मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शनिवार, 27 जून 2020

Gds इंदौर-महेश्वर ट्रिप

                इंदौर-महेश्वर-ट्रिप


*इंदौर- महेश्वर मीट*
(तीसरे दिन)
8दिसम्बर 2019
सुबह 4 बजे मुझे चारु ने धमकाते हुए उठाया...बोली---"बुआ 10 बार आवाज़ लगा चुकी हूं अब अगर नही उठी तो हम सब आपको छोड़कर चले जायेंगे..."
 धमकी काम कर गई और मैं फटाफट 10 मिनिट में तैयार भी हो गई।😂

कल सहस्त्र धारा में खूब हुड़दंग मचाकर हम सब दत्त मन्दिर गए  जहां दर्शन कर हमने टेस्टी चाय पी ओर सुनील के लाये करांची बिस्किट भी खाए ...यही से भालसे दम्पति ओर सरोज बिदा हुए और हम थकेहारे बस में बैठ गए ...
आते समय बस को छोड़कर जब हम लोग पैदल होटल की तरफ आ रहे थे तो महेश्वर का बाजार अपने पूरे यौवन पर था...खूबसूरत महेश्वरी साड़ियां करीने से सजी हुई थी वही एक गोलगप्पे वाले को देख अल्पा का मन बेईमान हो गया लेकिन उसको मायूस होना पड़ा क्योंकि गोलगप्पे ही खत्म हो गए थे।😃
फिर  राजीव, माथुर साहब ओर बलकार जी के साथ चाय पीकर ही हमने संतुष्टि की।
ओर आज अभी सुबह 6 बजे उसी चाय वाले के पास हम फिर से चाय का आनंद ले रहे थे।
चाय पीकर  हम सब ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन करने चल पड़े।
ठीक साढ़े सात बजे हम ओम्कारेश्वर महादेव के दर्शन कर रहे थे...भीड़ बिल्कुल नही थी,आराम से दर्शन कर के हमने अभिषेक भी किया ...यहां हमने घुमक्कड़ी फ़ेसबुक के कुछ मेम्बरो से भी मुलाकात की,जो इत्तेफ़ाक़न ओम्कारेश्वर की सैर को ही निकले थे।
अब हम सब नाव में सवार हो ममलेश्वर महादेव के दर्शनों को चल दिये जो माँ नर्मदा के उस ओर किनारे पर ही बना था।
यहां भी आराम से दर्शन कर सबने खूब फोटुग्राफी की ओर वही एक छोटे से ढ़ाबे में खाना भी खाया।
खाना टेस्टी था, ओर उसको टेस्टी बनाया सब ग्रुप के मेम्बरों ने परोसगिरी कर के😂
खाना खाते खाते कब 3 बज गए पता ही नही चला।
यहां से सबके बिछड़ने का टाईम हो चला था , रात को ही प्रतीक, मनोज, अनिल,योगी जी,सरोज, नरेंद्र तो  निकल भी गए थे अब दोनों पांडेजी भी निकलने के चक्कर में थे😃ओर खंडवा रोड पर आते ही ज़बको जय श्रीराम बोलकर चलते बने।
इधर हमारी बस वापस उज्जैन को ही जा रही थी सबको उज्जैन से ही अपने गतव्य स्थान  की ट्रेनें पकड़नी थी। इसलिए सब उज्जैन ही चल पड़े.
लेकिन मुझे इंदौर उतरना था क्योकि मेरी ट्रेन रात 11 बजे इंदौर से थी, इसलिए मैं अपने भाई के घर राजमोहल्ला जाउंगी।
इंदौर के आतें ही मैंने भी सबको टाटा- बाय-बाय कर इस प्रोग्राम की इतिश्री की🙏
साथियों, जब हम सब मिलते हैं तो कितना जोश होता हैं लेकिन जब बिदा की बेला आती हैं तो सबके मुंह लटक जाते है  फिर सब अपनी - अपनी राह चल देते हैं अगले साल मिलने के वादे के साथ...😍
मिलन हमेशा खुशियां लाता हैं और विछोह हमेशा दुख:
इसलिए मिलते रहो और खुशियां प्राप्त करते रहो😀🙏

