मेरे अरमान.. मेरे सपने..


Click here for Myspace Layouts

गुरुवार, 31 मई 2012

नैनीताल भाग 3



आज तुझसे प्यार करने को दिल चाहता हैं ...
तुझे छूने, तुझमें समाने को दिल चाहता हैं ....





हम सपरिवार ता. 9 को मुम्बई से चले थे  नैनीताल :----


सुबह का रोमानी मौसम 




हम कमरे में आकर  तैयार होने लगे ...काफी ठंडी थी और इतनी ठंडी में ठन्डे पानी से  नहीं नहाया जा सकता सो गीजर चलाया  और नहाए ..मैं तैयार होकर बाहर निकल गई बालकनी में और अपना काम शुरू ..यानी फोटू कवर करने का जो मुझे बेहद पसंद हैं ..मिस्टर आए तब तक मैने झील की खूबसूरती के काफी सीन कैद कर लिए और उनसे अपनी उपस्थिति  के फोटू भी खिंचवा लिए  ...तब तक बच्चें भी आ गए ...और विक्की भी .....और हम चल दिए नैनीताल साईट सीन देखने :-----




ख़ुशी का इजहार ..कोलगेट मुस्कान 






इतिहास :--

नैनीताल उतराखंड का एक व्यस्त पर्यटक स्थल हैं .इसे झीलों का शहर भी कहते हैं क्र्योकी यह पूरी तरह झीलों से धिरा हुआ हैं... 'नैनी' का अर्थ हैं 'आँख' और 'ताल' का अर्थ हैं 'झील' ,यहाँ के पर्वत सर्दी यो में पूरी तरह बर्फ से ढँक जाते हैं पर इन झीलों का पानी कभी नहीं जमता क्योकि यह प्राकृतिक झीले हैं और इनकी थाह अब तक कोई नही ले सका हैं ... समुन्द्रतल से इसकी उंचाई 1938 मीटर हैं और ताल की लम्बाई 1,358मीटर और चोड़ाई 458मीटर हैं इसकी गहराई 15 से 156मीटर आंकी गई हैं ... ..यहाँ का नजरा देखने लोग देश और विदेश से आते हैं ...पानी मैं इठलाती हुई रंगीन नावे इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा देती हैं ..सम्पूर्ण पर्वतमाला और पेड़ों की छाया  इस ताल में स्पष्ठ दिखाई देती हैं ....इस ताल की विशेषता हैं की इसका पानी गर्मियों में हरा,बारिश में  मटमैला और सर्दियों में नीला हो जाता हैं ...     


1.सडीयाताल  जलप्रपात :---

हमें विक्की सबसे पहले लेकर गया "जल - प्रपात " दिखाने .. जहाँ एक रेस्टोरेंट मैं हम सबने नाश्ता किया---
यहाँ हमने ब्रेड -बट्टर  खाई और चाय पी ..चार ब्रेड विथ मक्खन 30 रु .प्लेट और चाय वही 15 रु. की एक  । मैने देखा विक्की खाना खा रहा था ..टाइम हुआ था 11 बजे, हमें भी यहाँ खाना खा लेना चाहिए था बाद में हमें बहुत परेशानी हुई ,पर मिस्टर को नाश्ते की आदत हैं इसलिए खाना बाद में खाएगे कहीं और यह सोचकर हम जल प्रपात देखने चल दिए ... यहाँ काफी सैलानी आए हुए थे ..काफी भीड़ थी पर जल तो था ही नहीं ? बहुत छोटी -सी धारा बह रही थी ...बाद मैं मालुम पड़ा की यह धारा भी नकली हैं जो ऊपर पानी इक्कठा करके निचे देखने के लिए छोड़ते हैं ..हा, बारिश में यह असली झरना होता हैं ..इसका टिकिट हैं 5 रु .......
आप भी देखे :---



सामने रेस्टोरेंट जहाँ हमने नाश्ता किया था और हमारी कार 



जल प्रपात का मेंन गेट और पास ही हैं  टिकिट खिड़की  


देखिए हैं न पतली -सी धार 


छोटा -मोटा झरना हा हा हा हा 


तो यह हैं जलप्रपात  





 पास ही बड़ा सुंदर जंगल था और पहाड़ भी ..मैं तो नहीं गई पर बच्चे घूम आए और मैं इस बैंच पर बैठ गई ठंडी -ठंडी हवा खाने ..बहुत सुंदर लग रहा था ..यदि बारिश का मौसम होता तो क्या कहने .....

