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शनिवार, 27 अगस्त 2016

जयपुर की सैर == भाग 10 ( jaipur ki sair == bhag10



जयपुर  की  सैर भाग = = 10  
( हवा महल )






तारीख 13 को  हम बॉम्बे से 3 सहेलियां निकली थी जयपुर जाने को  'सम्पर्क क्रांति ट्रेन ' से और वो  रात कयामत की रात थी। ... 

अब आगे -----

22 अप्रैल 2016



हम लगातार 8 दिन से घूम रहे है बहुत थकान हो रही है फिर भी आज हम सबने ' हवामहल' जाने का प्रोग्राम बना ही लिया  ।
आज मीना अपने किसी रिश्तेदार से मिलने चली गई और हम तीनो चल पड़े हवामहल देखने....

गर्मी ने अलग नाक में दम कर रखा है ..हम सुबह हल्का नाश्ता कर के निकल पड़े....
हमने अपनी फेवरेट ओला केब बुलाई और हवामहल चल दिए , जयपुर की सड़को पर भी अच्छा खासा जाम मिलता है ,हम बापूमार्केट पहुंचकर उतर गए सामने ही हवामहल था। पर इसका एंट्रेंस पीछे से था हम बर्तन बाजार घूमते हुए गेट पर पहुँच गए ,यहाँ भी टिकिट था सो टिकिट कटाकर हमने महल में प्रवेश किया...

हवामहल -- 
हवामहल सन 1798 में महाराज सवाई प्रतापसिँह ने  बनवाया था इसका डिजाइन किसी राज मुकुट जैसा लगता है  यह पांच मंजिला इमारत है जो ऊपर से सिर्फ ढेड़ फुट चौड़ी है इसमें 953 बहुत सूंदर और आकर्षण जालीदार खिड़किया है जिन्हें झरोखा कहते है (और अब ईनके पास जाने नहीं देते ।) पहले महल में रहने वाली रानियां सड़को पर निकलने वाले जुलुस और कई प्रोग्राम यहाँ से देखा करती थी क्योकि पर्दा प्रथा थी और महाराजा अपने गर्मियों के प्रवास में इन ठन्डे  महल में रहते थे ।  इन झरोखों के कारण महल में हमेशा ठंडी हवा आती रहती थी इसलिए इस महल का नाम हवा महल पड़ा |    


सामने ही गुलाबी रंग का गलीचा टाईप कुछ बिछा हुआ था ,नजदीक जाकर देखा तो मालुम पड़ा की यहाँ रात को म्युजिक शो होता है अभी तो दोपहर थी इसलिए इस म्युजिक स्टेज पर धुप की किरणे नृत्य कर रही थी फिर भी हमने थोड़े ठुमके लगा ही लिए और हम  सूरज चाचा को नमस्कार कर आगे बड़ गए ।

आगे एक छोटी सी गली जैसी भूलभुलैया सी बनी हुई थी यहाँ काफी ठंडक थी ऐसा लगा मानो कही A C लगा हो पर यहाँ कुदरती ठंडक थी ।

हम इस गली को पार कर के एक सीढ़ी के सामने पहुंचे, सीढ़ी चढ़कर ऊपर आये यहाँ काफी बड़ा हाल था और झरोखे बने हुए थे जिसमें रंग बिरंगे कांच लगे हुए थे जो धुप से जगमगा रहे थे । हम हॉल पार कर के बाहर छज्जे में आ गए  धुप काफी थी कुछ फोटू खींचकर फटाफट अंदर आ गए ,

अब हम दूसरी तरफ से सीढ़ी चढ़कर और ऊपर आ गए यहाँ भी एक हॉल था, जिसमें झरोखे बने हुए थे ।हम खुली बालकनी में आ गए यहाँ काफी भीड़ थी लोग और ऊपर बने झरोखो पर चढ़ रहे थे , हम भी ऊपर चढ़ गए ,यहाँ हमको सारा जयपुर दिख रहा था ,सामने पहाड़ दिख रहे थे और उन पहाड़ो पर बने किले दूर से सुंदर नजर आ रहे थे ।

अब हम और ऊपर बने झरोखो पर जाने के लिए रम्प नुमा सीढ़ियों पर चढ़ने लगे ,यहाँ ऐसे 4 या 5 झरोखें बने हुए थे जिनका अलग अलग रास्ता और सीढियाँ थी । 

