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मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

कश्मीर फाईल#भाग 2

कश्मीर फ़ाइल #भाग2
#जम्मू 
2 सेप्टेंबर 2023

1 सेप्टेंबर को हम बॉम्बे से निकले थे और आज 3 बजे हम जम्मू स्टेशन पर थे अब आगे....
मजेदार सफर निकला ।हमारे थर्ड Ac डिब्बे में 2 बढ़िया आदमियों से मुलाकात हुई।पहले व्यक्ति थे सुशील जो 45 मेम्बरों को लेकर कश्मीर घूमने निकले थे अपनी ट्रैवलर एजंसी के थ्रू....
ओर दूसरे थे फेमस यु टीयूबर राकेश खन्ना जिनका चैनल "हर दिन एक मंदिर" नाम से हैं।बहुत बढ़िया व्यक्तित्व के स्वामी हैं । अभी आपनी कैलाश यात्रा पर निकले हैं।
टाइम का पता ही नही चला खूब बातें हुईं।जब 3 घुमक्कड़ मिल जाये तो सफर का अपना ही मजा होता हैं।ये सफर भी यादगार रहा और हम सब जम्मू उतर गए।
जम्मू उतरकर हम टैक्सी से होटल ड्रीमलेंड पहुचे जो मेन बाजार में ही था। रेल्वे स्टेशन से ही टैक्सी ली थी जिसका किराया लगा 450 सो रु । ओर होटल प्रेमबजार में था जिसका रेंट था 1हजार रु। होटल ठीक ठीक ही था।होटल पहुँचकर हम फ्रेश हुए और  जम्मू घूमने निकल पड़े।
सबसे पहले हमने एक सिम खरीदा जो मुझे 400 रु का पड़ा।फिर हमने 800 रु में एक ऑटो किया जो रात तक जितना हो सकेगा घुमा देगा।
जम्मू शहर में बड़े बड़े विशालकाय पोस्टर दिखे जिनमें अमरनाथ यात्रियों को शुभकामनाएं दी गई थी क्योंकि अभी अभी अमरनाथ यात्रा खत्म हुई थी।
आटो वाला सबसे पहले हमको " जामवन्त गुफा पीर खो मन्दिर" दिखाने गया। इस गुफा में कई फकीर,साधु संतों ने तपस्याएं की थी इसलिए इसे पीर खोह बोलते है।डोंगरी भाषा मे गुफा को खोह बोला जाता हैं।यह बड़ी रहस्यपुर्ण गुफा हैं ऐसा स्थानीय लोग कहते है।यहाँ जामवंत ने हजारों साल गुजारे थे ।इसलिए इसे जामवंत गुफा भी कहते है।
कहते है कि राम रावण के युद्ध में जामवंत भगवान राम की सेना के सेनापति थे। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान राम जब सब से विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवंत जी ने उनसे कहा– "प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई।"
उस समय भगवान ने जामवंत जी से कहा–"तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं कृष्ण अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रहकर तपस्या करो।" इसके बाद जब भगवान कृष्ण अवतार में प्रकट हुए तब भगवान ने इसी गुफा में जामवंत से युद्ध किया था।

एक कथा के अनुसार राजा सत्यजीत ने सुर्य भगवान की तपस्या की तो भगवान ने प्रसन्न होकर राजा को प्रकाश मणि प्रसाद के रूप में दी। राजा का भाई मणि को चुराकर भाग गया पर जंगल में शेर के हमले में मारा गया और शेर ने मणि धारण कर ली। इसके बाद जामवंत ने युद्ध में शेर को हराकर मणि प्राप्त की। कृष्ण से हारने के बाद ये मणि जामवंत ने कृष्ण को दे दी।

यहीं से कृष्ण और जामवंत फिर से मिले। जामवंत ने कृष्ण को अपने घर आमंत्रित किया यहीं पर जामवंत ने कृष्ण के समक्ष अपनी पुत्री सत्य भामां से विवाह करने का अनुरोध किया और दहेज स्वरूप प्रकाश मणि दी।