2. खुरपाताल :-- 

यहाँ से यह झील गाय के खुर की तरह खूबसूरत लगती हैं ....इसलिए इस झील को खुरपाताल कहते हैं ..चारो और पहाड़ियां और बीच में यह झील ! ऊपर से देखने पर यहाँ का नजारा बहुत ही सुंदर लगता हैं .... 




खुरपाताल 

क्या मौसम हैं ..ऐ दीवाने दिल .चल कहीं दूर निकल जाए 



3.लवर्स -पॉइंट्स  :---


इसे लवर्स -पॉइंट्स कहते हैं ..बहुत ही खुबसूरत स्थल हैं  पहाड़ की एक कटी हुई छोटी -सी पहाड़ी पर  इसे बनाया हैं ..चारों - और रेलिंग लगा रखी हैं ,फिर भी कुछ मनचले बाहर निकल कर फोटू खिचवा रहे थे बहुत ही रिस्की मामला हैं ,,यह पहाड़ जितने सुंदर हैं उतने खतरनाक भी हैं यह सबको सोचना चाहिए ..खेर, प्रकृति का सुंदर रूप देखने से हम क्यों वंचित रहे आप भी देखे .. प्रकृति ने कहाँ -कहाँ प्यार बरसाया हैं...
 
प्रकृति ने कहाँ -कहाँ प्यार बरसाया हैं...





जितना खुबसूरत उतना ही खतरनाक 



प्रकृति का सुंदर रूप देखने से हम क्यों वंचित रहे ..आप भी देखे 




मेरे पीछे जो चट्टान हैं कुछ मनचले जोड़े वहाँ  उतर कर फोटू खिंचवा रहे थे 


और यह हैं चम्पाकली ...जो छोटे बच्चो को पहाड़ पर राउंड दिलवाती हैं 



 तो यह था लवर्स - पॉइंट्स ..यहाँ ककड़ी .पहाड़ी बैर,  म़ेगी मिल रहे थे ...यहाँ घोड़े भी थे जो सैलानियों को पहाड़ का चक्कर लगाते हैं .. 
अब हम चलेगे हिमालय दर्शन के लिए पर अगले भाग में ...तब तक के लिए बिदा.... 

जारी --------
                                                                       

 



गुरुवार, 24 मई 2012

नैनीताल ..भाग 2




नैनीताल की नैनी झील 





रात को 11बजे के बाद  अजमेर -रानीखेत गाडी प्लेटफार्म पर आई ...पूरी तरह खचाखच भरी थी ,यहाँ हमें कूपा नसीब नहीं हुआ ...3 महीने पहले कराई रिजर्वेशन पर पानी फिर गया और हम अपने C T I  पतिदेव को शक की नजरो से देखने लगे...कोई एडजस्ट भी करने वाला नहीं था ,,भला कोई हमारे लिए क्यों कूपा खाली करता ..कोई हम रेल्वे मिनिस्टर के रिश्तेदार तो थे नहीं ? खेर ,रात का सफ़र हैं और सोना ही तो हैं यह सोचकर दिल को पतिदेव ने तसल्ली दी और अपनी साइड की अपर और लोअर सीट से ही काम चला लिया ..अब हरदीप के खाने की याद आई जो बड़ी -सी टोकरी में कुछ दे गया था ....चारो अलग -अलग सीट  थी फिर भी दो पर हम और दो पर जेस और निक्की बैठ गए ..खाना बहुत बढ़िया था और बहुत ज्यादा था ,कम से -कम दो आदमी और खा सकते थे ..साथ में आम भी थे पर उन्हें खाने का टाईम नहीं था, सो रख लिए बाद में खाएगे  ....रात को बेटे (सन्नी ) से बात की  वो हमारे साथ नहीं आया था आखिर एक बन्दा घर की रखवाली के  लिए भी तो होना चाहिए ....चोरो का क्या भरोसा इधर हम घुमने जाए उधर वो माल पर हाथ घुमा दे ..हा हा हा हा फिर हमारा  डागी शेडो भी हैं ...उसका ख्याल रखना हमारा परम कर्तब्य हें ....


