मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 30 अप्रैल 2011

फिर तेरी याद आई !!!



फिर तेरी याद आई 



यू तो मरते है कई लोग मुहब्बत में यारा !
मै तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगी !


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मै भी क्या शै हूँ ,क्या चीज हूँ
खाया था कभी तीर कोई
आज जब दर्द ने सताया तो ,
तेरी याद आई !!!


जब राह में फूलो के अम्बार सजाए थे तुने
मुझ पर कलियाँ बरसाई थी तुने
आज उन कांटो ने  चुभाया तो ,
तेरी याद आई !!!








तेरी बांहों के घेरे में झूलती रही बरसों
खुद को महफूज़ समझती रही हरसों
आज उसी गिरेबा को जो देखा तो,
 तेरी याद आई !!!


तुझसे ख्यालो में मिलती रही छिप -छिपकर
खुद को अपना मुकद्दर समझा किए हरदम 
वो हसीन ख़्वाब टुटा तो ,
तेरी याद आई !!!







चाँद पे जाने  का तेरा वो होंसला
मुझको पाने की तेरी वो ख्वाहिश 
उदास चांदनी को जो देखा तो ,
तेरी याद आई !!!



राह में बिछे कांटो को लांधकर पहुंची सेहरा में ,मै
फुल नही थे वो थी,  खारे- आरजू
उस तपती हुई रेत से खुद को जलाया तो ,
तेरी याद आई !!!








जब चोट लगी दिल-पे तो आंसू निकल पड़े
खुद अपने जख्मो -पे मरहम लगाया हमने
आज उसी निशाँ को देखा तो ,
तेरी याद आई !!!


बरसो खेला किए एक ही अंगना में हम
कभी होली ! कभी दिवाली ! कभी ईद मनाई हमने
आज वो खाली मका देखा तो ,
तेरी याद आई !!!







  
जला दिया था मुहब्बत का आशियाना खुद अपने हाथो
जिन्हें बनाया था हम दोनों ने बरसों
आज उस जमी को वीरा देखा तो ,
तेरी याद आई !!!


जब बूझा दिया था तू ने मेरी फडफडाती लो को
अन्धकार गहन था, दूर था सवेरा--
आज जब उड़ता हुआ धुँआ देखा तो,
तेरी याद आई !!!


जो फरेब खाए थे मैने तुझे राजदा बनाकर ' दर्शी'
उन्हें रोंदकर तुने मुझे सरेआम बदनाम किया
आज वो  दास्ताँ फिर दोहराई तो ,
तेरी याद आई !!!





.
न मिटा ठोकरों से मेरी मजार को ऐ जालिम !
जरा रहम कर ! खुदाया ,यहाँ कोई सो रहा है
अपने 'बुत ' पे परेशां तुझे देखा तो ,
तेरी याद आई !!!    
   

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

!!! जुदाई !!!



                            " हर मिलन  के बाद जुदाई क्यों है  " 






    फिर आई जुदाई की रात-----?  
      मै तुमसे जुदा होना नही चाहती !
तुझको पा न सकी क्योकि ,
   यह मेरी खुदाई नही चाहती ?   

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मिलकर बिछड़ना ही था इक दिन हमदम 
तो यह मुलाक़ात क्यों हुई ? 
उल्फत में ठोकरे थी ,दर्द था ,रुसवाई थी 
तो हसीन सपने क्यों दिखाए 
क्यों हसरते जवा हुई ?
   क्यों उमंगो ने पींगे भरी ? 
जब आँखों में चाहत के बादल नही थे तो ,
क्यों अरमानो की बारिश हुई ..





         ऐसे नही फैलाउंगी मैं अपनी लाज का आंचल      
तुम्हारे निष्ठुर,नापाक कदमो तले --?
         जब जिन्दगी से मुझे कोई सोगात नही मिली 
       पल भर की पहचान का क्या मानी 'दर्शी' 
          जब तेरा साथ ही नही मिला राह दिखाने मुझे  
           तो यह 'आस' का तोहफा आखिर किस लिए 


  


      थाम लिया था हाथ जब तुने किसी का
उम्र -भर निबाहने के लिए --
    तो मेरे मन में यह तृष्णा क्यों जगाई   ?
    जब जिन्दगी की कश्ती फंसी लहरों में 
तो हंसकर -- दामन छुड़ा ,जाने लगे !
      जब साथ ही नही देना था मंजिले -राह में मुझे   
      तो यह तक्कलुफ़ का इकरार किसलिए 


    

  जख्म खाकर जिन्दगी -भर का 
     यू बिछड़ना मुश्किल हुआ मुझसे 
जब साथ नही था राहगुजर में 
  तो इश्क की इब्तिदा क्यों हुई !

