मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

# चिता की आग #






तुझको अग्नि के हवाले कर के ....
मैं  जड़- सी हो गई हूँ .....
कभी अपनी छाती का लहू पिलाया था  मैने ..
तेरी वो नटखट आँखें ..
वो चेहरे का भोलापन .
 वो प्यारी -सी मुस्कान ?  
वो तोतली जुबान ----
अब खामोश है ...
ठंडा- पन  लिए ..सर्द ...

**************

 मेरा सफ़ेद पडता मुंह  
आँखों से बहती अश्रु धारा 
 बिदा की अंतिम घडी 
तेरे नाम की अंतिम अरदास ...!

*************

मैं स्तब्ध ! आवाक ! तुझे जाते हुए देखती रही ....
होठ  कांपकपाये ..शरीर थरथराया ..
दिमांग शून्य ...???

************

खप्पचियों से बंधा, सफ़ेद कफ़न ....
ये लिबास तो मैने कभी चाहा नहीं था ?
फिर क्यों आज तेरे लिए यही जोड़ा मुकरर हो गया ?

 "राम नाम सत्य  हैं "

अचानक ! इस कर्कश ध्वनी से मेरे कान बजने लगे ..
"अरे , कोई रोको उसे "रॊ- ऒ- ओ- को 
  "यह उम्र है जाने की ....?"

अभी उसने देखा ही किया है ..?
अभी तो उसके दूध के दांत भी नहीं टूटे ..?
और जालिमो ने उसके अंगो के टुकड़े -टुकड़े कर दिए ...?
अभी तो हाथो में मेंहदी भी नहीं लगी ...?
और राक्षसों ने उसे चिता पे लिटा दिया ...?

" कोई रोको उसे ..कोई रोको ..यह उम्र है जाने की ..."






   

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं थी मैनें .....?





साँसों का बंधन /
दिल की कराहें /
काँटों का बिछौना /
ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं थी मैनें .....?

आँखों का रोना /
दिल का तडपना / 
रातो को जगना /
ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं थी मैनें .....?

अपनों से बिछड़ना /
अपनों के लिए रोना /
फिर खुद ही संभलना /
ऐसी जिन्दगी तो  चाही नहीं थी मैनें ......?

कलेजे से लगाना /
फिर दूर हटाना /
खुद के हाथो ही बिजली गिरना /
ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं थी मैनें ...... ?

रस्ते से गुजरना /
आवाजे लगाना /
उसका यू  खिड़की पे आना  /
मुझे तांककर  कतरा जाना /
ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं थी मैनें ....?

अपना बनाना /
हासिल करना /
मोहब्बत जताना /
फिर धोखा खाना /
ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं  थी मैनें .....?

ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं थी मैनें ....?
   

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

नींद आँखों से कौसो दूर थी










कल की  रात बहुत शौख बड़ी रोचक थी .....
आसमां था काला सितारों की बड़ी रौनक थी ..
खुली खिड़की से रौशनी कभी-कभी मुझ पर पड़ती थी ,
हवा के झौंके मेरे अंग को स्पर्श कर के छू जाते थे ..
नींद आँखों से कौसो दूर र्रर्रर थी ...

झांकता हुआ चाँद किसी की याद दिला रहा था  ......
किसी की मदहोश आवाज मुझे बेसुध किये जा रही थी  ..
वो कोई था जिसकी बांहों में मेरी जन्नत थी ..
वो मेरा खवाब! मेरा प्यार ! मेरा हमदम ! मेरा नसीब था ....
पर वो मुझसे लाखो मील दूर था ...
चाहकर भी मैं उसे छू नहीं पा रही थी ...
नींद आँखों से कौसो दूर र्रर्रर थी ...

 वो मेरे साथ तो था ,पर मेरे पास न था ...
 उसके होने का एहसास मन को सुकून दे रहा था  ..
तन मेरी गिरफ्त से दूर किसी के आगोश में था ..
अनुभूति तो थी--- पर स्पर्श नहीं था ....
हसरते जवां थी और उमंगे बेकाबू थी ....
नींद आंखों से कौसो दूरररर  थी .....

तभी कही से अचानक एक आवाज़ आई -----
"जागते रहो "

कोई पास न था ? कोई साथ न था  ????
सिर्फ खामोशियाँ थी और मैं थी और मेरे एहसास !





गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

पुणे क सफ़र -- भाग 2


पुणे क सफ़र -- भाग 2
( आगा खां पैलेस )



आगा खाँ पैलेस   




दगडू शेठ के गणपति देखकर हम चल दिए "आगा खाँ  पैलेस " देखने....यहाँ पहुँचकर हमने 5 रु की टिकिट कटाई ---सारा महल सुनसान पड़ा था ..बहुत ही सुंदर महल था ...और बागीचे के तो क्या कहने ....

