मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

कर्नाटक डायरी #4


#कर्नाटक-डायरी
#मैसूर - तमिलनाडु-यात्रा
#भाग=4
#ऊटी भाग= 1
#15 मार्च 2018

10 मार्च को मैसूर पहुंचकर हमने कल मैसूर पैलेस देखा आज शुक्रवार था तो 1 दिन की छुट्टी बेटी और दामाद ने ली और सण्डे शटरडे मिलाकर 3 दिन के लिए आज सुबह नाश्ता कर के हम दामाद की कार से तमिलनाडु राज्य के हिल स्टेशन ऊटी की यात्रा पर निकल पड़े।

अब आगे...
मैसूर से  ऊटी का करीब 125 km का रास्ता हैं जो कि सड़क मार्ग Nh 766 से हैं जिसमें 4-5 घण्टे लग जाते है। टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क बांदीपुर से जब गाड़ी निकली तो सबसे पहले हाथी महाराज के दर्शन हुए, हिरन तो इतने थे कि पूछो मत।लेकिन हम उतरे नही ओर बांदीपुर निकलकर आराम से 33 बेंड पार करके ऊटी पहुंच गए। 

 ऊटी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर बसा यह शहर मुख्य रूप से एक पर्वतीय स्थल (हिल स्टेशन) के रूप में जाना जाता है। कोयम्बटूर यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा है जो 88 km दूर है..सड़क के द्वारा यह तमिलनाडु और कर्नाटक के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है । इस पर्वत श्रृंखला पर शिंमला की तरह ट्रेन द्वारा भी आ सकते हैं जो कि कुन्नूर से चलती हैं इस खिलौना ट्रेन  का सफर रोचक,अद्भुत ओर आखों को सुकून देने वाला होता हैं ।

पहाड़ों की रानी ऊटी उधगमंडलम 
यानी ऊटी शहर का नया नाम है जो तमिल भाषा में  है। 
ऊटी समुद्र तल से लगभग  7,440 फीट 2,268 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है
तमिलनाडु का बेहद खूबसूरत और रोमांटिक स्थल ऊटी अपने मनोरम दृश्यों के लिए विश्व विख्यात है। इतना ही नहीं इसकी खूबसूरती के कारण इसे 'पहाड़ों की रानी' भी कहा जाता है। ऊटी कुदरत का खूबसूरत जीता जागता उदाहरण है जो अपने सौंदर्य के लिए तो जाना जाता ही है साथ ही यह हिन्दुस्तान फोटो फिल्म के कारखाने के लिए पर्यटकों के बीच खासा मशहूर है।

दूर तक फैली हसीन वादियां और उन वादियों में ढके आकर्षण वृक्ष ऐसे सुकून देते हैं जैसे कोई बच्चा नींद  की गोद में सुकून व आनंद महसूस करता हैं।

★इतिहास:--
नीलगिरि पर्वत श्रृंखला चेर साम्राज्य का भाग हुआ करते थे। फिर वे गंगा साम्राज्य के हाथों में चले गये  उसके बाद12वीं शताब्दी में होयसल साम्राज्य के राजा विष्णुवर्धन के राज्य में आ गये। 
टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में नीलगिरी पर्वत श्रृंखलाओ पर कब्जा कर लिया। बाद में टीपू सुल्तान ने ये अंग्रेजों को सौप दिए।

पड़ोसी कोयम्बटूर जिले के गवर्नर, जॉन सुलिवान को यहाँ की आबो-हवा बहुत पसंद थी, उन्होंने स्थानीय लोगों से जमीन खरीदकर 1821 में ऊटी शहर की स्थापना की थी ।
यह पर्वतीय पर्यटन स्थल समुद्र तल से करीब 7,440 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां दूर-दूर तक फैली हरियाली, चाय के बागान, तरह-तरह की वनस्पतियां पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी हैं.

यहां स्थित दोदाबेट्टा पीक, लैम्ब्स रॉक, कोडानाडू व्यू प्वाइंट,रोज गार्डन, बोटेनिकल गार्डन्स, अपर भवानी झील, नीलगिरी माउंटेन रेल्वे के अलावा फूस की छतवाले चर्च, खूबसूरत सड़कें और सुंदर कॉटेज देखने लायक हैं.