                  ओंकाारेशर मन्दिर में पूूजा

                      ओम्कारेश्वर 
                     Gds टीम

                        ममलेश्वर महादेव 

शुक्रवार, 26 जून 2020

इंदौर-महेश्वर-ट्रिप

इंदौर-महेश्वर -ट्रिप


*इंदौर- महेश्वर मीट*
(दूसरा दिन)
7 दिसम्बर 2019

कल रात हम इंदौर से सकुशल महेश्वर पहुंच गए थे।
रात को बस में बहुत धमाचौकड़ी मचाई ...पहले तो बस के आगे के हिस्से में अंताक्षरी चली जोरशोर से सबने चिल्ला- चिल्लाकर नए पुराने- गीत गाये जिसमें हमारी नन्ही परी वैष्णवी सबसे अव्वल आई...
फिर बस के पीछे महफ़िल जमी जहां रूपेश,राजीव ओर डॉ प्रदीप ने अपने जलवे बिखेरें☺️ इस बीच मुझे तो नींद आ गई, पता नहीं कितनी देर ये महफ़िल चली। जब मुझे झिंझोड़कर अल्पा ने उठाया तो मालूम हुआ कि महेश्वर आ गया हैं।☺️

सुबह सबकी शानदार थी काफी चहल-पहल चल रही थी.. गरम पानी के लिए जहदोजहद चल रही थी, मैं जब उठी तो कमरे की चार महिलाओं में से दो नहा चुकी थी, ओर मेरी नहाने की तैयारी थी ,मुझे रूपेश ने एक बाल्टी गरम पानी दे दिया था।
अपनी तो निकल पड़ी थी...फटाफट तैयार हो नए नवेले बन हम चारों महिलायें महेश्वर घाट पर पहुँच गई ..
मौसम काफी खुशगवार था, घाट पर करीने से नोकाए लगी हुई थी, मंदिरों के घण्टे बज रहे थे और हम चारों अपने-अपने फोटू खटाखट उतारने में व्यस्त थे। 
इतने में हमारे ग्रुप के सदाबहार युगल मुकेश भालसे ओर कविता भी आ धमके, सभी से मिल मिलाकर फिर एक बार फोटू खींचत अभियान चालू  हुआ..😃
यही पर एक मोती की माला बेचने वाली मिल गई जिसे मैंने टालने के लिहाज से 200 रु की माला को 50₹ बोलकर छुटकारा चाहा, लेकिन वो अड़ियल टट्टू की तरह पीछे ही पड़ गई कि 50 में ही खरीद लो😀 फिर क्या था Gds की महिलाएं टूट पड़ी और न चाहते हुए भी सबने अच्छा खासा स्टॉक खरीद लिया..अब Gds के पुरुष कैसे पीछे रहते ,तो उन्होंने भी खूब तबियत से खरीदारी की!
सबने इतनी खरीदारी की कि माला वाली अब 6 महीना तो घर बैठकर खाएगी ही😃

इतने में *नाश्ता तैयार हैं*  का बुलावा आ गया और सब दौड़ पड़े..सबको यही चिंता थी कि कहीं कुछ छूट न जाये😜
लेकिन नाश्ता भरपूर था, टेस्टी पोहे, गरमागरम जलेबी ओर वड़ा सबका ईमान डगमगाने के लिए काफी था।सभी टूट पड़े...छककर सबने नाश्ता किया.. इतने में मेरी अभिषेक बाबू पर निगाह पड़ी, *अरे तुम कब टपक पड़े* 😜 अभिषेक इस अचानक हमले से थोड़ा झेंप गया।😀
फिर सबने मस्ती करते हुए नाश्ता किया और वापस चल दिये महेश्वर का किला देखने...
इस किले को 2 बार पहले भी मैंने देखा था लेकिन आज कुछ रंग ही अलग था आज की तो बात ही निराली थी।
ओर इसी निराली बात से याद आया कि उसी समय अभिषेक के बड़े भैया यानी कि हमारे ओरछा निवासी *मुकेश पांडेजी* का आगमन हुआ।
फिर Gds के बैनर तले खूब सारे फोटू खींचे गए ओर सबने किले के अंदर प्रवेश किया, जैसा कि आम किला होता हैं वैसा ही ये भी किला था, लेकिन अब किला कम बस्ती ज्यादा लग रहा था फिर भी स्थिति मजबूत थी ... मुझे महारानी अहिल्याबाई होलकर का बुत सादगी की प्रतिमा लगा,ओर उनके हाथ मे पकड़ा शिवलिंग जीवित!
दोपहर में हद से ज्यादा सेल्फियां हुई...खूब जोड़ियां बनी...ओर बिगड़ी..फिर सब थक हारकर होटल वापस आ गए..
यहां का नजारा ही अलग था,सबके खाने के लिए बाफले,चूरमा की रसोई तैयार थी मैं तो टूटकर बाफलों में घुस गई, 😂😂😂अगल -बगल से जितना खाया गया खूब ढूंस् कर ही उठी।
फिर थोड़ा रेस्ट करने अपने रूम में गई तो पता चला कि कोई सरकारी अफसर मैडम हम लोगों से मिलने आई हैं...जानकी यादव मैडम से मिलकर बहुत खुशी हुई, अपनी व्यस्तता के बावजूद वो हमारे घुमक्कड़ी के किस्से पढ़ती हैं ये सुनकर अच्छा लगा।
फिर सब चाय पीकर निकल पड़े नजदीक ही सप्तधारा देखने।
ये स्थान मैंने नही देखा था... हमारा सारा ग्रुप यहां पानी में बच्चों की भांति किल्लोरी करता रहा।
शाम होते होते सारे पंछी अपने अपने नीड पर थके हारे वापस लौट आये । लेकिन कुछ जागरूक मेम्बर थे जो महेश्वरी साड़ियां खरीदने बाजार की ओर लपक पड़े, लेकिन अपने राम वही गुडक गए..
कल 4 बजे जो उठना था।
गुड़ नाइट।
क्रमशः...


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Gds की महेश्वर ट्रिप

इंदौर-महेश्वर - ट्रिप

#इंदौर_महेश्वर_मीट 
( पहला दिन)
6 दिसम्बर 2019
इस बार हमारे ग्रुप घुमक्कड़ी दिल से  की सालाना मीटिंग इंदौर में रखी गई.. इंदौर मेरी जन्मस्थली भी हैं ओर आप सोच रहे होंगे कि मुझमें उत्साह बहुत होगा ? लेकिन बिल्कुल भी नही था, 😊क्योंकि इंदौर में 2-4महीने में जाती ही रहती हूं और जो स्थान लिस्ट में थे वो एक बार नही कई बार देख चुकी थी इसलिए मेरा बिल्कुल मन नही था जाने को ओर इसी बात के लिए मेरा ग्रुप में झगड़ा भी हो गया,मन भी खराब था,लेकिन सबसे मिलने की चाह भी थी सो हजार बार ना करते करते कब #हा हो गई पता ही नही चला।
खेर, 5 दिसम्बर को रात 11 बजे धुरंतों से जब मेरी काया निकली तो उमंग के साथ-साथ मन में सबसे मिलने की खुशी भी शामिल थी।
सुबह 9 बजे जब ट्रेन ने *उज्जैन स्टेशन* को छुआ तो मन मयूर हो नाचने लगा सामने ही विनोद को सपत्नी पाया और थोड़ी देर बाद जब *श्रीराम धर्मशाला* से मैं तैयार हो बाबू बन नीचे आई तो चारु,नीलू,डॉ प्रदीप ओर अल्पा को इंतजार करते पाया।
सब वापस स्टेशन चल दिये क्योंकि दिल्ली की सवारी अपने नियत टाईम पर उज्जैन पहुँचने वाली थी और उसमें हमारे अनगिनत मेम्बर आने वाले थे,...जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर आई ओर Gds का हुजूम बाहर आया तो हाय-बोय का जो सिलसिला चला तो चलता ही रहा...सबके होठों पर मुस्कान थी और मिलन का जो सुख सबकी निगाहों में था उसको देख मेरा मन खुद को धिक्कारने लगा --- "बेवकूफ कोप भवन में बैठी थी,अगर नहीं आती तो ये सामूहिक प्रेम की बौछार कैसे महसूस कर पाती"।
आंखों से खुशी के आंसू पोंछ खुद को भाग्यशाली समझ मैं भी भीड़ में शामिल हो गई सबके फ्लैश चमक रहै थे और मोबाइल धड़ाधड़ इन सुखद पलों को अपने पेट मे समाते जा रहे थे।
सबका मिलन हो रहा था.. संजय, जो हमारे एडमिन थे वो सबसे आगे थे उनके पीछे रूपेश - ज्योति ,डॉ अजय नीलिमा, माथुर साहब, नरेंद्र ओर अनिल थे इस बार नितिन नही आया था।
डॉ बलकारी जी ,राकेश,शरद, सुनील,मीनाक्षी, ऋतु ओर उसकी छोटी बहन से अंजान थी क्योंकि इनसे पहली बार मिल रही थी और जो जानकार थे उनसे गले मिल रही थी, ऐसा लग रहा था सब परिवार के ही हैं और बहुत दिनों बाद मिल रहे हैं। 
खैर, दोपहर 12 बजे सब राजाबाबू बन बस से महाकाल के दर्शनों को चल दिये.. ओर यही गलती हो गई; हमको पहले दूसरे मंदिरों में जाना था और अंत में महाकाल के दर्शन करने थे ,पर सबकुछ उल्टा हो गया और जब हम महाकाल के दर्शन कर निकले तो 3 बज गए थे और पेट में चूहे क्रिकेट कर रहे थे और मेरे पास बॉल भी नही थी जो बॉलिंग करती; आखिर हमारे एडमिन को दया आ गई और उन्होंने ब्रेक बोलकर क्रिकेट रुकवाया ओर गरमागरम स्वादिष्ट खाना सबको खिलवाया।
हमसे तो योगी महाराज अच्छे निकले जो 15 मिनिट में महादेव को बॉय बोलकर हमारे साथ खाना खाने पहुंच भी गए।
खाना खा हम सब उड़ चले इंदौर की ओर! हम सब जब बस में बैठ गए तो मैंने उड़ती हुई निगाह बस में डाली ; हमारे ग्रुप के सारे महानुभव दिखाई नही दे रहे थे न रितेश न किशन, न सुशांत सर, ओर तो ओर प्रकाश जी तक एकदम सफ़ाचट थे, न पांडे जी दिख रहे थे,न दादा दिखे न अभिषेक ओर न जांगड़ा दिखा।यहां तक कि प्रतीक,आलोक ओर मनोज भी गायब थे,सबने मुझे बेवकूफ बनाया और खुद नही आये।
देख लुंगी बच्चू!!!!
 अब हमारी बस इंदौर शहर में प्रवेश कर चुकी थी देवास नाका आते आते तो मैं अपने शहर में खो-सी गई ।
अब हम *सदर बाजार* (मेरा घर) के बगल में ही संगम कॉलोनी में प्रवेश कर रहे थे यही पास में मेरा कॉलेज हुआ करता था ! रोज का आना जाना था !क्या दिन थे वो...😢
 सुमित हमारे ग्रुप के हैंडसम डॉक्टर के घर संगम कॉलोनी में जब हमारी बस पहुँची तो देखा एक मकान के सामने शामियाना लगा हुआ है कुछ चेयर लगी हुई हैं सबको लगा पड़ोस में शादी है लेकिन सब उस समय भोच्चके रह गए जब हम सब की सवारी उसी शामियाने में पहुँची... सुमित& फ़ैमिली की मेहमान नवाजी तो सबका दिल ही जीत ले गई ..😊
यहां हमारे ग्रुप एडमिन मुकेश ओर कविता भी मिल गए और थोड़ी देर बाद हमारे ग्रुप की मिस चंचल सरोज भी आ धमकी☺️
 सबका एक जोरदार परिचय सम्मेलन हुआ जो लोग नए सदस्य थे उनके बारे में जानकारी मिली और मिला ढ़ेर सारा नाश्ता !
नाश्ता ढूंसकर रात 9 बजे के बाद सुमित को साथ लेकर हम सब सराफे पहुँच गए...
सराफा इंदौर के खाना प्रेमियों का आदर्श स्थल हैं... यहां दिन में जेवरात बिकते है और रात को पकवान!
यहां सबने कचौरी, गराडू, दही भल्ले, पान, बड़ा जलेबा, साबूदाने की खिचड़ी ओर अन्य पकवानों का लुत्फ उठाया।
ओर रात को 12 बजे सबको घसीटते हुए हमारे एडमिन संजय ने जो  दुलत्ती मारी तो ठीक 2 बजे सब सकुशल महेश्वर टपक पड़े।😀
यहां खोये हुए आलोक ओर प्रतीक भी मिल गए।
ओर फिर रात 3 बजे हम सब सोए।
जय राम जी की ।
शेष कल🙏

महाKआल से बाहर
इंदौर डॉ के घर

सराफ बाज़ार
गराड़ू

भुटटे का किस
महेश्वर चले

गुरुवार, 18 जून 2020

मेरी दूसरी माँ वैष्णोदेवी की यात्रा



★मेरी अद्भुत वैष्णोदेवी की यात्रा★
ये मेरी माता वैष्णवदेवी की चौथी ओर आखरी यात्रा थी।

बात 2002-2003 की है जब कारगिल युद्ध शुरू भी नही हुआ था, पर वॉर्डर पर सरगर्मियां तेज थी हमारी फौजें कारगिल में जमा हो रही थी ये मई की बात थी और हमने 2 महीने पहले से ही माता वैष्णोदेवी के लिए रिजर्वेशन करवा लिया था।

अब जिसको भी बोलते की हम माताजी के दर्शन को फलाना फलाना तारीख़ को जा रहे हैं तो हर तरफ से यही जवाब मिलता की__ "खुदकुशी क्यों करना चाहते हो...जम्मू तो  मिलिट्री जा रही हैं और  साधारण लोग उधर से इधर आ रहे है ओर तुम लोग जम्मू जा रहे हो।"😊

लेकिन मिस्टर वैष्णोमाता के बड़े भक्त है तो उनके कानों पर ज़ू तक नही रेंगी.. उन्होंने अपना प्रोग्राम रद्द नही किया..