आग़ा खां पैलेस के बाहर लगा बोर्ड 



विस्तृत जानकारी 


महल के अन्दर मैं और मेरे पीछे शानदार बागीचा 



इतिहास :---
आगा खान पैलेस पुणे के येरावाड़ा मे स्थित एक ऐतिहासिक भवन है। सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान दिवतीय ने 1892 में बनवाया था। इस भवन में "महात्मा गांधी" को उनके अन्य सहयोगीयो से साथ सन 1940  में बंदी बना कर रखा गया था। कस्तूरबा गांधी का निधन इसी महल में हुआ था। उनकी समाधी भी यहॉ स्थित है। अब यह भवन एक संग्राहलय है।
यह स्मारक ६.५ हेक्टेयर में फैला हुआ है। 1892  में शाह आगा खान तृतीय ने इसे बनवाया था। 1956 तक यह भवन उनका महल रहा। 1969 में,आगा खान चतुर्थ ने इसे भारत सरकार को दान में दे दिया था।महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी और महात्मा जी के सचिव महादेवभाई देसाई ३५ वर्ष तक यहां रहे और इसी प्रवास के दौरान उनकी मृत्यु हुई थी उनकी अस्थियां स्मारक के बागीचे में रखी गई हैं। गांधी जी के जीवन पर एक फोटो-प्रदर्शनी और उनकी व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएं जैसे उनकी चप्पलें और चश्मे यहां रखे गए हैं।





महल के अन्दर गांधी जी  और बा के दैनिक उपयोग की वस्तुए ...




गांधी जी की प्रतिमा एक बालक के साथ खेलते हुए 



कस्तूरबा गांधी 


9 अगस्त 1942 को जब बापू को मुंबई से गिरफ्तार करके यहाँ नजर बंद रखा गया था तो उनके साथ कस्तूर बा गांधी और उनके सचिव मनोहर भाई देसाई भी थे ...यहाँ आकर महज 6 दिन बाद ही मनोहर देसाई जी की  मृत्यु हो गई  थी  ...उनकी याद में यहाँ उनका स्मारक बना है .. 




यह है गांधी जी, कस्तूर बा गांधी, ओर उनके सचिव महादेव भाई  देसाई का स्मारक  

9 अगस्त 1942 को शिवाजी पार्क (मुंबई )से गिरफ्तार करके कस्तूरबा गाँधीजी  को पुणे के इसी आगा खां  पैलेस में रखा गया था जहाँ  22 फरवरी 1944 को उनका देहांत हुआ ..उनका स्मारक भी यहाँ बना है ..गांधी जी की मृत्यु यहाँ नहीं हुई पर उनका स्मारक भी यहाँ बना हुआ है ..



पैलेस के शानदार बगीचे की कुछ तस्वीरे 



अलविदा ..आगा खां  पैलेस 


और इस तरह हम चल दिए आगा खां पैलेस देखकर वापस अपने एक दोस्त के पास ....जहाँ खाना खाकर हमको जाना है   शिर्डी के साईं बाबा के  पास ....तो मिलते है .......

शिर्डी के साईं बाबा के यहाँ ......जारी ----



रविवार, 25 नवंबर 2012

"अद्रश्य डोर "









उसके  और मेरे बींच वो क्या है  जो हम दोनों को जोडती  है ...
एक अद्रश्य डोर है  जो  मजबूती से हमे जकड़े  हुए है ....
वो इसे प्यार नहीं कहता ---
पर यह मेरे प्यार का  एहसास है---  
मैं उसे बेहद प्यार करती हूँ  ---
मैं  इस एहसास को क्या नाम दूँ  ...
समझ नहीं पाती  हूँ ...
वो कहते है न---- ' दिल को दिल से राह होती  है---'
जब भी वो अचानक मेरे ख्यालो की खिड़की खोल कर झांकता  है ...
तो मैं  तन्मयता से उसे  निहारती हूँ --
तब सोचती हूँ की यह क्या है ? जो हमे एक दुसरे से जोड़े हुए है --?
मैं इसे प्यार का नाम देती हूँ --
तब वो दूर खड़ा इसे 'इनकार' का नाम  देकर मानो अपना पल्ला झाड लेता है -- 
 क्यों वो इस 'लौ ' को पहचानता नहीं ----?
या पहचानता तो है पर मानता नहीं ..?
पर इतना जरुर है मेरे बढ़ते कदम उसके इनकार के मोहताज नहीं .......



शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

पुणे का सफ़र भाग 1


पुणे का सफ़र भाग 1



चित्र ...गूगल बाबा से धन्यवाद 



पुणे महाराष्ट्र का दूसरा बड़ा शहर है ....यह महाराष्ट्र की  दो मशहूर नदियों के किनारे बसा हुआ है ...यह  पुणे  जिले का प्रशासकीय मुख्यालय भी है ..पुणे भारत का छटा बड़ा शहर है ..यहाँ अनेक मशहूर शिक्षण संस्थाने है ..इसलिए इसे पूरब का आक्सफोर्ड भी कहा जाता है ...मराठी यहाँ की मुख्य भाषा है ...

