मेरी
मुरुदेश्वर यात्रा(उडुपी-यात्रा=3)
#भोले_बाबा_के_संग
#मेरा_ड्रीम_डेस्टिनेशन।
#श्री_मेरूदेश्वर_कर्नाटक)
#भाग =10
(अंतिम क़िस्त)
2 /11/19
28 अक्टूम्बर को पनवेल(बॉम्बे) से 12:50 को नेत्रावती एक्सप्रेस पकड़कर हम कोंकण रेल्वे की सुंदरता निहारते हुए,रात 3 बजे कर्नाटक के तीर्थस्थल मेरूदेश्वर के छोटे से स्टेशन पर उतरे...
मेरूदेश्वर, गोकर्ण, जोग फॉल घूमते हुए हम कल रेस्टोरेंट्स का महाराजा #
उडुपि (कर्नाटक) पहुँचे...
अब आगे---
कल पूरा दिन हमने कृष्णमठ ओर मालपा बीच में गुजारा।
आज कुछ मंदिरों के दर्शन करेंगे ,क्योकि आज मैंने नेट को खंगाला तो मुझे एक मन्दिर मन भावन लगा जिसे देखने का मन बना लिया ये माता दुर्गा का मन्दिर था जो सुंदर दिख रहा था।
तो सुबह आराम से उठे क्योकि आज देखने के लिए कुछ खास नही था। और आज रात को ही हमारी वापसी भी थी लेकिन अभी पूरा दिन पड़ा था जिसे गुजारना था....इसलिए उठकर तैयार हो नीचे रेस्त्रां में नाश्ता करने आ गए ...हमेशा की तरह मेरा फ़ेवरेट इडली-साम्भर मैंने जी भरकर खाया।
मिस्टर ने आज डोसा मंगवाया वो भी टेस्टी था और हमारा टेस्टी नाश्ते का बिल आया ओनली 80 रु.
कुछ भी हो लेकिन इस सफर में मुझे ईडली -सांभर मेरी पसन्द का मिला।
नाश्ता कर हम मन्दिर के नुक्कड़ पर पहुंचकर ऑटो वाले से माँ दुर्गा के टेंपल चलने को बोलने लगे वो हमको जहां लेजाना चाह रहा है हमको कुछ समझ नही आ रहा है। ये कर्नाटक में भाषा की बहुत समस्या है हिंदी बोलना तो जैसे ये अपना अपमान समझते हैं।
खेर, एक ऑटो वाला हमको मिला जो थोड़ी बहुत हिंदी समझ और बोल सकता था हम उसके साथ माता दुर्गा के मन्दिर को चले किराया फिक्स किया 150 आने जाने का।
मन्दिर पहुंचकर मुझे ये वो वाला मन्दिर नही लगा जो मुझे इंटरनेट पर दिखा था...खेर,ये मन्दिर भी काफी पुराना, अच्छा और प्रसिध्द था..यहां दरवाजे चांदी के बने थे ओर माता की मूर्ति छोटी सी ओर शुध्द सोने की बनी हुई थी।
दर्शन कर हम वापस ऑटो में बैठकर पहाड़ी पर बसे एक ओर माता दुर्गा के मन्दिर की ओर चल पड़े।
पहाड़ी पर
#कुंजारुगिरी दुर्गा टेंपल का विशाल मंदिर था यहां के मन्दिर में खूबसूरत लकड़ी का काम किया हुआ था। चारो ओर खूबसूरती फैली हुई थी, दूर तक हरीभरी घाटी दिखाई दे रही थी।
लेकिन ये भी मेरा वो मन्दिर नही था जिसको देखने को मन ललचा रहा था।
अब मैंने आगे बढ़कर मोबाइल पर ऑटो वाले को वही मन्दिर दिखाया जो मैं देखना चाहती थी ...उस मन्दिर को देखकर उसने उसे #
इंद्राणी टेम्पल बोला ओर अब हम उस मन्दिर को देखने चल दिए जिसे मां #इन्द्रियाणि के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई थी।
दोपहर हो चली थी और सूरज भरपूर चमक रहा था हमारा ऑटो शॉर्टकट से इन्द्रियाणि मन्दिर को दौड़ रहा था ये मन्दिर उडुपि के नए शहर #मणिपाल में स्थित था ये वही मणिपाल हैं जिनकी यूनिवर्सिटी काफी फ़ेमस हैं।
अब हम उसी मन्दिर के सामने खड़े थे जिसके मुख्य द्वार तक जाने के लिए कई सीढ़िया बनी हुई थी ओर माता दुर्गा की बड़ी सी प्रतिमा दरवाजे पर लगी हुई थी।
लेकिन हमको ऑटो वाला पीछे से घुमाकर मन्दिर में ले गया और बोला कि अब आप दर्शन कर के मुख्य दरवाजे से नीचे आना मैं नीचे ही खड़ा हूँ।
यहां भी मां दुर्गा की छोटी सी खूबसूरत सोने ओर हीरों से बनी हुई मूर्ति प्रतिष्ठित थी।
मन्दिर एकदम सुनसान ओर खाली था कोई भी नही था सिर्फ पुजारी कुछ काम में लगा हुआ था,शायद शाम के वक्त लोग आते हो...खेर,
हम भी दर्शन कर मन्दिर को देखते हुए अगले हिस्से में सीढ़ियों से नीचे आ गए जहां हमारा ऑटो खड़ा था।
अब हम
मनिपाल यूनिवर्सिटी ओर ऐंड गार्डन देखने मनिपाल की ओर चल पड़े।
मनिपाल यूनिवर्सिटी एकदम साफ सुधरी ओर काफी बडी थी हम उसके सामने खड़े थे लेकिन हम अंदर नही जा सकते थे क्योकि हमारे पास अनुमति पत्र नही था तो हम अपने हाथ मलते हुए आगे खिसक आये यानी की कुछ फोटू खींचकर वापस लौट आये।
यही इंटरनेट से मुझे कॉइन - म्यूज़ियम के बारे में भी पता चला था जो मनिपाल में ही था तो मैंने सोचा कि चलो "
भागते भूत की लँगोटी ही सही" यानी कि यही म्यूज़ियम देख लेते हैं। अब हम उसे ढूंढने लगे... हमारा ऑटो वाला अपनी भाषा में दूसरों से कॉइन म्यूज़ियम के बारे में पूछता फिर हमको वही ले जाता लेकिन वहां हमको काफी घूमने के बाद भी
कॉइन म्यूज़ियम नही मिला; मिला तो सिर्फ एक चौराहा जहां पर कॉइन का स्टेच्यू बना हुआ था, फोटू खींचने लगी तो हमारा ऑटो जल्दी से आगे बढ़ गया सिर्फ देख ही सकी खेर, हमने उसका पीछा छोड़कर एंड गार्डन की तरफ अपना ऑटो घुमा लिया लेकिन बदकिस्मत से वो भी बन्द मिला, पूछने पर पता चला कि वो गार्डन सुबह 7 से 9 तक ही खुला रहता है ।लो कर लो बात, सुबह सुबह क्या स्थानीय लोगोो के लिये ही हैं ये गार्डन😡
अब मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने फ़ौरन ऑटो वाले को कृष्णमठ चलने को बोल दिया ।बेचारा ऑटो वाला बोलता ही रह गया कि-- "
मैडम वेणुगोपाल मन्दिर नजदीक ही हैं उसको देखकर चलेंगे।" लेकिन मैंने एक नही सुनी, मैंने चिल्लाकर उसको बोला--"
अब कोई मन्दिर वन्दिर नहीं! सीधा होटल चलो" और हम वापस कृष्णमठ के अपने में होटल लौट आये ।
3 बज गए थे और बहुत थकान हो गई थी ऊपर से भूख भी लगने लगी थी तो हम एक रेस्तरां में नानवेज खाना खाने गए क्योंकि कई लोगों से सुना था कि उडुपि की फिशफ्राय बहुत टेस्टी होती हैं।
लेकिन फिश खाकर कोई खास मजा नही आया।खाना खाकर हम वापस कमरे में आ गए सोचा कि शाम को
काप्पू-बीच चलेंगे थोड़ा आराम करते हैं, लेकिन फिर शाम को विचार त्याग दिया क्योकि 150 km जाना और आना सिर्फ बीच देखने के लिए मुझे ठीक नही लगा इसलिए हम शाम को वापस कृष्णमठ का चक्कर लगाने मन्दिर की तरफ चल दिये।
मन्दिर के प्रांगण में काफी भीड़ थी हम भी एक बेंच पर बैठकर टाइम पास करते रहे। मन्दिर में बाहर की तरफ काफी लाईटिंग हो रही थी...लोग अभी भी मन्दिर में आ रहे थे... हवा में थोड़ी ठंडक भी लग रही थी हम वही बैठकर इस शमा का आनंद लेने लगे, ठीक 8 बजे हम रूम पर आए फिर समान पैक किया और बाहर निकल गए।।
रात 9 बजे हम उडुपि को टाटा कर ऑटो से स्टेशन की तरफ चल दिये.
समाप्त👏