कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=9
#कुर्ग-यात्रा
#भाग=2
#21मार्च 2018
आज सुबह मैसूर से निकलकर हम सीधे कुशालनगर पहुँचे थे तिब्बती-मठ यानी स्वर्ण मंदिर घूमकर अब हम "दुबाले" यानी की एलिफेंटा-कैम्प की तरफ चल पड़े।
दोपहर को हमारी गाड़ी दुबाले पहुंची। दुबाले एक बहुत ही छोटा सा गांव था, सड़क की हालत बहुत खस्ता थी, नजदीक ही कुछ दुकानें ओर रेस्टारेंट दिख रहे थे, और वही एक छोटी सी झील भी दिखाई दे रही थी। तब पता चला कि दुबाले झील के उस पार है ओर उधर हमको नाव में बैठकर जाना पड़ेगा... नाव का किराया एक आदमी के आने जाने का 50 रु था ओर उसके लिए काफी लंबी लाईन लगी हुई थी।
गर्मी बहुत तेज लग रही थी मैं नजदीक ही एक बेंच पर बैठ गई और बच्चों ने जुगाड़ कर के फटाफट टिकिट खरीद लिए ओर हम उस पार नाव से चल दिये।
तब मैंने नाव से ही देखा कि कुछ लोग आगे से पत्थरों पर चढ़कर झील पार कर रहे थे यानी कि झील ज्यादा गहरी नही थी तभी मैंने 3 गायों को भी तैरकर झील पार करते हुए देखा, बड़ा ही अद्भुत दृश्य था।
दुबाले में मैसूर राज्य घराने के हाथी रहते है उनका पालन पोषण होता हैं फिर दशहरे पर सब हाथी राजा के उत्सव की आगवानी के लिए मैसूर आते हैं।
नाव से उतरकर हम पैदल ही आगे चल दिये, थोड़ा आगे चलने के बाद हमको हाथी दिखाई देने लगे, मैंने गिनती की तो 18 बड़े हाथी ओर 4 छोटे बच्चा हाथी दिखाई दिए जो थोड़ी थोड़ी दूरी पर बने जंगले में बंधे हुए थे...यहां काफी सँख्या में पर्यटक हाथियों को चारा खिला रहे थे ,कुछ पैसे देकर हाथियों को नहर में ही नहला रहे थे...हमने भी 100₹ देकर एक छोटे बच्चा हाथी को खूब नहलाया। बच्चे बहुत खुश थे। फिर हमने 20-20में बंधे हुए चारे को हाथों से हथियों को खिलाया।कमाई का अच्छा जरिया था😊
काफी देर हथियों के साथ खेलकर हम वापस नाव से इस पार आ गए और एक रेस्टोरेन्ट में बैठकर थोड़ी पेटपूजा की ओर फिर अपनी गाड़ी में बैठकर कुर्ग की तरफ चल दिये।
क्रमशः..