ओर मुझ घुमक्कड़ को तो वैसे भी घूमने का बहाना मिला था भला मैं कैसे इनकार कर सकती थी...तो माता की मर्जी बोल सभी ने बात आई गई करदी।

ख़ेर, नियत टाइम हम खाना वगैरा बना ट्रेन पकड़ने बोम्बे सेंट्रल चल दिये ...कोई डर जैसी बात नही थी...गाड़ी काफी खाली थी...हम सब सेकंड Ac में पहुँचकर मजे से खाना खाने में व्यस्त  हो गये..

यहां मिस्टर ने बताया कि हमारी रिजर्वेशन सिर्फ दिल्ली तक हैं वहां से आगे की यात्रा हमको दूसरी ट्रेन में करनी पड़ेगी।

हम आराम से दिल्ली तक पहुंच गए वहां हमसे मिलने इनकी बड़ी बहन की लड़की ओर उसके मिस्टर आ गए वो अपने साथ खाना भी ले आये थे कुछ समय उनके साथ गप्पे मारी फिर जैसे ही प्लेटफार्म पर गाडी लगी वो हमको बैठाकर चले गए।

गाड़ी खड़ी थी उसको निकलने में 1 घण्टा बाकी था तो हमने सोचा कि क्यों न खाना खा लिया जाय.. मिस्टर हाथ धोने वॉशरूम गए ओर

मैं खाना निकाल ही रही थी कि अचानक मिस्टर धबराये हुए आये और बोले कि किसी ने मेरी जेब से पर्स निकाल लिया है मैं भी धबरा गई क्योंकि उसी में हमारा टिकिट था,रेल्वे का पास था, इनका आइडेंटिकार्ड था पैसे तो ज्यादा नही थे लेकिन 2 -2 क्रेडिट कार्ड थे ओर तो ओर उन कार्ड के पासवर्ड भी लिखे थे क्योंकि हमने नए कार्ड अभी लिए थे तो उनके पासवर्ड याद नही थे इसलिए उनको एक कागज़ में लिख लिए थे।

उस समय डेबिट कार्ड में ज्यादा तो नही पर 30-40 हजार रुपिया जमा था और क्रेडिट कार्ड की भी 3 लाख की लिमिट थी।

मुझे तो चक्कर आ गए और मैं वही धम्म से सीट पर पसर गई मानो चोर ने तुरंत ही सारा पैसा निकाल लिया हो ,गाड़ी अभी भी खड़ी थी मिस्टर ने फटाफट हमको गाड़ी से उतारा ओर अपनी बहन की बेटी ओर दामाद को फोन किया दोनों बैंक मैनेजर थे तो उनको स्थिति बताई वो तुरंत वापस आये और सबसे पहले फोन करके  कार्ड ब्लॉक किये...और हम सब वैष्णोदेवी न जाकर उनके घर दिल्ली ही उतर गए।

वो 8 दिन हमने दिल्ली घूमकर ही निकाले ओर अपने रिटर्न टिकिट पर वापस दिल्ली से बॉम्बे आ गए ।

हमने सोचा कि चलो माताजी ने हम सबको बचा लिया हैं,हो सकता की अगर उस समय हम जाते तो कोई अनहोनी होती।

ख़ेर, बात यहाँ खत्म नही हुई।

हुआ यूं कि 1 महीने बाद हमको एक रजिस्ट्री मिली...जब लिफाफा खोला तो हम हैरान रह गए क्योंकि उसमें मिस्टर का सारा सामान जैसे का तैसा रखा हुआ था।

एक लेटर भी था जो किसी कर्नल का था नाम भूल गई हूं उसने लिखा था कि-- "डियर सर,

आपका ये पर्स मुझे ट्रेन के टॉयलेट के बाहर पड़ा मिला था , मैंने पूरी गाड़ी में चेक करवाया लेकिन आप नही दिखाई दिए ट्रेन के TT से भी बात की लेकिन उसने भी बताया कि आपने यात्रा की ही नही।अब आपने यात्रा क्यों नही की? ओर यदि यात्रा नही की तो आपका ये पर्स यहाँ कैसे आया मुझे कुछ समझ नही आया।

