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बुधवार, 25 नवंबर 2020

कर्नाटक-डायरी#7

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=7
#19मार्च 2018

कल हमने करंजी लेक घुमा था और
आज हमने मैसूर के फेमस Zoo यानी कि चिड़ियाघर को देखने का प्रोग्राम बनाया।
यहां सबसे बढ़िया बात ये हैं कि सभी स्थान एकदम नजदीक हैं ,मैसूर काफी छोटा शहर होने के कारण सभी स्थान पास ही हैं फटाफट घूमकर बेटी और दामाद के आने से पहले ही हम घर भी आ जाते हैं और थकान भी नही होती।
तो आज हम खाना खाकर फटाफट ओला मंगवाकर Zoo की तरफ निकल पड़े।

इतिहास:--
इस जू का निर्माण 1892 में महाराजा चामराजा वुडेयार ने करवाया था और इसकी गितनी भारत के कुछ बेहतरीन जूलॉजिकल गार्डन में होती है। करीब 250 एकड़ में फैले इस जू में कई स्तनपाई, सरीसृप और पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां भी देखी जा सकती है।

पहले इस जू का नाम पैलेस जू था और यहां सिर्फ शाही परिवार घूमने आया करता था... हालांकि बाद में चामराजेन्द्र वुडेयार ने आम लोगों को भी इस जू में प्रवेश की अनुमति दे दी थी 1909 में इस जू का नाम बदलकर चामराजेन्द्र जूलॉजिकल गार्डन रखा गया...मैसूर जू का इस्तेमाल कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम के लिए किया जाता है... जिसका उद्देश्य लुप्तप्राय: प्रजातियों की संख्या को बढ़ाना है।

इस जू में आप हाथी के बच्चे, जवान बंदर, जंगली बैल और तेंदुआ व बाघ के शावकों को देख सकते हैं। साथ ही यह जू बारबेरी शीप, जेब्रा, जिराफ, ईमू, चिंपांजी, दरियाई घोड़ा, कंगारू, बाघ और संगाई की ब्रीडिंग के लिए भी जाना जाता है। साथ ही आप यहां पिसूरी, चार सिंगों वाला चिकारा, कैरकैर, बिलाव कस्तूरी, नीगिरि लंगूर, चिंकारा, बिंटूरोंग और तेंदुआ सहित कई जानवरों की दुर्लभ प्रजातियों को देख सकते हैं।
सन 2000 की शुरुआत में इस चिड़ियाघर को गोद लेने की योजना बनाई गई जो सफल रही। मैसूर के विभिन्न क्लबों की हस्तियों, संस्थानों, पशु प्रेमियों और स्वयंसेवकों ने इस चिड़ियाघर को गोद लेकर इन प्राणियों के कल्याण में अच्छा काम किया है।
चिड़ियाघर बहुत बड़ा था चलते चलते थक जाते थे.. लेकिन बैठने की व्यवस्था अच्छी होने के कारण हम बार बार थकान उतारने के कारण बैठ जाते थे फिर वापस चल देते थे।

मैसूर अगर आना हो तो इस Zoo को जरूर देखना चाहिए।
चलिए कल एक दूसरे स्थान की सैर करवाउंगी।फिर मिलते है😃
क्रमशः...



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