मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 4 मार्च 2023

तमिलनाडुडायरी#8

तमिलनाडुडायरी #8
16 दिसम्बर 2022

आज सुबह हम होटल से डॉ अब्दुल कलाम साहब के घर गए फिर वहां से धनुष्कोडी की यात्रा की अब आगे...
धनुष्कोडी से घूमकर हम एक रेस्त्रां में गए ।वहां रेत में प्लास्टिक के टेबल कुर्सी बिछे थे और मछलियां तली जा रही थी।बोलते है फ्रेश समुंदर से निकालकर लाते हैं और तलते हैं। पर बदबू बहुत आ रही थी। क्या करें भूख भी जोरो से लगी हुआ थी ।सुबह सिर्फ़ पोंगल खाकर निकली थीं।100 ₹ में अनलिमिटेड खाना था।तो मैंने आव देखा न ताव फटाफट चावल और कोई तरी वाली सब्जी थी उसको जैसे-तैसे निगला ओर बाहर निकल कर ऑटो में बैठ गई। मेरे लिए 1 प्लेट चावल जो मैंने खाये थे 100₹ में महंगे थे पर ऑटो वाला और मिस्टर पूरे 100 ₹ वसूल कर के ही बाहर निकले।😃

बाहर ऑटो में गर्मी इतनी थी कि कुछ कह नही सकते पर गर्मी पर ठंडी हवा के झोंके भारी पड़ रहे थे।मेरे सर में बचे 2-4बाल उड़ उड़ कर मेरे चेहरे पर आ रहे थे।😃 मौसम इस गर्मी में भी सुहावना था।

धनुष्कोडी से 300-400 मीटर की दूरी पर समुंदर में बने पुल के ऊपर से  होते हुए हम विभीषण मन्दिर में गए। ये मन्दिर समुद्र के एक टुकड़े को पार कर के जमीन पर बना था। इस मंदिर का नाम "कोदण्डस्वामी मन्दिर" हैं।

कोद्ण्ड स्वामी मंदिर:--
रामेश्वरम् मंदिर से पांच मील दूर पर  ये मन्दिर उपस्थित हैं। यह  "कोदंड स्वामी का मंदिर" कहलाता है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर राम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद श्रीराम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक किया था। इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की खूबसूरत मूर्तियां हैं इस के साथ ही विभीषण की भी मूर्ति है। इस मन्दिर में विभीषण की भी पूजा होती हैं।
हर जगह की तरह यहां भी बहुत भीड़ थी फोटु खींचना यहां भी मना था।पर अंदर राम लक्ष्मण और सीता माता की खूबसूरत प्रतिमाओं को देखकर फोटु उतारने का मन था पर भीड़ के कारण जगह ही नही मिल रही थी। वैसे भी फोटु खींचना मना भी था खेर,

यहां से थोड़ा आगे पैदल चलने पर समुन्द्र के किनारे एक मीठे पानी का कुआं हैं और भगवान शिव का शिवलिंग हैं यहां फ्लोटिंग पत्थर भी थे।पर ये स्थान मैंने नही देखा मुझे Gds सदस्या "अल्पा डागली" के द्वारा पता चला फोटु भी उसी का लगाया हैं। सिर्फ जानकारी के लिए यहां लिखा हैं ताकि कोई जाए तो उस स्थान पर भी होकर आए।

हमने यहां से बाहर निकलकर सबसे पहले पीले रंग के नारियल का पानी पिया। ये नारियल मैंने रामेश्वरम के अलावा कही नही देखे थे।50 रु का एक नारियल था पर स्वाद में हरे नारियल से थोड़ा टेस्टी ओर मीठा था। यहां ये नारियल महंगा था जबकि रामेश्वरम में ये 30₹ में बिक रहा था।
इसीतरह यहां मैंने लाल केले भी देखे, वो भी 11 रु का एक केला खरीदा।स्वाद अपने केले से एकदम भिन्न। हम दोनो ने आधा आधा केला खाया।अगली बार ज्यादा लुंगी😃