        आँखों में अश्क ही देना था निर्मोही --
  तो यह हार - श्रृंगार किस लिए !
      यह हसरतो की बारात किसलिए !
    यह सांसो की सोगात किसलिए !
      यह प्यार का अहसास किसलिए ! 
       तुझे पाने की चाह किसलिए !        

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

माउंट आबू ( 4 )mount abu ( 4 )

  



*  माउंट आबू  *

( रेत का समुंदर  )  


१४ मई १९९८  

आज सुबह से ही गर्मी बहुत हो रही है --हवा भी गर्म चल रही है --मोसम अचानक बदल गया है --बाद में मालुम पड़ा की पोखरण में देश का पहला परमाणु परीक्षण हुआ है --आबू में इससे गर्मी बड  गई है --


आज आए हुए हमे ५दिन हो गए है --इतना गर्म दिन आज पहली बार लगा है --खेर ,दिन में हम पहले गुरूद्वारे गए --गुरुद्वारा काफी बड़ा है --अरदास की फिर कुछ देर वहा बैठकर हमने लंगर भी खाया --उन्होंने हमारे लिए भी बनवाया था --हमको और वही रुकने का कह रहे थे--पर हमारे पास अभी २दिन के लिए रूम और था फिर हमारा रिटर्न रिजर्वेशन था --चलो अभी 2दिन और है घुमने के लिए --


यहाँ के बाजारों में चमड़े की जूतियाँ बहुत मिलती है जिन्हें 'मोजडी 'कहते है यह बड़ी सुंदर होती है --टिकाऊ भी होती है --यहाँ मेहँदी भी बहुत मिलती है ढेर सारे स्टाल शाम को मालरोड पर सजे रहते है --यहाँ पीतल ,ताम्बे,कांसे  पर नक्कासी की हुई वस्तुए भी बहुत मिलती है --लकड़ी के खिलोने तो अन्यास आपका मन मोह लेगे --राजस्थानी ड्रेस में सजे रंग -बिरंगे यह खिलोने देखने में ही बड़े खूब सुरत लगते है 
और सबसे आकर्षण तो है --यहाँ की 'कठपुतलियाँ' जो हर दूकान पर टंगी हुई दिख जाएगी --आप भी देखे :---     


(कलात्मक शो -पीस )


(काठपुतलियाँ )


( काठपुतली का खेल )


यहाँ आपको कठपुतली का खेल भी देखने को मिल जाएगा --!
यहाँ गेस्ट -हाउस बहुत बने है -- राजभवन स्थित ' कला - दीर्धा ' देखने लायक है --राजस्थान के महामहिम राज्यपाल का यह ग्रीष्मकालीन मुख्यालय भी है--इस टाईम राजस्थान सरकार का सारा काम काज यही होता है --तब यहाँ अफसरों की फोज नजर आती है --




म्यूजियम और आर्ट गेलरी :--


राज भवन परिसर में १९६२ मे गवरमेंट म्यूजियम स्थापित किया गया , ताकि इस इलाके  की पुरानी संपदा को सरंक्षण मिल सके --यहाँ आपको आबू के इतिहास के बारे में सबकुछ मालुम पड़ता है --


शाम को ४ बजे हम यहाँ की फेमस टोड-रॉक देखने चल पड़े -रास्ता निक्की झील से ही जाता है --थोडा उबड़ -खाबड़ और पथरीला है--पर आप चढ  सकते है -आज मेने निश्चय किया की इस बार मै ऊपर चोटी पर जरुर जाउंगी --चाहे जो हो ? और हम धीरे -धीरे ऊपर आ ही गए ---  


     
     
(यह है मेढंक के शक्ल की चट्टान )




(जेस ,सन्नी ,निक्की और मै )


