मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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बुधवार, 31 अगस्त 2011

गोल्डन टेम्पल अमृतसर भाग 2


गोल्डन टेम्पल भाग २


अमृतसर  





रात ९.३० बजे हमने (बेटा सन्नी और मैं ) बोरीवली से 'गोल्डन टेम्पल अमृतसर ' गाड़ी पकड़ी--! ता.7 को हम अमृतसर पहुंचे --रूम लिया और अब हम गुरूद्वारे में जाने को निकल पड़े ...   

गोल्डन टेम्पल अमृतसर  भाग १ पढने के लिए यहाँ क्लीक करे ..


आज सुबह जब हम अमृतसर पहुंचे नहीं थे ..तब अतुल का फोन आया ..वो अमृतसर पहुँच गया था ? अतुल वही है जो अल्मोड़ा 'नीरज जाट के साथ गया था...और जिसके 'जन्मदिन' पर मैने   एक कविता भी लिखी थी .....वो कल तक तो चम्बा में था ..आज अमृतसर  भी पहुँच गया ---मुझसे मिलने को ..? बहुत प्यारा बच्चा हैं ..हमेशा अकेला ही घूमता रहता हैं--और वहाँ की सारी जानकारी फोन पर देता रहता हैं....


(नीरज जाट और अतुल )


खेर,जब हम गुरुद्वारे पहुंचे तो  अतुल वही खड़ा मिला ..मुझे देखते ही पहचान गया--तुरंत मेरे पैरो पर झुक गया..बहुत ही अच्छा लड़का लगा ..सन्नी थोडा  अपसेट था ? पर अतुल के व्यवहार से कब दोनों दोस्त बन गए पता ही नहीं चला ... अतुल कुछ काम से चला गया --उसने दरबारसाहेब  में सुबह हाजिरी दे दी थी--शाम को बाधा -वार्डर लेंगे --हमने वादा किया  -

फिर  हम  गुरूद्वारे की और चल पड़े ...आज सन्डे होने के कारण बहुत भीड़ थी .. सबसे पहले सरोवर में सन्नी ने स्नान किया ...मैं कल करुँगी ...



(सरोवर में स्नान करते हुए सन्नी )

(जंजीर से पकड़कर स्नान...?  कही डूब न जाउ ? सन्नी को यही शंका सता रही हैं )




यह हैं "बेरी का पेड़ "वाली जगह --कहते हैं-- 'यहाँ जो भी स्नान करता हैं उसका चरम रोग ठीक हो जाता हैं ' इस स्थान की बहुत महत्ता हैं--यहाँ गुरुनानकदेवजी ने भी साधना की थी...






( यहाँ  हैं बाबा दीप सिंह जी का गुरुद्वारा ) 



यहाँ  हैं बाबा दीप सिंह जी के गुरुद्वारे के पास उनकी पट्टिका --" कहते हैं --जब आर्मी गोल्डन टेम्पल में धुसी थी.. तब यहाँ आकर टेंक फंस गए थे ...आगे बढ़ ही नहीं रहे थे---तब  यहाँ पर 'अरदास' की गई ..तब कही जाकर मिलिट्री आगे बढ़ सकी ----आपरेशन --ब्लू स्टार  !"पर आंतकवादियों को खदेड़ने के लिए ....



( गुरुद्वारे के चारो कोनो में पानी पीने की व्यवस्था हैं --कभी -कभी यहाँ मीठी लस्सी भी मिलती हैं )


  ( प्रसाद की लाइन ...यहाँ आप ११ रु. का प्रसाद लो या १०१ का सबको बराबर मिलता हैं )


( लाइन में खड़े हुए---आज बहुत गर्दी (भीड़ )...हैं )


( आज गुरूद्वारे में बहुत भीड़ हैं )


(सोने का केंडिल ...पहले यहाँ दीपक जलाता था )




(किसी ने प्रसाद का दोना  फेंक दिया ..ऐसी पवित्र जगह पर  हमें ध्यान देना चाहिए की गंदगी न करे )





