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गुरुवार, 18 जून 2020

मुरुदेश्वर यात्रा भाग 6


  
मेरी मुरुदेश्वर यात्रा


#भोले_बाबा_के_संग
#मेरा_ड्रीम_डेस्टिनेशन।
#श्री_मेरूदेश्वर_कर्नाटक)
#भाग = 6
31/10/19


परसों पनवेल से 12:50 को नेत्रावती एक्सप्रेस पकड़कर हम कोंकण रेल्वे की सुंदरता निहारते हुए,रात 3 बजे कर्नाटक के तीर्थस्थल मेरूदेश्वर के छोटे से स्टेशन पर उतरे...रात को आराम से होटल में बीती ओर सुबह हमने पूरा दिन मेरूदेश्वर मन्दिर में गुजारा।

आज सुबह हम मेरूदेश्वर के स्थानीय मन्दिर देखने निकले...अब गोकर्ण की ओर----

हम आखरी मन्दिर धारेश्वर शिव मंदिर के दर्शन करने के बाद जब हम गोकर्ण को जा रहे थे तो रास्ते में  होटल पांडुरंग इंटरनेशनल रेस्टोरेंट देखकर चाय पीने की इच्छा हो गई... तुरन्त हम होटल के सामने रुक गए फ्रेश होकर हम जब टेबल पर बैठकर चाय का इंतजार कर रहे थे तो मेरी निगाह सामने वाले कि प्लेट पर गई ( न न अब ये मत समझना कि पराई थाली ज्यादा टेस्टी लगती हैं 😜) जिसे अभी अभी वेटर ने रखी थी उसमें कुछ पत्ते वाली चीज देखकर मैंने वेटर से पूछा कि ये क्या है? वेटर बोला--"पत्ता इडली"!

मुझे इडली वैसे भी पसन्द है और  सुबह भी इडली ही खाई थी, भूख बिल्कुल नही थी.. क्योकि अभी सिर्फ 10 ही बजे थे फिर भी एक नई इडली को चखने के लिए या यू कहो चाटने के लिए मैंने एक प्लेट इडली का आर्डर दे ही दिया 😃..

इनके पास वैसे भी माल तैयार ही रहता है कुछ समय बाद पत्ता इडली हम खा रहे थे, बहुत ही टेस्टी इडली थी ओर सांभर का तो कोई जवाब ही नही 👌to much. 

थोड़ी देर बाद हम होटल से निकलकर गोकर्ण को चल दिये...

करीब एक घण्टे के लगातार सफर के बाद हम 11 बजे गोकर्ण मन्दिर जिसे महाबलेश्वर मन्दिर भी कहते है पहुँच गए...

इस मंदिर का नाम मैंने " कपड़े उतारू मन्दिर " रखा है क्योंकि यहां दर्शन करने जाने वाले पुरुष को अपनी टीशर्ट या शर्ट उतारकर ही दर्शन करने पड़ते है, शुक्र हैं लुंगी पहनना अनिवार्य नही था😃

मन्दिर काफी विशाल था और अंदर चांदी के बड़े बड़े दरवाजे लगे थे, दरवाजे के पास ही गणपति की बड़ी काले पत्थर की बनी मूर्ति रखी थी फिर अंदर शिवलिंग था लेकिन कही दिखाई नही दिया उसके स्थान पर एक छोटा सा गड्ढा दिखा जिसके अंदर हाथ डालने के लिए पुजारी ने इशारा किया तो मैंने अपना सीधा हाथ अंदर डाल दिया तब मुझे शिवलिंग जैसा आभास हुआ।

इतिहास:--

महाबलेश्वर गोकर्ण का सबसे पुराना मंदिर है... पश्चिमी घाट पर बसा यह शिव मंदिर लगभग 1500 साल पुराना है और इसे कर्नाटक के सात तीर्थस्थलों में से एक तीर्थस्थल माना जाता है ...गोकर्ण में भगवान शंकर का #आत्मलिंग है। शास्त्रों में गोकर्ण तीर्थ की बड़ी महिमा बताई गई है। इस मंदिर को महाबलेश्वर महादेव भी कहते हैं। यह मंदिर बड़ा ही सुंदर है। मान्यताओं के मुताबिक, यहां स्थापित छह फीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन 40 साल में सिर्फ एक बार होते है। इस धार्मिक मान्यता के चलते इस स्थल को ‘दक्षिण का काशी‘ भी कहते है।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए शिवलिंग दिया था, लेकिन भगवान गणेश और वरुण देवता ने कुछ चालें चलकर शिवलिंग यहां स्थापित करवा दिया। तमाम कोशिशें करने के बावजूद रावण इसे निकाल नहीं पाया। तभी से यहां भगवान शिव का वास माना जाता है। यहां मंदिर के भीतर पीठ स्थान पर आत्मतत्व शिवलिंग के मस्तक का आगे का भाग हाथ से स्पर्श होता है और उसी की पूजा होती ।


दूसरी किवदंती हैं कि यहां गाय के कान से भगवान शिव का जन्म हुआ था इसलिए यह स्थान गोकर्ण नामसे भी फ़ेमस  हैं..

मन्दिर के दर्शन करने के उपरांत हम बाहर निकले और सागर तट पर आ गए ये सागर भी अनेक सागर की तरह ही था मुझे यहां कोई नई बात महसूस नही हुई तो व्यर्थ  घूमने से अच्छा अपनी शाही सवारी में रिटर्न होना! लेकिन लौटते वक्त एक दुकान पर कुछ चमकीले पत्थर जैसे रंगबिरंगे पत्थर देखे तो पहले तो लगा कि ये समुद्र के पत्थर होंगे लेकिन कुछ सोचकर मैंने दुकानवाली मौसी से पूछा तो पता चला कि वो #धूप हैं धूप यानी पूजा के टाइम जो कोयले पर डालते हैं जिससे धुंआ निकलता हैं ये वो धूप थी। मैंने 100₹ की पावभर धूप खरीदी ।

आगे बढ़े तो गरम मसलों की दुकानें सजी हुई दिखाई दी, यहां भी मैंने कुछ तरह के गरम मसाले खरीदे जो बॉम्बे से तो बहुत ही सस्ते थे...

अब हमारी कार हवा से बातें करती हुई #जोक_फॉल की तरफ जा रही थी कि मैंने कार की खामोशी तोड़ी ओर खाना खाने का ऐलान कर दिया...

अब हम आगे एक केरला होटल में खाना खाने चल दिये...
क्रमश---
                      पत्ता ईडली
               केरला होटल में खाना

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