मेरे अरमान.. मेरे सपने..


Click here for Myspace Layouts

गुरुवार, 18 जून 2020

मुरुदेश्वर यात्रा भाग 8

      मुरुदेश्वर यात्रा

(उडुपी- यात्रा=1)
#भोले_बाबा_के_संग
#मेरा_ड्रीम_डेस्टिनेशन।
#श्री_मेरूदेश्वर_कर्नाटक)
#भाग =8
1 /11/19


29 अक्टूम्बर को हम पनवेल से 12:50 को नेत्रावती एक्सप्रेस पकड़कर कोंकण रेल्वे की सुंदरता निहारते हुए,रात 3 बजे कर्नाटक के तीर्थस्थल मेरूदेश्वर के छोटे से स्टेशन पर उतरे...रात आराम से होटल में बीती ओर सुबह हमने पूरा दिन मेरूदेश्वर मन्दिर में गुजारा।

दूसरे दिन हम मेरूदेश्वर के स्थानीय मन्दिर देखने निकले... गोकर्ण देखते हुए  फ़ेमस जलप्रपात जोगफाल्स की सैर की अब आगे ---
आज #उडुपी प्रस्तान करना है...

सुबह जल्दी उठकर फ्रेश हो हम सामने वाले रेस्त्रां में गए और कल की तरह ही आज भी इडली-सांभर का आनन्द लिया।

वापस रूम में आकर सारा सामान पैक किया और रूम को अलविदा बोलकर हम रिसेप्शन पर आ गए।होटल का किराया मात्रा 999 रु नान एसी था...रात 3 बजे का एस्ट्रा 500 रु देकर उसने कन्सेशन पर अपनी मोहर लगा दी, मानो उपकार कर रहा हो ,हमने भी उसके उपकार को अपना परोपकार समझ एक ऑटो मंगवाने की पेशकश की ओर हाय- वे की तरफ रुखसत किया।

होटल से 10 मिनट के फ़ासले पर हाय- वे पर पहुंच हम बस का इंतज़ार कर रहे थे 5 मिनिट में ही उडुपी की बस में सवार हम उडुपि उड़े जा रहे थे मात्रा 200 ₹ के खर्च पर हम उडुपि पहुंच गए।

बीच रास्ते पर जहां शेरावती नदी और समुन्द्र का शानदार दृश्य दिखता हैं, वहां पहले हम उतरने वाले थे लेकिन मौसम विभाग की चेतावनी के कारण उस बीच पर किसी भी टूरिस्ट को उतरने नही दे रहे थे इसकारण हम भी सीधे उडुपी के बस स्टॉप पर उतरे..ओर ऑटो कर सीधे #कृष्ण-मठ को चल दिये ...

कृष्णमठ :--
उडुपी का श्रीकृष्ण मठ दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित हैं यह उडुपी का प्रसिद्ध श्रीकृष्ण मंदिर है।
कृष्णमठ का क्षेत्र रहने के लिए   आश्रम जैसा है, यहां रहने की ओर भक्ति करने की दोनों व्यवस्था है.. श्री कृष्ण मठ के आसपास कई मंदिर है, सबसे अधिक प्राचीन मंदिर 1500 साल पुराना हैं और ये लकड़ी ओर पत्थर से बना है।
मुख्य मंदिर में गरुड़ का मंदिर है और ठीक उसकी विपरीत दिशा में मुख्य प्राण का मंदिर है।
श्रीवादिराज स्वामी ये मूर्तियां अयोध्या  से ले आये थे।
मुख्य मंदिर में दाहिने हाथ में मथानी लिए श्रीकृष्ण की अत्यंत सुंदर मूर्ति है। बायें हाथ में मन्थन रज्जु है।
मंदिर के द्वार में प्रवेश करते ही मध्य सरोवर हैं। इसमें स्नान करके मंदिर में प्रवेश करने पर पहले मध्वाचार्य की मूर्ति है।
मंदिर में श्रीमध्वाचार्य के द्वारा जलाया प्रदीप अखंड जल रहा है।
मध्व सरोवर के बीच के मंडप में गंगामूर्ति है। वहाँ तक पहुचने के लिए पुल बना हुआ है।

इतिहास :--
महाभारत के युद्ध में उडुपी के राजा ने निरपेक्ष रहने का फैसला किया था। उडुपी का राजा ना तो पांडव की तरफ से था और ना ही कौरवों की तरफ से। उडुपी के राजा ने कृष्ण से कहा था कि कौरवों और पांडवों की इतनी बड़ी सेना को भोजन की जरूरत होगी और हम दोनों तरफ की सेनाओं को भोजन बनाकर खिलाएंगें। 18 दिन तक चलने वाले इस युद्ध में कभी भी खाना कम नहीं पड़ा। सेना ने जब राजा से इस बारे में पूछा तो उन्होंने इसका श्रेय कृष्ण को दिया। राजा ने कहा  कि जब कृष्ण भोजन करते हैं तो उनके आहार से उन्हें पता चल जाता है कि कल कितने लोग मरने वाले हैं और खाना इसी हिसाब से बनाया जाता है।

कृष्ण-मठ उडुपि में बहुत फ़ेमस हैं वही मन्दिर में हमने 450 रु का एक रूम लिया और अंदर दर्शन को चल दिये...12 बजने वाले थे दर्शन कर हम प्रशाद ग्रहण करने मठ के अंदर की ओर बनी रसोई में गए जहां काफी लोग  कतार में खड़े थे हम भी वही खड़े प्रसादम -कक्ष  का द्वार खुलने का इंतजार करने लगे।

प्रसाद कक्ष में सभी के लिए नीचे बैठने की पट्टियां लगी हुई थी और  नजदीक ही कुछ कुर्सियां भी लगी हुई  थी...उन्हीं खाली कुर्सियों पर हम दोनों बैठ गए और खाने का इंतजार करने लगे ... काफी लोग आआकर बैठ रहे थे करीब 200 लोग जब तक बैठ गए तब उन्होंने प्लेटें देना शुरू किया। उनका खाना सर्व करने का ढंग मुझे बहुत पसंद आया ...हमारे गुरद्वारों के अलावा मंदिरों में भी फ्री का लँगर होता हैं ये देखकर अच्छा लगा।

खाना काफी टेस्टी था ,भगवान का प्रसाद था तो टेस्टी तो होना ही था।

मन्दिर से निकलकर हम आराम करने अपने रूम में चले गए...अब शाम को मालपा बीच घूमने जायेगे...
शेष अगली क़िस्त...


             विनायक होटल
                 
                रास्त्ते् के दृश्य

                            रथ





 
               मन्दिर का प्रवेश द्वार

कोई टिप्पणी नहीं: