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रविवार, 29 नवंबर 2020

कर्नाटक-डायरी# 9

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=9
#कुर्ग-यात्रा
#भाग=2
#21मार्च 2018

आज सुबह मैसूर से निकलकर हम सीधे कुशालनगर पहुँचे थे तिब्बती-मठ यानी स्वर्ण मंदिर घूमकर अब हम "दुबाले" यानी की एलिफेंटा-कैम्प की तरफ चल पड़े।

दोपहर को हमारी गाड़ी दुबाले पहुंची। दुबाले एक बहुत ही छोटा सा गांव था, सड़क की हालत बहुत खस्ता थी, नजदीक ही कुछ दुकानें ओर रेस्टारेंट दिख रहे थे, और वही एक छोटी सी झील भी दिखाई दे रही थी। तब पता चला कि दुबाले झील के उस पार है ओर उधर हमको नाव में बैठकर  जाना पड़ेगा... नाव का किराया एक आदमी के आने जाने का 50 रु था ओर उसके लिए काफी लंबी लाईन लगी हुई थी।

गर्मी बहुत तेज लग रही थी मैं नजदीक ही एक बेंच पर बैठ गई और बच्चों ने जुगाड़ कर के फटाफट टिकिट खरीद लिए ओर हम उस पार नाव से चल दिये।
तब मैंने नाव से ही देखा कि कुछ लोग आगे से पत्थरों पर चढ़कर झील पार कर रहे थे यानी कि झील ज्यादा गहरी नही थी तभी मैंने 3 गायों को भी तैरकर झील पार करते हुए देखा,  बड़ा ही अद्भुत दृश्य था।

दुबाले में मैसूर राज्य घराने के हाथी रहते है उनका पालन पोषण होता हैं फिर दशहरे पर सब हाथी राजा के उत्सव की आगवानी के लिए मैसूर आते हैं।
नाव से उतरकर हम पैदल ही आगे चल दिये, थोड़ा आगे चलने के बाद हमको हाथी दिखाई देने लगे, मैंने गिनती की तो 18 बड़े हाथी ओर 4 छोटे बच्चा हाथी दिखाई दिए जो थोड़ी थोड़ी दूरी पर बने जंगले में बंधे हुए थे...यहां काफी सँख्या में पर्यटक हाथियों को चारा खिला रहे थे ,कुछ पैसे देकर हाथियों को नहर में ही नहला रहे थे...हमने भी 100₹ देकर एक छोटे बच्चा हाथी को खूब नहलाया। बच्चे बहुत खुश थे। फिर हमने 20-20में बंधे हुए चारे को हाथों से हथियों को खिलाया।कमाई का अच्छा जरिया था😊
काफी देर हथियों के साथ खेलकर हम वापस नाव से इस पार आ गए और एक रेस्टोरेन्ट में बैठकर थोड़ी पेटपूजा की ओर फिर अपनी गाड़ी में बैठकर कुर्ग की तरफ चल दिये।
क्रमशः..



गुरुवार, 26 नवंबर 2020

कर्नाटक- डायरी भाग#8

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=8
#कुर्ग-यात्रा
#भाग=1
#21मार्च 2018

आज की हमारी यात्रा कुर्ग...कर्नाटक।
आज हम फिर उड़ चले मैसूर के सबसे नजदीकी हिल स्टेशन "कुर्ग" की ओर, जिसे "मेडिकेरी" भी कहते है।
कल सुबह छोटी बेटी भी बॉम्बे से फ्लाईट पकड़कर बैंगलोर होते हुए मैसूर पहुंच गई थी इसलिए सुबह फटाफट नाश्ता किया और दामाद की कार से ठीक सुबह के 8 बजे बड़ी बिटियाँ के साथ हम सब निकल पड़े कुर्ग की ओर....

मैसूर से निकलकर हम करीब 80 किलोमीटर दूर कुशालनगर पहुंचे। कुशालनगर से लगभग 6 किमी दूर हैं (बयालाकुप्पे) मोनेस्ट्री! यह एक तिब्बती मठ हैं जिसे स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं।
काफी दूर से हमको काले बड़े बड़े झंडे हवा में लहराते हुए नजर आ रहे थे उनके पास ही रंगबिरंगी पट्टियां कतार में लगी हुई थी जिनपर कोई भाषा अंकित थी।
दूर से गोल्डन ओर लाल रंग में रंगा हुआ मठ सूरज की रोशनी में जगमगा रहा था।
गाड़ी को पार्क में रखकर हम मठ की ओर चल दिये।

मठ का पूरा नाम Thegchog Namdrol Shedrub Dargyeling है।

कुशालनगर का तिब्बती मठ शहर के कोलाहल  से दूर एक आदर्श जगह पर स्थित है। यहां का शांत और  आध्यात्मिक वातावरण मन को मोह लेता हैं।
यह जगह भारत की सबसे बड़ी तिब्बती बस्तियों में से एक है। इस मठ में लगभग 16000 शरणार्थी और लगभग 6000 भिक्षु और नन रहते हैं। यहां स्कूल,कालेज ओर अस्पताल भी हैं।बेलकोप्पा या बाइलाकुप्पे में यह तिब्बती बस्ती तिब्बत के बाहर दूसरी सबसे बड़ी तिब्बती बस्ती हैं।

