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मंगलवार, 19 मार्च 2024

कश्मीर फाईल#भाग 9

कश्मीर फाईल्स#9

                 
लोकल श्रीनगर #1
7 सेप्टेंबर 2023

आज हमको कश्मीर आये 5 दिन हो गए है।आज इस होटल से हमारा चेक आउट है।4 दिन का टोटल 14 हजार 500 रु देकर हमने इस होटल से बिदा ली।बिदा से पहले मस्त नाश्ता किया और सारा सामान गाड़ी में रखवाकर हम सबसे पहले लाल चौक गए। यहाँ हमारे देश का गौरव हमारा तिरंगा लहरा रहा था । इसका मतलब यह था कि अब हमारा कश्मीर आतंकियों से मुक्त हो गया हैं। अपने तिरंगे को सेल्यूट कर कुछ फोटू खिंचवाकर हम लोग गुरु शंकराचार्य मन्दिर की तरफ चल दिये ।ये मन्दिर एक पहाड़ी पर स्थित हैं।कार से हम थोड़ी दूर उतर गए और आगे पैदल चल पड़े।आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हैं तो भंडारा चल रहा था।साबूदाने की खीर ,आलू के लच्छे तल रहे थे और आने वाले भक्तजन हाथ साफ कर रहे थे।हमने भी लौटने के टाइम भंडारा चखने का फैसला किया और आगे बढ़ गए।

गुरु शंकराचार्य मन्दिर:-- कश्मीर के श्रीनगर में गोपदरी पर्वत पर स्थित एक  शिव मन्दिर हैं। करीब 8वी शताब्दी में जबसे गुरु शंकराचार्य जी इस मंदिर में आये तब से इनके नाम पर यह मंदिर प्रसिध्द हो गया।यह मंदिर समुद्रतल से 300 मीटर की ऊँचाई पर हैं जो करीब 1हजार फीट हैं।।ये केवल पत्थरो से निर्मित है।
करीब 244 सीढ़ियां चढ़कर जब हम मंदिर के सामने पहुंचते हैं तो इतनी ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से इस मंदिर से श्रीनगर शहर और पूरे डल झील का भव्य नजारा दिखाई देता है। मंदिर का गर्भगृह गोलाकार है। मुख्य द्वार से आगे की ओर  सामने बाग स्थित हैं ।आगे गर्भगृह तक पहुँचने के लिए ओर 30 सीढियां चढ़नी पड़ती हैं।

इससे थोड़ी दूर ही एक कुंड है, जिसे गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। हालांकि अब यह कुंड सुख चुका है। मंदिर की सीढ़ियों पर फारसी भाषा में लिखे दो अभिलेख हैं, जिनके अनुसार इस मंदिर की स्थापना 1659 ईसवी में की गयी थी। दूसरे अभिलेख के अनुसार 1644 ईसवी में शाहजहां ने मंदिर की छत और स्तंभ बनवाया था।

खेर जो भी हो ,हम आराम से सीढियां चढ़ते हुए टॉप पर आ गए।सीढियां काले पत्थर की बनी हैं और साईड में इतनी जगह हैं कि आराम से बैठ सकते है इसलिए आराम-आराम से हमने चढाई पूरी की ।प्रवेश द्वार से अंदर आये तो डल लेक का नजारा अद्भुत था।करीने से सजी छोटी-छोटी खूबसूरत नावे नजर आ रही थी।अगर शाम को आते तो हमको जो दृश्य दिखता उसका कोई मुकाबला नही होता । अभी तो अच्छी खासी धूप थी और धूप के कारण फोटू अच्छे नही आ रहे थे।

हम साईड के छोटे से पार्क को देखते हुए आगे बढ़ गए ।आगे बैठने की अच्छी व्यवस्था थी ।थोड़ा आराम कर के हमको ओर 30 सीढियां चढ़नी थी।

मन्दिर के गर्भगृह में बड़ा -सा शंकर जी का पिंड मौजूद था सभी जल चढ़ा रहे थे।हमने भी पूजा अर्चना कर के नीचे के नजारे अपने मोबाइल में कैद किये और वापसी की राह पकड़ी।
चढ़ने से ज्यादा उतरना खतरनाक हैं☺️ जैसे तैसे उतरकर हम भंडारे के नजदीक आये।अभी भी फिजाओ में खाने की खुशबू फैली हुई थी। अभी तक भंडारा चल रहा था।आलू की सूखी सब्जी,खीर ओर आलू के चिप्स लेकर हम सामने के पंडाल में बैठ गए। मिस्टर तो 2 बार खीर ले आये😊 खाना खाकर हम अपनी गाड़ी में बैठकर मुगल गार्डन की तरफ जा रहे थे जो डल झील के सामने  ही था पर मन्दिर के अपोजिट साईड में डल झील का विस्तार काफी लंबा हैं।

25 रु का टिकिट कटवाकर हम बागीचे के अंदर आ गए। बाहर से काफी खूबसूरत मुगल गार्डन अंदर से काफी टूटा फूटा था मरम्मत चल रही थी । मैंने ये गार्डन सन 70 की फिल्मों में बहुत देखा हैं तब इसकी आन ओर बान देखते ही बनती थी। पर अब फूलों के अलावा कुछ खास नजर नही आया।

यहाँ से आगे हम एक ओर गार्डन "निशान्त बाग़" में गए ।इसकी हालत पहले से बहुत ही अच्छी थी।यहाँ कुछ देर बैठे पर इन गार्डन में बैठने की कोई व्यवस्था नही हैं। कश्मीर सरकार को अब डेवलेपमेंट की तरफ भी ध्यान देना जरूरी हैं।यहाँ भी टिकिट वही 25 रु का था। अब तक हम काफी थक गए थे तो आगे के ओर गार्डन न देखकर डायरेक्ट डल झील चल पड़े क्योकि आज का सटे हमारा हाऊसबोट का था।

हाऊसबोट के बारे में आगे पढ़िए । क्योकि बहुत लम्बी पोस्ट हो गई हैं.... तो मिलते हैं हाऊसबोट में:--
क्रमशः...

                 हमारा होटल


 



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