(  यह गुरुद्वारे के ऊपर का फोटू हैं.....चुपचाप  लिया हुआ ? )



(गुरूद्वारे के अंदर का द्रश्य ---चुपचाप लिया हुआ)


(३ घंटे में ...बड़ी मशक्कत के बाद बाबा के दर्शन हुए...)
दर्शन के बाद प्रसन्न मुद्रा में दर्शन  

(सन्नी क्यों पीछे रहता ..?  उसका भी एक शानदार फोटू )


(तालाब  में तैरती हुई गोल्डन-फिश )





(आखरी मोड़ पर गुरूद्वारे से निकलकर गुरु का प्रसाद ...लेती संगत )




यह हैं अकाल तख्त ---सिख धर्म के सारे हुक्म यही से निकलते हैं--जिन्हें सबको मानना पड़ता हैं !



अकाल तख्त--सिखधर्म के सारे फरमान यही से जारी होते हैं-- जिन्हें सारे देश की  गुरुद्वारा-प्रबन्धक कमेटी को मानना होता हें --'आपरेशन -ब्लूस्टार' के समय इसे मिलिट्री ने तोपों से उड़ा दिया था --और जनरेलसिंह भिंडरावाला को अपने साथियो के साथ यहि से गिरफ्तार किया था--उसके बाद अकालतख्त की दौबारा कार- सेवा की गई..आज का अकालतख्त नया बना हैं--रात को 'महाराज की सवारी' यही आती हैं--और गुरुग्रन्थ साहेब का सुकासन यही होता हैं !


दोपहर के ३ बज रहे थे और हमें भूख सता रही थी ..सुबह स्टेशन पर एक चाय पी थी--तब से भूखे थे--थोडा सा प्रसाद ही खाया था -- सो अब चूहों की कबड्डी चालू हो गई थी--अब, हम चलते हैं 'लंगर- हाल ' की तरफ --यहाँ हर टाइम गुरु का लंगर चलता रहता हैं --यह दो मंजिला लंगर हाल हैं --निचे फुल हो जाने के बाद उपर संगत चल देती हैं--नीचे चाय की भी 'सेवा होती रहती हैं --बढ़िया सोंफ की बनी चाय---




(यह हैं  'लंगर-हाल  -- यहाँ मोटर गाडी द्वारा सफाई होती हैं )


(ऊपर लंगर को जाती संगत ) 



( गुरु का लंगर करती संगत )



( गुरु का प्रसाद यानी खाना ----अभी खीर और सब्जी नहीं आई हैं.. पर मुझे बहुत भूख लग रही..)


लंगर -हाल 

खाने का सिस्टम यहाँ बहुत अच्छा हैं ..इतनी संगत के होते हुए भी न गंदगी! न खाने की कंमी !कैसे मैनेज करते है ?आश्चर्य हैं  .....



यह हैं बर्तन साफ़ करने की जगह....आप आराम से सेवा कर सकते हो ? यहाँ सेवा करने के लिए लाइन लगती हैं ..सिख -धर्म में सेवा का बहुत महत्व हैं ?




खाना खाकर हम चल दिए अपने कमरे में --बहुत थक गए थे  --थोडा आराम करेंगे ...वैसे यहाँ गर्मी भी बहुत हें --शाम को बाधा वार्डर भी जाना हैं .....अतुल इन्तजार कर रहा होगा ...शेष अगली बार ;;;;;


जारी -------


सोमवार, 22 अगस्त 2011

कहानी " मोहभंग "







"क्या आप मुझे जानते हैं " ?
"नहीं "?
"क्या मैं आपको  जानती हूँ "?
"पता नहीं " उसने कहा |
"फिर ?"
"आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ " उसने कहा |
"क्यों " मैने पूछा  |
"बस यू ही" 
 अजीब आदमी हैं, दोस्ती ऐसे मांग रहा हैं..जैसे परचुने की दूकान पर नमक खरीद रहा हो..दोस्ती नहीं हुई कोई वस्तु हो गई हो की दाम दो और लो ? जैसे मैं उधार ही बैठी हूँ दोस्ती करने को ..' ऊंह..हूँ' .. मैने सोचा --मैं ऐसे नेट प्रेमियों को अच्छी तरह से जानती हूँ जो लडकियों को देखकर लार टपकाते रहते हैं ..मुझे ऐसे मंजनू  बिलकुल पसंद नहीं ???
  