इसे टोड़- रॉक कहते है --यहाँ से आबू का जो द्रश्य दिखलाई देता है--वो अविश्वरनीय है --ऐसा लगता है की मानो यह मेंढक अभी कूदकर झील की गहराइयो मै खो जाएगा --यहाँ से निक्की झील का अस्तित्व भी अनोखा नजर आता है --सारा आबू दिखाई देता है --यह पहाड़ी भी काफी ऊँची है --इसका पथरीला रास्ता है पर आप आराम से चढ सकते है --यहाँ पर भी सेलानियो की काफी भीड़ जमा रहती है --पर चट्टान नामो से भरी हुई है --सारी चट्टान पर चाक और कोयले से नाम .शहर ,दिनांक छपी हुई है -पता नही लोग क्यों पुरातन संपती को इस तरह नुकसान पहुंचाते है --
यहाँ से निक्की -झील का शानदार द्रश्य दिखलाई देता है :--



(दूर ~~~टोंड -रॉक दिखाई दे रही है )



(निक्की झील का विहंगम द्रश्य )

(बीचो -बीच टापू पर फाउन्टेन चलता है )


( निक्की झील का नजारा )  



(निक्की- झील ~~~गूगल )






  (   निक्की झील  )


     


निक्की -झील का इतिहास  :-

निक्की- झील को माउंट -आबू का दिल कहते है --यह शहर के बीचो -बीच स्थित है --सारे शहर का आकर्षण यह झील ही है --इसके चोरो तरफ पर्वत श्रंखलाए है --झील के बीचो -बीच एक टापू बना है जहां फाउन्टेन चलता है जिसकी धारा 80 फुट ऊँची जाती है --कडाके की ठंडी पड़े तो यह झील जम भी जाती है --वेसे यहाँ बर्फ नही पड़ती --
कहते है की एक हिन्दू देवता ने अपने नाख़ून से इसे खोदा था --इसलिए इसका नाम निखि झील पड़ा ,जो कालांतर में " निक्की " नाम से प्रसिध्य हुआ --इसके चारोऔर पहाडियों होने के कारण इस झील की सुन्दरता मोहित करती है --ढाई किलो मीटर के दायरे में फैली हुई इस   झील के चारो तरफ सडक बनी हुई है --जिसके किनारे पर  बहुत सुंदर बगीचा बना है --जहां हर समय सैलानियों की भीड़ जमा रहती है --नोका - विहार से इसकी खुबसुरती   में चार चाँद लग जाते है --      




(राजस्थान का उत्सव -मेला )




वन्यजीव अभ्यारण्य :-- 

वन्यजीव अभ्यारण्य 228 वर्ग मीटर में फैला है --इसे १९६० में धोषित किया गया --भालू ,चीतल ,बंदर ,तेंदुआ,साम्भर .लंगूर देखे जा सकते है --यहाँ आप प्रवासी पक्षी भी देख सकते है --यहाँ २५० पक्षियों की किस्मे पाई जाती है --ओर पोधो की १५०प्रजातिया पाई जाती है --

रात को हम खाना खाने माल रोड पर चल दिए ---वही थाली वाली पुरानी जगह पर जहा के 'खमंड- ढोकले' बच्चो को बहुत पसंद थे --



(रात  को मालरोड पर खाने का आनंद लेते हुए )  

आबू से ढाई किलो मीटर दूर है ,हनुमान जी का मन्दिर --यहाँ ७०० सीढियां उतरने के बाद गुरु विशिष्ट जी का आश्रम आता है --जिसे हम नही देख सके --क्योकि हमें जानकारी बाद में मिली --

उसी तरह अम्बा जी का मन्दिर भी हम नही देख सके --क्योकि वहां निर्माण कार्य हो रहा था --और हम जा नही सके क्योकि परमाणु -टेस्ट के कारण आबू झुलसने लगा था --गर्मी काफी बड गई थी --और हमने एक अच्छे बच्चे की तरह वहाँ से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी --- 


(माँ आंबे का मन्दिर )


इस तरह मेरी आबू की एक शानदार यात्रा का समापन हुआ --

जल्दी ही एक नए सफ़र पर ----- दर्शन 'दर्शी '



गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

* प्यार की दस्तक *









पता नही मेरी राहे ,तुझ तक पहुंच पाएंगी या नही !
जिन्दगी के मेले में बहुत देर बाद मिले तुम !!