26 सितम्बर 2012
मैं और मेरी सहेली रेखा ने पुणे जाने का प्रोग्राम बनाया ..करीब 30 साल से मैं मुंबई में हूँ पर पूना  जाने का कभी प्रोग्राम नहीं बना ...हर साल गणेश उत्सव पर प्रोग्राम बनाती थी पर हमेशा फेल हो जाता था इस बार हम दोनों सहेलियों ने जाने का मन बना ही लिया ..गणेश उत्सव चल रहे थे ...और हम सुबह 11 बजे  दादर से वोल्वो बस पकड़ने चल दिए ....
दादर से हर एक घंटे में ट्रेन भी चलती है पर इस बार बस से  जाने का मन था सो चल दिए ...ट्रेन से जाते तो फायदा होता जनरल टिकिट 60 रु का आ जाता पर वोल्वो का टिकिट था 250 ..लेकिन ऐसी में सफ़र करना था और आराम से करना था सो , जब जाना तो क्या सोचना ...मौसम बहुत खुशगवार था ..बादलो से आकाश भरा हुआ था ...कभी -कभी बूंदा बूंदी भी आ जाती थी ...सूरज महाराज भी आँख -मिचोली खेल रहे थे ....और हम ऐ सी की ठंडी हवा में मदहोश हुए रास्ते की सुंदरता को देखते हुए गप्पे मारते हुए चले जा रहे थे ...टी वी पर अजय देवगन की फिल्म 'तेज' चल रही थी ..कभी फिल्म तो कभी बाहर की द्रश्यावली कब पुणे  आ गया पता ही नहीं चला .... शाम के 4 बज गए थे और हम पुणे के बस स्टेंड शिवनेरी पर खड़े थे ...

  
रास्ते की द्रश्यावली ...दिल को लूटकर  ले जा रही है 




नहा-धोकर  साफ़ सुथरा खड़ा है पहाड़  


पहाड़ो से बहता झरना ..लुभावना द्रश्य ...हिमालय से कम नहीं 

 पुणे का इतिहास :---


 आठवी शताब्दी मे पुणे को 'पुन्नक' नाम से जाना जाता था। शहर का सबसे पुराना वर्णन इ स 758 का है, जब उस काल के राष्ट्रकूट राज मे इसका उल्लेख मिलता है। मध्ययुग काल का एक प्रमाण जंगली महाराज मार्ग पर पाई जाने वाली पातालेश्वर गुफा है, जो आठ्वी सदी की मानी जाती है।


17 वी शताब्दी मे यह शहर निजामशाही, आदिलशाही, मुगल ऐसे विभिन्न राजवंशो का अंग रहा। सतरहवी शताब्दी में शहाजीराजे  भोंसले को निजामशाहा ने पुणे की जमींदारी दी थी। इस जमींदारी मे उनकी पत्नी जिजाबाई ने ई .स1627 में शिवनेरी किले पर शिवाजीराजे  भोंसले को जन्म दिया। शिवाजी महाराज ने अपने साथियों के साथ पुणे परिसर में मराठा साम्राज्य की स्थापना की। इस काल मे पुणे में शिवाजी महाराज का वर्चस्व था। आगे पेशवा के काल में ईस 1749 सातारा  को छत्रपति की गद्दी और राजधानी बना कर पुणे को मराठा साम्राज्य की 'प्रशासकीय राजधानी' बना दी गई। पेशवा के काल में पुणे की काफी तरक्की हुई। ई स 1818 तक पुणे में मराठों का राज्य था।




शिवाजी महाराज 




शाम को हम जैसे ही बस स्टेशन पहुंचे ..हमारी दोस्त दीपा अपनी गाडी लिए हमारा इंतजार कर रही थी ..और हम चल दिए उसके घर कोरेगाँव में ....कोरेगाँव पुणे में बहुत प्रसिध्य है क्योकि यहाँ जगत प्रसिध्य 'ओशो' का आश्रम है ...यहाँ ओशो पार्क भी है ...जहाँ ओशो के अनुयायी आपको प्रेममयी वातावरण में मशगुल दिखाई देगे ...पर मेरा इरादा वहां जाने का हरगिज नहीं था--- 

थोडा सुस्ताने के बाद रात को  हमने पूना  की सड़के नापी ..वहां के  मशहूर  माल में कुछ खरीदारी की ...वहां की मशहूर बेकरी से कुछ खाने के  स्नेक्स ख़रीदे और एक होटल में मस्त बिरयानी का मजा लुटा ...वापस घर आकर सो गए ....

 

दीपा के घर  मैं  

सुबह नाश्ता करके हम चल दिए 'दगडूमल सेठ ' के गणपति देखने ...जिसे देखने हम यहाँ आये थे ..लाइन  काफी लम्बी थी ..पर हम भी कुछ कम नहीं ....आप भी देखे ....


 श्रीमंत दगडू शेठ हलवाई का गणपति :--




दगडूशेठ का गणपति  पंडाल 


गणपति बप्पा विराजमान है 



सामने दगडू शेठ का मंदिर 





दूर से भी गणेश की खुबसूरत कृति 



दगडूमल शेठ के मंदिर के सामने मैं ....और यह शाल मुझे मंदिर से ही मिली ...गणपति की कृपा ..



इस बार जयपुर के हवामहल की कलाकृति बनाई थी ..काफी भीड़ है और लम्बी लाइन भी ..



