#मैसूर -यात्रा
#भाग=1
#कर्नाटका
#8 मार्च 2018
मैसूर यात्रा मेरी एक पंथ दो कॉज की तरह थी...ये एक घरेलू यात्रा थी.. मतलब मैसूर में मेरी बड़ी बेटी और दामाद रहते हैं तो यू हुआ कि बेटी से मिलना भी हो गया और अपनी घुमक्कड़ी भी हो गई।😊
उसके घर में रहते हुए ही हमने 15 दिनों में मैसूर,ऊटी, श्रीरंगपट्टनम, कुर्ग वगैरा की यात्रा की थी।
8 मार्च को मिस्टर के साथ उनकी बड़ी बहन ओर मेंने मुम्बई - मैसूर - एक्सप्रेस ट्रेन दादर स्टेशन से पकड़ी... ये ट्रेन वीक में 2 बार आती और जाती हैं।
हमारी गाड़ी 8 मार्च 2018 को शाम को बॉम्बे से चलकर 10 मार्च 2018 को सुबह 6 बजे मैसूर पहुंची।
काफी लंबा सफर था लेकिन वेस्टर्न घाट की खूबसूरती देखते हुए कब टाइम निकल गया कुछ पता ही नही चला...घर आकर बहुत थकान हो गई तो खाना खाकर हम सब सो गए ...
5 बजे उठे तो थकान का नामोनिशान नही था हमने शाम की चाय पी ओर राजा बाबू बन मैसूर पैलेस यानी की अम्बा विलास पैलेस की लाइटिंग देखने निकल पड़े, ये पैलेस शहर के बीचोबीच स्थित है।
मैसूर शहर छोटा और खूबसूरत हैं ,ये शहर अपने खूबसूरत तालाब,बगीचे, मैसूर साड़ी, मैसूर पाक,मैसूर सोप, मैसूर सिंदल पावडर, अगरबती ओर मैसूर मसाला डोसा के लिए दुनिया भर में प्रसिध्द हैं। यहां का वृंदावन गार्डन पहला म्यूजिकल गार्डन था जहां कई फिल्मों की शूटिंग हुई थी। यहां चंदन की लकड़ी पर खूबसूरत नक्कासी किये शो पीस, खिलोने ओर तस्वीरे भी मिलती हैं।
मैसूर पैलेस पहुंचकर हम हक्काबक्का रह गए क्योंकि पैलेस की जगमगाहट ईतनी खूबसूरत नजर आ रहा थी की कह नही सकती। यहां हर सण्डे रात को करीब 1लाख बल्ब जलते हैं। इसको देखने दूर दूर से लोग आते है।
इस रोशनी को देखकर मुझे करीब 33साल पुराना दृश्य याद आ गया जब हम तिरुपति बालाजी के दर्शन करके वापसी में एक रात मैसूर ही रुके थे, ये बात 1985 की हैं ओर इतेफाकन वो शायद सण्डे की ही रात रही होगी क्योकि उस दिन भी यहां काफी बल्ब जल रहे थे, बहुत उजाला था,तब मुझे ज्यादा नॉलेज नही था। उस समय हम इस पैलेस के सामने ही एक होटल में रुके थे और रात को अपनी खिड़की से ही इस सजावट को देखा था। तब मैसूर के बारे में खास जानकारी भी नही थी इसलिए न हमने पैलेस देखा और न लाइटिंग देखने नीचे उतरे थे। क्योकि सुबह जल्दी हमको श्री श्रवणबेलगोला जाना था।
आज भी सण्डे था ओर अब मेरे पास इस पैलेस को देखने के लिए पर्याप्त जानकारी थी।😊
सण्डे के अलावा राष्ट्रीय त्यौहार यानी कि 15 अगस्त ओर 26 जनवरी को भी ये महल ऐसे ही जगमगाता हैं । शहर के बीचोबीच होने के कारण आसपास की जगह भी काफी सुंदर और भव्य हैं। कहते हैं इसके एक भाग में अभी भी राजा कृष्ण वाडियार (चतुर्थ ) अपनी फैमिली के साथ रहते है।
अम्बा विलास पैलेस:--
