★मेरी अद्भुत वैष्णोदेवी की यात्रा★
ये मेरी माता वैष्णवदेवी की चौथी ओर आखरी यात्रा थी।
बात 2002-2003 की है जब कारगिल युद्ध शुरू भी नही हुआ था, पर वॉर्डर पर सरगर्मियां तेज थी हमारी फौजें कारगिल में जमा हो रही थी ये मई की बात थी और हमने 2 महीने पहले से ही माता वैष्णोदेवी के लिए रिजर्वेशन करवा लिया था।
अब जिसको भी बोलते की हम माताजी के दर्शन को फलाना फलाना तारीख़ को जा रहे हैं तो हर तरफ से यही जवाब मिलता की__ "खुदकुशी क्यों करना चाहते हो...जम्मू तो मिलिट्री जा रही हैं और साधारण लोग उधर से इधर आ रहे है ओर तुम लोग जम्मू जा रहे हो।"😊
लेकिन मिस्टर वैष्णोमाता के बड़े भक्त है तो उनके कानों पर ज़ू तक नही रेंगी.. उन्होंने अपना प्रोग्राम रद्द नही किया..
ओर मुझ घुमक्कड़ को तो वैसे भी घूमने का बहाना मिला था भला मैं कैसे इनकार कर सकती थी...तो माता की मर्जी बोल सभी ने बात आई गई करदी।
ख़ेर, नियत टाइम हम खाना वगैरा बना ट्रेन पकड़ने बोम्बे सेंट्रल चल दिये ...कोई डर जैसी बात नही थी...गाड़ी काफी खाली थी...हम सब सेकंड Ac में पहुँचकर मजे से खाना खाने में व्यस्त हो गये..
यहां मिस्टर ने बताया कि हमारी रिजर्वेशन सिर्फ दिल्ली तक हैं वहां से आगे की यात्रा हमको दूसरी ट्रेन में करनी पड़ेगी।
हम आराम से दिल्ली तक पहुंच गए वहां हमसे मिलने इनकी बड़ी बहन की लड़की ओर उसके मिस्टर आ गए वो अपने साथ खाना भी ले आये थे कुछ समय उनके साथ गप्पे मारी फिर जैसे ही प्लेटफार्म पर गाडी लगी वो हमको बैठाकर चले गए।
गाड़ी खड़ी थी उसको निकलने में 1 घण्टा बाकी था तो हमने सोचा कि क्यों न खाना खा लिया जाय.. मिस्टर हाथ धोने वॉशरूम गए ओर
मैं खाना निकाल ही रही थी कि अचानक मिस्टर धबराये हुए आये और बोले कि किसी ने मेरी जेब से पर्स निकाल लिया है मैं भी धबरा गई क्योंकि उसी में हमारा टिकिट था,रेल्वे का पास था, इनका आइडेंटिकार्ड था पैसे तो ज्यादा नही थे लेकिन 2 -2 क्रेडिट कार्ड थे ओर तो ओर उन कार्ड के पासवर्ड भी लिखे थे क्योंकि हमने नए कार्ड अभी लिए थे तो उनके पासवर्ड याद नही थे इसलिए उनको एक कागज़ में लिख लिए थे।
उस समय डेबिट कार्ड में ज्यादा तो नही पर 30-40 हजार रुपिया जमा था और क्रेडिट कार्ड की भी 3 लाख की लिमिट थी।
मुझे तो चक्कर आ गए और मैं वही धम्म से सीट पर पसर गई मानो चोर ने तुरंत ही सारा पैसा निकाल लिया हो ,गाड़ी अभी भी खड़ी थी मिस्टर ने फटाफट हमको गाड़ी से उतारा ओर अपनी बहन की बेटी ओर दामाद को फोन किया दोनों बैंक मैनेजर थे तो उनको स्थिति बताई वो तुरंत वापस आये और सबसे पहले फोन करके कार्ड ब्लॉक किये...और हम सब वैष्णोदेवी न जाकर उनके घर दिल्ली ही उतर गए।