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अपने आप को ख़ुशी का लिहाफ ओढा,
मै खुद को बहुत सुखी समझती रही,
पर तुम्हारी एक प्यार -भरी 'दस्तक' ने
मेरे मोह को तोड़ डाला ,
छिन्न -भिन्न कर डाला ,
तुम्हारा दीवाना- पन !
मुझे पाने की ललक ! 
समर्पण की ऐसी भावना !
मुझे अंदर तक उद्वेलित कर गई ---!
मै कब तक चुप रहती ?
कभी तो मेरी भावनाए --
खुले आकाश में विचरण करने को मचलेगी !
अपने अस्तित्व को नकार कर --
मैने तुम्हे 'हां' तो नही की मगर ,
तुमने एक झोके की तरह ,
मेरी बिखरी जिन्दगी में प्रवेश किया, 
मुझे धरा से उठाकर अपनी पलकों पे सजाया 
मै अपने अभिमान में चूर 
तुम्हे 'न 'करती रही 
और तुम बड़ी सहजता से आगे बढ़ते रहे ---
कब तक ? आखिर कब तक ---
अपनी अतृप्त भावनाओं की गठरी को सम्भाल पाती ,
उसे तो गिरना ही था --
"जिसे चाहा वो मिला नही ?
   जो मिला उसे चाहा नही ?"
इस जीवन-रूपी नैया को ,
बिन पतवार मै कब तक खेऊ ,  
तुम मांझी बन ,मुझे पार लगाओ तो जानू  ?
तुम से मिलकर मेरी हसरते ! उमंगे जवान होने लगी                          
और मै अपने वजूद के ,
एक -एक तिनके को समेटने लगी  -- 
लिहाफ  खुलने लगा है ----------???  






 * * लिहाफ खुलने लगा  * *

    

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

माउंट आबू ( 3 ) Mount abu ( 3 )



 * माउंट  आबू * 


(रेगिस्तानी जहाज )

12   मई  1998  

कल बहुत थक गए थे --सुबह देर से नींद खुली --अभी हमारे पास पुरे ६दिन     है --आज हमने रूम पर ही आराम किया --सुबह किचन में ही मस्त दाल -चावल बनाए और खाकर आराम किया --शाम को सिर्फ सन -सेट देखने जाएगे--
पूरा होली डे होम बुक है --एक फेमिली बाम्बे की और है --वो लेडी TC है -उनसे बाहर बेठे गप्पे मारते रहे --शाम को फ्रेश थे --





( रेलवे होलीडे - होम  )   






(सन -सेट पाइंट पर  घोड़े की सवारी )




शाम को ठीक ४ बजे  हम तैयार हो निकल पड़े  --पैदल ही सनसेट की तरफ काफी लोग जा रहे थे --हमने  भी बाजार में घूमते हुए कुछ सामान खरीदा --यहाँ पर "लाख" के चुड़े और सेट मिलते है, जो बहुत खुबसुरत होते है --और सस्ते भी होते है --कोटा साडी भी यहाँ मिलती है-जो काट्न की होती है --


आखिर हम पूछते हुए--पहुंच ही गए --सन - सेट पाइंट पर--वेसे काफी लोग वहा जाते हुए नजार आए वहाँ पहुचने के बाद माहोल ही कुछ अलग था --कई जगह पर सीढियां बनी हुई थी --जहां काफी सेलानी चढ़े  हुए थे--माहोल  बहुत अच्छा लगा --आप भी देखे ---  




(काफी जगह लोगो ने घेर रखी थी -)


                  ( ऐसे ही बेठने के लिए बहुत बढ़िया स्थान बने हुए थे --)

(हमने भी एक ऊँची जगह तलाश कर ही ली ) 




(धुप से आँखे खुल नही रही है मेरी )


( क्योकि हम सूरज की तरफ मुंह करके बेठे थे ) 

सारी जगह लोगो ने घेर रखी थी --काफी धुप थी --पर हवा बड़ी ठंडी चल रही थी --बड़ा सुंदर नजारा था --एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ लम्बा -चोड़ा मैदान--दूर सूरज चमक रहा था --होले -होले नीचे जा रहा था --सूरज एक बड़े  फ़ुटबाल की तरह घूम रहा था --किरने भी ठंडी लग रही थी --
यही पर फिल्म -कयामत से कयामत तक' की शूटिग हुई थी--आप भी फोटू के जरिए सन -सेट का आन्नद ले ---  