यहां से निकलकर हम रामकुंड को चले, कहते हैं रावण का वध कर के सबसे पहले भगवान राम ने इसी कुंड में स्नान किया था।
इसी तरह लक्ष्मण कुंड भी बना है।दोपहर होने के कारण मैं इन मन्दिरों के दर्शन नही कर सकीं क्योकि ये बन्द थे सिर्फ मन्दिर के सामने बने रामकुंड को ही देखकर आगे बढ़ गए।इसी तरह लक्ष्मण मन्दिर के भी दर्शन नही कर सकी।

अब ऑटो वाला हमको पंचमुखी हनुमानजी के मन्दिर में ले गया।यहां हनुमानजी की 5 मुख वाली काले पत्थर की मूर्ति हैं। इस मंदिर को तैरते पत्थरों का मन्दिर भी कहते है। क्योंकि धनुषकोटि में  आये सुनामी के बाद ये पत्थर  यहां लाए गए थे।यहाँ फोटू खिंचना मना था पर मैं कीधर मानने वाली थी 
मैंने चुपके से सिर्फ पत्थरों के फोटु लिए वो भी एक ही, क्योकि वहाँ लगी तख्तियों पर लिखा था कि ---"अगर फोटू य्या वीडियोग्राफी करते पकड़े गए तो जुर्माना लगेगा"। जुर्माना भरने से अच्छा है कि हम सारा मंजर आँखों मे ही कैद करें।😃
यहां पर महाकवि तुलसीदास जी की भी समाधि हैं।

इसके बाद हम सामने ही एक आश्रम में गये जो काफी बड़ा था और उसी में नटराज मन्दिर था। यहां कोई सत्संग चल रहा था ।काफी भीड़ थी इसलिए हम बाहर से दर्शन कर के लॉट आये।
अब हम वापस अपने होटल लौट आये थे ।शाम हो चली थी ।हम रूम पर जाकर फ्रेश होकर वापस बाहर आ गए।सामने ही रामेश्वर मन्दिर का पश्चिमी द्वार दिख रहा था। रात होने से  इंट्री बन्द थी। मैने बाहर से ही मन्दिर  का एक फोटु खीचा  ओर वापस चल दी। वापसी में देखा रास्ते पर बाजार लगा हुआ था।100₹ में काफी खूबसूरत साड़ियां बिक रहीं थी।3 मैंने भी खरीद ली।😂
अब एक केक की दुकान को ढूढ़ना था , मन्दिर के गेट पर खड़े पुलिसमैन से केक शॉप के लिए पूछा तो उसने सामने जाती रोड की तरफ इशारा कर दिया और मैं भी नाक की सीध में आगे बढ़ती गई। नजदीक ही बड़ी सी केक की दुकान मिल गई वहां से केक लेकर पार्सल में खाना लेकर वापस होटल लौट आये।
आज एनिवर्सरी थी तो केक भी काटना था।आज पहली बार बच्चों से अलग ये दिन मनाया था तो रात को वीडियो कॉल करके सबके साथ केक काटा ओर खाना खाया। आज का दिन खास था और इस यात्रा ने इसको ओर भी खास बना दिया था।
जय श्रीराम🙏
क्रमशः....











बुधवार, 1 मार्च 2023

तमिलनाडु डायरी#7

तमिलनाडुडायरी# 7
16दिसम्बर 2022

कल रामेश्वरम को गुडबॉय बोलकर हम निकल गए थे पर रामजी कीधर मानने वाले थे। उन्होंने हमको तुरंत वापस बुला लिया और बोले कि– "बेवकूफ नारी, काहे बगैर देखे मेरी नगरी से प्रस्थान कर रही हैं ।वापस जाकर अपने ग्रुप में क्या मुंह दिखाएगी। अधूरा ज्ञान और अधूरा भ्रमण किसी काम का नहीं हैं बाद में पछताएगी" 😀
मैंने भी श्रीरामजी को--- "जो हुक्म मेरे मालिक " बोलकर हाथ जोड़ लिए🙏
ओर फटाफट दिन में मदुराई से दोबारा उसी ट्रेन में बैठ गई और रात 10:30 को दोबारा रामजी की नगरी रामेश्वरम में अपने कदम रक्खे।🙏
आज 16 दिसम्बर था और इसी दिन के कारण ही तो मैंने यहां आने का प्रोग्राम बनाया था। सोचा था रामजी के चरणों में ये शुभ दिन मनाऊंगी😃ओर आज मुझे मालिक ने इस शुभ दिन पर वापस बुला लिया था😀
तो दोस्तों! ज्यादा सस्पेंस में नही रखती हूं  क्योकि आज हमारा शहीदी दिन था यानी कि वैवाहिक सालगिरह हैं।ओर आज हम निकलने वाले हैं धनुषकोटि।🥰

तो सुबह फटाफट गुलफ़ाम बने हम नए कपड़े धारण किये और होटल से बाहर आ गए,पड़ोस के साफ सुथरे रेस्तरां में नाश्ता किया।
आज कुछ अजीब सी खिचड़ी के स्वाद वाला पोंगल खाया ।वैसे टेस्टी था।पर बस एक बार ही,  बार2 नही खा सकती।😂😂

नाश्ता से फ्री होकर हमने एक ऑटो वाले से सम्पर्क किया उसने 5 स्थान घुमाने का 1हजार ₹ बोला ।पर मैंने तुरंत हा नही की बल्कि  दूसरे ऑटो वाले को रोका उसने भी जब 5 स्थान घुमाने का 1हजार  बोला तो हम बगैर सोचे समझे ऑटो में सवार हो गए।
पहले वो हमारे देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति और फेमस वैज्ञानिक अब्दुल कलाम साहब के घर ले गया।वहां हमने उनका घर, ओर उनका संग्राहलय देखा। सादगी के मालिक कलाम साहब को नमन कर के कुछ फोटु उतारकर हम आगे बढ़ गए।

अब हम धनुषकोटि जा रहे थे।ये धनुषकोडी इसलिए भी फ़ेमस हैं क्योकि भगवान राम ने अपने वनवास काल में सीता माता को मुक्त करवाने के लिए अपनी वानर सेना द्वारा लंका पर चढ़ाई के लिए ब्रिज बनाया था और वो ब्रिज पत्थरों से बना था जो पानी मे डूबते नही थे।ये ब्रिज अब दिखाई तो नही देता लेकिन यहां तक पहुँचने वाला रास्ता बड़ा ही दिलकश था।नज़ारे इतने सुहावने थे कि मेरा मोबाइल उनको कैद कर कर के थक गया ।दोनो तरफ समुंदर एक तरफ हिंदमहासागर ओर दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी बीच मे रास्ता, जिस पर दौड़ता हमारा ऑटो ओर हमारे साथ चलती सुहानी हवा !मुझे एक  गीत याद आ गया--- "मौसम मस्ताना.. रास्ता अनजाना ..जाने किस मोड़ पे बन जाये कोई अफसाना... लल्लला ला ..ला ..ला 🥰🥰🥰क्या कहने😀

धनुष्कोडी:--
धनुषकोडी को भारत की अंतिम भूमि के रूप में जाना जाता है, रामेश्वर से धनुष्कोडी जाने वाली सड़क को भारत की अंतिम सड़क कहते हैं। धनुषकोडी की इस सड़क से श्रीलंका केवल 31 किलोमीटर दूर है और स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। लगभग 54 साल पहले पंबन द्वीप पर धनेश्वर लिंकी एक रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, चिकित्सा केंद्र और सुविधाओं के साथ दक्षिण पूर्व भारत के तट पर बसा एक शहर था। 21 दिसंबर 1964 को इस पूरे क्षेत्र में एक चक्रवती तूफान आया था जिसकी 20 फीट ऊंची लहरे उठी थी जिसने पूरे शहर को तहस नहस कर दिया था। कहते हैं तब इस रेल्वे लाइन पर एक यात्रियों से भरी हुई ट्रेन भी जा रही थी जिसे इस चक्रवात ने निगल लिया था।कोई भी यात्री नहीं बचा था।
तभी से सरकार ने इस स्थान को निर्जीव घोषित कर दिया।यहां अभी भी पुराने रेल्वे स्टेशन,चर्च के अवशेष देखे जा सकते हैं।
हमने घूमकर इन अवशेषों को देखा ।यहां एक दुकान में हमको पानी में तैरते पत्थर भी दिखे जिसे श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करते समय पुल बनाने के लिए इस्तेमाल किये थे।कुछ अजीब से पत्थर थे।

अब हम यहां से थोड़ी दूर पर बने धनुष्कोडी के आखरी स्थल पर पहुचे जिधर काफी भीड़ थी और लोग इस खूबसूरत मंजर को अपने अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। भारत भूमि के अंतिम छोर को निहारना अपने आपमें एक सम्मोहन-सा था।चारों ओर समुंदर ढहाके मार रहा था।हिंदमहासागर ओर बंगाल की खाड़ी का यहां मिलन होता हैं। दोनों के पानी का अंतर यहां स्पष्ट देखा जा सकता है।यहां कुछ समय बिताकर हम वापस चल दिये।
शेष अगले अंक में.












रविवार, 12 फ़रवरी 2023

तमिलनाडुडायरी#6

तमिलनाडुडायरी#6
15दिसम्बर 20220


सुबह उठकर हम टैक्सी से रामेश्वर से वापस मदुराई जा रहे थे।
हमने उदास दिल से ठीक 12 बजे रेखा को एयरपोर्ट ड्रॉफ् किया ।अच्छे से उसको एयरलाइंस के कर्मचारियों के हवाले कर हम दूसरी टैक्सी से रेल्वे स्टेशन आ गए।
अभी तक हमने किधर जाना है ये सोचा नही था।क्योकि कुछ समझ नही आ रहा था। एक मन कर रहा था कि डायरेक्ट कन्याकुमारी चला जाय,कभी लगता वापस रामेश्वरम चला जाय, ताकि बाकी चीजें देखी जा सके। क्योंकि भविष्य में फिर कभी रामेश्वरम आ पाऊंगी इसमें थोड़ा संदेह था।
हारकर हमने वापस रामेश्वरम जाने का फैसला किया।पर हाय री किस्मत ये फैसला हमने देर से लिया ।थोड़ा जल्दी ले लेते तो लगैज वही रूम पर रखकर आते और टैक्सी से ही वापस चले जाते क्योकि हमने दोनो तरफ का किराया दिया था।
पर अब क्या करे; जब उबरे जब चिड़ियां चुग गई खेत 😝😜😝
इस तरह हम वापस स्टेशन पर आ गए।हमने इन्क्वारी की तो पता चला कि रामेश्वरम वापस शाम 6 बजे वही गाड़ी जाएगी।जिससे कंल हम गए थे तो हमने उसी गाड़ी के 2 टिकिट कटवाकर रख लिए ओर सामान क्लार्क रूम में जमा करवाकर खाना खाने चल दिये।

हम उसी पुराने पंजाबी ढाबे में गए और आराम से भिंडी मसाला,तड़के वाली दाल साथ मे लस्सी पीकर दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे तो सोचा कि क्यों न हम तंजोवर निकल जाएं रात वही रुककर सुबह  वहां का भव्य मंदिर देखकर फिर रामेश्वर चला जाय।परन्तु ट्रेन की टिकिट हाथ मे थी। फिर सोचा कि 170 रु में कौन सा मेरा खजाना खाली होने वाला था😃
मैंने मिस्टर को अपने दिल की बात बताई परन्तु आलसी इंसान ने तुरंत ना में मुंडी हिला दी😔 अब क्या करे ,एक घुमक्कड़ ओर दूसरा साधारण इंसान। आखिर हार माननी ही थी, कोई चारा नही था।
भगवान पर बहुत गुस्सा आया ,अरे मेरे लिए कोई अच्छा घुमक्कड़ नही मिला था क्या?😠 खेर,

