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गुरुवार, 10 सितंबर 2020

अमृतसर की यात्रा भाग 12

अमृतसर यात्रा :--
भाग 12
हरिद्वार भाग 1
4जून 2019

28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम  में मेरी भाभी भी आ  गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,31 मई को अमृतसर से निकलकर हम माता चिंतपूर्णी ओर ज्वालादेवी के दर्शन कर आनंदपुर साहिब रुके,1जून को किरतपुर गुरद्वारे घूमकर रात को मनिकरण साहब पहुंच गए ... मनिकरण से 2 दिन बाद हम निकले हरिद्वार की ओर ...
अब आगे.....

कल रात भुन्तर से हमने जो वोल्वो बस पकड़ी थी हरिद्वार के लिए उसका किराया था 1400 सो रुपिया! बस में रात बहुत परेशानी में गुजारी... सेमी स्लीपर Ac बस थी फिर भी सारी रात बैठकर, जागकर, फ़िल्म देखते हुए करवट बदलते हुए गुजरी... मुझे बस का सफर कभी भी पसन्द नही रहा, चाहे कितनी भी आरामदायक बस क्यों न हो !सफर तो ट्रेन का होता हैं वाह!!!

सुबह का धुंधलका जब छाने लगा तो हमारी बस चंडीगढ़ की सड़कों पर दौड़ रही थी ..कुछ लोग उतरे और कुछ चढ़ गए ...बस आगे चल दी तो मन हुआ कि यही उतर जाते है 2 दिन इधर ही घूमेंगे पर...इंसान जो सोचता है वो हो जाये तो क्या बात हैं।

 ख़ेर, रातभर की जागी हुई आंखों में खुमारी छाई हुई थी ओर झपकी भी आने लगी थी..रातभर बैठने से कमर भी अकड़ गई थी, लेकिन क्या करे मरता क्या न करता! मजबूरी थी और उस मजबूरी का नाम रुकमा था, जिसके कारण हम हरिद्वार आ रहे थे। हरिद्वार को उत्तराखंड का दरवाजा भी कहते है ये देवभूमि कहलाता हैं क्योंकि यहां से ही लोग आगे  पहाड़ो पर या तीर्थस्थान जाते हैं।मेरा हरिद्वार का ये चौथा चक्कर था।

खेर, सुबह हरिद्वार में तगड़ा जाम मिला...बस रुक रुककर चल रही थी...भयंकर गर्मी लग रही थी Ac भी फ़ेल हो रहा था...नींद खुली तो देखा, लोग झुंड के झुंड हाथों में अटैची ओर थैले लिए इधर उधर आ जा रहे थे... किधर जा रहे थे कुछ पता नही था... बस रास्ता दोनों ओर से भीड़ से लदा हुआ दिख रहा था... सुबह का ये आलम हैं तो शाम का आलम क्या होगा खुदा ख़ेर करें😂🤣😂

सब मिलाकर ये कहूँ की यहां जबरजस्त भीड़ उमड़ी हुई थी !
मुझे याद आया कल मनिकरण से ही मैंने हमारे Gds ग्रुप के सदस्य हरिद्वार निवासी पंकजजी से बात की थी, उन्होंने साफ शब्दों में बोल दिया था कि---"बुआ,अभी इधर का रुख बिल्कुल मत करना क्योंकि कल यहां (हरिद्वार में) 53 लाख पब्लिक थी..ओर प्रशासन से संभाली नहीं जा रही थी उनको संभालने के लिए स्थानीय नागरिक भी लगे हुए हैं"

 अब ,मालूम तो पड़ गया था कि इस समय हरिद्वार आना हमारी सबसे बड़ी बेवकूफी हैं,लेकिन कुछ कर नही सकते थे क्योंकि पंकज से बात हमने वॉल्वो बुक करने के बाद कि थी वरना कदापि नही आते..
खेर, गंगा माता का बुलावा आया था तो आना तो था।
"मन को तसल्ली देने का दर्शन ये ख्याल अच्छा है।"

अब हमारी किस्मत देखिए-- "सर मूढाते ही ओले पड़े" यानी कि जहां हमको उतरना था वही से निकलकर,  जाम में 2 घण्टे फंसकर हमारी बस, बस स्टैंड पहुंची तो पता चला कि हम बेवकूफ 11 km अंदर आ गए है।ओर वापस जाने का मतलब है फिर से 2 घण्टे जाम में फंसना ओर वो भी इस भयंकर गर्मी और धूप में, हमने एक ठंडी सांस भरी मनिकरण की ठंडक जाने कहाँ लुप्त हो चुकी थी और अब हम इस गर्मी से लड़ने को बिल्कुल तैयार थे।
अब, हमारा सबसे पहला काम था अपने ढिकाने पर पहुंचना जो मुश्किल लग रहा था क्योंकि कोई भी ऑटो वाला वापस जाम में फसना नही चाह रहा था...आखिर आधे घण्टे की मशक्कत के बाद एक ऑटो वाले ने हाँ बोली लेकिन 500₹ लेने के बाद, पर 500 ₹का वजन ज्यादा लग रहा था हम 300 बोल रहे थे। अचानक 3 सवारी महादेव की कृपा से ओर मिल गई और हमारा मामला सुलझ गया हम 6 लोग ऑटो में बैठकर अपने गतंव्य स्थान की ओर चल दिये...
 
भारत-दर्शन आश्रम को ढूंढने  में ज्यादा वक्त नही लगा और हम अब आश्रम के सामने थे...ऑटो वाले को धन्यवाद देकर हम अपने कमरे में पहुँचे तब जाकर चैन मिला... कमरा ठीक ठीक था.. Ac तो नहीं था लेकिन कूलर जरूर था जो कमरे की दयनीय स्थिति दर्शा रहा था आखिर फ्री का कमरा था तो एडजेस्ट करना हमारी मजबूरी थी। 
 "भारत भवन" आश्रम का रूम रुक्मणी के गुरुजी की वजय से मिला था ...लँगर भी वही मिलता था... इसलिए कमरे में समान रखकर एक एक जोड़ कपड़े लेकर हम तीनों  नजदीक के गंगा किनारे पहुंच गए...काफी देर तक पानी में मस्ती करते रहे, जब मन भर गया और पूरी तरह तृप्त हो गए तो वापस रूम में आ गए... इतने में आश्रम का सेवादार भोजन करने के लिए बुलाने आ गया ...आश्रम में खुद ही थाली प्लेट लेकर पंगत में बैठना पड़ता हैं खाना परोसने वाले लोग आपको खाना खिलाते हैं ...सादा बगैर कन्दा लशन का खाना होता हैं जो मुझे बिल्कुल पसन्द नही आया,बड़ी मुश्किल से आधा पेट खाकर मैंने इतिश्री की ओर अपनी प्लेट जाकर साफ कर के रख दी...लेकिन रुकमा ने बड़े मजे से पेटभर खाना खाया... मैं उसको जहरीली आंखों से घूर रही थी।
खाना खाने के बाद  हम वापस  कमरे में आ गए ओर लंबी तान लगाकर सो गए रातभर न सोने के कारण सारा शरीर दुख रहा था ..लेकिन थोड़ी देर बाद ही रुकमा ने किसी विलेन की भांति हमको झिंझोड़कर उठा दिया क्योंकि शाम होने वाली थी और हमको गंगा मैया पुकार रही थी, हम भी फटाफट तैयार हो गए और थोड़ी देर बाद हम तीनों हरिद्वार की फ़ेमस हर की पौड़ी की तरफ जाने के लिए ऑटो पकड़ रहे थे।

शेष अगली किस्म में ...

 


                   भारत भवन

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