मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 31 मार्च 2015

बॉम्बे की सैर -- मेरी नजर में = भाग 8

केशव -सृष्ठि 
" कृषि तंत्र निकेतन"  




मुंबई सिर्फ सीमेंट ओर कंक्रीट का ही जंगल नहीं है , यहाँ कई प्राकृतिक वाड़ियां भी है जिन्हें "फार्म हाउस" भी कहते है। यहाँ आकर ऐसा लगता है मानो हम किसी गाँव में आ गए है ।लहराते पेड़ उनकी शीतल छाँव और ठंडा अहसास मानो उफनती हुई भीड़ को बहुत पीछे धेकल आये हो ।

इस बार सीनियर सिटीजन की टीम एक नए माहौल में ले गई ।सुबह 7 बजे हम निर्धारित जगह पर पहुँच गए ;सबको आने में समय लगा और बस साढे 7 को चली..रास्ते में हमको चॉकलेट और बिस्कुट का नाश्ता कराया गया । कुछ लोग गाना गाते हुए और हंसी मज़ाक करते हुए 2 घण्टे में केशव सृष्ठि पहुँच गए । पहाड़ों के बीच काफी हेक्टर जमीन पर बसा था केशव सृष्ठि

पोहे -चाय का नाश्ता कर के हम बागीचों की तरफ चल दिए....

यहाँ उगाई हुई सब्जियो में किसी भी प्रकार की किट नाशक दवाइयो का छिड़काव नहीं होता है ,पूर्णता: देशी तरीको से ही सब्जियां उगाई जाती है।
इस वाड़ी को श्री केशव जी ने बहुत छोटे पैमाने पर शुरू किया था आज इसका विस्तार देखते ही बनता है।
यहाँ कई आर्युवेदिक पेड़ लगे है जिनकी पहचान हम साधारण लोग नहीं कर सकते । इन्हीं पेड़ो से निकली सामग्री से ये लोग दवाइयाँ बनाते है जो यंहां बिकती भी है। कई रोगों के इलाज़ इन वनस्पतियो से कैसे होते है ये हमको बताया गया ।

यहाँ आंवला, बहेड़ा, हरड़, अश्वगन्धा, शतावरी,काली मिर्च,सफ़ेद मिर्च, कदम,सुपारी, डिकामाली,आजवाइन इनके पेड़ थे। और भी पेड़ है जिनके नाम समझ नहीं आये....
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यहाँ एग्रीकल्चर डिप्लोमा सेंटर भी है जहाँ बच्चे वनस्पतियो से सम्बंधित ज्ञान अर्जित करते है और उन पर रिसर्च भी करते है। उनके रहने और खाने का इंतजाम यही होता है ।

यहाँ बायोगैस प्लान्ट भी है |

दोपहर को हमारे खाने पीने का इंतजाम था वही की उगाई हुई सब्जियां,दाल- चावल और सलाद परोसा गया। बहुत ही जायकेदार सब्जियां थी ।

बॉम्बे जैसे भीड़भाड़ वाले शहर में उत्तन गाँव में बसी केशव- वाड़ी सुकून देती है । पेड़ो की छाँव तले समीर के हलके थपेड़ो से एक मीठी नींद का झोंका आ जाना स्वाभाविक है ये ठण्डी बुहार दिल को तरोताजा कर जाती है...

































































गुरुवार, 5 मार्च 2015

परछाइयों का वहम !!!








उसको हमेशा मैंने उदास ही देखा है
परछाइयों के पीछे भागते हुए,,, 
छाया को पकड़ना मूर्खता है !
पर उसके वहम को तोडना मेरे लिए भी मुमकिन नहीं 

वो अपने मृत प्यार से जुड़ा है
पागलपन की हद तक
कई बार समझाया--
परछाई को पकड़ना संम्भव नहीं ?
तृष्णा के पीछे भागना मूर्खता है ?
पर वो अपने दिवा: स्वप्न से खुश है--
जानता है , पर मानता नहीं ?

उसको किसी और ने न चाहा हो ऐसा नही है।
मैंने उसको हर पल चाहा है .....
अपनी उपस्थिति उसके सम्मुख दर्ज की है ...
 इजहार -ए - मोहब्बत  की है ---
पर वो मेरे प्रति हमेशा ही उदासीन रहा
वो जानता है मैँ उसके लिए पागल हूँ ?
 फिर भी ,
वो किसी दूसरी ही दुनियाँ में खोया रहता है

कई बार सोचा ,
उससे दूर चली जाऊ,
पर हर बार मेरे प्यार का  पलड़ा,
उसकी बेरुखी से भारी ही पड़ा . ,
और मैं चाह कर भी दूर नहीं हो पाती ---
उसका सामना होते ही ,
मेरा दम्भ वही दम तोड़ देता है। 

फिर मैं पुनः जी उठती हूँ उसके अहम पर सर फोड़ने के लिए...
शायद यही नियति है हम दोनों के प्यार की!!!!!
वो अपने प्यार की लपटो में जल रहा है
और मैँ अपने प्यार में सुलग रही हूँ____?

--दर्शन कौर *