पीर खोह् तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु मुहल्ला पीर मिट्ठा के रास्ते गुफा तक जाते है। मंदिर की दीवारों पर देवी देवताओं के मनमोहक चित्र उकेरे गए हैं। आंगन में शिव मंदिर के सामने पीर पूर्णनाथ और पीर सिंधिया की समाधिंया हैं। जामवंत गुफा के साथ एक साधना कक्ष का निर्माण किया है।जो तवी नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है। यह गुफा घने जंगलो के बीच स्थित है। स्थानीय लोग मानते है कि यह मंदिर भारत के बाहर के मंदिरों और गुफाओं से जुड़ा हुआ है। हजारों भक्त हर साल यहां के मंदिर में पूजा करने आते है।
गुफा के आसपास का दृश्य बड़ा ही सुहावना था।नजदीक ही तवी नदी बह रही थी। जिसके नाम से पहले जम्मूतवी ट्रेन चलती थी। दूर एक गंडोला भी दिखाई दे रहा था जो पहाड़ पर स्थित मां काली  के मंदिर में भक्त्तों को ले जा रहा था।वैसे मन्दिर तक सड़क भी बनी हैं जिस पर होकर हम भी माता के मंदिर में जायेगे।
हम जामवंत गुफा से निकलकर सीधे  नदी के अपोजिट साइड  में स्थित "हर की पौड़ी" मन्दिर में गए ।ये मंदिर नया नया बना है। मन्दिर का  प्रागण्ड काफी विशाल था। हमारा मोबाइल गेट पर ही जमा कर लिया था इसलिए कोई फोटू न ले सकी। इसका मुझे बहुत अफसोस हैं। खेर,इसी मंदिर में नीचे बहती हुई तवी नदी पर घाट बना हुआ हैं जिसमे सीढियां थी । उसी घाट का नाम हर की पौड़ी हैं। यहाँ बहुत बड़े गणेश, माता दुर्गा की ओर शिव जी की काफी विशाल प्रतिमाएं बनी हुई है ,देखकर ही मन प्रसन्न हो गया। मन्दिर परिसर एकदम शांत था । बैठने के लिए बेंचे लगी हुई थी ओर यहाँ भी बड़े बड़े पोस्टर अमरनाथ यात्रियों के स्वागत हेतु लगे थे।शानदार जगह थी पर फोटू न लेने के कारण मन उदास था। अंदर काफी भगवान की प्रतिमाएं थी। मुझे ये मन्दिर कम पिकनिक स्पॉट ज्यादा लगा।😀 शाम होने में कुछ देर थी और हम नदी की सीढियो पर कुछ देर बैठकर अपने आटो में वापस आ गए। इसके बाद हम एक छोटे से मन्दिर में ओर गए ।
अब हम माँ महाकाली के शक्तिपीठ मंदिर में जा रहे थे। जो कठुआ में था। ये मन्दिर पहाड़ पर बना है और काफी बड़ा और विशाल हैं। यहाँ थोड़ी चढाई थीं मन्दिर तक पहुँचे पहुचे अंधेरा हो चला था ।यहाँ काफी भीड़ थी और चेकिंग भी हो रही थी।यहाँ भी मोबाइल ले जाने पर रोक थी। पर मोबाइल काउंटर नीचे था जब पुलिस वाली ने मोबाइल जमा करने को बोला तो मुझे गुस्सा आ गया  मैंने बोला कि मैं ऊपर आ गई हूं अब वापस नीचे नही जा सकती अगर आप नही जाने देगी तो मैं इधर ही बैठकर माता का नमन कर लुंगी। पर वो लेडी पुलिस घोड़ी दयालु थी बोली ठीक है जाओ पर वादा करो कि फोटू नही लोगी😀मैंने बोला कि ठीक है माता का फोटू नही लुंगी ओर मैंने वादा निभाया।😄 मैंने मन्दिर में एक भी फोटू नही लिया लेकिन बाहर आकर मन्दिर परिसर के फोटू खिंचे। यहाँ एक छोटा भंडारा जैसा भी चल रहा था कुछ लोग खा रहे थे पर हमारे पहुँचने से पहले ही सब्जी और पकौड़े खत्म हो गए  सिर्फ पूड़ी ही बची थी तो हमने 1 पूड़ी प्रसाद समझकर खा ली☺️
यहाँ एक साउंड ओर लाइट का प्रोग्राम भी चल रहा था जो शायद हर दिन होता हैं।कुछ फिश एक्वेरियम जैसा भी था जिसका 100 ₹ टिकिट था और शाही बाग़ भी था जिसका 20 रु टिकिट था पर रात होने के कारण हम नही गए।इधर किला भी था अगर दिन होता तो देखते पर हमने नही देखा क्योकि हम थके हुए भी थे और नींद भी आ रही थी। इस कारण  हम तिरुपति मन्दिर, बलिदान स्थल वगेरा नही देख सके और नजदीक के एक ढाबे में खाना खाने चले गए।  छककर खाना खाया और अपने होटल आ गए।कल श्रीनगर के लिए जो निकलना था।
कल मिलते है शब्बाखेर🙏






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