हम जिस झरोखे पर चढ़ गए थे वहां पहुंचकर मेरे तो पैर ही कांपने लगे अब निचे कैसे उतरु सोचकर ही डर लगने लगा । अल्ज़िरा और नीना तो उतर गए पर मैँ चुपचाप निचे बैठ गई क्योकि मुझे ऊचांई से चक्कर आते है, जब मैँ नार्मल हुई तो धीरे धीरे बैठकर और खसककर सीढियाँ उतरने लगी,  सब हँसने लगे पर मेरी तरकीब सबको पसन्द आई ।

यहाँ अंदर काफी असली मोतियों की मालायें मिल रही थी जिनका भाव हजारों में था हम जैसे तो भाव सुनकर ही भौचक्के रह गए ,यहाँ देखने को कुछ  नहीं था सिर्फ झरोखे और हाल ही थे
इस तरह सारा हवामहल घूमकर हम बाहर निकले।




 गली की तरह का गलियारा  

सामने ही गुलाबी गलीचा बिछा था 



 झरोखों पर रंग बिरंगे कांच 


रैम्प नुमा सीढियाँ 

गर्मी से बेहाल 




 धुप से परेशान अल्जीरा  


अपुन तो मस्त मौला ,धुप क्या बिगाड़ लेगी जी  


 रैम्प नुमा सीढियाँ और आराम करने वाले छज्जे  


 सबसे ऊँचा छज्जा 


छज्जे से दीखता पहाड़ और जयगढ़ किला 



निचे उतरती हुई छोटी छोटी सीढियाँ जिसमें एक ही आदमी उतर सकता था यानी की वन -वे  




झरोखों से आती ठंडी हवा का लुत्फ़ लेते हुए हम लोग 





बाहर से मधुमक्खी के छत्ते जैसा दीखता हवामहल 



मंगलवार, 16 अगस्त 2016

जयपुर की सैर ==भाग 9 ( jaipur ki sair == bhag 9 )

जयपुर की सैर ==भाग 9
(अल्बर्ट हाल )




तारीख 13 को  हम बॉम्बे से 3 सहेलियां निकली थी जयपुर जाने को  'सम्पर्क क्रांति ट्रेन ' से और वो  रात कयामत की रात थी। ... 

अब आगे -----

21अप्रैल 2016


सिटी पैलेस घूमकर हम सीधे अल्बर्ट हाल को निकल गए। ... 

अब हमने सिटी पैलेस से ऑटो किया और पहुँच गए 'अल्बर्ट हाल'  यह एक संग्रहालय है।
यहाँ पहुँच कर थोड़ी भूख लग रही थी तो वही फुटपाथ से हमने बर्गर खाया ।बिलकुल बेकार बर्गर लगा । फिर जब मोसम्बी का रस पिया तो जान में जान आई  क्योकि गर्मी अपने पुरे शबाब पर थी।

इतने में हमारे दोस्त अरविन्द जी का फोन आ गया वो हमको अल्बर्ट हाल में ढूंढ रहे थे । उनको वही रहने का बोलकर हम फटाफट सड़क क्रास कर के अल्बर्ट हाल पहुँच गए यहाँ काफी सिक्योरिटी थी और कबूतरो का तो मानो गढ़ ही था --- जैसे जयगढ़ वैसे ही कबूतरगढ़ हा हा हा हा

यहाँ भी  जेब काटनी पड़ी यानी टिकिट खरीदना पडा शायद 40 रु. खेर, अंदर घुसते ही छोटे से फब्बारे के दर्शन हुए पर कबूतर गढ़ होने के कारण गन्दगी बहुत थी ।
हम पहले माले पर पहुँचे यहाँ एक मिस्र की ममी सो रही है , पता नहीं ये हिन्दुस्तान में क्या कर रही है खेर, आप भी देखिये :----








यहाँ मम्मी सो रही है 

यहाँ काफी सामान मिस्र और चायना का था  बड़े बड़े आदमकद फ्लॉवर पॉट चीनी मिट्ठी की तश्तरियां , प्यालियाँ और भी बहुत सी चीजें...
और दूसरे माले पर सारा संगीत का साजो- समान रखा था । अनेक प्रकार की शहनाईयां, तबले, सितार,बँसुरियां, वीणा , सारंगी और एक जगह तो इतनी बड़ी वीणा रखी थी जो एक कमरे से दूसरे कमरे तक जा रही थी ,मेरे कैमरे ने उसका फोटू लेने से साफ़ इंकार कर दिया क्या करती आखिर इतनी बड़ी भी वीणा होती है क्या ? :) :)

इस वीणा को देख तुरन्त दिमाग में एक फ़िल्मी गीत घुस गया ----
" मेरी वीणा तुम बिन रोये .. सजना ,सजना,सजना.." 

