकान पर 200 रु की चप्पल मिली,वो कम्फ़र्टेबल तो नही थी पर ठीक -ठाक काम चलाऊ थी।
अब वापस गुरद्वारे आकर जिसकी  भी चप्पल थी वहां थेंक्स बोलकर वापस रख दी...ईमान से😄
गुरद्वारे में लँगर खाया और कुछ देर आराम कर अपना सामान इक्कठा कर के मनिकरण को धन्यवाद बोल हम गुरद्वारे के पास पार्किंग से सीढ़ियों के द्वारा ऊपर आ गए।
वहां से एक खाली बस में सवार हो हम भुंतर को चल दिये।
रास्ते मे नया हिल स्टेशन बना "कसोल" से प्राकृतिक नजारे देखते हुए हम भुंतर पहुँच गए... वहां से वॉल्वो के ऑफिश में अपना सामान रख हम आसपास घूमने निकल पड़े...एक रेस्तरां में हमने चाय और ममोज खाये...फ्रूट्स की दुकान से कुछ ताजा फ्रूट्स खरीदे ओर रात 10 बजे अपनी वॉल्वो में सवार हो गए..

शेष आगे हरिद्वार में:---