एक पुराना फोटू दगडू सेठ के गणपति का  ( गूगल से स - सादर ) 


1893 में श्रीमंत दगडू शेठ मिठाई वाले ने गणपति की स्थापना कि थी ...सम्पूर्ण महाराष्ट्र में यह गणेश सबसे एश्वर्य शाली माने जाते है ....इनकी मूर्ति पर 3 करोड़ रुपयों के गहने चढाये जाते है ..जब लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेश उत्सव मनाने  का आव्हान किया तो  यह गणपति भी सार्वजनिक हो गए ...यहाँ के गणेश की मन्नत लोग बाग़ रखते है फिर मन्नत पूरी होने के बाद कुछ जेवर चढाते है ....यह मंदिर एक ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है ...जिसमें कई कार्यक्रम होते है .... 

जेवरो से लदे गणेश ... यह चित्र भी गूगल बाबा  से                  


चलिए अब  यह  पोस्ट यही ख़त्म करती हूँ ....आगे देखिये आगा खान पेलेस .....


गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

समुंदर का मोती







वो  समुंदर का मोती था ...सीप उसका घर था ..
बाहरी  दुनियाँ से वो अनजान था .....
अपने दोस्तों से उसको बहुत प्यार था ...
कुर्बान था वो अपनी दोस्ती पर ,
मस्त मौला बना वो गुनगुनाता रहता था ...
दोस्तों के छिपे खंजर से वो अनजान था ..

एक दिन उसने दोस्तों का असली रूप देखा ..
दिल टूट गया उसका ..
एक भूचाल -सा आ गया उसके जीवन में ..
वो अंदर तक तिडक गया ...
फिर भी वो शांत रहा ...
शांति से निकल गया दूर बहुत दूर ...
इस स्वार्थी दुनिया से परे ...
अपनी छोटी -सी दुनियां में ...
जहाँ वो आज खुश है ...पर -----

"दिल पर लगी चोट कभी -कभी हरी हो  जाती है ..
खून बहने लगता है ...कराहटे निकलने लगती है ..."
                                                


शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

चेतावनी ..!!!









कीर्ति शर्मा ....https://www.facebook.com/profile.php?id=100004243329104


कल यह मैंनें अपनी फेसबुक वाल पर अपडेट किया था ....


यह औरत ...जो अपने आपको बहुत बड़ा ब्लोग्गर कीर्ति शर्मा बताती हैं ...मुझे कई दिनों से मानसिक यान्त्रना दे रही हैं ...मुझे गंदे मेसेज भेजती हैं ...फेसबुक पर मेरे कमेंट पर गंदे ताने देती हैं ...मुझसे क्या दुश्मनी हैं  पता नहीं ?  इसने कई बार मेरे जी-मेल पर  मेरे बच्चों के जी -मेल पर मेरी इज्ज़त खराब करने की कोशिश की हैं ..इसे; मैं और मेरे दोस्त ब्लाक कर चुके हैं ... फिर भी पता नहीं कैसे मेरी वाल पर आ जाती हैं     


 यह आज फेसबुक पर अपडेट किया है ....

मेरे अजीज दोस्तों ! आप सभी का तहे दिल से धन्यवाद ...यह औरत बाज नहीं आई अपनी हरकतों से इसने रात को मुझे पुरानी किसी पोस्ट पर फिर से गन्दी बाते लिखी .. मेरे दोस्त सुनील खत्री जी ने मुझे सूचित किया और  मैने देखा तो मैने वो पूरी पोस्ट ही डिलीट कर दी ..जहाँ से यह अपना गन्दा काम करती थी ...मेरे बच्चो की वाल पर ! मेरे भतीजे की वाल पर ! इसने मुझे गंदे कमेंट लिखे .....


मेरे कई और दोस्तों ने बताया की यह औरत उनसे भी गलत बाते करती थी  जिसके कारण उन लोगो ने भी इसे डिलीट कर दिया ...मेरे एक दोस्त ने बताया की यह अपने आपको --" डॉ. रूपचंद शास्त्री जी" की छोटी बहु बताती हैं अब क्या सच्चाई है यह तो वो ही जानते है ...वो एक बड़े सम्मानित ब्लोगर हैं और मुझे नहीं लगता की यह बात सच होगी ..यह अपने आप को बहुत बड़ी ब्लोगर भी बताती है जबकि मैने सब जगह देख लिया पर इसका कोई ब्लॉग मुझे नजर नहीं आया ...न फोटू  न कोई और आई डी ? सिर्फ जनम का साल लिखा है 1991 इतनी कम उम्र वाली ऐसे पैतरे नहीं दिखा सकती .. इसीलिए मुझे लगता है की यह कोई बड़ी उम्र का आदमी है जो मुझसे किसी बात का बदला ले रहा है ...अब आप खुद फैसला करे  ...धन्यवाद ! 
यदि इसका कोई ब्लॉग आप किसी ने देखा है तो मुझे बताये ...धन्यवाद !



गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

गुस्ताखी माफ़ ...





