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बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

कर्नाटक डायरी#3

कर्नाटक-डायरी
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#मैसूर -यात्रा
#भाग=3
#कर्नाटका
#12मार्च 2018

10 मार्च को मैसूर पहुंचकर हमने रात को मैसूर के पैलेस की लाइटिंग देखी,फिर कल रेल्वे संग्रहालय देखा, अब आगे...

दोपहर का खाना खाकर हम कल की तरह ओला से मैसूर का फ़ेमस पैलेस देखने चल दिये...

पैलेस के सामने हमको ओला वाले ने उतार दिया ..हम बड़ा गेट पार कर के टिकिट खिड़की पर आ गए...
हमने भी टिकिट कटवा लिए,ओर अंदर चल दिये...अंदर बहुत रौनक थी, काफी विदेशी घूम रहे थे।

★मैसूर पैलेस★
महल में प्रवेश करते ही प्रवेशद्वार के दाहिने तरफ सोने के कलश से सजा गणपति मंदिर है और इसके दुसरे छोर पर भी वैसा ही मंदिर है जो कि दुर से देखने पर धुँधला नजर आता है। इनके विपरीत दिशा में मुख्य भवन है जो कि राजमहल हैं और बीच में एक बगीचा है। महल की दिवारों पर दशहरा के चित्र भी बने हैं जो कि सजीव लगते हैं।
 पैलेस दूर से ही काफी खूबसूरत दिख रहा था, भीड़ काफी थी ऊपर से गर्मी भी लग रही थी...हम सबके साथ ही एक लाईन में खड़े हो गए... यहां लोग लाईन में धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे आगे सब अपने-अपने जूते उतार रहे थे ...हमने भी सबके देखादेखी अपने जूते उतार दिए और जमा करके अपना टोकन संभालकर रख लिया और आगे बढ़ गए।

सबसे पहले महल में तोपें दिखाई दी जो करीने से सजी हुई थी ,ये करीब 20 से ज्यादा ही थी।...
इस महल को बेहद अद्भुत ढंग से बनाया गया है.. रोमन पद्धति से बना ये महल बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था...मेरे देखे अब तक के कई महलों में ये नम्बर वन था..इसको स्लेटी ओर गुलाबी पत्थरों से सजाया गया था। 

 अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हॉल आता है जिसके गलियारे के कोने में थोड़ी थोड़ी दूर पर स्तंभ लगे हुए है। इस हॉल में स्तंभ और छत पर सुनहरी नक्काशी की गई है जो देखते ही बनती हैं।इसकी दिवारों पर कृष्णराजेंद्र वाडियार के जीवन से जुड़े चित्र लगे है जिनमें से ज्यादातर चित्र राजा राव वर्मा ने बनाए हैं हॉल के बीच में छत की जगह एक रंग बिरंगे शीशों से बना ऊँचा गुबंद है जो कि सूरज और चाँद की रोशनी की आभा दर्शाता है।

निचले कमरे को देखने ये पहले दो तल हैं जिसमें पहले तल की सीढ़ियाँ चौड़ी है और उसे पूजा स्थल कहा जाता है जिसमें देवी देवताओं की तस्वीर लगी हुई है ओर उसीके कारण हमको चप्पलें बाहर उतारनी पड़ी थी शायद!
दूसरी मंजिल पर दरबार हॉल है जिसमें बीच का एक भाग सुनहरे स्तम्भो द्वारा घिरा हुआ है। इस घेरे के दाईं और बाईं तरफ दो गोलाकार स्थान हैं। इसी मंजिल के पिछले भाग में एक कमरे में तीन सिंहासन है – महाराज, महारानी और युवराज के लिए ये चंदन की लकड़ियों से बने हुए हैं।
इस महल को संग्रहालय भी कह सकते  है। .महल में एक बड़ा सा दुर्ग भी है जिसके गुंबद सोने के पत्तरों से सजे हैं। ये सूरज की रोशनी में खूब जगमगाते हैं। 
यहाँ एक सोने का राजसिंहासन भी देखा, इस राजसिंहासन की दशहरे पर प्रदर्शनी लगाई जाती है।जिसे आम जनता देख सकती हैं।

 आगे गजद्वार हैं जहां दो गज पहरा देते हुए प्रतीत होते हैं। गजद्वार से हो कर महल के मध्य में पहुँचा जा सकता है यहाँ पर विवाह मंडप है। महल में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास भी है। यहाँ पर हथियार रखने के लिए भी हाल बने हुए है,जो राजा के राज्यकाल के समय के हैं।
ये पैलेस बहुत ही भव्य हैं।
इस पैलेस को अंबा पैलेस भी कहते है।

इतिहास
मैसूर पैलेस को महाराज राजर्षि महामहिम कृष्णराजेंद्र वाडियार चतुर्थ ने बनवाया था। इस महल को बनने में लगभग 15 साल का समय लगा था। इसका निर्माण कार्य 1897 में शुरू हुआ था और यह महल 1912 में बनकर तैयार हुआ था। पहले वाला राजमहल चंदन की लकड़ियों से बना हुआ था जलने के कारण इसका काफी भाग प्रभावित हुआ था। उसको अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया हैं।उसके बाद इस  नये  राजमहल का निर्माण करवाया गया जो इस समय हैं । नया राजमहल बनने के बाद इसमें फिर कोई बदलाव नहीं किया।

गुड़िया-घर
मैसूर पैलेस में गोम्बे थोट्टी यानी एक गुड़िया घर  भी हैं ,जो राजा का निजी संग्रहालय हैं... इसका टिकिट 100 रु हैं ... यहां 19वीं और 20 वीं सदी की गुड़ियाओ का काफी अच्छा संग्रह है। ईस संग्रह की आय यहां के राजा के पास जाती हैं।इस संग्रहालय में 84 किलो सोने से सजा लकड़ी का हौद है जिसे हाथी की सवारी के लिए लगाया जाता था जब राजा हाथी की पीठ पर सवार होते थे ।


महल देखकर हम बाहर निकले और अपनी चप्पल की खोजबीन की😊
इस पैलेस के आधे हिस्से में अभी भी रॉयल परिवार के सदस्य रहते हैं और बाग की देखरेख यही करते हैं।
बाकी आधा पैलेस सरकार के पास है और टिकिट से मिलने वाली आय सरकारी खजाने में जमा होती हैं।
बाहर आकर हम बैट्री से चलने वाली गाड़ी में बैठ गए ताकि सारा बाहरी पैलेस देख सके।
150₹ देकर हम तीनों उस वेन में बैठ गए और पूरे परिसर में घूमने लगे। फिर गणपति मन्दिर में गए।
शाम को थक हारकर हम घर को चल दिये।
क्रमशः...








          दशहरे पर राजपरिवार की पूजा

              दशहरे पर शहर की सजावट


                  बैट्री से चलने वाली वेन

                  गणपति मन्दिर



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