मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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रविवार, 26 अगस्त 2012

मैं और मेरे पापा




" मैं और मेरे पापा "

(स्व. सरदार रणजीत सिंध धालीवाल ) 


(यह बात मेरी ही नहीं हम सब की है )

* जब मैं 3 वर्ष की थी तब मैं सोचती थी की :----
 "मेरे पापा दुनियां के सबसे मजबूत और ताकतवर व्यक्ति  हैं...वैसे भी वो पुलिसमेन ही थे ... 

*  जब मैं 6 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
"मेरे पापा दुनियां के सबसे ताकतवर इंसान ही नहीं ,समझदार व्यक्ति भी हैं ...

* जब मैं  9 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
" मेरे पापा दुनियां के सबसे ज्ञानी आदमी है क्योकि उन्हें हर चीज़ का ज्ञान है  ....

* जब मैं 12 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----- 
"मेरी सहेलियों के पापा मेरे पापा से ज्यादा समझदार और फ्रेंडली हैं ...

* जब में 15 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
" मेरे पापा को दुनियां के साथ चलने के लिए कुछ और ज्ञान की जरुरत हैं ,वो उतने समझदार नहीं है जितना मैं समझती थी ....

* जब मैं 20 वर्ष की हुई तब मुझे महसूस हुआ की :----
मेरे पापा किसी और दुनियां के जीव  हैं और वे मेरी सोच के साथ नहीं चल सकते .....हम दोनों की सोच  में बहुत अंतर है ...

* जब मैं 25 वर्ष की हुई तब मैंने महसूस किया की :----
मुझे किसी भी काम के बारे में अपने पापा से कोई सलाह नहीं लेनी चाहिए, क्योकिं उन्हें मेरे हर काम में कमी निकालने की आदत -सी पड़ गई है ......

*जब मैं 30 वर्ष की हुई, तब मुझे महसूस हुआ की :---
मेरी संगती में रहकर शायद मेरे पापा में कुछ समझ आ गई हैं ...और वो कुछ समझदारी की बाते करने लगे हैं ......

* जब मैं 35 वर्ष की हुई तब मैं महसूस करने लगी की :----
मेरे पापा उतने ना- समझ नहीं है ...मुझको  मेरे पापा से छोटी - मोटी बातों के बारे मैं सलाह  लेने  में कोई हर्ज नहीं है  .... 


* जब मैं 40 वर्ष की हुई ,तब मैंने महसूस किया की :---

मुझे मेरे पापा से कुछ जरुरी मामलो में सलाह-मशवरा ले लेना चाहिए ...वो कुछ समझदार हो गए है ...


* जब मैं 50 वर्ष की हुई, तब मैंने फैसला किया की :---

मुझे अपने पापा की सलाह के बिना कुछ काम नहीं करना चाहिए, क्योकिं अब मुझे यह ज्ञान हो  चुका  था की मेरे पापा दुनियां के सबसे समझदार और सबसे ज्यादा प्यार करने वाले व्यक्ति हैं .....।


* पर इससे पहले की मैं अपने फैसले पर अमल कर पाती , मेरे प्यारे पापा इस दुनियां  को अलविदा कह कर जा चुके थे और मैं अपनी बेवकूफी के रहते उनकी हर सलाह और तजुर्बे से वंचित रह गई थी ...


"आई मिस यू  पापा "

  
मेरे पापा मेरी शादी में फूलो की माला पहनाते हुए   




*कविता में मेरे संवाद महज काल्पनिक है |

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

जिन्दगी मिलेगी नहीं दुबारा





 * जिन्दगी नहीं मिलेगी दुबारा *


जिन्दगी मिलेगी नहीं दुबारा 
 यु ही कट जायेगी बिन सहारा 
  कभी पैसो का जुगाड़ करते हुए ..
 कभी यू ही खाली पेट सोते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी  बेटी की फ़ीस भरते हुए ....
कभी बेटे की जींस सीते हुए....
कभी ख्वाबों को टूटते हुए ...
कभी तारों को गिनते हुए .... 
जिन्दगी यू ही गुजर जाएगी ..... 

कभी एक कतरा धुप को तरसते हुए ...
कभी एक साडी को तकते हुए ...
कभी सोने की चमक से चुंधियाते हुए ...
कभी रात को लट्टू की रौशनी में नहाते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ....


