जिंदगी का सफर
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कैसे कटा 21 से 60
तक का यह सफ़र,
पता ही नहीं चला ।
क्या पाया, क्या खोया,
क्यों खोया,
पता ही नहीं चला !
बीता बचपन,
गई जवानी
कब आया बुढ़ापा,
पता ही नहीं चला ।
कल तक बेटी थी,
कब सास बन गई,
पता ही नहीं चला !
कब मम्मी से
नानी-दादी बन गई
पता ही नहीं चला ।
कोई कहता सठिया गई,
कोई कहता छा गई
क्या सच है?
पता ही नहीं चला !
पहले माँ बाप की चली,
फिर पति की चली,
फिर चली बच्चों की,
अपनी कब चली,?
पता ही नहीं चला !
दिल कहता जवान हूँ मैं,
उम्र कहती है नादान हूँ मैं,
इस चक्कर में कब
घुटनें घिस गये?
पता ही नहीं चला !
झड़ गये बाल,
लटक गये गाल,
लग गया चश्मा,
कब बदली यह सूरत?
पता ही नहीं चला !
समय बदला,
मैं बदली
बदल गई मित्र-
मंडली भी
कितने छूट गये,
कितने रह गये मित्र,
पता ही नही चला।
कल तक अठखेलियाँ
करती थी मित्रों के साथ,
कब सीनियर सिटिज़न
की लाइन में आ गई
पता ही नहीं चला !
बहु, जमाईं, नाते, पोते,
खुशियाँ आई,
कब मुस्कुराई उदास
ज़िन्दगी,
पता ही नहीं चला ।
जी भर के जी लो प्यारो
फिर न कहना कि ..
मुझे पता ही नहीं चला।
🥰🥰😂😂😂🥰
---दर्शन के दिल से
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