रात आराम से गुजर गई ..सुबह अचानक जहाँ गाडी खड़ी थी  वो था हल्दानी स्टेशन ! काफी लोग उतर गए थे ..एक वेटर से पूछा की हम भी यही उतर जाए तो वो बोला की आपको नैनीताल जाना हैं तो काठगोदाम  में ही उतरना ...10 मिनट बाद ही काठ गोदाम स्टेशन आ गया ..





सुबह काठगोदाम स्टेशन आते ही मधुमक्खी की तरह टेक्सी वाले चिपक गए .'नैनीताल का कितना लोगे ' मैनें एक से पूछा ! 650 रु, जवाब था पर मैं भी  पक्की बम्बईया थी बगैर मोल -भाव के कोई काम नहीं करती हूँ ..तुरंत कमलेश ने जो नंबर दिया था अपने दोस्त 'शेलेंद्र' का उससे बात की उसने कहा की 400 रु. में  ले जाएगा मैंनें टैक्सी वाले को 400 रु कहा .. थोड़ी न -नुकर के बाद वो तैयार हो गया -- नाम विक्की था .. चाप्टर  लग रहा था ..सीधा तो वो बिलकुल भी नहीं था .. आजकल पहाड़ पर वो शांत और शर्माने वाले पहाड़ी कहाँ रह गए हैं ..वो भोली मुस्कान वो भोलापन अब यहाँ देखने को नहीं मिलता ? चारों और लूट -ख्सोट यहाँ भी अपने पैर जमा चुकी हैं .. बाद में उसने बताया की क्या करे मेडम, बस यही सीजन में ही हमारी कमाई होती हैं बाकी  महीने  तो हमें बैठकर ही खाना होता हैं  ..मुझे भी लगा की बंदा सच कह रहा हैं .. हम शहर के लोग तो बारह महीने काम करते हैं ..खेर......

 हम चल पड़े उसकी इंडिका कार में आरामदायिक सफ़र पर ...रास्ते की द्रस्यावाली  मन मोह रही थी ..ठंडी -ठंडी  हवाए दिल चुरा रही थी ...गुलाब के ढेरों पोधें चटक लाल रंग के बड़े -बड़े खिले हुए गुलाबों से भरे पड़े थे  .कुछ बड़े पेड़ भी बेंगानी रंग के और आरेंज कलर के इस सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे ....किस जात के थे पता नहीं ,पर लग बहुत सुंदर रहे थे .. कहीं -कहीं ऊँची -ऊँची पहाड़ियाँ थी तो कहीं गहरी खाइयाँ थी ...मन मयूर -सा नाच रहा था ...और दिल गाना गाने को बैचेन था ....

ये हंसी वादियाँ ये खुला आसमा ..
आ गए हम कहाँ ऐ मेरे साजना .. 

खुबसूरत  बेंगनी फूलों  का पेड 

यह बर्फ नहीं हैं ..सफेद पहाड़ हैं 


खुबसूरत आरेंज कलर के पेड़ 



खुबसूरत पुल ..दो पहाड़ियों को जोड़ता हुआ ..कितना दिलकश नजारा हैं 


हमारा कारवां बढता रहा 


रास्ते में रूककर हमने चाय पी ..15 रु की ऐक चाय ...बड़ी महगी हैं   

रास्ते में रुककर हमने चाय पी ...सुबह का माहौल खुशगवार था --एक चेरी वाला चेरी बेच रहा था 20 रु में एक दौना ..बच्चो ने भी ले लिया --पर यह क्या ? शुरू होते ही ख्त्म यानी हमें ही बेवकूफ बना दिया ..उपर से दौना  भरा हुआ लग रहा था ,हम बहुत खुश हुए ,पर जब हाथ में  गिनकर 6 चेरी भी नहीं आई तो हमारा बुरा हाल था  यह तो मुम्बई से भी महंगी निकली ... हम तो ठग गए भाई हा हा हा हा हा.....