सनसेट पाइंट   


       
( निक्की की प्यारी अदा )






( एक ऊँगली पर सूर्यदेवता का भार --केसे संभव --?)
 फोटू क्लिक होने तक वो नीचे सरक चूके थे  


(  फूंक मारते हुए --कभी सूरज भी फूंक से उड़ा है )



(  जेस की अंजुली में सूर्य देवता )




(  सन -सेट का निराला रूप )




(  डूबता सूरज ~~~सूरज महाराज की एक अदा )




( चित्र ~~~गूगल )

रात तक माहोल में बहुत सरगर्मिया थी --अँधेरा होते ही हम भी चल पड़े --निक्की झील की तरफ --रात को वहाँ काफी रोंनक लगी हुई थी --लोग बोट में घूम रहे थे --पास के बगीचे में म्यूजिकल फाउन्टेन चल रहा था --




(निक्की झील रात की बांहों में ) 

रात को निक्की झील का एक चक्कर लगाकर हम वापस आ गए --


अंतिम किस्त के साथ ~~अगली बार मिलते है--


जारी -----  


शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

" एक वीर कौम का स्थापना दिवस "





                           "  एक वीर कौम का स्थापना दिवस "

"  बैशाखी  "


(इस लिंक पर चटका लगा सकते है )


आज वैसाखी का पावन दिवस है --आज ही गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिख -धर्म की स्थापना कि थी--असत्य पर सत्य की विजय --

सन 1699 में बैशाखी के महान पर्व को गुरु गोविन्द सिंह जी ने सम्पूर्णता दी ,यही वो ऐतिहासिक ,क्रन्तिकारी दिन था जिस दिन गुरूजी ने धर्म एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा ,राष्ट्र हित और जन समुदाय को शक्तिशाली अखंड राष्ट्र के निर्माण हेतु शूरवीर सिपाही के स्वरूप 'खालसा 'का  सर्जन किया --

आज के दिन ही सिख -पंथ की स्थापना की --चिडियों को बाजो से अधिक शक्तिशाली बना देने वाले --एक को सवा लाख का सामना करने की ताकत देने वाले हाजरा हुजुर श्री गुरु गोविन्दसिंहजी  के पिताजी गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने 1664   मे गुरुगद्दी प्राप्त की और एक नया नगर बसाया जिसे  :
आनंदपुर साहेब नाम दिया  !


(  गुरुद्वारा आनंद पुर साहेब ~पंजाब  )





इतिहास:--



आनंद पुर साहेब में दिवाली और बैशाखी का त्यौहार बड़े श्रधा नाल मनाया जाता था पर सन 1699 की वो बैशाखी एक यादगार बैशाखी साबित हुई --उस दिन गुरूजी ने अपने सारे शिष्यों को आनंद पुर साहेब आने का न्योता दिया --काबुल ,कंधार .आसाम से शिष्य पधारे ,इनका लंगर -पानी का इनजाम किया हुआ था --चारो और ख़ुशी का माहोल था --
एक दिन पहले दरबार सजा हुआ था --'गुरूजी गद्दी पर विराजमान थे की अचानक गुरूजी ने म्यान से तलवार निकाली और जोश से बोले --

                   " है कोई बन्दा जो मुझे अपना शीश दे "

चारो और सन्नाटा छा गया--सब ख़ुशी मनाने आए थे --अचानक ऐसी स्थिति से कोई तैयार नही था पर हजारो के हुजूम में ५ बंदे खड़े हुए :--
१.भाई दयाराम जी लाहोर वाले !
२.भाई धर्मदास जी दिल्ली वाले !
३.भाई हिम्मत रायजी जगन्नाथ जी वाले !
४.भाई साहिब चंद जी बिदुर वाले !
५.भाई मोहकमचंद जी द्वारका वाले !  
इंन पांचो ने अपना शीश गुरूजी के आगे नवा दिया -- ' देश की और कौम की खातिर हमारा सर आपके कदमो में निछावर है '--तब गुरूजी ने कहा  :-- 


"जो तो प्रेम खेलन का चाओ !
शीर धर तली गली मेरी आओ !!"   