    मैं २३ साल की एक खुबसुरत लडकी हूँ ..ऍम.बी.ऐ.( f ) की स्टुडेंट हूँ ..अक्सर नेट पर अपना प्रोजेक्ट बनाती रहती  हूँ ..कभी -कभी चेटिंग भी कर लेती हूँ..सिर्फ अपने दोस्तों से जिनको मैं जानती हूँ .जो मेरे साथ पढ़ते हैं, ..अनजान लोगो को मुंह नही लगाती ?

उस दिन 'उसका 'अचानक से आया रिक्वेस्ट मैं भूल चुकी थी --पर शायद वो नहीं भुला था | २-३ दिन बाद उसने फिर रिक्वेस्ट भेज दी --मैने फिर टाल दिया ,पर ज्यादा दिन मैं उसे नही टाल सकी --मुझे उसको एक्सेप्ट करना ही पड़ा --

धीरे -धीरे मैं  उससे चेटिंग करने लगी --वह बहुत दिलचस्प इंसान था --उसकी बाते मुझे बहुत अच्छी लगती थी --उससे बात करके मैं 'फ्रेश' हो जाया करती थी | वह बहुत अजीब आदमी था ,दोस्तों पर जान  देता था --जिंदादिल था ! रोतो को हंसा दे ,उसमें वो हुनर था .|.उसको अपने दोस्तों की कई कविताए मुंह जवानी याद थी --जिन्हे वो अक्सर मुझे सुनाया करता था --कभी-कभी मैं बोर हो जाती थी, पर उससे कुछ नहीं कहती  --कभी -कभी वो थर्ड क्लास बाते करता था जो मुझे पसंद नहीं थी-- लेकिन मेरे मना करने पर वो बंद भी कर देता था --उसकी यही अदा मुझे पसंद थी ...| और मैं उसपर मरती थी ?
वो दोस्तों का दीवाना था ..मेरा नहीं ? मैं; जिस पर सारा जहाँ फ़िदा था --मेरी एक झलक देखने को लोग उतावले रहते थे --? मुझसे दोस्ती करने को कई लडके कतार में खड़े रहते थे --? पर मैं किसी को भाव नही देती थी --मैं तो सिर्फ उसकी दीवानी थी --लेकिन, उसको मेरी परवाह ही नही थी --वह  तो बस बातो का राजा था !

कभी -कभी लगता था की क्या उसने मुझसे सिर्फ बातो के लिए ही दोस्ती की हैं ? या अपना टाइम -पास करने के लिए ? तब मन बहुत उदास हो जाता था ,कई बार मैं उससे नाराज हो जाती --फोन करना बंद कर देती --चेटिंग नहीं करती, उसको ताने देती,झगड़ा करती; तब वो परेशांन  हो जाता ! माफ़ी मांगता! आगे से ऐसा नहीं होगा कहता; मैं अक्सर उसको माफ़ कर देती क्योकि मै खुद उसके बगैर रह नही पाती थी | लेकिन वो अपनी आदत से मजबूर था --कुछ दिन ठीक चलता फिर वही हरकते शुरू हो जाती जो मुझे पसंद  नहीं थी |