उफ़्फ़्फ़, आप लोग मत रोने लग जाना , हम आगे बढ़ते है।

यहाँ कई संगीत की अजीबो गरीब चीजें  देखने को मिली ..
कई नक्काशियोंदार राजाओ की चिल्मचियां,  उनके वाशबेसिन, उनके गरम पानी के होद और खाने पीने के बर्तन, तलवारे और बन्दुके भी थी, उस टाईम के सिक्के ,ज्वेलरी, ग्रन्थ, और तेल चित्र भी रखे थे । कुल मिलाकर काफी पुराना और देखने लायक सामान था। पुराने लोग इसको अजायबघर कहते थे । 

वैसे इन संग्राहलयो में पहुंचकर हमको इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी मिलती है । अब हम लोग बहुत थक गए थे इसलिए तुरन्त घर को निकल पड़े क्योकि वहां से हमको किसी के घर खाना खाने जाना था ...

शेष बाद में ब्रेक के बाद ---


 आंगन में फुव्वारा 




 बड़ा जग 






गर्म पानी करने का बर्तन 












 जग 


 एक पेंटिंग 




 इस पेंटिंग में बताया है की कैसे मत्स्य रूप रखकर भगवान विष्णु ने इंसान को बचाया  


 छोटी बग्गी 





कल की सैर हवामहल ----







मंगलवार, 2 अगस्त 2016

जयपुर की सैर == भाग 8 ( jaipur ki shair bhag == 8 )


जयपुर की सैर == भाग 8
(सिटी पैलेस )





तारीख 13 को  हम बॉम्बे से 3 सहेलियां निकली थी जयपुर जाने को  'सम्पर्क क्रांति ट्रेन ' से और वो  रात कयामत की रात थी। ... 

अब आगे -----

21अप्रैल 2016



आज जयपुर में काफी गर्मी थी फिर भी आज हम जयपुर के कुछ ऐतिहासिक स्मारक देखने निकल पड़े ।सुबह फटाफट आमलेट और ब्रेड भर पेट खाकर और ग्लोकोश की तीन बॉटल बनाकर हमने ओला कैब मंगा ली और सीधे सिटी पैलेस चल दिए ...आज भी नीना हमारे साथ नहीं थी क्योंकि वो पूरी तरह ठीक नहीं थी और हम उसको आराम का बोलकर निकल गए। 

हम जयपुर के त्रिपौलिया बाजार में स्थित शानदार महल सिटी पैलेस के सामने पहुंचे यहाँ 50 रु. का टिकिट था और  विदेशियों के लिए शायद 200 रु. या  ज्यादा का था। यहाँ दो महल चंद्र महल और मुबारक महल है। यह महल राजस्थानी और मुगल शैली का शानदार नमूना है। यहाँ एक संग्रहालय भी है जिसमें पोशाकें , शास्त्र और मुगलकालीन पेंटिंग्स और कालीन है। 

टिकिट लेकर हम महल के मेन गेट से अंदर दाखिल हुए  यहाँ काफी दुकाने बनी हुई थी और काफी अँगरेज़ घूम रहे थे जिनसे राजस्थानी युवक अपनी टूटी फूटी इंग्लिश में बाते कर रहे थे और वो लोग राजस्थानी सामान काफी उत्सुकता से देख रहे थे ।

सामने ही दीवाने खास था यहाँ दीवारों पर कांच में अनेक शास्त्र सजे हुए थे।  अंदर हमको एक चांदी का  बड़ा सा कलश  दिखाई दिया जिसके बारे में वहां के केयरटेकर   से जानकारी ली तो उसने हमको एक बोर्ड की तरफ इशारा कर दिया जिस पर सारा वाकिया लिखा था आप भी देखिये :---





और यह रहा वो कलश ;---





आज यहाँ काफी चहलपहल नजर आ रही थी क्योकि बड़ी- बड़ी लाईट्स लग रही थी, हमको लगा की शायद कोई शूटिंग होने वाली है पर मालूमात करने पर पता चला की आज रात को किसी सेठिये ने ये निचे का हाल किराये पर लिया है अपने बेटे की शादी के लिए , जब किराया पूछा तो पता चला की 25 लाख रुपये सिर्फ एक रात का किराया ही है  बाकि सजावटी समान का चार्ज अलग से ... हमको बहुत आश्चर्य हुआ लोग अपनी शान के लिए कितना पैसा पानी की तरह बहाते है । खेर, हम अपनी फोटू खींचकर आगे बढ़ चले ...