प्रकृति प्रेमियों के बीच मशहूर इस वनस्पति उद्यान की स्थापना सन 1847 में की गई थी.  22 हेक्टेयर में फैले इस खूबसूरत बाग की देखरेख बागवानी विभाग करता है।
यहां एक पेड़ के जीवाश्म संभाल कर रखे गए हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि यह 2 करोड़ वर्ष पुराना है. इसके अलावा यहां पेड़-पौधों की 650 से ज्यादा प्रजातियां देखने को मिलती है
 ऊटी में मौज-मस्ती और घूमने के अलावा, दक्षिण भारतीय व्यंजनों का स्वाद जा सकता है. इसके साथ ही यहां कि मशहूर चाय, हाथ से बनी चॉकलेट, खुशबूदार तेल और गरम मसालों की खरीददारी भी की जा सकती है।
सुबह से निकले हमको काफी टाइम हो गया था इसलिए रास्ते में मिले काफी कैफे पर उतरकर हमने काफी पी ओर कुछ स्नेक्स खाये, यहां दूर से ही ऊटी के पहाड़ दिखाई दे रहे थे।
ऐसा लग रहा था कि ऊटी में जमकर बारिश हो रही हैं।
ओर यही बात सच हुई ,ऊटी में प्रवेश करते ही बारिश ने हमारा जोरदार स्वागत किया।बारिश इतनी तेज थी कि बाहर के कुछ भी दृश्य दिखाई नही दे रहा थे..
यहां दामाद ने एक कॉटेज बुक की थी ,2 बजे हम उस कॉटेज पर पहुंचे तो बारिश बन्द नही हुई थी। इस कॉटेज का 1 दिन का किराया  2500 रु था। पास ही ऑनर का होटल था जिसका खाना बहुत ही टेस्टी था। हमने खाना मंगवाया ओर खाकर आराम करने चल दिये।
कॉटेज 2मंजिला थी नीचे हम जाकर अपने बेड पर कुछ देर के लिए सो गए,बाहर बारिश थी इसलिए कही जा भी नही सकते थे।
4बजे सब आराम कर के उठे तो बारिश बन्द हो गई थी ।सब फटाफट तैयार हो ऊटी की फ़ेमस लेक पर चल दिये। 

★झील':--
ऊटी झील का निर्माण यहां के पहले कलेक्टर जॉन सुविलियन ने 1825 में करवाया था. यह झील 2.5 किमी लंबी है इसके अलावा यहां एक बगीचा और जेट्टी भी है. यहां हर साल तकरीबन 12 लाख पर्यटक आते हैं.
ऊटी झील किसी सितारे से कम नहीं लगती है। इसकी सौंदर्य को देख बस दिल हरा-भरा हो जाता है। इस झील में बोटिंग की अच्छी व्यवस्था है। साथ ही आप यहाँ घुड़सवारी का आनंद उठा सकते हैं और बच्चे यहाँ खिलौना गाड़ी में बैठकर खूब मस्ती करते हैं।
लेक पर पहुंचकर हमने बोटिंग का आनंद लिया। शाम को यहां काफी ठंडक हो गई थी इसलिए सबने स्वेटर् निकाल लिए थे।
रात को लेक से वापसी पर हमने खाना नही खाया क्योकि लेट खाना खाया था तो किसी को भी भूख नही थी।रात काफी ठंडी थी
फिर हम सब सो गए।
क्रमशः:----










बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

कर्नाटक डायरी#3

कर्नाटक-डायरी
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#मैसूर -यात्रा
#भाग=3
#कर्नाटका
#12मार्च 2018

10 मार्च को मैसूर पहुंचकर हमने रात को मैसूर के पैलेस की लाइटिंग देखी,फिर कल रेल्वे संग्रहालय देखा, अब आगे...

दोपहर का खाना खाकर हम कल की तरह ओला से मैसूर का फ़ेमस पैलेस देखने चल दिये...