वो एक सरकारी संस्था में नौकरी करता था ..बहुत व्यस्त रहता था ..मैने उसको तस्वीरों में देखा था --ठीक - ठाक ही लगता था --न बहुत सुंदर न भद्दा --उसके बारे में ज्यादा जानती नही थी --वैसे मुझे भी परवाह नही थी --मेरी सगाई हो चुकी थी --कुछ दिनों बाद  मेरी शादी होने वाली थी --मेरे होने वाले पति बहुत अच्छे थे -- मैं उनसे संतुष्ट थी ..वो मुझे बहुत प्यार करते थे ..मेरी हर बात मनते थे ..
पर अचानक इसके आने से सब गड़बड़ हो गई --शायद मैं  उससे प्यार करने लगी थी,पर वो मुझसे प्यार नहीं करता था ? जब भी मैं उससे पूछती --तो वो बहाने बनाने लग जाता था---"प्यार क्या होता हैं ?" वह अक्सर पूछता था? और मैं निढाल- सी कुछ कह नहीं पाती थी --कैसे उसको अपनी भावनाए समझाऊ --शायद वो समझकर  भी नासमझ बनता था--

    पर यह पक्का था की मैं उससे प्यार करने लगी थी ! मुझे हरदम उसकी याद आती थी-- भूख खत्म हो गई थी --जिस दिन उसका फोन नहीं आता तो मन बैचेन रहता था, पर वो मस्त रहता --मैं गुस्सा होती और वो हंसता --मुझे कविताए सुनाता हमेशा कहता --"लाइफ को इन्जाय करो " पर उसके बगैर मेरी लाइफ सूनी थी मैं कैसे उसे समझाती ? मैं सम्पूर्ण रूप से उसके मोहपाश में बंध चुकी थी ----?

हम कभी मिले नहीं थे --न हमने कभी एक दुसरे को देखा था --वो असल में कैसा होगा ! मैने कभी सोचा ही  नही था ! वो कैसा भी  हो ; मैरे मन ने उसे स्वीकार कर लिया था --हम काफी करीब आ चुके थे ! बहुत सी बाते जो सिर्फ पति -पत्नी ही करते हैं हम एक दुसरे से अक्सर करते रहते थे --कई बार उसकी कुछ अनगर्ल बाते मुझे पसंद नही आती थी पर अनमने भाव से मैं सुनती थी -- और वो समझता था की मुझे ऐसी ही बाते पसंद हैं -- वो दुने जोश से करता था -- कई बार मना भी कर देती थी जिसे वो एक अच्छे बच्चे की तरह मान भी जाता था-- वादा करता था की आगे से कभी नही करूँगा ?पर जल्दी ही भूल जाता था -- फिर वही बातो का लम्बा सिलसिला -- कविताओं का न खत्म होने वाला राग ! पर मुझे उसकी हर चीज़ पसंद थी---?

मैं चाहती थी की वो रोमांटिक बाते करे ; मुझसे प्यार भरी मिठ्ठी बाते करे ? पर शायद वो यह करना जानता ही नहीं था --ज्यादा जोर देती तो वो मुझसे बात करना ही छोड़ देता , तब न फोन करता न एस. ऍम. एस. करता --अक्सर कह्ता-- "व्यस्त हूँ ?"

जीवन यू ही गुजरता रहा ---मै जहां भी जाती उसको अपने सामने पाती --अपने होने की एक -एक पल की खबर उसको देती--पर मानो उसे मेरे प्यार में रूचि थी ही नहीं --जब उसकी इच्छा होती बात करता --जब इच्छा  होती मेसेज करता; मेरी भावनाओ की उसको कोई कद्र ही नही थी? कई बार सोचा उसे छोड़ दू --फिर डर जाती --कैसे रहूंगी उसके  बगैर --?