कभी सड़कों पर दौडती कारों को देखते हुए ...
कभी नन्ही -आँखें साइकिल को तरसते हुए ..
कभी होटलों से ठहाकों को सुनते हुए ...
कभी एक 'वडा - पाव ' खाते हुए ....
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ....


कभी एक परिवार को खोते हुए ...
कभी आपस में झगड़ते हुए ....
कभी पराया प्यार छिनते हुए ....
कभी अपनों की ही बलि लेते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी दूध के जुगाड़ में रोते हुए ...
कभी हवस की प्यास बुझाते हुए ...
कभी परिवार को पालते हुए ...
कभी चंद नोटों पर नाचते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी रात -भर कपड़ों को  सीते हुए ...
कभी रात- भर पहरा देते हुए ...
कभी अपनों के लिए रोते हुए...
कभी उम्मीदो के लिए तरसते हुए ... 
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...

कभी आंसुओ को पीते हुए ....
कभी हंसी को छिपाते हुए ...
कभी गम को ढोते हुए ... 
कभी ख़ुशी में भी रोते हुए ...
जिन्दगी यू ही गुजर जायेगी ...



कुछ इस तरह से गुजर गई  जिन्दगी जैसे ---
                ता -उम्र किसी दुसरे के घर में रहे हो जैसे ----अज्ञात !




शनिवार, 4 अगस्त 2012

जन्मदिन......


जन्मदिन


निक्की का पहला जन्म दिन 
4 मार्च 1990

पंजाबी में निक्की का मतलब होता हें--'छोटा '--हर पंजाबी घरो में एक निककी  या एक निक्कू मिल जाएँगे--
निक्की का २२ वा  जनम दिन हैं ---हमारे पुरे खानदान में वो बहुत लाडली हैं ..पर मुझे याद आ रहा हैं वो दिन जब निक्की इस धरा पर जन्मी भी नही थी ....???
मैं तीसरे बच्चे के एकदम खिलाफ थी --मेरा पूरा परिवार बन चूका था --इसे मैं किसी भी हालत  में नहीं चाहती थी   ..मैने बहुत कोशिश की पर सफल नही हुई --वो कहते है न --'जाको राखे साईयाँ ,मार सके न कोई '--ठीक यही  हाल निक्की के साथ भी हुआ ---???
उसके जनम की मुझे कोई ख़ुशी नहीं हुई --यहाँ तक की मैने उसकी शक्ल भी नही देखी ! अपना मुंह फेर लिया .. डॉ ने बहुत  कहाँ की आप एक नन्ही बेटी की माँ बनी हैं ...पर मुझे अच्छा ही नही लग रहा था ...     
लेकिन ,२दिन बाद एक अजब वाकिया हुआ ..जिसने मेरा मन ही बदल दिया ----   
२ दिन बाद मैं निक्की को लेकर घर आ गई --दिल में कोई ख़ुशी नही थी --मन थोडा उदास था --पर पतिदेव बहुत खुश थे--उनको वैसे भी लडकियों से जरा ज्यादा ही लगाव हैं ..... 