पैलेस के सामने हमको ओला वाले ने उतार दिया ..हम बड़ा गेट पार कर के टिकिट खिड़की पर आ गए...
हमने भी टिकिट कटवा लिए,ओर अंदर चल दिये...अंदर बहुत रौनक थी, काफी विदेशी घूम रहे थे।

★मैसूर पैलेस★
महल में प्रवेश करते ही प्रवेशद्वार के दाहिने तरफ सोने के कलश से सजा गणपति मंदिर है और इसके दुसरे छोर पर भी वैसा ही मंदिर है जो कि दुर से देखने पर धुँधला नजर आता है। इनके विपरीत दिशा में मुख्य भवन है जो कि राजमहल हैं और बीच में एक बगीचा है। महल की दिवारों पर दशहरा के चित्र भी बने हैं जो कि सजीव लगते हैं।
 पैलेस दूर से ही काफी खूबसूरत दिख रहा था, भीड़ काफी थी ऊपर से गर्मी भी लग रही थी...हम सबके साथ ही एक लाईन में खड़े हो गए... यहां लोग लाईन में धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे आगे सब अपने-अपने जूते उतार रहे थे ...हमने भी सबके देखादेखी अपने जूते उतार दिए और जमा करके अपना टोकन संभालकर रख लिया और आगे बढ़ गए।

सबसे पहले महल में तोपें दिखाई दी जो करीने से सजी हुई थी ,ये करीब 20 से ज्यादा ही थी।...
इस महल को बेहद अद्भुत ढंग से बनाया गया है.. रोमन पद्धति से बना ये महल बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था...मेरे देखे अब तक के कई महलों में ये नम्बर वन था..इसको स्लेटी ओर गुलाबी पत्थरों से सजाया गया था। 

 अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हॉल आता है जिसके गलियारे के कोने में थोड़ी थोड़ी दूर पर स्तंभ लगे हुए है। इस हॉल में स्तंभ और छत पर सुनहरी नक्काशी की गई है जो देखते ही बनती हैं।इसकी दिवारों पर कृष्णराजेंद्र वाडियार के जीवन से जुड़े चित्र लगे है जिनमें से ज्यादातर चित्र राजा राव वर्मा ने बनाए हैं हॉल के बीच में छत की जगह एक रंग बिरंगे शीशों से बना ऊँचा गुबंद है जो कि सूरज और चाँद की रोशनी की आभा दर्शाता है।

निचले कमरे को देखने ये पहले दो तल हैं जिसमें पहले तल की सीढ़ियाँ चौड़ी है और उसे पूजा स्थल कहा जाता है जिसमें देवी देवताओं की तस्वीर लगी हुई है ओर उसीके कारण हमको चप्पलें बाहर उतारनी पड़ी थी शायद!
दूसरी मंजिल पर दरबार हॉल है जिसमें बीच का एक भाग सुनहरे स्तम्भो द्वारा घिरा हुआ है। इस घेरे के दाईं और बाईं तरफ दो गोलाकार स्थान हैं। इसी मंजिल के पिछले भाग में एक कमरे में तीन सिंहासन है – महाराज, महारानी और युवराज के लिए ये चंदन की लकड़ियों से बने हुए हैं।
इस महल को संग्रहालय भी कह सकते  है। .महल में एक बड़ा सा दुर्ग भी है जिसके गुंबद सोने के पत्तरों से सजे हैं। ये सूरज की रोशनी में खूब जगमगाते हैं। 
यहाँ एक सोने का राजसिंहासन भी देखा, इस राजसिंहासन की दशहरे पर प्रदर्शनी लगाई जाती है।जिसे आम जनता देख सकती हैं।

 आगे गजद्वार हैं जहां दो गज पहरा देते हुए प्रतीत होते हैं। गजद्वार से हो कर महल के मध्य में पहुँचा जा सकता है यहाँ पर विवाह मंडप है। महल में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास भी है। यहाँ पर हथियार रखने के लिए भी हाल बने हुए है,जो राजा के राज्यकाल के समय के हैं।
ये पैलेस बहुत ही भव्य हैं।
इस पैलेस को अंबा पैलेस भी कहते है।