 एक बार तो उसे F.B. से निकलने को कह भी दिया और वो तुरंत तैयार भी हो गया --और निकल भी गया---मानो कुछ  हुआ ही नही हो ? पर लाख कोशिश के बावजूद  भी मैं उसे दिल से निकाल नही सकी --पता नही किस मिटटी का बना हुआ था ? सीने में दिल ही नही था उसके ? यदि था भी तो मेरे लिए धडकता  नही था ?
उसको निकलने का बोल तो दिया ,पर इस गुनाह की सज़ा मैने  ही पाई --उसके न रहने से जो स्थान रिक्त हुआ --वो मुझसे देखा नही गया --मैं विचलित हो गई ---उसको देखे बगैर मैं रह ही नही सकती थी --एक दिन भी निकालना मुश्किल हो गया --आखिर तंग होकर मैने उससे कहा --"प्लीज ,मुझसे बाते करो , मैं पागल हो जाउंगी "? उसने तुरंत जवाब दिया --" I love you"  !मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व खिल गया --आँखों से आंसू बह निकले --ऐसा लगा मानो -कण -कण जीवित हो उठा हो ! वो भी मुझे प्यार करता हैं ? मन मयूर नाच उठा --तन मन में तरंगे दौड़ने लगी --एक सम्पूर्णता से मेरी बगिया खिल उठी ...
   

ऐसे  ही समय दौड़ता रहा --हम बहुत नजदीक आ गए थे -- मै  उससे  शादी करना चाहती थी ,पर वो हमेशा मुझे   टाल  देता था -- एक दिन मैने उससे जबरदस्ती की तो अचानक वह बोला--मैं शादीशुदा हूँ ? एक साथ दो औरतो से प्यार नहीं कर सकता ? " धडाम "--- मैं धरा पर आ गिरी ?

वो मुझसे प्यार नही करता था ?शायद वो अपनी पत्नी से  बहुत प्यार करता था --? उसने सिर्फ मुझसे दोस्ती की थी---सिर्फ दोस्ती ???

उसने कभी मुझसे कोई वादा  नही किया ? न मिलने की कोशिश की --शायद वो बिना देखे मेरे इस अंधे प्यार को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा होगा -- ? कैसे कोई बिना देखे किसी को प्यार कर सकता हैं ?यही सोचता   होगा --पर मैने उसको सच्चे दिल से प्यार किया था ???


आजतक उसको भुला नही पाई हूँ --वह मेरा पहला प्यार था जिसे भुलाना नामुमकिन ही नही असम्भव था --मेरी यही भूल थी की मैने उसको प्यार किया ? और उसकी यह की उसने मुझसे दोस्ती की--पर मैं दोस्ती कर नही सकी ---????

"परछाई के पीछे भागने वाले ओढ़े मुंह गिरते हैं न "

         काश,उस दिन तुम मिले ही नहीं होते ??? 




गुरुवार, 18 अगस्त 2011

'गोल्डन टेम्पल अमृतसर '

गोल्डन टेम्पल भाग 1


" सुनहरी आभा से दमक रहा ,सज रहा दाता दरबार तेरा !
मेरे  गुरुओ की शरण -स्थली ,लोग इसे स्वर्ण -मन्दिर कहते हैं !!
   





( गोल्डन -टेम्पल यानी स्वर्ण -मंदिर ...अमृतसर ) 








५ अगस्त २०११


 रात ९.३० बजे हमने (बेटा सन्नी और मैं ) बोरीवली से 'गोल्डन टेम्पल अमृतसर ' गाड़ी पकड़ी--
मैं पिछले  ही साल जुलाई में  पतिदेव और बेटियों के साथ एक बार गई थी ,पर सन्नी को छुट्टी न मिलने के कारण वो नही जा सका था -- अपने एक दोस्त के  साथ वो जाने वाला था पर अचानक उस दोस्त ने मना कर दिया ..इस तरह संजोग से मेरा गोल्डन टेम्पल जाना तैय हो गया ..फटाफट नेट से तत्काल में टिकटे बुक की ..रश था नही; इसलिए आराम से कन्फर्म टिकट मिल गई ...और मैं चली ....अमृतसर ..गुरु के दरबार में ...


