मेरी वंडरफुल यात्रा
भाग= 4
(राजस्थान डायरी)
(अंतिम)
1 अक्टूम्बर 2019
29 सितम्बर को बॉम्बे से इंदौर उज्जैन होते हुए माता बगुलामुखी के दर्शन करके रात मंदसौर में गुजारकर हम सुबह चारभुजा जी और कांकरोली जी के दर्शन करते हुए आज श्रीनाथजी पहुंच गए ,सुबह श्रीनाथजी के दर्शनों का लाभ उठाकर हम एकलिंग जी पहुंचे ...
अब आगे चित्तौड़गढ़ की तरफ रुखसत हुए....
एकलिंग जी के दर्शन कर के हम चित्तौड़गढ़ चल दिये
करीब 1बजे हम चित्तौड़ के किले में प्रवेश कर रहे थे...चित्तौड़ का किला एक पहाड़ी पर स्थित हैं और अंदर अभी भी लोग रहते है काफी मजबूत दिखाई दे रहा था हम विजयस्तम्भ पर उतर गए यही रानी पद्मावती ने अपनी दासियों के साथ सामूहिक जोहर किया और ख़िलजी के आगे घुटने नही टेके थे , यही कृष्ण भक्त मीराबाई का भी मन्दिर हैं ...
चित्तौड़ का किला अंदर से नही देख सकी उसको फिर कभी देखूंगी।
चित्तौड़ के किले से उतरकर हम बाजार में कल्पना रेस्टोरेंट में गए क्योंकि भूख लग रही थी और दाल बाटी चूरमा खाने को पेट मचल रहा था और जीभ पानी पानी हुई जा रही थी... 99 रु. में अनलिमिटेड दाल बाटी सब्जी और चटनी थी ,चूरमा अलग से लेना था आधी कटोरी देशी घी से भरी थी और हम सभी टूट पड़े थे ...बहुत ही टेस्टी खाना था मैंने 2 बाफले खाये थे उससे ज्यादा खाने का मन था लेकिन दूसरा पेट कहा से लाऊँ 😢 पेट का सवाल था जी😜😜😜
अब पेटपूजा करके हमने दूजा काम किया रुक्मा की बेटी का ससुराल यही है उनसे मिलना भी जरूरी था तो वही बाजार में उनके घर पर दस्तक दी और थोड़ी देर आराम कर चाय पीकर हम निकल गए अपने अगले ओर आख़री डेस्टिनेशन पर...
सांवरिया जी
करीब 5 बजे हम सांवरिया सेठ मन्दिर में प्रवेश कर रहे थे ... मन्दिर नया बना है और मन्दिर की बनावट बेजोड़ हैं ये काफी बड़े प्रागंण में बना हैं
ये मन्दिर भी कृष्ण को समर्पित हैं ...इस बार किशन कन्हिया के दर्शन बहुत हुए।
मन्दिर के बाहर ही काफी दुकानें बनी हैं जिधर भांति भांति की वस्तुएं मिलती हैं ,हम काफी देर इन दुकानों की चीजों को देखते रहे और कुछ खरीदारी भी करते रहे।
1घण्टा इधर गुजारकर हम सीधे चल दिये मंदसौर की ओर, यहां मुझे अपनी बिछड़ी सहेली से मिलना था करीब 44 साल बाद मैं अपनी सहेली से मिल रही थी...
मेरे ज़ेहन में अभी तक उसकी सलोनी तस्वीर ही तैर रही थी...लेकींन समय ने उस सलोनी सूरत को झुर्रियों से सजा दिया था.. पर मन उसका आज भी मेरे लिए प्यार से लबरेज़ था... भगवान की लीला अपरम्पार हैं उमर का तकाजा किसी को कम तो किसी को ज्यादा होता हैं और यहां तो थोड़ा ज्यादा ही था 😢 चंद पंक्तियां जसबीर के लिए:--
"दोस्ती अब पुरानी हो गई हैं----
हैं वही सखी,
पर अब ओर भी प्यारी हो गई हैं---
समय ने दी हैं अनगिनत सोगातें --
चेहरा तो वही है ,
पर लकीरें उसको बहुत सारी हो गई हैं ---।"😢
फिर भी उसके साथ गुजारे बहुत सारे पल याद करके उससे गले मिल मैंने इंदौर की ओर प्रस्थान किया ..दिल बहुत उदास था कुछ भी समझ नहीं आ रहा था...रह- रहकर गुजरा जमाना याद आ रहा था आंखों से आँसुओं की धारा बह रही थी और दिमाग सुन्न था ..
ओर इसी चक्कर में मैं अपने दूसरे fb दोस्त सुनील से मिल नहीं सकी इसका मुझे बहुत अफसोस हुआ...
कार में सन्नाटा फैला हुआ था सब सो रहे थे और मेरा दिमाग सायकिल पर सवार जसबीर ओर मेरे आसपास दौड़ रहा था...
"कॉलेज के दिन याद आ रहे थे कैसे गले मे बांहे डाले हम सायकिल पर सवार गाने गाते हुए कॉलेज में जाते थे ... लड़के रिमार्क कसते थे ,लेकिन हमको कोई फर्क नही पड़ता था.. लोग हमारी दोस्ती की मिसाल देते थे ?
वो भी क्या दिन थे...दिन - दुनिया से बेख़बर हमारी दोस्ती की जड़े बहुत मजबूत थी लेकिन उसको समय ने तोडा जब मैं इंदौर आ गई और फिर उससे कभी मिल नही सकी .. ।
वो तो भला हो मेरे fb दोस्त सुनील का जिसने गुम हुई जसबीर को फिर से जिंदा कर दिया और उसका पता ढिकाना ढूंढकर मुझे खबर किया... आज सुनील के कारण मैंने दोबारा जसबीर से मुलाकात की लेकिन, मैं उस भले इंसान से नही मिल सकी जिसने मेरी सखी को ढूंढा था... क्योंकि मेरे साथियों को उसी दिन इंदौर पहुंचना था और मंदसौर में ही रात के 9 बज रहे थे जबकि इंदौर का सफर अभी भी 3 घण्टे का ओर था ..
खेर, अगली बार मैं फिर से मंदसौर जाउंगी ओर सबसे मिलूँगी।ये मेरा वादा हैं👍
वीर बालक मद्धम आवाज़ में अपने पसंदीदा गाने गुनगुना रहा था ओर सभी थके हुए लोग गहरी नींद में सो रहे थे लेकिन मेरी आँखों में नींद का कोसों दूर तक पता नही था मैं अपने गुजरे जमाने मे अभी तक विचरण कर रही थी... फिर रात के 2 बजे इंदौर आ गया और मुझे पता ही नही चला...हम सब अपने ठिकाने पहुंच गए थे लेकिन मेरा दिल अभी भी उदास था😢
इसतरह ये 3 दिन का सफर समाप्त हुआ👏
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें