निर्झर के निर्मल जल-सी मैं ..
कभी चंचल, कभी मतवाली मैं ..
कभी गरजती बिज़ली -सी मैं ...
कभी बरसती बदरी -सी मैं .....
कभी सलोनी मुस्कान-सी मैं ...
कभी आँखों में झिलमिलाते सपनो-सी मैं ..
कभी ख़्वाबों को तरसती मैं ...
कभी चाँद को लपकती मैं ...
कभी दामन को पकडती मैं ..
कभी काँटों से दिल बहलाती मैं ...
कभी जिन्दगी के थपेड़ों से खुद को बचाती मैं ..
कभी तपकर कुंदन बन चम् -चमाती मैं .....!
आँचल में अपने सपनों को सजा पिया घर आई मैं ...?
क्या होगा ? कैसा होगा ? कौन होगा ? बोराई -सी मैं ...
कजरारे नैनो में अपने प्रीतम का अक्स सजाए ----- ?
डोली में सवार अपने पिया के घर आई मैं ..?
कभी शर्माती ? कभी धबराती ? कभी गुनगुनाती ? कभी मुस्कुराती मैं ...
कभी गम छुपाती ? कभी खुद पर आंसू बहाती ....
कभी सहज हो जाती ? कभी जख्मो पर मरहम लगाती मैं ...?
कभी सहज हो जाती ? कभी जख्मो पर मरहम लगाती मैं ...?
कभी भोर की किरणों से खुद को गुदगुदाती ?
कभी मेहँदी की खुशबु चारो और फैलाती ?
कभी दुसरो के सामने बिन बात खिलखिलाती ?
कभी गुलशन में तितलीयो की तरह मंडराती ?
कभी इन्द्रधनुष को अपनी बांहों में समाती ?
कभी अपना वजूद भूलकर ओरो को सहलाती ?
बस, ऐसी ही हूँ मैं ???????
कभी अपना वजूद भूलकर ओरो को सहलाती ?
बस, ऐसी ही हूँ मैं ???????