मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

"यह साल"


"यह साल"
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साल निकल रहा है....
...कुछ नया होता हैँ....
कुछ पुराना पीछे रह जाता है....

...कुछ ख्वाहिशें दिल में रह जाती है....
कुछ बिन मांगे मिल जाती है....
कुछ छोड़ कर चले गए....
...कुछ नए जुड़ेंगे इस सफ़र में...|

कुछ मुझसे ख़फा है?
...कुछ मुझसे बहुत खुश है...
कुछ मुझे भूल गए ?
..कुछ मुझे याद करते है ...
...कुछ शायद अनजान है?
कुछ बहुत परेशां है ......
कुछ को मेरा इंतजार है...
...वो मिलने को बेकरार है.....
कुछ का मुझे इन्तजार है...?
...पर वो मुझसे मिलने को तैयार नहीं |
कुछ सही है?
....कुछ गलत भी हैँ |
देखे नया साल क्या देता है...
..और क्या लेता है....

इस साल कुछ गलती हो गई तो माफ़ कीजियेगा....
...और कुछ अच्छा लगे तो याद कीजियेगा...


--- दर्शन कौर धनोए *$%&@#÷






शनिवार, 20 सितंबर 2014

जब तक है जान

 
"जब तक है जान की तर्ज पर "
 

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तेरे हाथो में मेरा हाथ ,
मेरे लबो पे तेरा प्यार ,
तेरा आगोश 
नहीं भूलूँगी मैं 
जब तक है जान
जब तक है जान । 

पहाड़ो पर तेरे साथ घूमने से 
हर बात पे तेरे साथ हँसने से 
तेरे साथ छत पे बाते करने से 
मोहब्बत करुँगी मैं 
जब तक है जान 
जब तक है जान । 

तेरे झूठे सच्चे वादो से 
तेरे परेशान जवाबो से 
तेरे बेरहम सवालो से 
नफरत करुँगी मैं 
जब तक है जान 
जब तक है जान । 

तेरी आँखों की शोख मस्तियों से
तेरी लापरवाह शरारतो से 
तेरा पीछे से बाँहो में भरना 
नहीं भूलूँगी मैं 
नहीं भूलूँगी मैं 
जब तक है जान 

जब तक है जान !!!!!!!!! 


मंगलवार, 9 सितंबर 2014

बॉम्बे की सैर -- मेरी नजर में = भाग 7


"पांडवकडा वॉटर फॉल "
खारघर की सैर 




7 सितम्बर 2014 
आज आपको नवी मुंबई  की सैर कराती  हूँ ----
हम सपरिवार पहुंचे CBD  बेलापुर ---ये 'नवी मुंबई ' में है -सिडको ने इसे प्लान से बहुत ही अच्छी तरह से बनाया है ---यह कई सेक्टर में फैला है -- यहाँ का प्राकृतिक नज़ारा देखने काबिल है ---ऊँचे -ऊँचे पहाड़ देखने से किसी हिल स्टेशन का आभास होता है --
मुंबई की जनसँख्या  देखते हुये इसे और खारघर को बसाया गया आज यहाँ का रियल स्टेट काफी उँचाई पर हैं --

इतिहास :--

यह नवी मुंबई (खारघर ) में है  -- CST   (छत्रपति शिवजी टर्मिनस ) से पनवेल जाने वाली हर्बल लाईन से यहाँ पंहुचा जा सकता है -- रोड से भी आप खारघर तक जा सकते है, ये मुंबई- पूना रोड पर आता है ---यहाँ एक गोल्फ ग्राउण्ड भी बना है और सड़क पर एक गुरुद्वारा भी है ---लेकिन यह सिर्फ रैनी सीजन्स में ही रहता है ।  

आज आपको बेलापुर से लगा दूसरा स्टेशन "खारघर "ले चलती हूँ यहाँ बारिश के मौसम में एक खूबसूरत वॉटर फॉल गिरता हैं जो केवल बारिश के मौसम में ही रहता हैं --- "कहते है की यहाँ पर बनी गुफा में  'पांडव ' अपने अज्ञातवास के दौरान छुपे हुए थे इसलिए ही इसका नाम "पांडवकडा " पड़ा --- 

