और शाम ढल गई
कितना अजीब जिन्दगी का सफ़र निकला !
सारे जहाँ का दर्द अपना मुकद्दर निकला !
जिसके नाम जिन्दगी का हर लम्हां कर दिया
वो ही मेरी चाहत से बेखबर निकला ...........!
वो एक सर्द शाम थी --
जब मैनें उसे देखा था --
वो मफलर से अपना मुंह ढांके
मेरे सम्मुख आ खड़ा हुआ था ---
उसके हाथो में एक पुर्जा था ?
आँखों में मौन इल्तजा ---!
मैं अपलक उसे निहार रही थी --
"सुंदर गुलाबी चेहरा --"
"नशीली आँखें "
"आँखों में उभरे गुलाबी डोरे "
"लम्बा कद "
चेहरे पर फैले बाल
बड़ी हुई दाढ़ी ---
बेतरतीब से पहने कपडे --
किसी का पता पूछते वो कंपकपाते होंठ--
किसी को खोजती वो निगाहें---
निगाहों में एक व्यग्र निवेदन --
कहीं पहुँचने की व्याकुलता --
शायद किसी से मिलने की तलब--?
मेरे दिल में मानो टन-न- न से घंटी बजी --
पहली नजर का प्यार ---
उसे तो पता भी नहीं था ---?
जो एक पल मैनें जिया था वहां --
कब उससे प्यार हो गया पता ही नहीं चला --?
कुछ संभली तो देखा, वो जा चूका था --
धुंध में विलीन हो चूका था ---
मैं विस्मय से उसे ताकती रही ----
उसका वो चेक़ का शर्ट !
वो लाल रंग का स्वेटर !
जिसमें मैंरी भावनाए गुंथी थी |
पर वो उन्हें कुचलकर आगे बढ चूका था |
जैसे सबकुछ रिक्त हो गया था ---
एक आंधी चली--
और सबकुछ उड़ा ले गई --
कुछ ही क्षणों में स्वाह !
तिनका -तिनका बिखर गया ---!
वो घडी मेरे जीवन में फिर दुबारा नहीं आई --
ऋतुए आती रहीं --जाती रहीं --
मौसम बदलते रहें ---
पर वो शख्शियत मेरे मानस-पटल पर जरा भी धूमिल नहीं पड़ी
अचानक !उस रोज उसे अपने सामने देखा --?
वही शक्ल ! वहीँ आँखें ! वही होंठ !
आँखों में वही गुलाबी डोरे --
कुछ भी तो नहीं बदला था ?
वो आज भी वैसा ही था
हाँ, आज उसका सर मफलर में छुपा नहीं था ?
उलझे हुए भूरे बाल माथे पर लहरा रहे थे --
मानो चुगली खा रहे हो उसकी सुन्दरता की --
आज उसकी गोद में एक नन्हा चिराग भी था ?
जो मुझे देखकर खिलखिला रहा था ?
एक पल को मुस्कान मेरे होठो पर आई और ओझल हो गई --
उसके पीछे एक नवयोवना ग्रीन साडी में लिपटी मुझे घुर रही थी ?
मैने एक निर्जीव द्रष्ठी डाली और फींकी -सी मुस्कान ओढ़ ली !
भाग्य की कैसी विडम्बना थी -----
"जिसको चाहती थी वो बैगाना बना दूर खड़ा था !
जिसको अपनाना चाहती थी वो मेरा नहीं पराया था ! "
कितना जुदा था मेरे इश्क का अंदाज --
मैं उसके लिए पागल थी जो मेरा 'कभी' था ही नहीं ?
मैं हंस दी --आँखों से दो आंसू टपक पड़े
उसने मुझे सरसरी निगाहों से देखा और आगे बढ गया
मैं उसे देखती रहीं ----गुब्बार उड़ता रहा --
साँझ ढल रही थी --------!
सदियाँ गुजर गई उसके इन्तजार मैं ...
जब किस्मत ने पलटी खाई तो 'वो' नहीं था ..?
ऋतुए आती रहीं --जाती रहीं --
मौसम बदलते रहें ---
पर वो शख्शियत मेरे मानस-पटल पर जरा भी धूमिल नहीं पड़ी
अचानक !उस रोज उसे अपने सामने देखा --?
वही शक्ल ! वहीँ आँखें ! वही होंठ !
आँखों में वही गुलाबी डोरे --
कुछ भी तो नहीं बदला था ?
वो आज भी वैसा ही था
हाँ, आज उसका सर मफलर में छुपा नहीं था ?
उलझे हुए भूरे बाल माथे पर लहरा रहे थे --
मानो चुगली खा रहे हो उसकी सुन्दरता की --
आज उसकी गोद में एक नन्हा चिराग भी था ?
जो मुझे देखकर खिलखिला रहा था ?
एक पल को मुस्कान मेरे होठो पर आई और ओझल हो गई --
उसके पीछे एक नवयोवना ग्रीन साडी में लिपटी मुझे घुर रही थी ?
मैने एक निर्जीव द्रष्ठी डाली और फींकी -सी मुस्कान ओढ़ ली !
भाग्य की कैसी विडम्बना थी -----
"जिसको चाहती थी वो बैगाना बना दूर खड़ा था !
जिसको अपनाना चाहती थी वो मेरा नहीं पराया था ! "
कितना जुदा था मेरे इश्क का अंदाज --
मैं उसके लिए पागल थी जो मेरा 'कभी' था ही नहीं ?
मैं हंस दी --आँखों से दो आंसू टपक पड़े
उसने मुझे सरसरी निगाहों से देखा और आगे बढ गया
मैं उसे देखती रहीं ----गुब्बार उड़ता रहा --
साँझ ढल रही थी --------!
सदियाँ गुजर गई उसके इन्तजार मैं ...
जब किस्मत ने पलटी खाई तो 'वो' नहीं था ..?
चित्र --गूगल से ..
चित्र --गूगल से ..