वो 8 दिन हमने दिल्ली घूमकर ही निकाले ओर अपने रिटर्न टिकिट पर वापस दिल्ली से बॉम्बे आ गए ।
हमने सोचा कि चलो माताजी ने हम सबको बचा लिया हैं,हो सकता की अगर उस समय हम जाते तो कोई अनहोनी होती।
ख़ेर, बात यहाँ खत्म नही हुई।
हुआ यूं कि 1 महीने बाद हमको एक रजिस्ट्री मिली...जब लिफाफा खोला तो हम हैरान रह गए क्योंकि उसमें मिस्टर का सारा सामान जैसे का तैसा रखा हुआ था।
एक लेटर भी था जो किसी कर्नल का था नाम भूल गई हूं उसने लिखा था कि-- "डियर सर,
आपका ये पर्स मुझे ट्रेन के टॉयलेट के बाहर पड़ा मिला था , मैंने पूरी गाड़ी में चेक करवाया लेकिन आप नही दिखाई दिए ट्रेन के TT से भी बात की लेकिन उसने भी बताया कि आपने यात्रा की ही नही।अब आपने यात्रा क्यों नही की? ओर यदि यात्रा नही की तो आपका ये पर्स यहाँ कैसे आया मुझे कुछ समझ नही आया।
आपके आइडेंटी कार्ड के द्वारा आपका एड्रेस मिला है ,तो मैं आपका समान पोस्ट कर रहा हूँ।"
उसने अपना नाम और अपनी पोस्टिंग जम्मू लिखी थी ।
बाद में मिस्टर ने एक थेँकू लेटर उनको पोस्ट किया था लेकिन उनका कोई जवाब नही आया।
फिर अक्टूम्बर में जब हम दोबारा माताजी के दरबार में गए तो उनको वहां काफी खोजा लेकिन वो हमको नही मिले।
उस अनजान शख्स ने जो हमारी मदद की उसके लिए मेरे पास कोई शब्द नही हैं।
जय माता की👏
बात 2002-2003 की है जब कारगिल युद्ध शुरू भी नही हुआ था, पर वॉर्डर पर सरगर्मियां तेज थी हमारी फौजें कारगिल में जमा हो रही थी ये मई की बात थी और हमने 2 महीने पहले से ही माता वैष्णोदेवी के लिए रिजर्वेशन करवा लिया था।
अब जिसको भी बोलते की हम माताजी के दर्शन को फलाना फलाना तारीख़ को जा रहे हैं तो हर तरफ से यही जवाब मिलता की__ "खुदकुशी क्यों करना चाहते हो...जम्मू तो मिलिट्री जा रही हैं और साधारण लोग उधर से इधर आ रहे है ओर तुम लोग जम्मू जा रहे हो।"😊
लेकिन मिस्टर वैष्णोमाता के बड़े भक्त है तो उनके कानों पर ज़ू तक नही रेंगी.. उन्होंने अपना प्रोग्राम रद्द नही किया..
ओर मुझ घुमक्कड़ को तो वैसे भी घूमने का बहाना मिला था भला मैं कैसे इनकार कर सकती थी...तो माता की मर्जी बोल सभी ने बात आई गई करदी।
ख़ेर, नियत टाइम हम खाना वगैरा बना ट्रेन पकड़ने बोम्बे सेंट्रल चल दिये ...कोई डर जैसी बात नही थी...गाड़ी काफी खाली थी...हम सब सेकंड Ac में पहुँचकर मजे से खाना खाने में व्यस्त हो गये..