इतिहास
मैसूर पैलेस को महाराज राजर्षि महामहिम कृष्णराजेंद्र वाडियार चतुर्थ ने बनवाया था। इस महल को बनने में लगभग 15 साल का समय लगा था। इसका निर्माण कार्य 1897 में शुरू हुआ था और यह महल 1912 में बनकर तैयार हुआ था। पहले वाला राजमहल चंदन की लकड़ियों से बना हुआ था जलने के कारण इसका काफी भाग प्रभावित हुआ था। उसको अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया हैं।उसके बाद इस  नये  राजमहल का निर्माण करवाया गया जो इस समय हैं । नया राजमहल बनने के बाद इसमें फिर कोई बदलाव नहीं किया।

गुड़िया-घर
मैसूर पैलेस में गोम्बे थोट्टी यानी एक गुड़िया घर  भी हैं ,जो राजा का निजी संग्रहालय हैं... इसका टिकिट 100 रु हैं ... यहां 19वीं और 20 वीं सदी की गुड़ियाओ का काफी अच्छा संग्रह है। ईस संग्रह की आय यहां के राजा के पास जाती हैं।इस संग्रहालय में 84 किलो सोने से सजा लकड़ी का हौद है जिसे हाथी की सवारी के लिए लगाया जाता था जब राजा हाथी की पीठ पर सवार होते थे ।


महल देखकर हम बाहर निकले और अपनी चप्पल की खोजबीन की😊
इस पैलेस के आधे हिस्से में अभी भी रॉयल परिवार के सदस्य रहते हैं और बाग की देखरेख यही करते हैं।
बाकी आधा पैलेस सरकार के पास है और टिकिट से मिलने वाली आय सरकारी खजाने में जमा होती हैं।
बाहर आकर हम बैट्री से चलने वाली गाड़ी में बैठ गए ताकि सारा बाहरी पैलेस देख सके।
150₹ देकर हम तीनों उस वेन में बैठ गए और पूरे परिसर में घूमने लगे। फिर गणपति मन्दिर में गए।
शाम को थक हारकर हम घर को चल दिये।
क्रमशः...








          दशहरे पर राजपरिवार की पूजा

              दशहरे पर शहर की सजावट


                  बैट्री से चलने वाली वेन

                  गणपति मन्दिर



शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

पिता की याद में

           

★पिता की याद में★

मुझे वो कंधा आज याद आया।
जब पिता का साथ था घना साया।

अपने आंगन की...
मैं फुदकती हुई चिरैया थी!
दाना चुगती हुई गौरैया थी!
आये जो पंख,उड़ना मुझको भाया,
पिता ने ही मुझे उड़ना सिखाया!
मुझे वो कंधा आज  याद आया!!

मुझे एक गुड़िया ला के देना,
उसका नाम 'अप्पू' बताना,
ओर मेरा इसी नाम से फ़ेमस हो जाना,
हमेशा उनका कहना–
"मेरी बेटी मेरे सिर माथे पर रहना!"
देखा एक घर और मुझे गुड्डे संग सजाया,
मुझे वो कंधा आज याद आया !!

मेरी दुनिया में पापा 😢
तुम न लौट कर आये...
जियूँ कैसे
कोई मुझको बताये!
मेरी किस्मत ने ऐसा धोखा क्यूँ खाया!
मुझे वो कंधा आज क्यूं याद आया!!
मुझे वो कन्धा आज क्यूँ याद आया🙏

मेरे पिता को सादर नमन👏

7मार्च 1982

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

कर्नाटक-डायरी#2


#मैसूर -यात्रा
#भाग=2
#कर्नाटक
#11मार्च 2018

मैसूर यात्रा मेरी एक पंथ दो कॉज की तरह थी...ये एक घरेलू यात्रा थी.. मतलब मैसूर में मेरी बड़ी बेटी और दामाद रहते हैं तो यू हुआ कि बेटी से मिलना भी हो गया और अपनी घुमक्कड़ी भी हो गई।😊

