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शनिवार, 1 जुलाई 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI -- 7 )



*यात्रा जगन्नाथपुरी* 
 भाग 7 
भुवनेश्वर भाग -- 2

उदयगिरि की गुफायें -- हाथी गुफ़ा 



28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी |

1 अप्रैल 2017 
हमने दो दिन खूब पुरी घूमा ,सूर्यमंदिर देखा और  भी यहाँ के अन्य धार्मिक स्थल देखे।  अब हमने भुवनेश्वर  को प्रस्थान किया ,पूरी से चलकर हम रस्ते के पीपली गाँव रूककर वहां से उड़ीसा की फ़ेमस पेंटिंग्स खरीदते हुए भुवनेश्वर पहुंचे ,हमको जो ऑटो वाला पुरी से लाया था उसने हमको लिंगराज मंदिर के सामने छोड़ दिया क्योकि हम महेश्वरी धर्मशाला ढूँढ रहे थे और वो लिंगराज मंदिर के पास ही थी लेकिन वहां हमको सीलनभरे रूम मिल रहे थे और उनका किराया भी ज्यादा था नार्मल रूम का 300 रु और  ऐ. सी. रूम का 500 रु वो हमको ज्यादा लगा इसलिए हमने नजदीक एक दो होटल और देखे पर कुछ समझ नहीं आये फिर किसी ने सुझाव दिया की आप स्टेशन के नजदीक ही होटल देखे वहां अच्छे होटल मिल जायेगे और हम एक ऑटो  में बैठ चल दिए। 

होटल राधा किशन में हमको ऑटो वाला लाया हमको रूम पसंद आया जो सिर्फ 1500 रु में था छोटा था पर ऐ,सी. था और  हम पांचो को कम्फर्ट था अपना सामान वही पटक हम फ्रेश हो निकल पड़े धौली गिरि शांति स्तूप देखने।  ऑटो होटल वाले ने ही कर दिया था जो हमको धौली गिरि शांति स्तूप , उदयगिरि, खंडगिरि  और लिंगराज मंदिर दिखाने  वाला था। 

सबसे पहले हम धौली गिरि शांतिस्तूप देखने पहुंचे। गर्मी अपनी चरम स्थति में थी गर्मी भी बहुत थी ज्यादा रुके नहीं वही एक पेड़ के नीचे बैठ गये लेकिन हमारे दोनों जग्गा जासूस स्तूप की कई सीढिया चढ़कर ऊपर पहुंच गए फिर हमने भी दूर से कई फोटू खिचवाये। 

धौली गिरि शांतिस्तूप का इतिहास ;---

धोलीगिरि शांति स्तूप  धोलीगिरि हिल्स पर स्थित है  और भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर दूर दया नदी के नजदीक बना हुआ है इसके नजदीक काफी खुला मैदान है और एक छोटी सी पहाड़ी है पहाड़ी के शिखर पर अशोक के शिलालेख लिखे हुए है  1970  क़े दशक में जापान के एक बोध्य संध ने  यहाँ एक सफ़ेद शांति स्तूप बनवाया जिसे हम देखने गए। 

उदयगिरि की गुफाये;---- 

यहाँ से हम ऑटो में बैठ उदयगिरि की गुफाये देखने को चल दिए।  हमको दूर से ही एक छोटे से पहाड़ पर गुफाये दिखने लगी। मुझे थोड़ी परेशानी थी चलने में लेकिन धीरे धीरे मैंने फतह पा ली ऊपर जाकर विस्मय सी हो गई। गुफाये अद्भुत थी अतुलनीय भारत   
 टोटल 20 गुफाये थी कुछ गुफाये तो 4 वीं और 5 वीं सदी से जुडी थी। नंबर 1 और 20 जैन धर्म से संबंधित है ये समस्त गुफाये उत्त्खलन से निकली है  10 वीं शताब्दी में जब परमारो का राज्य था तब राजा भोज के पौत्र उदयादित्य  ने इस स्थान का नाम उदयगिरि रखा। 

उदयगिरि पहाड़ पर चढकर सारी गुफाये देखकर थकान ऐसे छूमंतर हो गई की क्या कहने फिर हमने खूब ढेरों फोटू खींचे लेकिन खंडगिरि गुफाओ तक जाने का साहस नहीं हुआ और हम नीचे उतर आये। 
नजदीक ही एक रेस्ट्रॉ में बैठकर चाय नाश्ता किया और चल पड़े आज के आखरी सफर लिंगराज  मंदिर की और  .... 

लिंगराज मंदिर ;--
लिंगराज मंदिर भगवान शिव को समर्पित है यह भुवनेशवर का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को ललातेडुकेशरी  ने 617 - 657 ई. में बनवाया था। यह मंदिर विशाल और अपनी मूर्तिकला के लिए प्रसिध्य है इस मंदिर की प्रत्येक मूर्ति कारीगरी और शिल्प में बेजोड़ है।  गणेश, कार्तिकेय और गौरी के भी मंदिर बने हुए है। गौरी मंदिर में पार्वती की काले पत्थर की प्रतिमा बनी हुई है। यहाँ बिंदु सागर सरोवर बना हुआ है  और शिव के  8 फीट मोटे और एक फिट ऊँचे ग्रेनाइट पत्थर से बने शिवलिंग है। 
इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केशरी ने 11 वीं शताब्दी में करवाया था इस मंदिर का प्रागंड़ 150 मीटर वर्गाकार और कलस की ऊंचाई 40 मीटर है। अप्रैल के महीने में यहाँ रथ यात्रा निकलती है  
हम लिंगराज मंदिर पहुंचे तो हमारा सारा सामान मोबाईल, कैमरा वगैरा सब काउंटर पर जमा करवाना पड़ा इसलिए यहाँ का एक  भी फोटू नहीं है। 

मंदिर घुमकर अपना सामान ले हम वापस ऑटो में आ गए और अपने होटल की तरफ चल पड़े आज बहुत थक गए थे इसलिए नजदीक ही एक होटल में खाना खाकर ही अपने होटल आये और कुछ देर गप्पशप कर के सब सो गए। .. 
 कल हमको वाराणसी जाना है। .. 




 धौलीगिरि शांति स्तूप 



 धौलीगिरि शांति स्तूप 




 धौलीगिरि शांति स्तूप 



 उदयगिरि की पहाड़ी पर चढ़ती मैं  




 उदयगिरि की गुफाये 



 उदयगिरि की गुफाये 


 उदयगिरि की गुफाये 


 उदयगिरि की गुफाये 











शांति स्तूप के बहार पेड़ के निचे विश्राम 
    


 उदयगिरि की गुफाये 


दूर दिखता खंडगिरि 




जय हो उदयगिरि। ....  हेंड्सअप !!!

 उदयगिरि की गुफाये --बहार  ही बहार 



ज़ोर लगा के हाई.....शा।  खसक ही नहीं रहा :)


भगवान कृष्ण की मुद्रा में 



बगैर दरवाजें की बनी गुफ़ाएँ --बोध्य भिक्षुओं को किस का डर