रात को करीब १० बजे निक्की की साँसे उखड़ने लगी --नब्ज बहुत स्लो चल रही थी--हम घबरा गए --तुरंत उसे नर्सिग होम  डॉ के पास लेकर गए --डॉ ने चेक किया और कहा --'आपने इसे कुछ खिला दिया हैं --आप इसे नही चाहती थी न ' ??? मैं  हेरान रह गई --बात तो ठीक थी पर, मैने उसे कुछ नही खिलाया था सिर्फ शहद चटाया था ?मैने उससे  कहा --पर वो मानने  वाली नही थी --  बोली -- 'पुलिस कम्प्लेंट  तो करवानी पड़ेगी हम कुछ नही कर सकते ...'  
 मैने बहुत कहा-पहचान वाली डॉ थी, थोडा पसीजी ! बोली-- 'आप इसे बाम्बे ले जाए बच्चो के सरकारी  हास्पिटल  में ,यहाँ हम कुछ नही कर सकते--मैं चिठ्ठी लिख देती हूँ  ...!' हालाकि मैं  बहुत डर गई थी  और इसी कारण मैने उसे यह नहीं बताया की मैने उसे थोड़ी सी अफीम भी चटाई हैं --हमारे यहाँ रिवाज है की बच्चे को थोड़ी सी अफीम भी चटाते हैं ताकि वो आराम से सो सके और पेट की गंदगी भी निकल सके ...शायद मैने नासमझी में थोडा -सा डोज ज्यादा दे दिया होगा ....
खेर, रात ३ बजे हम वसई से टेक्सी कर ग्रांड रोड स्थित वाडिया हास्पिटल चल पड़े --हमे २ घंटे लग जाना था ....रास्ते भर  उस नन्ही सी जान पर बहुत तरस आता रहा..मेरा हाथ उसकी नब्ज पर ही था और मैं अपने आप को कोस  रही थी की मेरी वजय से इस नन्ही -सी जान पर यह कयामत टूटी हैं ..मैं मन ही मन   भगवान् से अपने किए की माफ़ी मांग रही थी ..मेरी मनहूस इच्छा ये मासूम बच्चा भुगत रहा था --डॉ को तो समझ आ गया था की कुछ खिलाया जरुर हैं ? पर मैं उसे बतला नही सकती थी..? मैं खुद डर गई थी ..उपर से २दिन की जच्चा !  बहुत कमजोरी महसूस कर रही थी ..लेंकिन अपनी कमजोरी को नजरंदाज कर मैं निक्की के प्राणों की भीख मांग रही थी ...माँ की ममता की आखिर जीत हुई ..

हम वाडिया हास्पिटल पहुंचे तब तक सुबह हो चुकी थी ..वो काली अमावस्या की रात बीत चुकी थी ---निक्की भी अब नार्मल साँसे ले रही थी ---शायद अफीम का असर खत्म हो चूका था --हमने OPD में दिखाया तो डॉ बोला यह नार्मल हैं --?आप घर जा सकते हैं ...
 मेरा ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ..आँखों में ख़ुशी के आंसू थे --हम वापस घर चल पड़े ...
भगवान् ने मुझे एक करार झटका दिया था ?

मेरी  उसी बेटी का आज  जनम दिन हैं ...निक्की बहुत समझदार और हुशियार लडकी हैं ...हमारे घर की रोंनक और सबकी चाहती ...
   
आज उसको एक कविता रूपी भेट देना चाहती हूँ :--


" एक अजन्मी बेटी की इल्तजा "

ओ माँ मेरी !मुझे कोख मैं न मार 
मुझे देखने दे यह प्यारा संसार 
तेरी गोद में मुझ को रहने दे 
कुछ पल मुझे और जीने दे 
ओ माँ मेरी ..
मुझे तुझ से कुछ और नही लेना हैं 
बेटी होने का अधिकार मुझको देना हैं 
क्यों तू मेरा गला घोट रही हैं
ओ माँ मेरी . ..
तू भी तो एक माँ की जननी हैं 
देखने यह संसार आई हैं 
फिर क्यों मेरा वजूद मिटाने चली है
ओ माँ मेरी ...
मुझे मारकर तुझे क्या मिलेगा !
बेटियां तो होती हैं घर का गहना ! 
 ओ माँ मेरी ...
मारकर मुझ को तू क्या करेगी 
यह दंड तू सारे जनम भरेगी 
इस निठुर समाज के लिए 
तू मुझे यू न उजाड़ 
ओ माँ मेरी ...
अपनी कोख को तू कब्रस्तान न बना 
मुझे इस कब्र में जिन्दा न दफना 
सुन ले मेरी चीख -पुकार 
ओ माँ मेरी ...
यह कैसा समाज है माँ !
यह कैसा रिवाज है माँ !
पुत्र जन्मे तो चाँद चढ़ जाए 
पुत्री जन्मे तो अधियारा घिर आए 
यह कैसा इन्साफ हैं माँ ?
यह कैसा समाज है माँ ?
तू इन कसाइयो में क्यों मिल गई 
ओ माँ मेरी ..
कर ले मेरी मौत से तोबा !
मैरी जिंदगी से गर्व तुझे होगा !!
ओ माँ मेरी ...





पुत्रियों को न  मारो करो  इस बात से तौबा !
क्योकि यह होती  हैं  हमारे घर की शोभा