 खाना खाकर जब हम लौटे थे तो 3 बज रहे थे और अभी भी हमारे पास 3 घण्टे थे।
हम मदुराई के पेड वेटिंगरूम (लोंज) में गए तो देखा वहां 60 रु प्रति घण्टा चार्ज था।यानी कि हम दोनों का 120 रु 1घण्टे का चार्ज लगना था मुझे थोड़ा महंगा लगा।क्योक अभी हाल ही में जब मैं पन्ना मीटिंग में गई थी तो सतना रेलवेस्टेशन पर ऐसे ही पेड वेटिंगरूम (लाँज)का मैंने 10 रु प्रति 1घण्टे का चार्ज दिया था और सारी रात 100 रु में गुजारी थी।
मरता क्या न करता।हम खुले में आ गए और प्लेटफार्म न.5 पर आकर एक सीट पर कब्जा जमाकर बैठ गए।आज का दिन ही बेकार है ये सोचकर मन को तसल्ली दी।
धीरे धीरे 5 बजे ओर ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आकर लगी और हम उसमें सवार हो गए।
अपने नियत समय पर ट्रेन चल दी और रात साढ़े नो बजे वापस रामेश्वरम की पावन धरती पर हमारे कदम पड़े।
रास्ते में महेश्वरी धर्मशाला में फोन किया कि हमारा रूम किसी को मत देना हम वापस आ रहे है। पर रामेश्वर पहुँचकर उस बेकार धर्मशाला में जाने का मन नही हुआ इसलिए हम दूसरे होटल में चले गए।
ये होटल बहुत ही शानदार था ।वहां 950 का रूम था और यहां 1200₹ का रूम मिला ।लेकिन रूम एकदम जोरदार था।यहां से भी मन्दिर का गेट दिख रहा था ओर ये शायद दक्षिण द्वार था।
रूम में आकर एक शांति सी मिली और हम कल की रूपरेखा बनाकर सो गए।
क्रमशः----

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

तमिलनाडुडायरी#5

#तमिलनाडुडायरी 5
(रामेश्वरम)
15 दिसम्बर 2022

                 रामेश्वरम टेम्पल 

"कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता ,कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।"