महाराजा पैलेस यानी कि मैसूर का पैलेस ! मैसूर का राजमहल यहां के राजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ का हैं। यह पैलेस बाद में बनवाया गया था इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना हुआ था। एक दुर्घटना में उस राजमहल की बहुत क्षति हुई जिसके बाद यह दूसरा महल बनवाया गया। पुराने महल को बाद में ठीक किया गया जहाँ अब संग्रहालय है।
(लेकिन कुछ दिन बाद जब हम इस संग्रहालय को देखने गए तो ये बन्द मिला, क्योकि इसका रंगरोगन हो रहा था। )
आज सण्डे होने के कारण रात को पैलेस बहुत जगमगा रहा था । भीड़ भी काफी थी।
दशहरे के दिन इस पैलेस की छटा निराली होती हैं यहां भव्य मेला लगता हैं, एक महीने पहले से यहां महावत अपने अपने हाथी लेकर जमा हो जाते हैं .. ये हाथी राजा की कस्टडी में #दुबाले नामक जगह पर रहते हैं और दशहरे पर राजा की सवारी के साथ इनका भव्य प्रोसेशन निकलता हैं...इसको देखने देश से ही नही अपितु विदेश से भी काफी पर्यटक आते हैं। उस दिन इस पैलेस की खूबसूरती और जगमगाहट देखने काबिल होती हैं।
हम आज सिर्फ बाहर से पैलेस देखने आये थे क्योंकि शाम को पैलेस बन्द हो जाता हैं इसलिए अंदर से पैलेस फिर कभी देखने आएंगे। अभी हम सिर्फ बाहर से देखकर लौट जाएंगे।
मैसूर पैलेस से सीधे हम पहाड़ी पर बने चामुण्डायै माता के मन्दिर में गए। यहां चौक में बड़ी सी तलवार लिए एक आदमकद मूर्ति लगी हुई थी ।कहते है ये प्रतिमा महिषासुर राक्षस की हैं । मन्दिर के अंदर फोटू खीचना अलाऊ नही था ,इसलिए फोटू न खींच सकी।
मन्दिर में कुछ खास भीड़ नही थी, लेकिन आम दिनों में यहां काफी भीड़ होती हैं ।मन्दिर में भी बहुत ही ज्यादा लाइटिंग थी और दक्षिण स्टाईल के मंदिरों की तरह यहां भी लंबा ओर ऊंचा गोपुरा था । जब दर्शन कर के बाहर निकले तो गोपुरा की लाईट बन्द हो गई थी शायद मन्दिर बन्द होने का टाइम हो गया था।
इस मंदिर के पिछली पहाड़ी पर बैल की काफी बड़ी मूर्ति हैं।जिसे बुल टेम्पल कहते हैं लेकिन वो किसी ओर दिन देखेंगे। अभी रात होने के कारण हम मन्दिर से चल पड़े।
पहाड़ी से उतरते हुए एक जगह लोगों का हुजूम देखकर हम भी रुक गए ,यहां से मैसूर शहर बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था सबके मोबाइल और कैमरे फटाफट इस दृश्य को कैद कर रहे थे चारों ओर घनधोर अंधेरे में घरों की लाईट ऐसे चमक रही थी मानो सैकड़ों दीये टिमटिमा रहे हो और दूर मैसूर का पैलेस ऐसा लग रहा था मानो सैकड़ों दियों के बीच एक सूरज चमक रहा हो।
बहुत ही अद्भुत ओर आलौकिक दृश्य था जिसे मेरे मोबाइल ने भी कैद कर लिया लेकिन मेरे स्मृति पटल पर वो दृश्य आज भी ज्यो का त्यों अंकित हैं।
रात को हमने एक साउथ इंडियन रेस्टोरेन्ट में खाना खाया और घर आकर सो गए।
क्रमषः----
मन्दिर का गोपुरा
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