आपके आइडेंटी कार्ड के द्वारा आपका एड्रेस मिला है ,तो मैं आपका समान पोस्ट कर रहा हूँ।"

उसने अपना नाम और अपनी पोस्टिंग जम्मू लिखी थी ।

बाद में मिस्टर ने एक थेँकू लेटर उनको पोस्ट किया था लेकिन उनका कोई जवाब नही आया।

फिर अक्टूम्बर में जब हम दोबारा माताजी के दरबार में गए तो उनको वहां काफी खोजा लेकिन वो हमको नही मिले।

उस अनजान शख्स ने जो हमारी मदद की उसके लिए मेरे पास कोई शब्द नही हैं।

जय माता की👏


मेरी पहली माँ वैष्णोदेवी की यात्रा


मेरी पहली वैष्णोदेवी यात्रा
1992 मई
 मैंने पहली बार वैष्णोदेवी माता की यात्रा 1992 में की थी..
 मेरे साथ मेरे ससुराल-पक्ष के सभी मेम्बर थे देवर ओर ननदो के बच्चों सहित हमारी बड़ी टोली बन गई थी।
रात को कटरा पहुँचकर हमने आराम किया और सुबह सवेरे सब पैदल ही माताजी के जयकारे लगाते हुए पहाड़ पर चढ़ रहे थे...
शाम तक हम बड़े थककर चूर हो चुके थे परन्तु बच्चों में पता नही कहां से इतना जोश भरा था कि सब मगन हो बड़े जा रहे थे... 
1पिट्ठु हमारा सामान लिए हुए था और दूसरे पर बच्चे,जो छोटा बच्चा थक जाता था उसको पिट्ठू अपनी पीठ पर बैठा लेता था।
हम सब रुकते रुकाते करीब 8 बजे रात को अर्धकुंवारी पहुंचे और आज का डेरा हमने वही खुले मैदान में लगा लिया।
कम्बल ट्रस्ट से मिल गए और सभी खाना खा बेसुद लमलेट हो गए...
 सुबह जल्दी उठकर फ्रेश हो सबसे पहले अर्धकुंवारी माता के दर्शन किये जैसे ही गुफा से निकले तो मेरी दोनों बेटियों को वहां के पुजारी ले गए और माता की तरह चौकी पर बैठाकर दोंनो की पूजा की, चुंदरी ओर चूड़ी भेंट की ओर प्रसाद देकर उनको बिदा किया ,ये सब देखकर मेरी आँखों से आंसू बरसने लगे,क्योंकि ये सब मेरी कल्पना से परे था। मेरी बच्चियों को माता का आशीर्वाद मिल गया था।
 अब सब फिर से दुने उत्साह से माताजी का जयकारा करते हुये ऊपर की ओर बढ़ने लगे।
 दोपहर में हम भवन तक पहुंच गये थे वहां पहुँचकर पहले बाणगंगा नदी के ठंडे जल से सबने स्नान किया फिर तरोताजा हो मातारानी के दर्शन को चल दिये।
तब माताजी के पिंडी दर्शन को गुफा के अंदर से ही जाना पड़ता था, मैंने जैसे ही गुफा में पैर डाला जोरदार करंट लगा और मैं जोर से चिल्लाई😂😂😂 लेकिन वो बिजली का करंट नही था बल्कि बर्फ से भी ठंडे पानी का करंट था जो गुफा के अंदर बह रहा था ।😜
हम सब एक एक कर के उस ठंडे जल को पार कर के गुफा के उस तरफ गये जिधर मातारानी के पिंडी सरूप के दर्शन होते है ...वो एक आलोकिक अनुभव था एकदम हैरत अंगेज, जिसे बयान नही किया जा सकता।
ये मेरी पहली माता वैष्णोदेवी की यात्रा थी , बाद में मैंने 3 बार ओर वैष्णवदेवी माताजी की यात्रा की ओर हर बार मेरे साथ अलग ही अनुभव हुए ...
 जय माता की👏


मुरुदेश्वर यात्रा भाग 10

             मेरी मुरुदेश्वर यात्रा
(उडुपी-यात्रा=3)
#भोले_बाबा_के_संग
#मेरा_ड्रीम_डेस्टिनेशन।
#श्री_मेरूदेश्वर_कर्नाटक)
#भाग =10
(अंतिम क़िस्त)
2 /11/19


28  अक्टूम्बर को पनवेल(बॉम्बे) से 12:50 को नेत्रावती एक्सप्रेस पकड़कर हम कोंकण रेल्वे की सुंदरता निहारते हुए,रात 3 बजे कर्नाटक के तीर्थस्थल मेरूदेश्वर के छोटे से स्टेशन पर उतरे...