दोस्तों !!! काफी दिनों से आपसे दूर रही हु ...कम्प्यूटर  की खराबी की वजय से ....जल्दी ही आपसे मिलूगी .....दर्शन @

रविवार, 26 अगस्त 2012

मैं और मेरे पापा




" मैं और मेरे पापा "

(स्व. सरदार रणजीत सिंध धालीवाल ) 


(यह बात मेरी ही नहीं हम सब की है )

* जब मैं 3 वर्ष की थी तब मैं सोचती थी की :----
 "मेरे पापा दुनियां के सबसे मजबूत और ताकतवर व्यक्ति  हैं...वैसे भी वो पुलिसमेन ही थे ... 

*  जब मैं 6 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
"मेरे पापा दुनियां के सबसे ताकतवर इंसान ही नहीं ,समझदार व्यक्ति भी हैं ...

* जब मैं  9 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
" मेरे पापा दुनियां के सबसे ज्ञानी आदमी है क्योकि उन्हें हर चीज़ का ज्ञान है  ....

* जब मैं 12 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----- 
"मेरी सहेलियों के पापा मेरे पापा से ज्यादा समझदार और फ्रेंडली हैं ...

* जब में 15 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
" मेरे पापा को दुनियां के साथ चलने के लिए कुछ और ज्ञान की जरुरत हैं ,वो उतने समझदार नहीं है जितना मैं समझती थी ....

* जब मैं 20 वर्ष की हुई तब मुझे महसूस हुआ की :----
मेरे पापा किसी और दुनियां के जीव  हैं और वे मेरी सोच के साथ नहीं चल सकते .....हम दोनों की सोच  में बहुत अंतर है ...

* जब मैं 25 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
मुझे किसी भी काम के बारे में अपने पापा से कोई सलाह नहीं लेनी चाहिए, क्योकिं उन्हें मेरे हर काम में कमी निकालने की आदत -सी पड़ गई है ......

*जब मैं 30 वर्ष की हुई, तब मुझे महसूस हुआ की :---
मेरी संगती में रहकर शायद मेरे पापा में कुछ समझ आ गई हैं ...और वो कुछ समझदारी की बाते करने लगे हैं ......

* जब मैं 35 वर्ष की हुई तब मैं महसूस करने लगी की :----
मेरे पापा उतने ना- समझ नहीं है ...मुझको  मेरे पापा से छोटी - मोटी बातों के बारे मैं सलाह  लेने  में कोई हर्ज नहीं है  .... 


* जब मैं 40 वर्ष की हुई ,तब मैंने महसूस किया की :---

मुझे मेरे पापा से कुछ जरुरी मामलो में सलाह-मशवरा ले लेना चाहिए ...वो कुछ समझदार हो गए है ...


* जब मैं 50 वर्ष की हुई, तब मैंने फैसला किया की :---

मुझे अपने पापा की सलाह के बिना कुछ काम नहीं करना चाहिए, क्योकिं अब मुझे यह ज्ञान हो  चुका  था की मेरे पापा दुनियां के सबसे समझदार और सबसे ज्यादा प्यार करने वाले व्यक्ति हैं .....।


* पर इससे पहले की मैं अपने फैसले पर अमल कर पाती , मेरे प्यारे पापा इस दुनियां  को अलविदा कह कर जा चुके थे और मैं अपनी बेवकूफी के रहते उनकी हर सलाह और तजुर्बे से वंचित रह गई थी ...


"आई मिस यू  पापा "

  
मेरे पापा मेरी शादी में फूलो की माला पहनाते हुए   




*कविता में मेरे संवाद महज काल्पनिक है |

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

जिन्दगी मिलेगी नहीं दुबारा





 * जिन्दगी नहीं मिलेगी दुबारा *


जिन्दगी मिलेगी नहीं दुबारा 
 यु ही कट जायेगी बिन सहारा 
  कभी पैसो का जुगाड़ करते हुए ..
 कभी यू ही खाली पेट सोते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी  बेटी की फ़ीस भरते हुए ....
कभी बेटे की जींस सीते हुए....
कभी ख्वाबों को टूटते हुए ...
कभी तारों को गिनते हुए .... 
जिन्दगी यू ही गुजर जाएगी ..... 

कभी एक कतरा धुप को तरसते हुए ...
कभी एक साडी को तकते हुए ...
कभी सोने की चमक से चुंधियाते हुए ...
कभी रात को लट्टू की रौशनी में नहाते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ....


कभी सड़कों पर दौडती कारों को देखते हुए ...
कभी नन्ही -आँखें साइकिल को तरसते हुए ..
कभी होटलों से ठहाकों को सुनते हुए ...
कभी एक 'वडा - पाव ' खाते हुए ....
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ....


कभी एक परिवार को खोते हुए ...
कभी आपस में झगड़ते हुए ....
कभी पराया प्यार छिनते हुए ....
कभी अपनों की ही बलि लेते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी दूध के जुगाड़ में रोते हुए ...
कभी हवस की प्यास बुझाते हुए ...
कभी परिवार को पालते हुए ...
कभी चंद नोटों पर नाचते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी रात -भर कपड़ों को  सीते हुए ...
कभी रात- भर पहरा देते हुए ...
कभी अपनों के लिए रोते हुए...
कभी उम्मीदो के लिए तरसते हुए ... 
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी आंसुओ को पीते हुए ....
कभी हंसी को छिपाते हुए ...
कभी गम को ढोते हुए ... 
कभी ख़ुशी में भी रोते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...