यह मठ शुरू में बांस से बना हुआ था जो लगभग 80 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ था  इस जगह को भारत सरकार ने तिब्बत से निकले हुए निर्वासितों को दी हैं।
धर्मशाला के बाद तिब्बत के बाहर दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी तिब्बती बस्ती बाइलाकुप्पे कर्नाटक में ही हैं। 
इसके अलावा यह एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल भी है। यहां हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं यहां का विशेष आकर्षण चालीस फीट ऊँची भगवान बुध्द की स्वर्ण प्रतिमा हैं जो अपने आपमें आपको आकर्षित करती हैं। इस मठ की दीवारों को तिब्बती बौद्ध पौराणिक कथाओं के पात्रों का चित्रण करते हुए बहुत सुंदर चित्रों से सजाया गया है।
यह जगह वास्तव में एक तीर्थयात्रा के लायक है। यहां का शांत वातावरण हमको दूसरी दुनिया में ले जाता है। मठ में और उसके आसपास बहुत सारे शॉपिंग सेंटर हैं जहाँ आपको पारंपरिक तिब्बती आइटम मिलेंगे।
पूरा मठ परिसर भीड़ से अटा पड़ा था,कुछ स्कूली बच्चे धमाचोक्कड़ी मचा रहे थे..फिर भी इस जगह का सोंदर्य मेरी आंखों में बस गया था।
 बहुत खूबसूरत स्थल था,यहां एक बड़ा घण्टा भी लगा हुआ था।
अंदर भगवान बुध्द की स्वर्ण प्रतिमा देखने लायक थी।
पूरा परिसर देखते देखते दोपहर हो चली थी और मेरे पेट मे चूहे भागदौड़ कर रहे थे। हमने वही एक होटल में जाकर खाना खाया...टेस्टी तो बिल्कुल नही था ,पर पेट भर गया था...खाना खाकर कुछ देर हमने तिब्बती मार्किट में कुछ वस्तुएं खरीदी ओर सीधे कुर्ग के दूसरे पर्यटक स्थल दुबाले की तरफ रुख किया।
आगे दुबाले की यात्रा कर के हम कुर्ग की ओर प्रस्थान करेंगे। 
क्रमशः.....








     




बुधवार, 25 नवंबर 2020

कर्नाटक-डायरी#7

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=7
#19मार्च 2018

कल हमने करंजी लेक घुमा था और
आज हमने मैसूर के फेमस Zoo यानी कि चिड़ियाघर को देखने का प्रोग्राम बनाया।
यहां सबसे बढ़िया बात ये हैं कि सभी स्थान एकदम नजदीक हैं ,मैसूर काफी छोटा शहर होने के कारण सभी स्थान पास ही हैं फटाफट घूमकर बेटी और दामाद के आने से पहले ही हम घर भी आ जाते हैं और थकान भी नही होती।
तो आज हम खाना खाकर फटाफट ओला मंगवाकर Zoo की तरफ निकल पड़े।

इतिहास:--
इस जू का निर्माण 1892 में महाराजा चामराजा वुडेयार ने करवाया था और इसकी गितनी भारत के कुछ बेहतरीन जूलॉजिकल गार्डन में होती है। करीब 250 एकड़ में फैले इस जू में कई स्तनपाई, सरीसृप और पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां भी देखी जा सकती है।

पहले इस जू का नाम पैलेस जू था और यहां सिर्फ शाही परिवार घूमने आया करता था... हालांकि बाद में चामराजेन्द्र वुडेयार ने आम लोगों को भी इस जू में प्रवेश की अनुमति दे दी थी 1909 में इस जू का नाम बदलकर चामराजेन्द्र जूलॉजिकल गार्डन रखा गया...मैसूर जू का इस्तेमाल कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम के लिए किया जाता है... जिसका उद्देश्य लुप्तप्राय: प्रजातियों की संख्या को बढ़ाना है।

इस जू में आप हाथी के बच्चे, जवान बंदर, जंगली बैल और तेंदुआ व बाघ के शावकों को देख सकते हैं। साथ ही यह जू बारबेरी शीप, जेब्रा, जिराफ, ईमू, चिंपांजी, दरियाई घोड़ा, कंगारू, बाघ और संगाई की ब्रीडिंग के लिए भी जाना जाता है। साथ ही आप यहां पिसूरी, चार सिंगों वाला चिकारा, कैरकैर, बिलाव कस्तूरी, नीगिरि लंगूर, चिंकारा, बिंटूरोंग और तेंदुआ सहित कई जानवरों की दुर्लभ प्रजातियों को देख सकते हैं।
सन 2000 की शुरुआत में इस चिड़ियाघर को गोद लेने की योजना बनाई गई जो सफल रही। मैसूर के विभिन्न क्लबों की हस्तियों, संस्थानों, पशु प्रेमियों और स्वयंसेवकों ने इस चिड़ियाघर को गोद लेकर इन प्राणियों के कल्याण में अच्छा काम किया है।
चिड़ियाघर बहुत बड़ा था चलते चलते थक जाते थे.. लेकिन बैठने की व्यवस्था अच्छी होने के कारण हम बार बार थकान उतारने के कारण बैठ जाते थे फिर वापस चल देते थे।

मैसूर अगर आना हो तो इस Zoo को जरूर देखना चाहिए।
चलिए कल एक दूसरे स्थान की सैर करवाउंगी।फिर मिलते है😃
क्रमशः...