मेरूदेश्वर, गोकर्ण, जोग फॉल घूमते हुए हम कल रेस्टोरेंट्स का महाराजा #उडुपि (कर्नाटक) पहुँचे...

अब आगे---
कल पूरा दिन हमने कृष्णमठ ओर मालपा बीच में गुजारा।

आज कुछ मंदिरों के दर्शन करेंगे ,क्योकि आज मैंने नेट को खंगाला तो मुझे एक मन्दिर मन भावन लगा जिसे देखने का मन बना लिया ये माता दुर्गा का मन्दिर था जो सुंदर दिख रहा था।

तो सुबह आराम से उठे क्योकि आज देखने के लिए कुछ खास नही था। और आज रात को ही हमारी वापसी भी थी लेकिन अभी पूरा दिन पड़ा था जिसे गुजारना था....इसलिए उठकर तैयार हो नीचे रेस्त्रां में नाश्ता करने आ गए ...हमेशा की तरह मेरा फ़ेवरेट इडली-साम्भर मैंने जी भरकर खाया।

मिस्टर ने आज डोसा मंगवाया वो भी टेस्टी था और हमारा टेस्टी नाश्ते का बिल आया ओनली 80 रु.

कुछ भी हो लेकिन इस सफर में मुझे ईडली -सांभर मेरी पसन्द का मिला।

नाश्ता कर हम मन्दिर के नुक्कड़ पर पहुंचकर ऑटो वाले से माँ दुर्गा के टेंपल चलने को बोलने लगे वो हमको जहां लेजाना चाह रहा है हमको कुछ समझ नही आ रहा है। ये कर्नाटक में भाषा की बहुत समस्या है हिंदी बोलना तो जैसे ये अपना अपमान समझते हैं।

खेर, एक ऑटो वाला हमको मिला जो थोड़ी बहुत हिंदी समझ और बोल सकता था हम उसके साथ माता दुर्गा के मन्दिर को चले किराया फिक्स किया 150 आने जाने का।

मन्दिर पहुंचकर मुझे ये वो वाला मन्दिर नही लगा जो मुझे इंटरनेट पर दिखा था...खेर,ये मन्दिर भी काफी पुराना, अच्छा और प्रसिध्द था..यहां दरवाजे चांदी के बने थे ओर माता की मूर्ति छोटी सी ओर शुध्द सोने की बनी हुई थी।

दर्शन कर हम वापस ऑटो में बैठकर पहाड़ी पर बसे एक ओर माता दुर्गा के मन्दिर की ओर चल पड़े।

पहाड़ी पर #कुंजारुगिरी दुर्गा टेंपल  का विशाल मंदिर था यहां के मन्दिर में खूबसूरत लकड़ी का काम किया हुआ था। चारो ओर खूबसूरती फैली हुई थी, दूर तक हरीभरी घाटी दिखाई दे रही थी।
लेकिन ये भी मेरा वो मन्दिर नही था जिसको देखने को मन ललचा रहा था।

अब मैंने आगे बढ़कर मोबाइल पर ऑटो वाले को वही मन्दिर दिखाया जो मैं देखना चाहती थी ...उस मन्दिर को देखकर उसने उसे #इंद्राणी टेम्पल बोला ओर अब हम उस मन्दिर को देखने चल दिए जिसे मां #इन्द्रियाणि के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई थी।

दोपहर हो चली थी और सूरज भरपूर चमक रहा था हमारा ऑटो शॉर्टकट से इन्द्रियाणि मन्दिर को दौड़ रहा था ये मन्दिर उडुपि के नए शहर #मणिपाल में स्थित था ये वही मणिपाल हैं जिनकी यूनिवर्सिटी काफी फ़ेमस हैं।

अब हम उसी मन्दिर के सामने खड़े थे जिसके मुख्य द्वार तक जाने के लिए कई सीढ़िया बनी हुई थी ओर माता दुर्गा की बड़ी सी प्रतिमा दरवाजे पर लगी हुई थी।