हम जब यहाँ पहुंचे तो 3 बज रहे थे ,कुछ सिपाही यहाँ खड़े लोगो को वॉटर -फॉल जाने के लिए रोक रहे थे ,उनका कहना था की यहाँ 2 लोग ऊपर से गिरे पत्थरो के कारण मर चुके है --काफी भीड़ थी लड़का  -लड़कियों के झुंड के झुंड खड़े थे पुलिस वालो से मन्नते हो रही थी हमने भी उनको कहा पर वो मानने वालो में नहीं दिख रहे थे।   
आखिर हम उनको छोड़ उदास से पास के गुरद्वारे में चले गए ---आधा घंटा वहाँ बिताकर जब हम वापस उसी स्थान पर आये तो  पुलिसमैन जा चुके थे और सारी भीड़ अब अंदर जाती हुई दिखी हम भी एक मिनट की देरी किये फटाफट अंदर को चले गए ---- झरना काफी दूर दिख रहा था ---जाते -जाते बैंड तो बजने वाली थी ----




ये है खारघर का गुरद्वारा 


यहाँ है वो फ़ेमस वाटर फॉल (दूर सड़क से दिखाई देता हुआ )
































कहते है इस गुफ़ा में पाण्डवाज़ ने अपने अज्ञातवास के कुछ दिन निकले थे  




और अब वापसी 

वापसी में पाण्डु हवलदार ऊपर आ  पहुंच चुके थे हमको भी एक गुस्से भरी नज़र फैंक कर सबको वहां से सिटी बजाकर वापस चलने को बोल रहे थे--शाम के 6 बज रहे थे और हम अब सेंट्रल पार्क घूमने चल दिए --  



शनिवार, 9 अगस्त 2014

रक्षा- बन्धन



रक्षा- बन्धन 


"भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना --- भैया मेरे ,छोटी बहन को न भुलाना ---" 

सावन की पूर्णिमा को राखी का त्यौहार आता हैं ---- साल भर हम इस दिन का इंतजार करते हैं कब ये दिन आये और हम अपने मायके जाए ---- 
आज बचपन की याद आ गई---
उन दिनों रेडियो पर सुबह से राखी के गीत आतें थे ---मैं एक दिन पहले से ही राखी के लिए हाथों  में मेहँदी लगा लेती थी ---सुबह उठते ही सबसे पहले ये देखना की मेहँदी कैसी रची है ;;फिर स्नान करके नया फ्राक पहनना ,नई  चूड़ियाँ पहनना ,बालो में वेणी बांधना ,नई  चप्पल पहनना और पैरो में पायल पहन कर यहाँ वहाँ  फुदकना --- कितने सुहावने दिन थे बचपन के ---
अम्मा , खाने में खीर पूरी पकोड़े और दही बड़े बनाती थी --तब तक मौसी की बेटी और तायाजी का बेटा भी राखी बंधवाने आ जाते थे --सब पहले खाना खाते थे फिर राखी का प्रोग्राम संपन्न होता था ---  चारो भाइयों को पहले तिलक लगा कर मुंह मीठा करती फिर राखी बांधकर बड़े फ़क्र से पैर पड़वाती थी ,और आज का नेग मांगती थी ---असल मैं मेरे लिए बचपन में राखी का मतलब बस नए कपडे पहनना और गिफ्ट  लेना होता था -- आज भी वो दिन याद आते है तो आँखें भर जाती है -- 





शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

पुनर्जनम या चमत्कार


पुनर्जनम या चमत्कार  

'ईश्वर' नाम एक अज्ञात शक्ति का है --जिसे न हम  देख सकते है ? न स्पर्श कर सकते है ? सिर्फ महसूस कर सकते है -मन में विश्वास का दूसरा नाम ही ईश्वर है -- 






इस घटना के बाद मुझे ईश्वर और उसकी शख्सियत के लिए नतमस्तक होना पड़ा ...

यह घटना कोटा (राजस्थान ) की है ---

यहाँ मेरा ससुराल है ..कोटा शहर अपनी कोटा साडी के लिए मशहूर है आजकल यह कोचिंग का गढ़ बन गया है -- यहाँ कोचिंग के लिए दूर -दूर से विधार्थी आते है --यहाँ बहुत मात्रा में कोटा स्टोन भी पाया जाता है । यहाँ  'दाढ़ देवी' नाम की बहुत प्रसिध्य  देवी का मंदिर है  । जिस पर  हर साल मेला  भी लगता है ।  यह देवी बच्चो की मन्नत के लिए बहुत प्रसिध्य है । लोग -बाग़  बच्चे के मिलने के बाद देवी को खुश करने के लिए बकरे की बलि तक देते है ।मैंने खुद अपने बेटे के होने की ख़ुशी में यहाँ बकरा चढाया था --  
   
१९९० की बात है ..होली का दिन था ..सबलोग होली खेलकर अपने -अपने घर जा चुके थे ..मेरे देवर (निर्मलसिंह } और उनके २ दोस्त (जगेश और पप्पू ) शराब के नशे में चूर थे .. वैसे भी  देवर के घर नया -नया लड़के का जनम हुआ था ...इसलिए ख़ुशी जरा तगड़ी ही थी ...तीनो ने माता दाढ़देवी के यहाँ जाने का प्लान बनाया ..और चल दिए अपने स्कूटर पर ...दाढ़देवी का एक रास्ता जंगल से और दूसरा रास्ता नहर से होकर जाता है ।कहते है ये नहर सीधे चंडीगढ़ गई है ,गहरी भी बहुत है -- नहर वाले रास्ते से तीनो मग्न होकर जा रहे थे की अचानक उनका स्कूटर किसी चीज़ से टकराया और तीनो स्कूटर समेत सीधे नहर में जा गिरे ,नहर काफी गहरी थी और पानी का बहाव भी तेज था  ...

