अमृतसर यात्रा :--
भाग 13
हरिद्वार भाग 2
4जून 2019
28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम में मेरी भाभी भी आ गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से ज्वाला माता,चिंतपूर्णी माता आनन्दपुर साहेब ओर मनिकरण के बाद हमारा काफिला हरिद्वार में आ गया..
अब आगे.....
शाम 5 बजे हमने भारत भवन(इंडिया टेम्पल) से ऑटो पकड़ा उसने 100 रु लिए ओर काफी पहले ही हमको बैरियर के पास उतार दिया और बोला--"अब आप यहां से पैदल ही जाए, क्योंकि ईसके आगे ऑटो नही जाते हैं "
इसलिए हमने आगे बढ़ने में ही अपनी भलाई समझी ओर भीड़ के साथ साथ हम भी दुकानों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे,एक दुकान पर सेल देख मैंने अपने लिए एक कम्फ़र्टेबल चप्पल महज 100 रु में खरीद ली।
अब हम माँ गंगा की आरती में शामिल होने के लिए तट पर पहुंच गये थे. .. मेरा गंगा आरती देखने का ये पहला मौका था तो मुझे थोड़ा उत्साह ज्यादा हो रहा था..क्योकि इससे पहले भी मैं वाराणसी में आरती के टाइम जाम में फंस गई थी और आरती देखने घाट तक न जा सकी थी... इसका मुझको बहुत अफ़सोस था।
लेकिन आज हम आरती से पहले ही घाट पर पहुंच गए थे..हमारे चारों ओर सैकडों की तादात में लोग नदी के दोनो तरफ दिखाई दे रहे थे इतने सारे लोग एक ही जगह देख रहे थे.. शायद वही से आरती शुरू होनी होगी..
हमारे सामने पतित पावनी गंगा होले - होल बह रही थी, मानो कोई स्वर लहरी धीरे धीरे फ़िजा में फैल रही हो...जिसकी सुरीली तान सुनने सैकड़ों की तादाद में कान एक ही जगह पर लगे हुए हो।
हम भी थोड़ा पीछे एक खाली जगह देखकर खड़े हो गए..थोड़ी देर बाद अनुराधा पोडवाल की आवाज में माँ गंगा की आरती गूंजने लगी और नदी के दूसरे छोर पर जगह-जगह दीपों से आरती होने लगी सभी लोग तालियां बजाकर आरती गाने लगे बहुत ही भक्तिमय वातावरण हो गया था..एक निश्छल बहती नदी की आरती, इतना बड़ा जन समुदाय कर रहा था ये सब हमारे देश मे ही सम्भव हो सकता हैं इसीलिए तो हमारा देश इतना महान हैं....
मेरा भारत महान!
कुछ महिलाएं और पुरुष अपने हाथों में दीपक की थाली पकड़े हुए थे और अपनी जगह से ही माँ की आरती कर रहे थे।
बाद में हमने भी दीप जलाकर आरती की ओर दीपक को गंगा में छोड़ दिया...काफी दूर तक हमारा दीप दोने में तैरता हुआ हमको दिखाई देता रहा ... हमारा दीपदान माँ गंगा ने स्वीकार कर लिया था।
वही हमने नदी में दूध अर्पण किया और फूल चढ़ाये ।
जय माँ गंगे👏
गंगा को नमस्कार कर हमने हर की पौड़ी से बिदा ली ओर बाजार में खाना खाने रुक गए... हम एक शाकाहारी रेस्तरां में गए तो वहां 180 ₹ की थाली थी 3-4 तरह की सब्जियां चटनी,अचार, पुलाव तो हमने थोड़ा कम वाला खाना पूछा तो वो बोला कि आपको 80 ₹ वाली थाली बना देता हूँ जिसमे 1दाल1सब्जी,कढ़ी 4 रोटी और चावल होंगे...हमने 2 थाली खाना मंगवा लिया इतना खाना तीनों के लिए काफी था...खाना ठीक ठीक था ज्यादा खाया नही गया 1प्लेट चावल और 4 रोटियां बच गई ।
रोटियां हमने बंधवा ली ताकि रास्ते में किसी कुत्ते को खिला सके ओर वही से ऑटो पकडकर हम भारत मन्दिर वापस आ गए ।
आज काफी थक गए थे इसलिए कल का प्रोग्राम ऋषिकेश का बनाया ओर उसके लिए बस सामने से ही मिलती हैं इसलिये निश्चिंत हो हम चादर ओढ़कर सो गए।
शेष अगले एपिसोड में---
8 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रोचक वृतांत
रोचक औऱ शानदार जानकारी
सुन्दर तस्वीरों के साथ रोचक संस्मरण।
Thnx शास्त्री जी
धन्यवाद सर जी
धन्यवाद सुधा जी👏
धन्यवाद सर जी
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