कुछ इस तरह से गुजर गई  जिन्दगी जैसे ---
                ता -उम्र किसी दुसरे के घर में रहे हो जैसे ----अज्ञात !




शनिवार, 4 अगस्त 2012

जन्मदिन......


जन्मदिन


निक्की का पहला जन्म दिन 
4 मार्च 1990

पंजाबी में निक्की का मतलब होता हें--'छोटा '--हर पंजाबी घरो में एक निककी  या एक निक्कू मिल जाएँगे--
निक्की का २२ वा  जनम दिन हैं ---हमारे पुरे खानदान में वो बहुत लाडली हैं ..पर मुझे याद आ रहा हैं वो दिन जब निक्की इस धरा पर जन्मी भी नही थी ....???
मैं तीसरे बच्चे के एकदम खिलाफ थी --मेरा पूरा परिवार बन चूका था --इसे मैं किसी भी हालत  में नहीं चाहती थी   ..मैने बहुत कोशिश की पर सफल नही हुई --वो कहते है न --'जाको राखे साईयाँ ,मार सके न कोई '--ठीक यही  हाल निक्की के साथ भी हुआ ---???
उसके जनम की मुझे कोई ख़ुशी नहीं हुई --यहाँ तक की मैने उसकी शक्ल भी नही देखी ! अपना मुंह फेर लिया .. डॉ ने बहुत  कहाँ की आप एक नन्ही बेटी की माँ बनी हैं ...पर मुझे अच्छा ही नही लग रहा था ...     
लेकिन ,२दिन बाद एक अजब वाकिया हुआ ..जिसने मेरा मन ही बदल दिया ----   
२ दिन बाद मैं निक्की को लेकर घर आ गई --दिल में कोई ख़ुशी नही थी --मन थोडा उदास था --पर पतिदेव बहुत खुश थे--उनको वैसे भी लडकियों से जरा ज्यादा ही लगाव हैं ..... 

रात को करीब १० बजे निक्की की साँसे उखड़ने लगी --नब्ज बहुत स्लो चल रही थी--हम घबरा गए --तुरंत उसे नर्सिग होम  डॉ के पास लेकर गए --डॉ ने चेक किया और कहा --'आपने इसे कुछ खिला दिया हैं --आप इसे नही चाहती थी न ' ??? मैं  हेरान रह गई --बात तो ठीक थी पर, मैने उसे कुछ नही खिलाया था सिर्फ शहद चटाया था ?मैने उससे  कहा --पर वो मानने  वाली नही थी --  बोली -- 'पुलिस कम्प्लेंट  तो करवानी पड़ेगी हम कुछ नही कर सकते ...'  
 मैने बहुत कहा-पहचान वाली डॉ थी, थोडा पसीजी ! बोली-- 'आप इसे बाम्बे ले जाए बच्चो के सरकारी  हास्पिटल  में ,यहाँ हम कुछ नही कर सकते--मैं चिठ्ठी लिख देती हूँ  ...!' हालाकि मैं  बहुत डर गई थी  और इसी कारण मैने उसे यह नहीं बताया की मैने उसे थोड़ी सी अफीम भी चटाई हैं --हमारे यहाँ रिवाज है की बच्चे को थोड़ी सी अफीम भी चटाते हैं ताकि वो आराम से सो सके और पेट की गंदगी भी निकल सके ...शायद मैने नासमझी में थोडा -सा डोज ज्यादा दे दिया होगा ....
खेर, रात ३ बजे हम वसई से टेक्सी कर ग्रांड रोड स्थित वाडिया हास्पिटल चल पड़े --हमे २ घंटे लग जाना था ....रास्ते भर  उस नन्ही सी जान पर बहुत तरस आता रहा..मेरा हाथ उसकी नब्ज पर ही था और मैं अपने आप को कोस  रही थी की मेरी वजय से इस नन्ही -सी जान पर यह कयामत टूटी हैं ..मैं मन ही मन   भगवान् से अपने किए की माफ़ी मांग रही थी ..मेरी मनहूस इच्छा ये मासूम बच्चा भुगत रहा था --डॉ को तो समझ आ गया था की कुछ खिलाया जरुर हैं ? पर मैं उसे बतला नही सकती थी..? मैं खुद डर गई थी ..उपर से २दिन की जच्चा !  बहुत कमजोरी महसूस कर रही थी ..लेंकिन अपनी कमजोरी को नजरंदाज कर मैं निक्की के प्राणों की भीख मांग रही थी ...माँ की ममता की आखिर जीत हुई ..

हम वाडिया हास्पिटल पहुंचे तब तक सुबह हो चुकी थी ..वो काली अमावस्या की रात बीत चुकी थी ---निक्की भी अब नार्मल साँसे ले रही थी ---शायद अफीम का असर खत्म हो चूका था --हमने OPD में दिखाया तो डॉ बोला यह नार्मल हैं --?आप घर जा सकते हैं ...
 मेरा ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ..आँखों में ख़ुशी के आंसू थे --हम वापस घर चल पड़े ...
भगवान् ने मुझे एक करार झटका दिया था ?