तैरना तीनो को आता था ,पप्पू और जगेश तो तैरकर बाहर आ गए पर निर्मल का कोई पता नहीं था। जल्दी ही उस झील का चौकीदार भी दौड़कर आ गया और कई लोग आसपास के रुक गए ...दोनों दोस्त उसे पानी में जाकर दोबारा ढूंढ आये पर निर्मल का कोई पता नहीं चला ,चौकीदार बोला- " यहाँ जो डूब जाता है वो वापस नहीं आता  भईया"।       

दोनों दोस्त रोने लगे--करीब आधा घंटा निकल गया था की अचानक निर्मल का सर पानी में दिखा और वो आराम से तैरता हुआ बाहर आया । न उसके पेट में पानी था, न साँसों में पानी गया था।  हा, वो कुछ बौखलाया हुआ जरुर था ..। 

उसने बाद में हमें एक हैरत अंगेज़ वाकिया सुनाया जो आश्चर्य जनक था ----
"वो बोल-- "जब मैं पानी में  गिरा तो सीधे तलहठी में पहुँच गया ...धबरा कर ऊपर आने को जोर मारने लगा तो देखता  क्या हूँ  की कोई मेरी ही शक्ल का आदमी मेरे ऊपर लेटा हुआ हैं और तैर रहा है वो मुझे बड़े प्यार से देख रहा था उसके और मेरे  बीच जरा भी दुरी नहीं थी न पानी की एक बूंद थी ; मैं आराम से साँसे ले रहा था वो काफी देर तक मुझे देखता रहा और मुस्कुराता रहा फिर अचानक वो मुझे ऊपर तक खीँच लाया और मैं नहर के ऊपर आ गया; फिर आराम से तैरकर बाहर आ गया । "
हम सब आश्चर्यचिकित थे ????

इस धटना को आज कई साल गुजर चुके है ...पर ये वाकिया हम लोग भूल नहीं पाते है ....इस धटना को क्या कहे ? ईश्वर का चमत्कार या कुछ और ...???


सोमवार, 16 जून 2014

** माथेरान ** Matheran *



** माथेरान **
 एक हिल -स्टेशन  





31 मई 2014 

काफी  दिनों से माथेरान जाने की सोच रही थी । माथेरान, यह रायगढ़  जिले में आता है पर  मुंबई के बहुत करीबी खूबसूरत हिल स्टेशन होने के कारण भी जाने का प्रोग्राम नहीं बन रहा था --जब ५ मई का 'डलहौज़ी ' का प्रोग्राम केंसिल हुआ तो लगा इस बार तो किसी पहाड़ पर जाना ही है चाहे माथेरान ही क्यों न हो ---

 माथेरान मुंबई से 110  किलोमीटर दूर है और समुद्रतल से सिर्फ 800 मीटर की ऊचांई पर स्थित यह देश का सबसे छोटा हिल स्टेशन है इसकी खोज मई 1850 में ठाणे जिले के कलेक्टर  ह्यूज पॉइंटस मलेट ने बॉम्बे की गर्मी से परेशान होकर की थी --वैसे  बरसात के मौसम में  मुंबई  वासी यहाँ काफी तादात में आते है । यहाँ की फ्रेश हवा मन और तन दोनों को तरोताजा कर देती है  यदि २-3 दिन छुटियाँ एक साथ आ जाए तो एक पिकनिक आयोजन का बेहद सरल और सस्ता मनोरंजन स्थल है ---- माथेरान ।