चाय ख़तम करके हम चल दिए अपने नियत स्थान पर ..अभी नैनीताल दूर था .. रास्ते में विक्की ने बताया की कल यहाँ एक बस खाई में गिर गई थी ...ड्राइवर मर गया पर सवारी नहीं थी ..इसलिए ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ ..सुनकर रोंगटे खड़े हो गए ..यह पहाड़ दिखने में जितने सुंदर हैं उतने ही भयानक भी ..


खाई में गिरी हुई बस


इस खोफनाक  मंजर के बाद ,सबकी बोलती बंद थी ,,सब चुपचाप चले जा रहे थे ..  गुनगुनाना बंद हो गया था ..जब भी कोई मोड़ आता मेरी  चींख निकल जाती ,मैं विक्की को आराम से चलने का बोल रही थी ,अभी सुबह का  टाईम था रास्ते के एक बोर्ड पर उसका ध्यान दिलाया जिसपर लिखा था ----

सावधानी हटी,,,,,दुर्धटना घटी 


रास्ते -भर विक्की अपनी लव -स्टोरी सुनाता रहा ..उसने लव -मेरिज की थी . ..लड़की भी नैनीताल की ही थी ..माँ  तैयार नहीं थी तो  दोनों भाग गए  और कुछ समय दिल्ली में गुजारे ..कहने लगा बड़े बुरे दिन थे ..पर अब माँ -बाप मान गए हैं मेरी बीवी को सबने स्वीकार कर लिय हैं वो एक स्कूल में टीचर हैं ...विक्की की लव -स्टोरी -सुनते सुनते कब  नैनीताल आ गया पता ही नहीं चला ..... 

हम आराम से नैनीताल पंहुच  गए ...कमलेश भट्ट ने जो होटल बुक किया  था होटल  जगती ! उसके रूम बहुत ही अच्छे  थे ..दो रूम  चार बेड और किराया सिर्फ 1500 रु....सामने ही नैनीझील इठलाती हुई हमें देख रही थी ..सिंपल होटल था वैसे 2000 भाड़ा था  पर हमें कंसेसन मिल गया था वैसे भी अभी यहाँ सीजन चालू नहीं हुआ था ..दिल्ली में छुटियाँ चालू नहीं हुई थी सो, अभी यहाँ सबकुछ सस्ता हैं ऐसा हमें उस होटल के मालिक ने कहा..कुछ भी हो जगह शानदार थी  दिल - बाग़ -बाग़ हो गया था ..काफी देर तक मैं उस झील को देखती रही ...कितनी सुन्दरता प्रकृति ने यहाँ रचा रखी हैं ..ऐसा लगता हैं मानो स्वप्नलोक मैं आ गए हो ....आप भी देखें ...क्या शमा हैं ----पर हम कितना प्रकृति को कैद कर पाएगे ????


 नैनीझील  


 नैनीझील  
  




 नैनीझील  


नैनीझील  


नैनीझील की सुन्दरता में मन खो -सा गया ....कमरे में आकर हम सब तैयार होने लगे ..10 बजे विक्की को नैनीताल की साईट दिखने को कहा था ..आने के टाईम विक्की ने साईट -सीन देखाने का प्रस्ताव रखा जिसे हमने मान लिया .. पहले तो वो 1300रु. मांग रहा था पर बाद  में 800 रु. में तैयार हो गया ..टोटल 9 पाइंट दिखाने की बात हुई ...बाद में पता चला की असल में 800 रु. ही होते हैं साईट सीन के ..खेर, और हम चल दिए नैनीताल व्यूह देखने .....आपको भी दिखाएगे पर अगले एपिसोड में ..तब तक के लिए अलविदा .....