दोस्तों, सोचते क्या है और हो क्या जाता है ।हम सिर्फ कठपुतली हैं और डोर उस ऊपर वाले के हाथ में है।मेरी सहेली को क्या पता था कि वो रास्ते में ही सफर को अधूरा छोड़कर वापस चली जायेगी।
3 महीने पहले सजाया हुआ सपना यू अचानक टूट जाएगा ये किसी ने नही सोचा था।
खेर,रात जैसे तैसे गुजर गई ।रेखा की हालत खराब होती जा रही थी पैर अकड़ गया था उसको फ्रेश करवाने के लिए भी मेरे सहारे की जरूरत रही।सुबह 6 बजे मैं थोड़ा टहलने को निकली क्योंकि कल हमने कुछ नही देखा था और अब दोबारा रामेश्वर वापसी नही होनी थी तो मैंने सोचा कि थोड़ा घूम आऊँ ओर सुबह का नजारा अपने कैमरे में कैद कर आऊ तो मैं अपने मोबाइल को उठा दरवाजा बंद कर बाहर निकल पड़ी।
सुबह -सुबह काफी भीड़ थी।लोग मन्दिर आ जा रहे थे।काफी लोग काले कपड़ों में थे।क्योकि इन्ही दिनों साउथ में सबरीमाला की यात्रा होती है जिसमें लोग काले कपड़े पहने होते हैं वो लोग सारे हिन्दू टेंपल के दर्शन करते हुए सबरीमाला जाते हैं।
मैंने रामेश्वर मन्दिर का मेन गेट देखा उसको बाहर से नमन करते हुए अग्नितीर्थम की तरफ चल दी।बहुत तादाद में यात्री स्नान कर रहे थे।सूरज उदय हो चुका था मैं फटाफट सब देखकर वापस होटल आ गई क्योकि हमारी कार आने वाली थी जिसमे बैठकर हम मदुराई वापस जाने वाले थे।
ठीक 9 बजे
हमारी टैक्सी आ गई।और मैं बुझे मन से चल दी क्योकि मेरा रामेश्वरम देखना अधूरा रह गया था ओर मैं वापस मदुराई जा रही थी।टेक्सी जब पम्बन ब्रिज पहुँची तो नीचे मेरी निगाह यकायक ब्रिज क्रॉस कर रही ट्रेन पर पड़ी ओर कल की स्मृति आंखों में कौंध गई।कल इसी ट्रेन से हम कितने खुशी खुशी रामेश्वरम आ रहे थे।
खेर, दिल के अरमान आंसुओ में बह गए।मजबूरी थी सहेली को भी छोड़ नही सकती थी।
क्रमशः....


  

                      अग्नितीर्थम

                   पम्बन ब्रिज

         सहेली को मदुराई एयरपोर्ट पर छोड़ा
   

तमिलनाडुडायरी#4

#तमिलनाडुडायरी 4
(रामेश्वरम)
14 दिसम्बर 2022

"रधुकुल रीत सदा चली आई 
प्राण जाई पर वचन न जाई!!"

इस दोहै की रीत मैंने आगे चल कर निभाई ।😪

खेर,कल हम ट्रेन के द्वारा मदुराई से रामेश्वर नामक द्विप पर आए।ऑटो वाला हमको महेश्वरी धर्मशाला में छोड़ गया।धर्मशाला बिल्कुल धर्मशाला की तरह ही थी । Ac रूम मैंने 950 रु में 1 महीने पहले बुक किया था।मेरी रिकवेस्ट पर हमको नीचे का रूम नम्बर 108 दिया गया।हमने समान रक्खा तो देखा रूम जरूरत से ज्यादा गंदा था ओर Ac भी नहीं चल रहा था। "ये बात मैंने Gds ग्रुप के एडमिन किशन बाहेती को बताई क्योकि उन्होंने ही ये धर्मशाला सजेस्ट की थी।किशन ने बोला कि उसको रूम बदलने का बोलो ओर साथ ही फोटु खींचकर मुझे भेजो।" मैंने बाहर आकर काउंटर पर शिकायत दर्ज की ओर कमरा बदलने को बोला,पर उनके सर पर जूं तक न रेंगी तो मैने बोला कि मैं ट्रस्ट में शिकायत करुगी, तो उसने थोड़ा नरम होकर रूम बदलकर 110 नम्बर रूम दिया।
खेर, ये रूम थोड़ा उन्नीस था पर टोटल बेकार ही था।1महीना पहले ही 2 दिन का रूम बुक कर के 1900 रु भर दिए थे वरना तुरंत खाली कर देती।पर मरता क्या करता । बाहर से गर्म पानी की बाल्टी लाकर हम फ्रेश हुए।ओर नाश्ता कम लंच के लिए बाहर निकले।
1 बज रहा था।पास ही महेश्वरी धर्मशाला का लंच होम था 100 रु की थाली थी जिसमें दाल-भात रोटी-सब्जी और दही था।अनलिमिटेड खाना था सिर्फ दही 1 बार ही मिलता था बाकी रोटी सब्जी चावल जितने खाना चाहो खा सकते हो।पर हम ठहरे 2 रोटी खाने वाले भला अनलिमिटेड हमारे किस काम का😛😛