शनिवार का दिन था और बेटी का जन्मदिन भी सो, हम सब सुबह  7. 30 बजे  वसई -पनवेल DMO से कोपर स्टेशन पहुंचे ,40 मिनट का सफर ठसाठस भरा हुआ था --- कोपर स्टेशन से हमने कल्याण जाने के लिए लोकल पकड़ी जो कुछ हलकी थी ,वहा से हमें खपोली जाने वाली लोकल मिली जिसेसे  हम नेरल स्टेशन पहुंचे यहाँ से माथेरान 9 किमी दूर है अब हमें माथेरान के लिए खिलौना -गाडी  पकड़नी थी जहाँ -रविवार होने के कारण काफी भीड़ थी ,मालुम  पड़ा की सीट 150 है और लाईन 500 की लगी है ,इसलिए यहाँ टिकिट  मिलना नामुमकिन ही नहीं असम्भव ही लग रहा था पतिदेव ने टी टी ई होने के काऱण कुछ जुगाड़ बैठाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ ---आखिरकार कार से जाना तय हुआ वैसे भी 65 रु. ट्रेन में लग रहे थे और 70 रु. (पर सीट )कार में  ज्यादा नुकसान नहीं था--पर कार में सिर्फ 6 मेंबर ही जा सकते थे और हम 8 थे यानी 2 कार करनी थी हमने 700 रु. में 2 कार की पर जो नज़ारे  ट्रॉय ट्रेन में बैठने के बाद नजर आने थे वो नज़ारे कार में नहीं थे ? खेर, मज़बूरी थी ---ढ़ाई घण्टे की ट्रॉय ट्रेन की यात्रा कार ने सिर्फ 45 मिनट में ही करवा दी -- हम  अमन लॉज पहुँच  गए आगे वाहन जाना  वर्जित है अब हमे आगे की यात्रा पैदल, घोड़े पर या बग्गी  में करनी थी --

यहाँ पहुंचकर पता चला की यहाँ से माथेरान तक एक और मिनी ट्रेन चलती है वाह !सब ख़ुशी से उछल पड़े । जब मैं पहली बार 1995 में माथेरान आई  थी तब यह मिनी ट्रेन नहीं चलती थी, हो सकता है की कुछ साल यहाँ आने वाली ट्रॉय ट्रेन बंद थी तब इस मिनी ट्रेन को चलाया गया होगा। इस खिलौना ट्रेन को  दोबारा 100 वर्ष पुरे होने के उपलक्ष में पिछले साल ही दोबारा जान समुदाय की मांग पर चलाया है--  

आगे का सफर हमको दूसरी ट्रेन से करना था  जो अमर लॉज से  चलती है --मैं कार से उतरी और टिकिट खिड़की पर पहुंची --आगे की ट्रेंन का टिकिट लेने तो पता चला की ये तो माथेरान में जाने की एंट्री फीस है सिर्फ हर मेंबर 50 रु. ---टिकिट कटाकर हम पैदल ही चल पड़े 10 मिनिट के बाद हम अमन लाज के पास थे, अमन लॉज तो दिखाई नहीं दी हा, एक बोर्ड जरूर दिखा,  यहाँ भी 40 रु. टिकिट था -- यहाँ हर 10 मिनट पर यह मिनी ट्रेन चलती है  , 10 मिनट बाद हम माथेरान में थे ठंडी हवा तो बहुत थी पर गर्मी ने भी अपना साम्राज्य फैला रखा था , भीड़  बहुत थी काफी लोग घूम  रहे थे --
अब , जैसा की  होता है हर हिल स्टेशन पर रूम दिखने वालो की एक भीड़ ने हमे धेर लिया और हम सब रूम देखने लगे पर कोई भी ढंग का रूम दिखाई नहीं दिया थोड़ी ठीक होटल में 7 हजार से  शुरू होने वाले रूम थे जो हमारी जेब से भारी थे बाकी तो सब खाना -पीना इंक्लूड वाले रिसोर्ट  होटल थे आखिर हमे एक ए. सी. रूम मिला 6  हजार में वो काफी बड़ा था और हम 8 मेंबर उसमें आराम से आ सकते थे-- 3 बज रहे थे सो हम सब खाना खाने सामने रेस्टोरेंट में  घुस गए  -- खाना ठीक था और काफी सस्ता भी --

 शाम को हम यहाँ के पॉइंट देखने निकले  यहाँ 38 पॉइंट है पहले इको पॉइंट फिर  सनसेट पॉइंट शारलॉट पॉइंट पर खूबसूरत लेक भी है पर  वहां पानी नहीं था नजदीक ही शिव जी का बहुत पुराना मंदिर भी है यहाँ जैन मंदिर भी है हाथ की बनी बॉस की खूबसूरत वस्तुए और चमड़े की चप्पले काफी मात्रा में बिक रही थी --

यहाँ ठहरने और घूमने  के लिए ज्यादा दिनों की जरुरत नहीं है -- यहाँ सिर्फ आराम और पैदल चलने के लिए माथेरान मुंबई और पुणे वालो के लिए एक श्रेष्ठ विकल्प है --    

  







    



























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और इस तरह माथेरान यात्रा समाप्त हुई --