कल ही पहुँचकर मैंने मैसूर पैलेस की लाइटिंग ओर चामुण्डायै मन्दिर देखा अब आगे:---

 आज हमने दोपहर का खाना खाया और घूमने के लिए तैयार हो गए, बेटी ओर दामाद अपने अपने ऑफिस गए हुए थे ओर हमारे पास शाम तक टाईम ही टाईम था...ऑफिस से ही बेटी ने ओला बुक कर दी और हम चल दिया मैसूर की सड़कें नापने के लिए...😊

आज हम रेल - संग्रहालय यानी कि रेल्वे म्यूजियम देखने जा रहे है... रेल संग्रहालय कृष्णराज सागर रोड पर स्थित सीएफटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सामने है। मैसूर के रेलवे संग्रहालय को  मैसूर के संग्रहालयों में काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान  हासिल है।

 मैसूर के रेल संग्रहालय की स्थापना 1979 में हुई थी यानी की मेरी शादी के समय😊 मेरी शादी भी 1979 में एक रेल्वे कर्मचारी से ही हुई हैं😂😂😂

यह म्यूजियम सुबह 10 बजे से 1 बजे तक और शाम को 3 से 5 बजे तक खुला रहता हैं। सोमवार को ये बन्द रहता हैं। इस संग्रहालय में मैसूर स्टेट (रेल्वे) की उन चलत ट्रेनों को प्रदर्शित किया गया है जो 1881 से 1951 के बीच  चलती थी।
 
इतिहास:--
इस म्यूजियम की  स्थापना वर्ष 1979 में हुई थी.. इसमें वर्ष 1881 से 1951 तक संचालित मैसूर राज्य के रेल्वे के दिनों की यादें  सँजोई हुई हैं। इसमें रखी गई यादगार वस्तुएं कभी मैसूर राजमहल की शान हुआ करती थीं। इन ट्रेनों को देखकर मैसूर राज्य के स्वर्णिम युग की याद ताजा होती हैं। इसमें 19 वीं शताब्दी के समय से लेकर अब तक की रेलवे के विकास की जानकारी भी मिलती है। लोकोमोटिव वाष्प इंजनों यानी भाप से चलने वाली ट्रेन के भी कई मॉडल इस संग्रहालय की शान हैं। यहां राजा का राजसी सेलून भी हैं जिससे राजा ओर उनकी फैमिली सफर करते थे।

हमको ओला वाले ने  रोड पर ही उतार दिया...देखा सामने ही रेल संग्रहालय का बोर्ड लगा  हुआ था, हम अंदर चल दिये..सामने ही टिकिट खिड़की थी, मैं जब टिकिट लेने खिड़की पर पहुंची तो वहां एक सूचना पर मेरी निगाह पड़ी उसमें लिखा था कि "रेल्वे कर्मचारियों को यहां टिकिट लेने की आवश्यकता नही हैं।"😊हुरर्रेर्रर्रर

अब हम मिस्टर का आई कार्ड खिड़की पर दिखाकर शान से अंदर आ गए।अंदर एक से बढ़कर एक इंजन करीने से खुले मैदान में थोड़े-थोड़े फ़ासले  पर खड़े हुए थे...सब जगह पटरियों का माया जाल बिछा हुआ था जिन पर एक एक इंजन खड़ा हुआ था। यहाँ इंजन के अलावा डिंब्बे भी थे, ओर पूरी गाड़ी भी थी..एक जगह तो बहुत ही छोटू इंजन खड़ा हुआ था। वो मुझे बहुत ही प्यारा लगा😊
इसके अलावा एक लाल रंग की वेन भी खड़ी थी नजदीक जाकर देखा तो वो भी एक ट्रेन ही थी।

हम धीरे- धीरे चलते हुए फोटू खींचते हुए आगे बढ़ते रहे ।यहां काफी सुंदर बगीचा भी बना था और बैठने के लिए हर जगह बेंचे लगी हुई थी। माहौल बिल्कुल स्टेशन जैसा था ।क्रॉस करती पटरियां ,सिंग्नल, गेट ओर भी वो वस्तुएं जो स्टेशन पर  होती हैं। ओर उस समय हुआ करती थी।
काफी देर तक फोटू खींचकर हम बाहर निकल गए।बहुत ही खूबसूरत संग्रहालय था।
अब हम आगे रेत की कारीगरी देखने चामुंडा हिल के नजदीक चल दिये...
क्रमशः....

