कर्नाटक-डायरी
#मैसूर -यात्रा
#भाग=8
#कुर्ग-यात्रा
#भाग=1
#21मार्च 2018
आज की हमारी यात्रा कुर्ग...कर्नाटक।
आज हम फिर उड़ चले मैसूर के सबसे नजदीकी हिल स्टेशन "कुर्ग" की ओर, जिसे "मेडिकेरी" भी कहते है।
कल सुबह छोटी बेटी भी बॉम्बे से फ्लाईट पकड़कर बैंगलोर होते हुए मैसूर पहुंच गई थी इसलिए सुबह फटाफट नाश्ता किया और दामाद की कार से ठीक सुबह के 8 बजे बड़ी बिटियाँ के साथ हम सब निकल पड़े कुर्ग की ओर....
मैसूर से निकलकर हम करीब 80 किलोमीटर दूर कुशालनगर पहुंचे। कुशालनगर से लगभग 6 किमी दूर हैं (बयालाकुप्पे) मोनेस्ट्री! यह एक तिब्बती मठ हैं जिसे स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं।
काफी दूर से हमको काले बड़े बड़े झंडे हवा में लहराते हुए नजर आ रहे थे उनके पास ही रंगबिरंगी पट्टियां कतार में लगी हुई थी जिनपर कोई भाषा अंकित थी।
दूर से गोल्डन ओर लाल रंग में रंगा हुआ मठ सूरज की रोशनी में जगमगा रहा था।
गाड़ी को पार्क में रखकर हम मठ की ओर चल दिये।
मठ का पूरा नाम Thegchog Namdrol Shedrub Dargyeling है।
कुशालनगर का तिब्बती मठ शहर के कोलाहल से दूर एक आदर्श जगह पर स्थित है। यहां का शांत और आध्यात्मिक वातावरण मन को मोह लेता हैं।
यह जगह भारत की सबसे बड़ी तिब्बती बस्तियों में से एक है। इस मठ में लगभग 16000 शरणार्थी और लगभग 6000 भिक्षु और नन रहते हैं। यहां स्कूल,कालेज ओर अस्पताल भी हैं।बेलकोप्पा या बाइलाकुप्पे में यह तिब्बती बस्ती तिब्बत के बाहर दूसरी सबसे बड़ी तिब्बती बस्ती हैं।
यह मठ शुरू में बांस से बना हुआ था जो लगभग 80 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ था इस जगह को भारत सरकार ने तिब्बत से निकले हुए निर्वासितों को दी हैं।
धर्मशाला के बाद तिब्बत के बाहर दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी तिब्बती बस्ती बाइलाकुप्पे कर्नाटक में ही हैं।
इसके अलावा यह एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल भी है। यहां हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं यहां का विशेष आकर्षण चालीस फीट ऊँची भगवान बुध्द की स्वर्ण प्रतिमा हैं जो अपने आपमें आपको आकर्षित करती हैं। इस मठ की दीवारों को तिब्बती बौद्ध पौराणिक कथाओं के पात्रों का चित्रण करते हुए बहुत सुंदर चित्रों से सजाया गया है।
यह जगह वास्तव में एक तीर्थयात्रा के लायक है। यहां का शांत वातावरण हमको दूसरी दुनिया में ले जाता है। मठ में और उसके आसपास बहुत सारे शॉपिंग सेंटर हैं जहाँ आपको पारंपरिक तिब्बती आइटम मिलेंगे।
पूरा मठ परिसर भीड़ से अटा पड़ा था,कुछ स्कूली बच्चे धमाचोक्कड़ी मचा रहे थे..फिर भी इस जगह का सोंदर्य मेरी आंखों में बस गया था।
बहुत खूबसूरत स्थल था,यहां एक बड़ा घण्टा भी लगा हुआ था।
अंदर भगवान बुध्द की स्वर्ण प्रतिमा देखने लायक थी।
पूरा परिसर देखते देखते दोपहर हो चली थी और मेरे पेट मे चूहे भागदौड़ कर रहे थे। हमने वही एक होटल में जाकर खाना खाया...टेस्टी तो बिल्कुल नही था ,पर पेट भर गया था...खाना खाकर कुछ देर हमने तिब्बती मार्किट में कुछ वस्तुएं खरीदी ओर सीधे कुर्ग के दूसरे पर्यटक स्थल दुबाले की तरफ रुख किया।
आगे दुबाले की यात्रा कर के हम कुर्ग की ओर प्रस्थान करेंगे।
क्रमशः.....
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