( रेल चली--रेल चली--छुक --छुक--छुक)
  

( खुबसुरत नजारा ) 


( सन्नी ..मेरा बेटा)  



( सेकंड क्लास के सफ़र का भी अपना मज़ा हैं )


सुबह की चाय ! कुल्हड़ में... वाह जी वाह !

( बारिश का मौसम  ) 

( रहस्यमयी स्टेशन)




6 अगस्त 2011:-सुबह 11बजे 

हम कोटा जंक्सन पहुंचे ..मेरा ससुराल होने की वजय से परिवार वाले मिलने आ ही जाते हैं ..खाना भी आ जाता हैं ..मेरी बचपन की एक सहेली बेबी भी यहाँ रहती हैं ..वो भी मिलने चली आई....20 मिनट गाड़ी यहाँ खड़ी रहती हैं ....हमने खूब बाते की....२५ मिनट बाद गाडी यहाँ  से चली ...?  अपनों से मिलना जितनी  ख़ुशी  देता हैं... बिछड़ना उतना ही गम भरा  होता हैं ?






    

( कोटा )            



( कोटा स्टेशन ) 


( मेरा परिवार....कोटा (राजस्थान




( बारिश ने सारे माहौल को हरी चादर से ढंक दिया  ऐसा प्रतीत होता हैं )  
"ये कौन चित्रकार हैं "

(  खुबसुरत वसुंधरा ) 




(  मथुरा स्टेशन , श्री कृष्ण का जन्म स्थान ) 


( हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन ) 




( निजामुद्दीन स्टेशन से दिखाई दे रहा एक  खंडहर मकबरा ) 

दोपहर का खाना खाकर मैं कुछ देर सो गई ..शाम को ७बजे हमारी गाड़ी निजामुद्दीन स्टेशन पहुंची !
दिल्ली में कई लोगो से मिलने की इच्छा थी--नीरज जाट से संदीप जाट से मिलने की बहुत इच्छा थी ..पर यह गाडी निजामुद्दीन से सीधे गाजियाबाद चली जाती हैं सो,कई लोगो से मिलने की इच्छा दिल में ही रह गई --फिर भी मुकेश आ ही गए --30 मिनट का हाल्ट था..मुझे तो पता ही नही था ! मुकेश ने ही बताया था खेर, मुकेश से बहुत  बाते हुई ,लगा ही नहीं की पहली बार  मिल रहे ..शांत और सोम्य मुकेश अपने नेचर के मुताबिक़ ही मेरे लिए 'मुंशी प्रेमचन्द' की कहानियो का संग्रह लाए थे ..उनका यह उपहार मेरे दिल को भा गया ..
नेट की दुनियां भी कितनी रहस्यमयी हैं ..जिन्हें हम पी. सी. के परदे पर रोज देखते हैं ..बाते करते हैं..वो सामने आ जाए तो आश्चर्य दुगना हो जाता हैं और ख़ुशी के वो पल हमेशा के  लिए एक यादगार बन जाते हैं...


(और ये हैं मुकेश सिन्हा  --एक ब्लोगर ..शांत और सोम्य )




 ( अमृतसर से लगा मानावाला स्टेशन )




7 अगस्त 2011 सुबह 8 बजे 

हम अमृतसर पहुँच ही गए....



(अमृतसर रेलवे स्टेशन )


( अमृतसर शहर ) 

( शहीदी स्मारक )


( और यह हैं मेंन गेट स्वर्ण मंदिर का ) 


( यह हैं आफिस ! जहाँ रूम मिलते हैं..सबको ! )
( फ्री में भी और पैसो से भी ? )

( आज गुरूद्वारे  में काफी भीड़ हैं )   




        ( और यह हैं--गुरु हर गोविन्द -निवास ! जहाँ हम ठहरे थे --
ऐ सी रूम सिर्फ 300 रु. में )





( रूम में ऊपर जाने के लिए लिफ्ट !)


आज बस इतना ही.....अगली किस्त में गुरु का दरबार !

जारी .....