यहां मिस्टर ने बताया कि हमारी रिजर्वेशन सिर्फ दिल्ली तक हैं वहां से आगे की यात्रा हमको दूसरी ट्रेन में करनी पड़ेगी।
हम आराम से दिल्ली तक पहुंच गए वहां हमसे मिलने इनकी बड़ी बहन की लड़की ओर उसके मिस्टर आ गए वो अपने साथ खाना भी ले आये थे कुछ समय उनके साथ गप्पे मारी फिर जैसे ही प्लेटफार्म पर गाडी लगी वो हमको बैठाकर चले गए।
गाड़ी खड़ी थी उसको निकलने में 1 घण्टा बाकी था तो हमने सोचा कि क्यों न खाना खा लिया जाय.. मिस्टर हाथ धोने वॉशरूम गए ओर
मैं खाना निकाल ही रही थी कि अचानक मिस्टर धबराये हुए आये और बोले कि किसी ने मेरी जेब से पर्स निकाल लिया है मैं भी धबरा गई क्योंकि उसी में हमारा टिकिट था,रेल्वे का पास था, इनका आइडेंटिकार्ड था पैसे तो ज्यादा नही थे लेकिन 2 -2 क्रेडिट कार्ड थे ओर तो ओर उन कार्ड के पासवर्ड भी लिखे थे क्योंकि हमने नए कार्ड अभी लिए थे तो उनके पासवर्ड याद नही थे इसलिए उनको एक कागज़ में लिख लिए थे।
उस समय डेबिट कार्ड में ज्यादा तो नही पर 30-40 हजार रुपिया जमा था और क्रेडिट कार्ड की भी 3 लाख की लिमिट थी।
मुझे तो चक्कर आ गए और मैं वही धम्म से सीट पर पसर गई मानो चोर ने तुरंत ही सारा पैसा निकाल लिया हो ,गाड़ी अभी भी खड़ी थी मिस्टर ने फटाफट हमको गाड़ी से उतारा ओर अपनी बहन की बेटी ओर दामाद को फोन किया दोनों बैंक मैनेजर थे तो उनको स्थिति बताई वो तुरंत वापस आये और सबसे पहले फोन करके कार्ड ब्लॉक किये...और हम सब वैष्णोदेवी न जाकर उनके घर दिल्ली ही उतर गए।
वो 8 दिन हमने दिल्ली घूमकर ही निकाले ओर अपने रिटर्न टिकिट पर वापस दिल्ली से बॉम्बे आ गए ।
हमने सोचा कि चलो माताजी ने हम सबको बचा लिया हैं,हो सकता की अगर उस समय हम जाते तो कोई अनहोनी होती।
ख़ेर, बात यहाँ खत्म नही हुई।
हुआ यूं कि 1 महीने बाद हमको एक रजिस्ट्री मिली...जब लिफाफा खोला तो हम हैरान रह गए क्योंकि उसमें मिस्टर का सारा सामान जैसे का तैसा रखा हुआ था।
एक लेटर भी था जो किसी कर्नल का था नाम भूल गई हूं उसने लिखा था कि-- "डियर सर,
आपका ये पर्स मुझे ट्रेन के टॉयलेट के बाहर पड़ा मिला था , मैंने पूरी गाड़ी में चेक करवाया लेकिन आप नही दिखाई दिए ट्रेन के TT से भी बात की लेकिन उसने भी बताया कि आपने यात्रा की ही नही।अब आपने यात्रा क्यों नही की? ओर यदि यात्रा नही की तो आपका ये पर्स यहाँ कैसे आया मुझे कुछ समझ नही आया।
आपके आइडेंटी कार्ड के द्वारा आपका एड्रेस मिला है ,तो मैं आपका समान पोस्ट कर रहा हूँ।"
उसने अपना नाम और अपनी पोस्टिंग जम्मू लिखी थी ।
बाद में मिस्टर ने एक थेँकू लेटर उनको पोस्ट किया था लेकिन उनका कोई जवाब नही आया।
फिर अक्टूम्बर में जब हम दोबारा माताजी के दरबार में गए तो उनको वहां काफी खोजा लेकिन वो हमको नही मिले।
उस अनजान शख्स ने जो हमारी मदद की उसके लिए मेरे पास कोई शब्द नही हैं।
जय माता की👏
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