9 व्यू पाइंट ऑफ़ नैनीताल :----

1. जल प्रपात !
2.खुरपा ताल !
3.लवर्स -पाइंट !
4.सुखा ताल !
5.हनुमानगढ़ी टेम्पल !
6.हिमालय दर्शन !
7.नैनीताल व्यू पाइंट !
8.केव गार्डन !
9. गवर्नर हाउस !

शेष जारी ----

सोमवार, 21 मई 2012

नैनीताल ...भाग 1



खूबसूरत  नैनीझील   


इस बार हमने स- परिवार नैनीताल जाने का प्रोग्राम बनाया ..3 महीने पहले से ही टिकिट बुक करवाई ताकि कोई परेशानी न हो .. वसई से हमने 'मडगाव -निजामुधीन ' सम्पर्क -क्रान्ति एक्सप्रेस  से रिजर्वेशन करवाया  जो रात को 9 बजे वसई से ही चलती हैं ...हम ठीक  टाईम स्टेशन पर आ गए ...


A.c. का  आरामदायक सफ़र  

सेकंड  A.c. में यदि चार सीट का कूपा मिल जाए तो मजे ही मजे हैं  भैय्या 




पतिदेव सफर का सोकर मज़ा लुटते हुए 

सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसी 



जिन्दगी  इक सफ़र हैं सुहाना 



गाडी चली और हम मुंबई की इस गर्मी को अलविदा कह कर चले तालो की रानी नैनीताल की और ....सुबह  
  मेरा  ससुराल 'कोटा' आ पंहुचा 10 बजे और हमारे लिए आ गया गरमा -गर्म खाना ...कोटा की खस्ता कचोरी और गरमा -गर्म जलेबी  मुझे बेहद पसंद हैं ...कोटा में भी गर्मी अपने योवन पर थी ..हम वापस  अपने A.C. कम्पार्टमेंट में आ गए ...कुछ राहत मिली ! फिर भूख को काबू में किया खाना खाकर  ....और सो गए ..शाम को आना था दिल्ली निजामुधीन ....अब मैं अपने कुछ परिचितों को  फोन करने में मशगुल हो गई  ...
सबसे पहले अपने चाहते बेटे अतुल को फोन किया तो पता चला की वो उदयपुर में मटरगस्ती कर रहा हैं ..कल तक आने की कोशिश करेगा .. 'नीरज जाट ' ने पहले ही  दिया था की वापसी में मिलूँगा !अब नंबर आता हैं  ..संदीप जाट का ! उससे मिलने की बहुत इच्छा थी, हमेशा 'बुआ' के गुण गाता हैं यानी मेरे, आज पहली बार मिलने का मौका आया था ..फोन घुमाया पर नदारत ..घंटी बज रही थी पर खुद गायब 5-6 बार कोशिश की पर  कोई फायदा नहीं ,एक बार तो लगा बन्दा मिलना ही नहीं चाहता हैं क्या ? पर अपनी ही बात पर यंकी नहीं हुआ..क्योकिं घुमक्कड़ लोग हैं कहीं चले गए होगे अपनी मोटर साइकिल उठाकर ....खेर, फिर कोशिश करुँगी गे ...सोचकर अपने दुसरे फेसबुक परिचित 'कमलेश भट्ट  को फोन घुमाया ..चलो वो तो मिल गया, उनको नैनीताल आने के बारे में बताया .उन्होंने सब कुछ अरेंज करने के लिए एक घंटा माँगा ...और हमने दे भी दिया ...तब तक एक दुसरे फेसबुक दोस्त हरदीप का  फोन आ गया जो हमारा दिल्ली में निजामुधीन पर इन्तजार कर रहा था ..खाने में क्या खाएगे, वो सुनने को बेकरार था , अभी तक कोटा का आया खाना पचा भी नहीं था की एक और खाना ...????

खेर ,कमलेश भट्ट का फोन आया की आप का होटल बुक हो गया ..और कोई परेशानी हो तो बताए ? बस समस्या हल हो गई  ..अब संदीप को फिर फ़ोन लगाया तो इस बार फोन ही बंद था ? मुकेश कुमार सिन्हा को भी फोन लगाया तो उन्होंने भी कहा देखता हूँ खेर, .....दिल्ली वालो की प्रीत निराली ....

इतने में अतुल का फोन आ गया की आज मैं शायद ही आ पाऊंगा ..कोई व्हीकल  नहीं मिल रहा हैं ..खेर, मैनें उससे कहा की जरा संदीप को फोन लगा ,जब उसने फोन लगाया तो संदीप मियां मिल गए,,,,संदीप के पास  कई  फोन नंबर  हैं ..उसको मेरा सन्देश दे दिया अतुल ने ,अब में संदीप के फोन का इन्तजार करने लगी ...


निजामुधीन स्टेशन पर  उतरकर पास वाले रेस्टोरेंट में गए ..नाश्ते के लिए  


शाम को 5 बजे गाडी दिल्ली (निजामुधीन  ) पहुंची ..गर्मी बहुत थी ...5 बजे भी दिल्ली जल  रही थी ..हरदीप खाना लेकर मुश्तेदी से खड़ा था ..देखते ही पहचान गया .. सामान लेकर हम पास के ही एक रेस्टोरेंट मैं गए जहाँ  हमारे सामान की भी जांच हो रही थी ..यहाँ दीप ने हमारा वेलकम किया और हमने  नाश्ता किया और चल दिए पुरानी दिल्ली की और ...टेक्सी की प्री- पेड़ किराया हुआ ..290..और हम पहुंचे लेडिस वेटिंग रूम में  क्योकिं जेंट्स -वेटिंग रूम खाली नहीं थे जिसके  कारण  मिस्टर को बाहर ही खड़ा होना पड़ा ,पर कुछ समय बाद रेलवे का बन्दा होने के कारण अंदर आने का मौका मिल ही गया ...गर्मी अपने पुरे शबाब में थी ..लौटते वक्त 1 दिन दिल्ली रहने का प्रोग्राम खारिज करना पड़ा ...बच्चे दिल्ली रहना ही नहीं चाहते थे ...जैसे हमारे बॉम्बे में तो बर्फ गिरती हैं ...हा हा हा हा   


यह हैं पुरानी दिल्ली का गन्दा -सा फर्स्ट -क्लास वेटिंग रूम 


अभी हमारे पास कुल 4घंटे थे 10.40 की गाडी थी .रानीखेत एक्सप्रेस जो सुबह हमें पहुचाएगी  काठ गोदाम ! हम पुरानी  दिल्ली के वेटिंग रूम में बैठे थे की संदीप का फोन आया की कोशिश करता हूँ आने की मैने  तो मना कर दिया  कहाँ इतनी गर्मी में कहाँ आएगा, फिर मिलेगे ..पर वो नहीं माना और हम उसका इन्तजार  करते रहे .....


  पुरानी दिल्ली की दूसरी मंजिल पर ठंडी हवा आ रही थी ..हम  वही खड़े रहे  




संदीप जाट का इन्तजार करते हुए 

इन्तजार करते -करते हमारी ट्रेन का टाईम हो गया और हम चल दिए प्लेट फार्म नंबर 12 पर जहाँ हमारी गाडी अजमेर से आने वाली थी 10 .40 की गाडी 11 बजे तक भी नहीं आई थी और नहीं आ सके संदीप जाट भी ,,हा, फोन जरुर आया की लौटते वक्त जरुर मिलुगा ...पर अब हमारा इरादा रुकने का नहीं था तो संदीप ने कहा की वो ट्रेन में सुबह 5 बजे आ जाएगा ...चलो ख़ुशी हुई , लौटे समय नीरज जाट ,अतुल और संदीप सबसे मुलाक़ात  हो जाएगी और हम चल दिए अपनी गाडी की तरफ .......
शेष अगले भाग में ....

जारी ..... 


गुरुवार, 3 मई 2012

समर्पण ...