मेरी  उसी बेटी का आज  जनम दिन हैं ...निक्की बहुत समझदार और हुशियार लडकी हैं ...हमारे घर की रोंनक और सबकी चाहती ...
   
आज उसको एक कविता रूपी भेट देना चाहती हूँ :--


" एक अजन्मी बेटी की इल्तजा "

ओ माँ मेरी !मुझे कोख मैं न मार 
मुझे देखने दे यह प्यारा संसार 
तेरी गोद में मुझ को रहने दे 
कुछ पल मुझे और जीने दे 
ओ माँ मेरी ..
मुझे तुझ से कुछ और नही लेना हैं 
बेटी होने का अधिकार मुझको देना हैं 
क्यों तू मेरा गला घोट रही हैं
ओ माँ मेरी . ..
तू भी तो एक माँ की जननी हैं 
देखने यह संसार आई हैं 
फिर क्यों मेरा वजूद मिटाने चली है
ओ माँ मेरी ...
मुझे मारकर तुझे क्या मिलेगा !
बेटियां तो होती हैं घर का गहना ! 
 ओ माँ मेरी ...
मारकर मुझ को तू क्या करेगी 
यह दंड तू सारे जनम भरेगी 
इस निठुर समाज के लिए 
तू मुझे यू न उजाड़ 
ओ माँ मेरी ...
अपनी कोख को तू कब्रस्तान न बना 
मुझे इस कब्र में जिन्दा न दफना 
सुन ले मेरी चीख -पुकार 
ओ माँ मेरी ...
यह कैसा समाज है माँ !
यह कैसा रिवाज है माँ !
पुत्र जन्मे तो चाँद चढ़ जाए 
पुत्री जन्मे तो अधियारा घिर आए 
यह कैसा इन्साफ हैं माँ ?
यह कैसा समाज है माँ ?
तू इन कसाइयो में क्यों मिल गई 
ओ माँ मेरी ..
कर ले मेरी मौत से तोबा !
मैरी जिंदगी से गर्व तुझे होगा !!
ओ माँ मेरी ...





पुत्रियों को न  मारो करो  इस बात से तौबा !
क्योकि यह होती  हैं  हमारे घर की शोभा  





रविवार, 22 जुलाई 2012

नैनीताल भाग --11......रोप - वे


नैनीताल भाग --11 

रोप - वे यानी केबल -कार 



"साथ हमारा पल -भर ही सही ...
इस पल जैसा मुक्कमल कोई कल नहीं ..
हो शायद फिर मिलना हमारा कहीं---
तू जो नहीं तो तेरी यादें संग सही ...."




14 मई 2012 

हम तारीख 9 मई से मुंबई से निकले हैं ..आज 14 तारीख है ..हम वापस नैनीताल जा रहे है ..यह नैनीताल -यात्रा की आखरी कड़ी है .....

सुबह शर्माजी की मेड ने हमारे लिए आलू के परांठे बना दिए थे  .. वो तो नीचे अपने बैंक में चले गए थे ..हम परांठे खाकर, तैयार हो नैनीताल को चल दिए ..शर्माजी का धन्यवाद किया इतने बढियां अथिति -सत्कार पर .. यहाँ भी हमें  कोई डायरेक्ट नैनीताल नहीं ले जा रहा था , कोई 3 तो कोई 4 हजार रु माँग रहा था ..फिर मंगल सिंह जी ने अपने एक आदमी को हमारे साथ नैनीताल भेजा रु. 2000 हजार मैं ...मंगल सिंह जी कल के भी पैसे नहीं ले रहे थे ,बड़ी मुश्किल से हमने उन्हें सिर्फ पेट्रोल के 1000 हजार रु. दिए जो की बहुत ही  कम थे ...सब से विदा लेकर हम चल दिए नैनीताल वापस..... 

सुबह हम सोमेश्वर से  निकले तो शाम को 3 बजे  नैनीताल  पंहुँच गए ....रास्ते में एक जगह रुके जहाँ मंगल सिंह जी के आदमियों ने खाना खाया...हम तो सुबह परांठे  खाकर निकले थे .. हमने कुछ नहीं खाया ..रास्ते में मेरा मोबाईल बंद हो गया जिसके कारण मैं  किसी से बात नहीं कर सकी ..नैनीताल में वापसी में शास्त्रीजी से मिलने की इच्छा थी,पर नंबर न होने की वजय से बात नहीं हो पाई .. कमलेश और उनके दोस्त का शुक्रियां अदा नहीं कर  पाई हम नैनीताल में 3 बजे उन्होंने हमें वापस होटल जग्राति छोड़ दिया...हमारा रूम रेडी था ..कल हमने कौसानी से ही बुक करवा लिया था ..हम फटाफट तैयार हुए और चल दिए रोप -वे पर केबल कार में घुमने .....