(  " हे, कोई जो मुझे अपना शीश दे " ) 
     गुरु जी का आव्हान  



 अर्थात ,अगर आपको ईश्वर से प्रेम है तो इसके लिए दुसरो के लिए जीना और मरना सीखो ? और जो सर दे सकता है समझो वो सबकुछ दे सकता है
कुछ पाने के लिए किया गया प्रेम स्वार्थी होता है -प्रेम तो  कुछ देने के लिए होना चाहिए और जो देने के नाम पर बंगले झाँकने लगे ,समझो वो सच्चा प्रेमी नही है --इन पांचो ने देश और  कौम के लिए अपना शीश दिया है आज से ये मेरे सच्चे 'खालसा' हुए  :-

" खालसा मेरा रूप है खास 
       खालसा में ही करू निवास " 

     
( पञ्च प्यारे को अमृत -पान करते हुए गुरूजी )




उन्होंने उन पांचो को स्नान करवाया --नए विशेष वस्त्र पहनाए --फिर उन्हें वापस दरबार में उपस्थित किया --एक लोहे के बर्तन में जल भरवाया और उसमे बताशे  डलवाकर खंडे से घोलते हुए अपने पांचो काव्य -रचनाओं का पाठ करते हुए उस मीठे जल को अमृत बनाकर 'अमृत' की उपाधि दी--और उन पांचो को ' पञ्च प्यारे 'की इज्जत से नवाजा --                                             


अमृत -पान पहले उन्हेंने  गुरु बनकर करवाया फिर खुद ने याचना करते हुए शिष्य बनकर उनके हाथो अमृत -पान किया और खुद भी 'सिंह' बने -- 
         

" ऐसे गुरु को बल -बल जाऊ "


( अमृत -पान के लिए याचना करते हुए )

आज से २०० साल पहले ही उन्होंने वर्गभेद.जातिभेद को हिन्दुस्तान से हटा कर एक नए युग का निर्माण किया था -- 1699 में ही उन्होंने हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र की रूप रेखा प्रस्तुत कर दी थी --जहां एक ही धर्म के इन्सान एक ही छत के निचे बैठकर हर जश्न मनाए कोई भी अकेला न रहे --

" गुरु गोविन्द सिंह जी संसार में एक अत्यंत बुद्धिमान ,सदेव उन्नति के पथ पर अग्रसर ,पवित्र भावनाओं से ओतपोत ,आशावादी एवं धर्म के रंग में रंगे हुए वह महान मार्ग दर्शक थे जिसने 'अमृत 'की रस्म के द्वारा समाज की नए सिरे से रचना की "     


आज मैनें भी बैशाखी का पर्व वसई में न मनाकर मीरा रोड में मनाया :-




(मीरा रोड का नव- निर्माणधीन गुरुद्वारा ) 



(सहेलियों के साथ ~~ मग्न ! सुरजीत और रेखा,सोनू  )



( सुरजीत और मै  )

और इस तरह एक खुबसुरत यादगार दिन की शाम हुई !

सारे -ब्लोक जगत को बैशाखी की हार्दिक शुभकामनाए 

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

माउंट आबू भाग ( 2 ) Mount-Abu ( 2 )



** माउंट आबू **




(मरू भूमि रंगीलो राजस्थान )  


  11 मई  1998:---

रात को ही हमने धुमने के लिए सब जानकारी निकाल ली थी --रात आबू की बड़ी सुहानी होती है --मालरोड की सारी दुकाने बाहर सज जाती है --कुर्सिया लग जाती है--हमने भी एक होटल के बाहर बैठकर खाना खाया -यहाँ गुजराती थाली ,जेन थाली,और राजस्थानी थाली मिलती है --यहाँ थाली का रिवाज है जितना खाना चाहो खाओ !केवल थाली की कीमत लगती है -उस समय शायद ३० -५०रु. थाली थी !हमको होटल वाले ने ही कहाँ की आप ३ थाली ले ले ,दोनों बच्चे छोटे थे !सो हमने ३ थाली  ही मंगवाई --बहुत टेस्टी खाना था --भरपेट खाया !कल स्पेशल राजस्थानी दाल - बाट्टी-चूरमा खाएगे --वेसे यहाँ नानवेज खाना भी मिलता है --रात को घूमते हुए जब हम लोट रहे थे तो रास्ते से दूध अंडे -ब्रेड भी खरीद लाए 


