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शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

मेरी वंडरफुल यात्रा = भाग2

मेरी वंडरफुल यात्रा
भाग=2
(राजस्थान डायरी)
30 सितम्बर 2019

बॉम्बे से इंदौर उज्जैन होते हुए  कल हमने नलखेड़ा में माता बगुलामुखी के दर्शन किये और रात को मंदसौर में आराम किया अब आगे...

रात मेरी तो मजेदार गुजरी...सुबह सबसे देर से उठने वालों में मैं ही थी😜
सुबह हम सब राजा बाबू बनकर 8 बजे भीलवाड़ा के लिए निकल पड़े...
यहां आपको बता दूं कि मंदसौर शहर मेरे लिए नया नही है ये Mp का जिला हैं..यहां भगवान शिव की पशुपतिनाथ की मूर्ति नेपाल के बाद दूसरे नम्बर पर आती हैं और इसे #काला_सोना यानी अफीम की खेती के लिए भी जाना जाता हैं... 

मैंने यहां स्कूली शिक्षा 9th से कालेज की शिक्षा BA सेकण्डियर तक कि पढ़ाई की है.. मेरे पापा यहां पुलिस डिपार्टमेंट में काम करते थे.. सन 1976 में  उनके रिटायमेंट के बाद  मैंने मंदसौर शहर छोड़ दिया था ओर अपने पैतृक घर इंदौर चली आई थी ... तब से मैंने इस शहर में आज अपना कदम रखा हैं😀 

मेरी जिंदगी में इस शहर की कुछ  अच्छी यादें शामिल है, जो बरबस याद आ गई..चलते चलते नई आबादी का पुलिस स्टेशन देखा जहां मैंने कई साल गुजारे थे..आज वो पुलिस हेडक्वार्टर बन चुका है... फिर अपना स्कूल और कॉलेज भी देखा काफी कुछ बदल गया था लेकिन फिर भी वो मेरा शहर था जहां मेरी किशोरावस्था गुजरी थी ...आंखों में नीर उतर आया और मैंने सजल आंखों से, आंखों ही आंखों में उन गुजरे पलों को नमन किया और आगे बढ़ गई..😢

ओर अब हम भीलवाड़ा की तरफ तेजी से जा रहे थे...रास्ते में एक जगह रुककर हमने पोहे का नाश्ता किया और करीब 12 बजे भीलवाड़ा पहुंच गए ।
भीलवाड़ा से हम दोपहर का खाना खाकर करीब  3 बजे श्रीचारभुजा जी के मन्दिर की तरफ चल पड़े...

चारभुजाजी
 एक ऐतिहासिक एवं प्राचीन हिन्दू मन्दिर है... जो राजस्थान के राजसमंद जिले के कुम्भलगढ़ तहसील के गढ़बोर गाँव मे स्थित हैं.. कुम्भलगढ़ का किला भी काफी फ़ेमस हैं लेकिन वो फिर कभी देखेंगे।
चारभुजा जी उदयपुर से 112 km ओर कुम्भलगढ़ से 32 km की दूरी पर हैं... यह मेवाड़ का प्रसिध्द  तीर्थ स्थल हैं...यहाँ की मूर्ति अनेक चमत्कारों से भरी पड़ी हैं इस मूर्ति को बद्री नारायण के नाम से भी जाना जाता हैं।
चारभुजा जी के दर्शन करने के बाद हम भगवान कृष्ण के मंदिर #कांकरोली की तरफ चल दिये...

कांकरोली
उदयपुर से मात्र 62 km स्थित यह मंदिर राजसमन्द शहर में है इसको द्वारकाधीश मन्दिर भी कहते है यह मंदिर 1676 ईस्वी में राजा राजसिंह ने बनवाया था यह मन्दिर वैष्णव वल्लभाचार्य सम्प्रदायजी के अंर्तगत आता हैं ...मन्दिंर के नजदीक ही  राजसमन्द झील उपस्थित है।
 ओर यहां पर प्रसिद्व जे.के.टायर फेक्ट्री भी हैं ।
कांकरोली में भगवान कृष्ण अपने बाल रूप में मौजूद है।
कहते है 2015 में मन्दिर के गर्भगृह में भयंकर आग लगी थी जिससे मन्दिर के गर्भगृह में काफी नुकसान हुआ था ।
हम जब मन्दिर में पहुंचे तो बारिश ने माहौल खराब कर रखा था शाम के साढ़े 6 बज रहे थे और मन्दिर के पट सवा सात बजे खुलने थे ,तब तक हमने मन्दिर के पिछवाड़े स्थित झील का मुआवना किया...काफी बड़ी झील थी लेकिन बारिस के रहते हमने दूर से ही झील का आनंद लिया और मछलियों को आटे की गोलियां खिलाई...करीब 7:15 पर मन्दिर के पट खुले ओर हमने मन्दिर के अंदर जाकर भगवान कृष्ण की मूर्ति के दर्शन किये .. यहां भगवान कृष्ण को पान के बीडे का भोग लगाया जाता हैं जो बाद में पैसों के द्वारा खरीदा जाता हैं ... रुक्मा कहीं घुस कर वो पान के बीडे हमारे लिए ले आई जिन्हें हमने चाय पीने के बाद खाया..
करीब 8 बजे तक हम मन्दिर में थे फिर नाथेद्वारा की तरफ चल दिये।

यहां आकर हमने मन्दिर के पास ही दामोदर गेस्ट हाऊस में  सीयूट लिए जहां 3 कमरे थे और किराया नाममात्र का यानी सिर्फ 1हजार रु.था ... रूम में समान रखकर हम बाज़ार में निकल पड़े पहले खाना खाया फिर गरमा गरम दूध का सेवन किया...बारिश अब कम हो गई थी।

दिनभर की थकान आंखों में उतर आई थी और हम सब लोग निद्रादेवी के आगोश में समाते  चले गए..
शेष कल...


 

 




              कांकरोली मन्दिर



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