मंगलवार, 10 नवंबर 2020

कर्नाटक-डायरी#6

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=6
#करंजी-लेक
#18मार्च 2018

ऊटी घूमकर हम वापस मैसूर आ गए एक दिन आराम कर के हम आज फिर घूमने निकल पड़े....
 आज निकले हम मैसूर की प्रसिध्द लेक "करणजी-लेक" देखने...

करंजी लेक गार्डन मैसूर शहर के बड़े मॉल "सिटी-मॉल" के नजदीक ही सड़क पर बना हुआ हैं..लेक के शुरू में बड़ा सा गार्डन हैं...यहां 20 ₹ इंट्री फीस हैं खाने पीने का समान यही रख लिया जाता हैं, अंदर आप सिर्फ पानी की बोतल ले जा सकते हो, पार्क के प्रवेश द्वार के नजदीक ही सायकिल स्टेण्ड हैं जिधर से 20₹ घण्टे इंडियन ओर 50₹ घण्टे विदेशियों को साइकिल किराये पर मिलती हैं जिससे आप आराम से लंबे चोड़े गार्डन में घूम सकते हो।
  यही "तितली पार्क" ओर एक "ऐवीयरी" भी हैं जिसमें विभिन्न तरह के मयूर ओर पक्षी हैं। 
 
करंजी-झील :--
ये झील एक प्रकृति पार्क से घिरी हुई हैं  इसमें एक तितली पार्क और एक वॉक-थ्रू एवीयरी हैं । एवियरी मतलब बड़ा पिंजरा जिसमें जाली लगी होती हैं और पक्षी स्वतंत्र होकर उड़ सकते है यह भारत में सबसे बड़ा 'वॉक-थ्रू एवियरी' है। यहां एक संग्रहालय भी है, जो इस झील के किनारे स्थित है।उसकी फीस अलग से लगती हैं। करंजी झील का कुल क्षेत्रफल 90 हेक्टेयर है। जबकि जलप्रपात क्षेत्र लगभग 55 हेक्टेयर में है, लेकिन सम्पूर्ण क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 35 हेक्टेयर है। 

यहां नोका विहार भी हैं और हर तरह की नोका, पैडल नोका ओर स्पीड बोर्ड भी चलते हैं। टिकिट प्रति व्यक्ति 50₹ हैं। हमने चप्पू वाली नाव की ओर लेक में घूमने निकल पड़े।

तितली -पार्क :-- 
तितली पार्क को करंजी झील के भीतर एक छोटे से द्वीप पर बनाया गया है। यहां तितलियों की लगभग 45 प्रजातियों की पहचान की गई है। वनस्पति विज्ञानी की मदद से, तितलियों के प्रजनन के लिए आवश्यक मेजबान पौधों और अमृत पौधों की उपयुक्त प्रजातियों का चयन किया गया हैं और उन्हें द्वीप के भीतर लगाया गया हैं। ये पौधे पहाड़ी इलाकों और मलनाड जैसे अन्य क्षेत्रों से लाए गए हैं । 

एवीयरी:--
झील के किनारे पर निर्मित एवियरी की ऊंचाई 20 मीटर, 60 मीटर की लंबाई और 40 मीटर की चौड़ाई है  इसे भारत का सबसे बड़ा वॉक-थ्रू एवियरी कहते है। एवियरी की स्थापना 3 मिलियन रुपये की लागत से की गई थी। इसमें एक कृत्रिम झील और दो छोटे जल प्रपात हैं  करंजी झील से पानी एवियरी के अंदर एक धारा के रूप में पंप से आता है, ओर उपयोग के बाद वापस पानी को झील में छोड़ दिया जाता है। इसमें कईं प्रजातियों के लगभग 40-50 पक्षी हैं। हॉर्नबिल्स, मोर, सफ़ेद-मोर, टर्की और ब्लैक स्वान हैं।

हमने मैसूर की लेक में खूब इंजॉय किया। यहां कई तरह के पेड़ देखे, बांस के पेड़ और कैक्टस की विभिन्न जातियां देखकर मन प्रसन्न हो गया।गार्डन बहुत ही खूबसूरती से बनाया गया हैं आराम करने के लिए बेंचेस,ओर पानी के नल,वॉशरूम जगह जगह मिलते है।
आपका एक पूरा दिन अच्छा टाइम-पास होता हैं।
क्रमशः.....