लेकिन हमको ऑटो वाला पीछे से घुमाकर मन्दिर में ले गया और बोला कि अब आप दर्शन कर के मुख्य दरवाजे से नीचे आना मैं नीचे ही खड़ा हूँ।

यहां भी मां दुर्गा की छोटी सी खूबसूरत सोने ओर हीरों से बनी हुई मूर्ति प्रतिष्ठित थी।

मन्दिर एकदम सुनसान ओर खाली था कोई भी नही था सिर्फ पुजारी कुछ काम में लगा हुआ था,शायद शाम के वक्त लोग आते हो...खेर,

हम भी दर्शन कर मन्दिर को देखते हुए अगले हिस्से में सीढ़ियों से नीचे आ गए जहां हमारा ऑटो खड़ा था।

अब हम मनिपाल यूनिवर्सिटी ओर ऐंड गार्डन देखने मनिपाल की ओर चल पड़े।

मनिपाल यूनिवर्सिटी एकदम साफ सुधरी ओर काफी बडी थी हम उसके सामने खड़े थे लेकिन हम अंदर नही जा सकते थे क्योकि हमारे पास अनुमति पत्र नही था तो हम अपने हाथ मलते हुए आगे खिसक आये यानी की कुछ फोटू खींचकर वापस लौट आये।

यही इंटरनेट से मुझे कॉइन - म्यूज़ियम के बारे में भी पता चला था जो  मनिपाल में ही था तो मैंने सोचा कि चलो "भागते भूत की लँगोटी ही सही" यानी कि यही म्यूज़ियम देख लेते हैं। अब हम उसे ढूंढने लगे... हमारा ऑटो वाला अपनी भाषा में दूसरों से कॉइन म्यूज़ियम के बारे में पूछता फिर हमको वही ले जाता लेकिन वहां हमको काफी घूमने के बाद भी कॉइन म्यूज़ियम नही मिला; मिला तो सिर्फ एक चौराहा जहां पर कॉइन का स्टेच्यू बना हुआ था, फोटू खींचने लगी तो हमारा ऑटो जल्दी से आगे बढ़ गया सिर्फ देख ही सकी खेर, हमने उसका पीछा छोड़कर एंड गार्डन की तरफ अपना ऑटो घुमा लिया लेकिन बदकिस्मत से वो भी बन्द मिला, पूछने पर पता चला कि वो गार्डन सुबह 7 से 9 तक ही खुला रहता है ।लो कर लो बात, सुबह  सुबह क्या स्थानीय लोगोो के लिये ही हैं ये गार्डन😡
अब मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने फ़ौरन ऑटो वाले को कृष्णमठ चलने को बोल दिया ।बेचारा ऑटो वाला बोलता ही रह गया कि-- "मैडम वेणुगोपाल मन्दिर नजदीक ही हैं उसको देखकर चलेंगे।" लेकिन मैंने एक नही सुनी, मैंने चिल्लाकर उसको बोला--"अब कोई मन्दिर वन्दिर नहीं! सीधा होटल चलो" और हम वापस कृष्णमठ के अपने में होटल लौट आये ।

3 बज गए थे और बहुत थकान हो गई थी ऊपर से भूख भी लगने लगी थी तो हम एक रेस्तरां में नानवेज खाना खाने गए क्योंकि कई लोगों से सुना था कि उडुपि की फिशफ्राय बहुत टेस्टी होती हैं।

लेकिन फिश खाकर कोई खास मजा नही आया।खाना खाकर हम वापस कमरे में  आ गए सोचा कि शाम को काप्पू-बीच चलेंगे थोड़ा आराम करते हैं, लेकिन फिर शाम को विचार त्याग दिया क्योकि 150 km जाना और आना सिर्फ बीच देखने के लिए मुझे ठीक नही लगा इसलिए हम शाम को वापस कृष्णमठ का चक्कर लगाने मन्दिर की तरफ चल दिये।

मन्दिर के प्रांगण में काफी भीड़ थी हम भी एक बेंच पर बैठकर टाइम पास करते रहे। मन्दिर में बाहर की तरफ काफी लाईटिंग हो रही थी...लोग अभी भी मन्दिर में आ रहे थे... हवा में थोड़ी ठंडक भी लग रही थी हम वही बैठकर इस शमा का आनंद लेने लगे, ठीक 8 बजे हम रूम पर आए फिर समान पैक किया और बाहर निकल गए।।

रात 9 बजे हम उडुपि को टाटा कर ऑटो से स्टेशन की तरफ चल दिये.

समाप्त👏











 

 




              मनीपाल यूनिवर्सिटी