जयपुर की सैर भाग = = 10
( हवा महल )
तारीख 13 को हम बॉम्बे से 3 सहेलियां निकली थी जयपुर जाने को 'सम्पर्क क्रांति ट्रेन ' से और वो रात कयामत की रात थी। ...
अब आगे -----
22 अप्रैल 2016
हम लगातार 8 दिन से घूम रहे है बहुत थकान हो रही है फिर भी आज हम सबने ' हवामहल' जाने का प्रोग्राम बना ही लिया ।
आज मीना अपने किसी रिश्तेदार से मिलने चली गई और हम तीनो चल पड़े हवामहल देखने....
आज मीना अपने किसी रिश्तेदार से मिलने चली गई और हम तीनो चल पड़े हवामहल देखने....
गर्मी ने अलग नाक में दम कर रखा है ..हम सुबह हल्का नाश्ता कर के निकल पड़े....
हमने अपनी फेवरेट ओला केब बुलाई और हवामहल चल दिए , जयपुर की सड़को पर भी अच्छा खासा जाम मिलता है ,हम बापूमार्केट पहुंचकर उतर गए सामने ही हवामहल था। पर इसका एंट्रेंस पीछे से था हम बर्तन बाजार घूमते हुए गेट पर पहुँच गए ,यहाँ भी टिकिट था सो टिकिट कटाकर हमने महल में प्रवेश किया...
हमने अपनी फेवरेट ओला केब बुलाई और हवामहल चल दिए , जयपुर की सड़को पर भी अच्छा खासा जाम मिलता है ,हम बापूमार्केट पहुंचकर उतर गए सामने ही हवामहल था। पर इसका एंट्रेंस पीछे से था हम बर्तन बाजार घूमते हुए गेट पर पहुँच गए ,यहाँ भी टिकिट था सो टिकिट कटाकर हमने महल में प्रवेश किया...
हवामहल --
हवामहल सन 1798 में महाराज सवाई प्रतापसिँह ने बनवाया था इसका डिजाइन किसी राज मुकुट जैसा लगता है यह पांच मंजिला इमारत है जो ऊपर से सिर्फ ढेड़ फुट चौड़ी है इसमें 953 बहुत सूंदर और आकर्षण जालीदार खिड़किया है जिन्हें झरोखा कहते है (और अब ईनके पास जाने नहीं देते ।) पहले महल में रहने वाली रानियां सड़को पर निकलने वाले जुलुस और कई प्रोग्राम यहाँ से देखा करती थी क्योकि पर्दा प्रथा थी और महाराजा अपने गर्मियों के प्रवास में इन ठन्डे महल में रहते थे । इन झरोखों के कारण महल में हमेशा ठंडी हवा आती रहती थी इसलिए इस महल का नाम हवा महल पड़ा |
सामने ही गुलाबी रंग का गलीचा टाईप कुछ बिछा हुआ था ,नजदीक जाकर देखा तो मालुम पड़ा की यहाँ रात को म्युजिक शो होता है अभी तो दोपहर थी इसलिए इस म्युजिक स्टेज पर धुप की किरणे नृत्य कर रही थी फिर भी हमने थोड़े ठुमके लगा ही लिए और हम सूरज चाचा को नमस्कार कर आगे बड़ गए ।
आगे एक छोटी सी गली जैसी भूलभुलैया सी बनी हुई थी यहाँ काफी ठंडक थी ऐसा लगा मानो कही A C लगा हो पर यहाँ कुदरती ठंडक थी ।
हम इस गली को पार कर के एक सीढ़ी के सामने पहुंचे, सीढ़ी चढ़कर ऊपर आये यहाँ काफी बड़ा हाल था और झरोखे बने हुए थे जिसमें रंग बिरंगे कांच लगे हुए थे जो धुप से जगमगा रहे थे । हम हॉल पार कर के बाहर छज्जे में आ गए धुप काफी थी कुछ फोटू खींचकर फटाफट अंदर आ गए ,
अब हम दूसरी तरफ से सीढ़ी चढ़कर और ऊपर आ गए यहाँ भी एक हॉल था, जिसमें झरोखे बने हुए थे ।हम खुली बालकनी में आ गए यहाँ काफी भीड़ थी लोग और ऊपर बने झरोखो पर चढ़ रहे थे , हम भी ऊपर चढ़ गए ,यहाँ हमको सारा जयपुर दिख रहा था ,सामने पहाड़ दिख रहे थे और उन पहाड़ो पर बने किले दूर से सुंदर नजर आ रहे थे ।
अब हम और ऊपर बने झरोखो पर जाने के लिए रम्प नुमा सीढ़ियों पर चढ़ने लगे ,यहाँ ऐसे 4 या 5 झरोखें बने हुए थे जिनका अलग अलग रास्ता और सीढियाँ थी ।
हम जिस झरोखे पर चढ़ गए थे वहां पहुंचकर मेरे तो पैर ही कांपने लगे अब निचे कैसे उतरु सोचकर ही डर लगने लगा । अल्ज़िरा और नीना तो उतर गए पर मैँ चुपचाप निचे बैठ गई क्योकि मुझे ऊचांई से चक्कर आते है, जब मैँ नार्मल हुई तो धीरे धीरे बैठकर और खसककर सीढियाँ उतरने लगी, सब हँसने लगे पर मेरी तरकीब सबको पसन्द आई ।
यहाँ अंदर काफी असली मोतियों की मालायें मिल रही थी जिनका भाव हजारों में था हम जैसे तो भाव सुनकर ही भौचक्के रह गए ,यहाँ देखने को कुछ नहीं था सिर्फ झरोखे और हाल ही थे
इस तरह सारा हवामहल घूमकर हम बाहर निकले।
गली की तरह का गलियारा
सामने ही गुलाबी गलीचा बिछा था
झरोखों पर रंग बिरंगे कांच
रैम्प नुमा सीढियाँ
गर्मी से बेहाल
धुप से परेशान अल्जीरा
अपुन तो मस्त मौला ,धुप क्या बिगाड़ लेगी जी
रैम्प नुमा सीढियाँ और आराम करने वाले छज्जे
सबसे ऊँचा छज्जा
छज्जे से दीखता पहाड़ और जयगढ़ किला
निचे उतरती हुई छोटी छोटी सीढियाँ जिसमें एक ही आदमी उतर सकता था यानी की वन -वे
झरोखों से आती ठंडी हवा का लुत्फ़ लेते हुए हम लोग
बाहर से मधुमक्खी के छत्ते जैसा दीखता हवामहल