"आज उनसे पहली मुलाकात होगी "







आज मुझे उससे मिलना हैं 

 कार दौड़ रही हैं ...
और उससे भी तीव्र गति से मेरा मन दौड़ रहा हैं  ...
 सारी धरती दौड़  रही हैं ..
खिड़की से झांकती मेरी आँखें  ...
दू.. ऊऊररर  .. तक फैली हरियाली ....
गुनगुनाती फिजाए ..
हँसते नज़ारे ...
झूमते पेड ..
गिरते पात ..
पहाड़ों पर चढ़ती धूप ...
बहती नदी की कल -कल ध्वनी ...
दूर तक फैली ऊँची -ऊँची चोटियाँ ...
गहरी  धाटियाँ  ..
टेढ़े -मेढ़े  रास्ते ...
धुमावदार पगडंडियाँ...
पर्वत पर मंदिर ..
मंदिर पर लहराता ध्वज ...
प्रसाद  की खुशबु ..
घंटों की आवाजें ..
नगाड़ों की थापें ...
बांसुरी की धुन  ..
भक्ति की स्वर लहरियां .
आसमान में उड़ता हुआ धुँआ ...
अंदर तक मन को आनंद विभोर कर रहा हैं  ...!




आज मुझे उससे मिलना हैं ...

उसी से जिससे मैं प्यार करती हूँ ...
जिसपर मेरी कविताए समर्पित हैं ...
जो मेरे ख्यालों में बसता हैं ..
जो इन्हीं पहाड़ों का वाशिंदा हैं ...
मैं उससे परिचित नहीं हूँ ...?
कभी मिली भी नहीं हूँ ...
पर मेरे दिल पर उसी का 'राज'  चलता हैं ...?
पहाड़ों से मैं जरुर परिचित हूँ ...!
यहाँ मेरा दिल बसता हैं ...!
सुकून मिलता हैं ...?
मन करता हैं आँखें मुंद्द लू....
कुछ पल आराम कर लू ..
कितनी शांति हैं यहाँ ..
 मरघट की ख़ामोशी जरुर हैं ...
पर, जीवन की हलचल भी हैं .....



आज मुझे उससे मिलना हैं ...


कार दौडती बल खाते रास्तो पर चली जा रही हैं  ...
छोटे -छोटे घर इधर -उधर नजर आ रहे हैं  ...
जैसे थाली में मोती बिखरे हो ...
पतली -पतली पगडंडियाँ नसों में हरकत करती हुई प्रतीत हो रही हैं ...
ठंडा माहौल ...
बदन में रोमांच भर रहा हैं ..!
खिलें हुए फुल ..
मानो साँसों में ताजगी भर रहे हो ...!
गुलाबी चेहरें !
बेदांग धुले जिस्म !
भोली मुस्कान !
अधखुली आँखें !
प्यार से ओत -पोत शब्द !
जैसे कह रहो हो ----
" शाब  -मैंम शाब "
कितना अपना -पन लिए बोलती जुबान ....
मिठास तो ऐसी.... जैसे शहद घोल  दी हो ......!





आज मुझे उससे मिलना हैं


कैसा होगा वो ?
वो अजनबी शख्स ?
कठोर या निर्मल ?
प्यारा या बेजान ?
उसे मैं नहीं जानती ?
पर मन जरुर टटोला था मैनें ?
शायद, मुझ में समर्पित तो था वो ?
पर ----??????
कुछ आशंका हैं ?
मन डर रहा हैं ---
कहीं उसके दिल में मेरे लिए कोई जगह नहीं हुई तो ?
तो ???
सवाल कई हैं ????
पर ----?
मुझे आज उससे मिलना हैं --
 आज उससे वाकिफ होना हैं ---!
कुछ कहना हैं ???
वो जो अधुरा हैं ---
कुछ अनसुलझे प्रश्न हैं --जिन्हें खोजना हैं...?
जो तडप ! जो पीड़ा ! मेरी आँखों में बसी हैं ..
वो उसकी आँखों में भी देखना हैं ...?
 प्यार हैं या नहीं ? यह सोचना हैं .--
कुछ अनगिनत बातों को  बताना हैं ?
कुछ अनलिखे खतों के जवाब लेना हैं ?
उसका प्यार मेरा मुकद्दर हैं ...
आज उसको कहना हैं ..?