खाना खाकर हम दर्शन के लिए निकले तो पता चला कि अभी दर्शन बन्द हैं 3-4 बजे दरवाजे खुलेंगे तब आना तब भीड़ भी कम होगी और दर्शन भी आराम से होंगे तो हम वापस अपने रूम में आ गए ।और थोड़ा आराम करने लगे।
ठीक 3बजे हम मन्दिर जाने को निकले ,अपना पर्स ओर मोबाइल होटल ही छोड़कर हम मन्दिर में जाने से पहले #अग्नितीर्थम की तरफ जा रहे थे धूप बहुत तेज थी कि अचानक साइड से किसी ने एक गाय को जोर से डंडा मारा और वो दौड़ती हुई हमारे नजदीक ही आई , हम तीनों आगे पीछे ही चल रहे थे अचानक हमको लगा की वो हमारी तरफ ही आएगी और हमने आगे को दौड़ लगाई,मैं आगे चली गई पर मेरी सहेली रेखा का पैर अपने ही पजामें में फंस गया और वो चारों खाने चित गिर गई उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया और वो उठ न सकी।उसको उठाने आसपास से लोग दौड़ पड़े।इस स्थिति में उसको बहुत जोर की लगी चेहरे पर नाक पर कुहनी, पैर के घुटने पर ओर अंगूठे पर जबरजस्त चोट लगी।हम वही रैलिंग पर बैठ गए ,जब उसकी तबियत थोड़ी ठीक हुई तो मन्दिर से बाहर निकलने वाले गोपुरम के सिक्युरिटी वाले ने हमको वही से मन्दिर के अंदर घुसा दिया ।हम फटाफट मन्दिर के लंबे गलियारे से निकलकर मेन मन्दिर के सामने खड़े थे। भगवान की ऐसी मेहरबानी हुई कि हम लंबे रास्ते से ओर भीड़ से बच गए।रेखा का घाव ताजा था इसलिए ज्यादा पता नही चला थोड़ा संभालकर मैंने उसको दर्शन करवाये ।भीड़ भी नही थी इसलिए फटाफट हम दर्शन कर के बाहर निकलने लगे ताकि रेखा को आराम करने रूम तक ले जाया जा सके पर गलती से हम कुंड की तरफ चले गए ओर बाहर निकलने का रास्ता अलग थलक था तो हमने 25₹ की 3 पर्ची बनवाकर फटाफट कुंड स्नान भी कर लिया।
स्नान कर के वापस रूम में आये तो देखा रेखा का घुटना सूज गया था।उसकी हालत खराब हो गई थी बुखार भी था ।
शाम का अंधेरा छाने लगा था। मिस्टर ने पूछकर एक डॉ का पता लगाया और उसको बहुत रिक्वेष्ट की चलने को पर वो नही  आया ,बोलता रहा पेशेंट को यहां लेकर आओ। खेर,मिस्टर उससे दवाई लेकर आ गए।अब उसकी  हालत ओर भी खराब हो गई थी बाथरूम तक चलना भी मुश्किल  हो रहा था।
तब मैंने समझदारी से काम लिया और उसके लाख मना करने पर भी उसके मिस्टर को सारी स्थिति बताई ।मिस्टर ने बोला कि उसको फ्लाइट से जैसे तैसे बॉम्बे भेज दो।अब रामेश्वर में एयरपोर्ट नही है वहां का नजदीक एयरपोर्ट मदुराई ही  हैं इसलिए हमको दोस्ती निभानी पड़ी और वापस मदुराई आना पड़ा। किस्मत से आज हम एक भी फोटु नही खींच सके।
कल क्या हुआ?
क्रमशः..