 







बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

कर्नाटका डायरी #1


#मैसूर -यात्रा
#भाग=1
#कर्नाटका
#8 मार्च 2018

मैसूर यात्रा मेरी एक पंथ दो कॉज की तरह थी...ये एक घरेलू यात्रा थी.. मतलब मैसूर में मेरी बड़ी बेटी और दामाद रहते हैं तो यू हुआ कि बेटी से मिलना भी हो गया और अपनी घुमक्कड़ी भी हो गई।😊

उसके घर में रहते हुए ही हमने 15 दिनों में मैसूर,ऊटी, श्रीरंगपट्टनम, कुर्ग वगैरा की यात्रा की थी।

8 मार्च को मिस्टर के साथ उनकी बड़ी बहन ओर मेंने मुम्बई - मैसूर -  एक्सप्रेस ट्रेन दादर स्टेशन से पकड़ी... ये ट्रेन वीक में 2 बार आती और जाती हैं।
हमारी गाड़ी 8 मार्च 2018 को शाम को बॉम्बे से चलकर 10 मार्च 2018 को सुबह 6 बजे मैसूर पहुंची।

काफी लंबा सफर था लेकिन वेस्टर्न घाट की खूबसूरती देखते हुए कब टाइम निकल गया कुछ पता ही नही चला...घर आकर बहुत थकान हो गई तो खाना खाकर हम सब सो गए ...

5 बजे उठे तो थकान का नामोनिशान नही था हमने शाम की चाय पी ओर राजा बाबू बन मैसूर पैलेस यानी की अम्बा विलास पैलेस की लाइटिंग देखने निकल पड़े, ये पैलेस शहर के बीचोबीच स्थित है। 

मैसूर शहर छोटा और खूबसूरत हैं ,ये शहर अपने खूबसूरत तालाब,बगीचे, मैसूर साड़ी, मैसूर पाक,मैसूर सोप, मैसूर सिंदल पावडर, अगरबती ओर मैसूर मसाला डोसा के लिए दुनिया भर में प्रसिध्द हैं। यहां का वृंदावन गार्डन पहला म्यूजिकल गार्डन था जहां कई फिल्मों की शूटिंग हुई थी। यहां चंदन की लकड़ी पर खूबसूरत नक्कासी किये शो पीस, खिलोने ओर तस्वीरे भी मिलती हैं।

मैसूर पैलेस पहुंचकर हम हक्काबक्का रह गए क्योंकि पैलेस की जगमगाहट ईतनी खूबसूरत नजर आ रहा थी की कह नही सकती। यहां हर सण्डे रात को करीब 1लाख बल्ब जलते हैं। इसको देखने दूर दूर से लोग आते है।

 इस रोशनी को देखकर मुझे करीब 33साल पुराना दृश्य याद आ गया जब हम तिरुपति बालाजी के दर्शन करके वापसी में एक रात मैसूर ही रुके थे, ये बात 1985 की हैं  ओर इतेफाकन वो शायद सण्डे की ही रात रही होगी क्योकि उस दिन भी यहां काफी बल्ब जल रहे थे, बहुत उजाला था,तब मुझे ज्यादा नॉलेज नही था। उस समय हम इस पैलेस के सामने ही एक होटल में रुके थे और रात को अपनी खिड़की से ही इस सजावट को देखा था। तब मैसूर के बारे में खास जानकारी भी नही थी इसलिए न हमने पैलेस देखा और न लाइटिंग देखने नीचे उतरे थे। क्योकि सुबह जल्दी हमको श्री श्रवणबेलगोला जाना था।

आज भी सण्डे था ओर अब मेरे पास इस पैलेस को देखने के लिए पर्याप्त जानकारी थी।😊

सण्डे के अलावा राष्ट्रीय त्यौहार यानी कि 15 अगस्त ओर 26 जनवरी को भी ये महल ऐसे ही जगमगाता हैं । शहर के बीचोबीच होने के कारण आसपास की जगह भी काफी सुंदर और भव्य हैं। कहते हैं इसके एक भाग में अभी भी राजा कृष्ण वाडियार (चतुर्थ ) अपनी फैमिली के साथ रहते है।

अम्बा विलास पैलेस:--
महाराजा पैलेस यानी कि मैसूर का पैलेस ! मैसूर का राजमहल यहां के राजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ का हैं। यह पैलेस बाद में बनवाया गया था इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना हुआ था। एक दुर्घटना में उस राजमहल की बहुत क्षति हुई जिसके बाद यह दूसरा महल बनवाया गया। पुराने महल को बाद में ठीक किया गया जहाँ अब संग्रहालय है। 
(लेकिन कुछ दिन बाद जब हम इस संग्रहालय को देखने गए तो ये बन्द मिला, क्योकि इसका रंगरोगन हो रहा था। )
आज सण्डे होने के कारण रात को पैलेस बहुत जगमगा रहा था । भीड़ भी काफी थी। 
दशहरे के दिन इस पैलेस की छटा निराली होती हैं यहां भव्य मेला लगता हैं, एक महीने पहले से यहां महावत अपने अपने हाथी लेकर जमा हो जाते हैं  .. ये हाथी राजा की कस्टडी में #दुबाले नामक जगह पर रहते हैं और दशहरे पर राजा की सवारी के साथ इनका भव्य प्रोसेशन निकलता हैं...इसको देखने देश से ही नही अपितु विदेश से भी काफी पर्यटक आते हैं। उस दिन इस पैलेस की खूबसूरती और जगमगाहट देखने काबिल होती हैं।
हम आज सिर्फ बाहर से पैलेस देखने आये थे क्योंकि शाम को पैलेस बन्द हो जाता हैं इसलिए अंदर से पैलेस फिर कभी देखने आएंगे। अभी हम सिर्फ बाहर से देखकर लौट जाएंगे। 

मैसूर पैलेस से सीधे हम पहाड़ी पर बने चामुण्डायै माता के मन्दिर में  गए। यहां चौक में बड़ी सी तलवार लिए एक आदमकद मूर्ति लगी हुई थी ।कहते है ये प्रतिमा महिषासुर राक्षस की हैं ।  मन्दिर के अंदर  फोटू  खीचना अलाऊ नही  था ,इसलिए फोटू न खींच सकी।

मन्दिर में कुछ खास भीड़ नही थी, लेकिन आम दिनों में यहां काफी भीड़ होती हैं ।मन्दिर में भी बहुत ही ज्यादा लाइटिंग थी और दक्षिण स्टाईल के मंदिरों की तरह यहां भी लंबा ओर ऊंचा गोपुरा था । जब दर्शन कर के बाहर निकले तो गोपुरा की लाईट बन्द हो गई थी शायद मन्दिर बन्द होने का टाइम हो गया था।

इस मंदिर के पिछली पहाड़ी पर बैल की काफी बड़ी मूर्ति हैं।जिसे बुल टेम्पल कहते हैं लेकिन वो किसी ओर दिन देखेंगे। अभी रात होने के कारण हम मन्दिर से चल पड़े।

पहाड़ी से उतरते हुए एक जगह लोगों का हुजूम देखकर हम भी रुक गए ,यहां से मैसूर शहर बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था सबके मोबाइल और कैमरे फटाफट इस दृश्य को कैद कर रहे थे चारों ओर घनधोर अंधेरे में घरों की लाईट ऐसे चमक रही थी मानो सैकड़ों दीये टिमटिमा रहे हो और दूर मैसूर का पैलेस ऐसा लग रहा था मानो सैकड़ों दियों के बीच एक सूरज चमक रहा हो।
बहुत ही अद्भुत ओर आलौकिक दृश्य था जिसे मेरे मोबाइल ने भी कैद कर लिया लेकिन मेरे स्मृति पटल पर वो दृश्य आज भी ज्यो का त्यों अंकित हैं।
रात को हमने एक साउथ इंडियन रेस्टोरेन्ट में खाना खाया और घर आकर सो गए।
क्रमषः----

                      बेटी के घर

 
 
                   मन्दिर का गोपुरा

 
                  मन्दिर के अंदर

              मन्दिर के अंदर लाइन में

          बाहर निकलते ही बत्ती गुुुल