सुबह जल्दी ही नींद खुल गई --मै और बेटा दोनों वाक् को निकल पड़े --काफी लोग घूम रहे थे --हम दोनों भी घूमते हुए निक्की झील के पास आ गए --बड़ा सुहावना द्रश्य था --शांत !कोई आवाज नही !पानी में बतखे तैर   रही थी उनकी आवाजे शांत वातावरण में गूंज रही थी --ऐसा लगता था की मयूर बन नाचू --बतख बन पानी में तेरु -- !!  क्या शमा था--बया नही कर सकती --कोई ट्रेनिग स्कुल भी था, जिसके नोजवान वहाँ परेड करते  हुए जा रहे थे --शायद IPS ट्रेनिग सेंटर था --ऐसा लगता है --


हम वापस होलीडे होम में आ गए --आकर सबको जगाया--चाय -नाश्ते से फ्री होकर हम तेय़ार हो निकल पड़े --आज हमे आबू घूमना है --पहले बस वाला कहाँ ले गया पता नही --फिर भी जो याद है वो इस प्रकार है --


(भाईला )

बाज़ार में बहुत रोनक थी,काफी 'भाईले' धूम रहे थे-भाईले यानी  पारम्परिक   ड्रेस में राजस्थानी लोग ,हम कोटा में उन्हें इसी नाम से पुकारते है --आज वहां कोई मेला था-- जगह का नाम याद नही आ रहा है-- खेर,हम ने टूरिज्म वालो की बस में अपनी सीट बुक की और चल पड़े :--  
               
ओम शन्ति ब्रह्मकुमारी विश्वविधालय :--     


   


( ब्रह्म कुमारी भवन के सामने बेटी निक्की  )  


ॐ शांतीभवन :- यह भवन बहुत ही सुंदर है यहाँ युनिवर्सल पीस -हाल है बहुत विशाल हाल है इसमे 3500से4000तक लोगो के बेठने की व्यवस्था है --यहाँ ट्रांसलेटर माइक्रोफोन द्वारा 100 भाषाओ  में व्याखान सुने जा सकते है --यह बिना खम्बो पर टिका हाल है --यहाँ 8 ह्जार लोग रोज आने का रिकार्ड है -- इस हाल में बैठकर स्वर्गीय आन्नद लिया जा सका है --धर्म से सम्बंधित काफी जानकारी वाली पुस्तके वहां आपको मिल जाएगी -- 





(प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय  )  




(पीछे अचल गढ़ किला व् मन्दिर है )

8 किलो  मीटर दूर अचलगढ किला! यह पहाड़ी पर बना है --यहाँ एक 15 वी शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर भगवान शिव का है --यहाँ तक जाने के लिए काफी लम्बी शायद 200 सीढियां है यहाँ भगवान् शिव के पेरो के निशान भी बने है --पास ही १६वी शताब्दी का काशीनाथ जेन मंदिर भी है यहाँ से हम गोमुख मन्दिर गए -


गोमुख मन्दिर:--


( tree  buffalo  तीन भेंसे )


इन भेसो की भी कोई स्टोरी है ,पर मुझे याद नही आ रही है --  
गोमुख मन्दिर :-मन्दिर परिसर में गाय की एक मूर्ति है जिसके सर पर प्राकृतिक रूप से एक धारा बहती है --इसी कारण इसे गोमुख मन्दिर कहते है --मन्दिर में एक सांप की विशाल प्रतिमा है --पीतल के नंदी की भी आकर्षण प्रतिमा है --      



( नंदी की विशाल मूर्ति  )




( नंदी~~ गूगल चित्र ) 




( मन्दिर के बाहर बनी हाथी की मूर्ति )


गुरु-शिखर:---

अरावली पर्वत की सबसे ऊँची चोटी 1727 मीटर पर गुरु- शिखर स्थित है --यह शहर से १५ किलो मीटर दूर है --मनोरम द्रस्यो से भरी यह पर्वत श्रंखला के ऊपर एक मंदिर है -यह भगवान् विष्णु का दत्तात्रेय रूप का मंदिर है --मन्दिर के पास ही सीढियां है शिखर पर जाने के लिए --वहा एक ऊँची चट्टान पर प्राचीन घंटा लगा है --वहां से घाटी का मनोरम द्रश्य नजर आता है -- 



( गुरु शिखर का मार्ग ~~~गूगल चित्र )




( गुरु शिखर की सबसे ऊँची चोटी पर जेस )