 
      इसी स्थान पर रेखा का एक्सीडेंट हुआ था।

तमिलनाडुडायरी#3

#तमिलनाडुडायरी 3
(रामेश्वरम)
14 dec 2022

आज हमको रामेश्वरम जाना था और मुझे ट्रेन से ही जाना था क्योंकि मुझे पम्बन ब्रिज देखना था और इतने बड़े और लंबे पुल से कैसे ट्रेन निकलती है वो अनुभव लेना था।और उसके लिए मदुराई से  सिर्फ एक ही ट्रेन चलती थी जो सुबह शाम अपडाउन करती थी तो हमने इसी ट्रेन से जाने की सोची।
कल हमने जब मदुराई के स्थानीय मंदिरों का दौरा किया था तो स्टेशन जाकर ये पता कर लिया था कि ये ट्रेन कब कब जाती है।ये डेली चलती है।
एक ट्रेन 06651सुबह 6:35 को  ओर दूसरी 06655 शाम6:10 को निकलती है इसमें सब डिब्बे जनरल के होते है और रिजर्वेशन वगैरा नही होती सिर्फ चालू टिकिट लो और कहीं भी बैठ जाओ।
मदुराई टेंपल से रेल्वे स्टेशन का रास्ता मुश्किल से 1 km ही होगा पर ऑटो वाले पूरा 100 का पत्ता छीन लेते है।
हम सुबह साढ़े 5 बजे बगैर नहाए धोए निकल पड़े ,चाय भी हमने स्टेशन पर आकर पी थी😀
मदुराई से रामेश्वरम की टिकिट ओनली 70 ₹ थी। यानी कि 210 रु की 3 टिकिट हाथ मे लेकर हम  बड़े आराम से प्लेटफार्म नम्बर 5 पर खड़ी मदुराई-रामेश्वरम स्पेशल ट्रेन में चढ़ गए ।गाड़ी खाली ही थी।पैर फैलाकर सब सीट पर जम गए।
अपने नियत समय पर गाड़ी आराम से चल रही थी  चल क्या रेंग रही थी 172 km ढाई घण्टे में हमको रामेश्वर पहुचा देगी इसका मुझे शक था। रास्ते मे बहुत से स्टेशनों पर गाड़ी रुकती ओर फिर चल देती थी ।स्थानीय लोग चढ़ते ओर उतरते रहे ।सभी लोग जोर जोर से अपनी भाषा मे बातें कर रहे थे ।मेरी हालत काला अक्षर भैंस बराबर जैसी थी😪।कुछ पल्ले नही पढ़ रहा था खेर,जैसे तैसे गाड़ी रामनाथपुरम पहुँची ओर मेरी मन की अभिलाषा पूर्ण हुई।वही से पम्बन ब्रिज की शुरुवात हुई खिड़की से ब्रिज पर चलती ट्रेन को देखना आश्चर्य कर गया ये अनुभूति वही कर सकता है जो ट्रेन में बैठा हो ।चारो ओर ठहाका मारता समुंदर ओर उस पर धीरे धीरे रेंगती ट्रेन सचमुच ये अनुभूति कमाल की थी। नीचे समुद्र में से झांकती लाल लाल चट्टाने,उन पर मचलती लहरें, पानी का शोर ओर चलती ट्रेन की आवाज़!सबकुछ मायावी लग रहा था। ब्रिज है कि खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था और हमारा काफिला आगे बढ़ता जा रहा था।
जब ट्रेन ने ब्रिज क्रॉस कर लिया तो उस जादुई संसार से तन्द्रा भंग हुई और हम भारत की भूमि छोड़कर रामेश्वर नामक द्वीप पर खड़े थे।जो चारों ओर समुंदर से घिरा हुआ था।
स्टेशन से बाहर आये तो यहां भी ऑटो बनाम लुटेरा खड़ा मिला जो 150₹में हमको 1km तैय कर के हमारी धर्मशाला महेश्वरी धर्मशाला छोड़ गया।
दोपहर में एक एक्सीडेंट के कारण मुझे फिर से मदुराई आना पड़ा।शेष अगले अंक में।
क्रमशः