अब हम अंदर को चल पड़े जहाँ शस्त्रो का संग्रहालय था जिसे "सिलह खाना" कहते थे वहां कई तरह के  तीर, तलवार और भाले रखे थे । पुरानी पिस्तौल और बन्दूक भी रखी थी अनेक चाकुओ के मुठ मीनाकारी और जवाहरातो से जड़े हुए थे । यहाँ हमको कई पीतल ,सीप और हाथीदांत के बने बेजोड़ कारीगरी की हुई सजावटी चीजें देखने को मिली। उस वक्त के राजाओ और रानियों के पहनने वाले वस्त्र जो हाथ से बने हुए थे और जो प्राकृतिक रंगों से रँगे हुए थे और जिन पर असली गोटा - किनारी लगी हुई थी काफी भारीभरकम वस्त्र थे , देखकर ही लगता था की ये भारी -भारी कपडे कैसे रानियां पहनती होगी। 

खेर, वहां से हम उस हॉल में आये जहाँ लाल मखमल की कुर्सियां और टेबल लगी हुई थी जहाँ महाराज के साथ अंग्रेज आफिसर बैठ कर मीटिंग करते थे।राजा और महाराजाओ के आदमकद तेल चित्र टँगे थे एक जगह राजधराने की अब तक की पीढ़ी के फोटू लगे थे और वर्तमान में जो युवराज है उनके भी चित्र लगे थे ।
यहाँ हमको फोटू खींचने की मनाई थी इसलिए कोई फोटू नहीं खिंच सकी..... 






राजा के गोल्फ के कपड़े, जूते, बगैरा  बड़े करीने से सजे हुए थे यानी उस समय हिन्दुस्थान में अंग्रेजी हुकूमत और गुलामी की जंजीरो ने पैरो में बेड़ियां डालनी शुरू कर दी थी ।

अंदर फोटू खिंचना मना था फिर भी हमने कई जगह मोबाईल से फोटू खिंच ही लिए ।

महल में एक कला गैलरी भी है जहाँ तेल चित्र , शाही साजो समान और अरबी ,फ़ारसी ,लेटिन और संस्कृत की  दुर्लभ रचनाएँ है 

अब हम उस हिस्से में आये जहाँ पहले माले पर काफी दुकाने थी जहाँ ढेरो पेंटिंग लगी हुई थी और उनको बनाने वाले पेंटर भी बैठे हुए थे जो कुछ रूपियो के बदले आपके फोटू बना कर दे रहे थे कई लोग उनसे अपने  स्केच बनवा रहे थे । 
यहाँ हमारे लायक कुछ नहीं था इसलिए हम आगे बढ़ गए ।

एक जगह हाथ के बने कपड़े मिल रहे थे तो कहीं जड़ाऊ ज्वेलरी मिल रही थी । पर हर चीज बहुत मंहगी थी । जो विदेशियों को आकर्षित कर सकती थी हमको नहीं ...

अब हम बाहर आँगन में आ गए जहाँ बहुत पुरानी तोप रखी थी हमने उसके साथ कुछ फोटू खिचाये और बाहर निकल गए अब हम "अल्बर्ट हाल" जा रहे थे ...
शेष अगले भाग में---



 महल का प्रवेश द्वार 








 मुबारक महल 


 मेरे पीछे जो तस्वीर है वो लंदन की महारानी के वेलकम की तस्वीर है 





 चंद्र महल 


 ये है कचरे का पात्र  


 केयरटेकर  के साथ मैं और अलज़ीरा   



ये  वो  पहरेदार है जिनके पूर्वज भी यहाँ राजा जी की सेवा करते थे   
 हम तीन 




दीवाने खास में मैं 



शेष अगले अंक में