(मैं ऊपर नही चढ़ सकी, मैनें यही आराम किया )
( जेस ,मैं और सन्नी)  



(सन्नी ,जेस निक्की और पापा गुरु शिखर पर )  



(काका -काकी  हनीमून पाइंट )

गुरु शिखर से कुछ ही दूर है ये काका -काकी की दिलकश चट्टान--जिसे हनीमून पाइंट कहते है --दोनों इस जहां से दूर एक नई दुनिया में मदहोश  



दिलवाडा टेम्पल:--

दिलवाडा टेम्पल के बगैर आबू की यात्रा अधूरी है :-- 

यह आबू की शान समझे जाते है--यह ५ मंदिरो का समूह है --११ वी शताब्दी और १३ वी शताब्दी में बने यह जेन धर्म के तीर्थकरो को  समर्पित है ---
'विमल वासाही' मन्दिर 'प्रथम तीर्थंकर' को समर्पित है--यह सर्वाधिक प्राचीन मन्दिर है जो 1031 ईस्वी में बना था --
22 वे तीर्थंकर नेमीनाथजी को समर्पित 'लुन-वासाही 'मन्दिर भी कॉफी  लोकप्रिय है यह 1231 ईस्वी में वास्तुपाल और तेजपाल नाम के दो भाईयो ने बनवाया था --यहाँ 5 मन्दिर संगमरमर के है --मन्दिरों में 48 स्तंभों में  न्रत्यांगनाओ की आक्रतिया बनी हुई है --यह मन्दिर मूर्ति कला का बेजोड़ नमूना है --देख कर ही पता चलता है --
तेजपाल और वास्तुपाल की पत्नियों का मन्दिर ;देवरानी -जेठानी का मन्दिर शिल्पकला  का अदिव्तीय  नमूना है --सारी दुनिया में इससे खुबसुरत शिल्पकला का कोई दूसरा मन्दिर नही मिलेगा --
हाथीशाला में 10-10 संगमरमर के हाथी बने हुए है --  

यह सुबह से शाम 6 बजे तक खुला रहता है --मन्दिर में कैमरा ले जाने की इजाजत नही है इसलिए बाहर का ही फोटो खीचा है -- 
यहाँ का अदभुत सोंदर्य आपको दूसरी दुनिया में ले जाता है -- 
                           

(  दिलवाडा टेम्पल के सामने हम-लोग  ) 



(  मुख्य  मंदिर ~~चित्र गूगल )   




( देवरानी -जेठानी निवास ) 





( कलात्मक छत ) 




 
( आकर्षण छत की बनावट )


(   चित्र उधार का ~~~गूगल ) 




(48  स्तम्भ ) 


दिलवाडा टेम्पल वास्तु कला के बेजोड़ नमूने है--एक शिलालेख से पता चलता है की दिलवाडा टेम्पल बनाने वाले तेजपाल -वस्तुपाल भाइयो ने कई शिव मंदिरों का उध्दार करवाया --उन्हें फिर से बनवाया --
      (यदि इस इतिहास पर किसी को आपति है तो माफ़ करे )



और अब करले पेट पूजा :---



( राजस्थानी दाल  और बाटी  )  




वापस आने में रात हो गई थी--मालरोड की रंगीनियाँ अपने पुरे शबाब पर थी --आज हमने  दाल बाटी चूरमे का भोग लगाया --आप भी शामिल हो सा. --राजस्थानी खाने की  बात ही निराली है -- अनोखा स्वाद होता है -- 


( सा.--शब्द राजस्थान में सम्मान  के लिए इस्तेमाल होता है जेसे :-जीजा सा.,मामा सा.,काकी सा.,इत्यादि )  



  (गुजराती थाली और राजस्थानी थाली का मेल _)



इस  तरह आज की थका देने वाली और एक मजेदार यात्रा खत्म हुई --अगली यात्रा सनसेट पाईंट  पर !धन्यवाद --

पर्यटक कार्यालय
राजस्थान पर्यटन
टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर
बस स्टैंड के सामने,माउंट आबू
फ़ोन 02974-235151STD कोड-02974

सभी ब्लोगर जगत को अग्रिम वैशाखी की लख -लख बधाइयां ! 


( बहुत से चित्र उधार के है जिन माई -बाप के हो माफ़ करे )