शाम का समय और बढ़िया नजारा 



मालरोड की शानदार तफरीह  


खड़े है सडक किनारे कोई तो लिफ्ट देगा हा हा हा हा  


केबल -कार यानी रौप -वे जाने का मार्ग 





दूर बहुत दूर से दोनों केबल कारे ..दिखाई दे रही है ..आते हुए और जाते हुए ..

खुबसूरत द्रश्य ..दूर से लिया चित्र 

केबल -कार तक पहुँचने  का मार्ग 


लो ....वो आ गई ...अब हम चलते है इसमें बैठकर ..ऊपर की तरफ 




यह ..उड़न -तश्तरी है ..यानी केबल - कार इसका टिकिट है --बच्चों का 100 रु और बड़ों का 150 रु ..यह स्नो -पाइंट  तक जाती है ...जो 2270 मीटर्स है ...इसमें 10 लोगो के बैठने की व्यवस्था है ....इसका टिकिट  नीचे से ही मिलता है ..वो कहते है की एक घंटा रूककर वापस आ जाए ..पर आप जब तक इच्छा हो वहां धूम सकते है ....कहते है की सीज़न में यहाँ 2-3 दिन तक नंबर नहीं आता ..लोग आते ही यहाँ नंबर लगा लेते है फिर आराम से नैनीताल घूमते है ...और जब नंबर आने वाला होता है तो उन्हें कन्फर्म कर दिया जाता है .. वैसे इस तरह की केबल -कार में हम पहले भी बैठे थे .. 



उडन- तश्तरी  में सवार ..हम दोनों ..बड़ा ही रोमांचकारी सफ़र है ..




उपर से  लिया गया नैनीझील  का व्यूह 


बाहर निकलते हुए ..आप 2-3 घंटे यहाँ धूम सकते है और जब इच्छा हो वापस लौट सकते है 





यहाँ से नैनीझील का बहुत ही सुंदर द्रश्य  दिखाई देता है ..इसी लिए इसे लेक -व्यु कहते है  


लेक- व्यू  से नीचे  का नजारा ..खतरनाक ढलान 


सामने जो छोटा -सा टीला दिख रहा है ...वहां से हिमालय -दर्शन होते है ..पर आज बादलों की वजय से कुछ दू दिखाई नहीं देगा इस कारण मैं ऊपर नहीं चढ़ी ...बच्चें जाकर देख आये ..हम  वही मैंगो शेक पीने  बैठ गए  



सामने जो हैण्डलूम  की दूकान है ..वहाँ से हमने कश्मीरी कढाई  के कुछ सूट  ख़रीदे 



स्नो -व्यू  जाने का  बड़ा गेट ..अंदर बच्चो के खेलने के लिए काफी  खेल  है  



यह है स्नो -व्यू में  एक मंदिर  

मंदिर का पिछला हिस्सा ..यदि मौसम अच्छा  होता तो मेरे पीछे हिमालय- व्यू दिखाई देता ..


खुबसूरत जंगल स्नो -व्यू का ..पर हिमालय दर्शन नहीं हुए 



और अब केबल- कार से वापसी ..नैनीताल शहर का नजारा ..

नीचे उतारते हुए  नैनीझील का द्रश्य और पास ही क्रिकेट का मैदान 


दोपहर  को हम नीचे उतर गए वापसी के लिए  

खुबसूरत यादगार ..चीड के फूलो का गुलदस्ता 

आज ही हमारा वापसी का टिकिट था  .. मन तो वापस जाने का  नहीं था ,इन हसीं वादियों से भला कौन वापस जाना चाहेगा ... हम माल रोड से  वापस अपने होटल में  आ ही रहे थे की एक कार वाले ने हमें कहा की काठगोदाम चलना है क्या ? हमने पैसे पूछे तो उसने कहा 400 रु ...बस हमने 5 बजे आने का कहा और हम खाना खाने चल दिए ...आज रात को 9.30 बजे हमारी गाडी रानीखेत एक्सप्रेस थी ..कुछ शापिंग की ..दोस्तों के लिए उपहार ख़रीदे ..कुछ कपडे ख़रीदे ..और वापसी .....नैनीताल सलाम  फिर दोबारा आयेगे ..क्योकि अभी बहुत कुछ छुट गया है देखने को ...


हमारा ड्रायवर बहुत नेक इंसान था ..वो आराम से हमें लेकर आया ..बातूनी भी बहुत था ...काठगोदाम का ही रहने वाला था ,हमारे पास टाइम बहुत था ..रास्ते में चीड  के फल बहुत गिरे हुए थे उन्हें बच्चे उठा लाये ...तेजपत्ते के पेड से बहुत से ताजा तेजपत्ते तोड़े ...रास्ते के रेस्टोरेंट से चाय -पकोड़े खाते हुए हम काठगोदाम वापस लौट आये .....

काठगोदाम के ऐ. सी. वेटिंग -रूम में ट्रेन का इन्तजार 


" काश, जाते वक्त को हम रोक पाते ....
गुजरे लम्हों को हम जोड़  पाते........ 
कितनी यादें है ऐ 'नैनीताल' जो तुने दी---
 काश, हम जिन्दगी को पीछे मोड़ पाते ....?"