मुझे आज उससे मिलना हैं 


आज रस्में - उल्फत निभाना हैं ..
सदियों की प्यास को पल में बुझाना हैं...
 सारी दुनियां को छोड़कर जिसको मैनें पाया हैं  --
वो  कोई सपना नहीं एक हकीकत हैं ..
यह आज उसको बताना हैं ..
आज मुझे उससे मिलना हैं ....
आज रस्में -उल्फत निभाना हैं ....!
      

मंगलवार, 1 मई 2012

श्रद्धांजलि ......




जगजीत सिंह 





फिल्म -इंडस्ट्री  की तरफ से स्व. जगजीतसिंह जी को  यह श्रद्धांजलि  बहुत ही गजब की थी! आत्म -विभोर हो गया मन ...दो घंटे चला यह प्रोग्राम (कलर्स ) पर अपने आप में बेमिसाल था ..चुनिन्दा गायको ने अपनी तरफ से उन्हें दी श्रन्धांजलि ...अनूप जलोटा  ने अपनी दिलकश आवाज में ---- ' ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो  भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ...मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी ' और आखरी में उनका अन्तरा  . ' ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो  
मगर मुझको लौटा दो जगजीत वापस ...
वो गजलो की शामें वो महफ़िल रूहानी .....' वाह !वाह !वाह ! की आवाजे गूंजने लगी ----

मेहँदी हसन साहेब की इस ग़ज़ल ने समा बाँध दिया .---' चुपके -चुपके रात दिन आंसू बहाना याद हैं .....' जगजीतसिंह जी  की गाई गजल 'तुम इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो ,क्या गम  हैं जिसको छुपा रहे हो '...... चित्रा जी पर सटीक बैठ रहा था एकांतचित हो वो सभी को सुन रही थी जहाँ उनका अपना हम सफ़र उनका साथ  छोड़ चूका था ..उनकी आँखें नम थी--- 
कुणाल गांजावाला ने अपनी मदमस्त आवाज़ में इस गजल में चार चाँद लगा दिया  ...  

हरिहरन साहेब की जादू भरी आवाज़ --- 'सरकती जाए हैं  रुख से ये नकाब आहिस्ता -अहिस्ता  ...'  तालियों की गडगडाहट से हाल गूंज गया ..रिचा शर्मा ने अपनी आवाज में  प्यार का पहला ख़त लिखा---
' प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता हैं  .. 
नए परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता हैं....  

.जावेद साहेब ने कहा की जब भी में आँखें बंद करके जगजीत सिंह की आवाज़ सुनता हूँ  तो ऐसा लगता हैं की बस सुनता रहू वो हमारी यादों में हमारी धडकनों में हमारे दिल में हमेशा ताज़ा रहेगे ..| 
उस्ताद रशीद  खान की गई ठुमरी ----'याद पिया की आई ..यह दुःख सहा न जाए .. हाय ' दिल के अन्दर तक उतर गई ..
 हंसराज राज 'हंस' पंजाबी सूफी गायक हैं  उन्होंने  अपने सूफी अंदाज में जगजीत सिंहजी  की ग़जल का रस पान करवाया ..'गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी ने मौला .....  
सोनू निगम ने वो फेमस गजल सुनाई जो मुझे भी बहुत पसंद हैं ...
' होश वालो को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ हैं ,इश्क कहते हैं किसे और आशिक क्या चीज़ हैं..' ....
'होठो से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो ' आखिर में सभी ने एक ही स्वर में गया ----"होठो से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो ..बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो "



आज जगजीत सिंगजी  हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी आवाज़ का जादू आज भी हमारे दिलो में बसा हैं जब भी उनकी कोई गजल सुनती हूँ तो पैर  खुद ब  खुद थम जाते हैं और आँखें नम हो जाती हैं .... उन्हें भाव भीनी श्रधांजलि ...




* जगजीत और चित्रा *