नैनीताल भाग --11
रोप - वे यानी केबल -कार
"साथ हमारा पल -भर ही सही ...
इस पल जैसा मुक्कमल कोई कल नहीं ..
हो शायद फिर मिलना हमारा कहीं---
तू जो नहीं तो तेरी यादें संग सही ...."
14 मई 2012
हम तारीख 9 मई से मुंबई से निकले हैं ..आज 14 तारीख है ..हम वापस नैनीताल जा रहे है ..यह नैनीताल -यात्रा की आखरी कड़ी है .....
सुबह शर्माजी की मेड ने हमारे लिए आलू के परांठे बना दिए थे .. वो तो नीचे अपने बैंक में चले गए थे ..हम परांठे खाकर, तैयार हो नैनीताल को चल दिए ..शर्माजी का धन्यवाद किया इतने बढियां अथिति -सत्कार पर .. यहाँ भी हमें कोई डायरेक्ट नैनीताल नहीं ले जा रहा था , कोई 3 तो कोई 4 हजार रु माँग रहा था ..फिर मंगल सिंह जी ने अपने एक आदमी को हमारे साथ नैनीताल भेजा रु. 2000 हजार मैं ...मंगल सिंह जी कल के भी पैसे नहीं ले रहे थे ,बड़ी मुश्किल से हमने उन्हें सिर्फ पेट्रोल के 1000 हजार रु. दिए जो की बहुत ही कम थे ...सब से विदा लेकर हम चल दिए नैनीताल वापस.....
सुबह हम सोमेश्वर से निकले तो शाम को 3 बजे नैनीताल पंहुँच गए ....रास्ते में एक जगह रुके जहाँ मंगल सिंह जी के आदमियों ने खाना खाया...हम तो सुबह परांठे खाकर निकले थे .. हमने कुछ नहीं खाया ..रास्ते में मेरा मोबाईल बंद हो गया जिसके कारण मैं किसी से बात नहीं कर सकी ..नैनीताल में वापसी में शास्त्रीजी से मिलने की इच्छा थी,पर नंबर न होने की वजय से बात नहीं हो पाई .. कमलेश और उनके दोस्त का शुक्रियां अदा नहीं कर पाई हम नैनीताल में 3 बजे उन्होंने हमें वापस होटल जग्राति छोड़ दिया...हमारा रूम रेडी था ..कल हमने कौसानी से ही बुक करवा लिया था ..हम फटाफट तैयार हुए और चल दिए रोप -वे पर केबल कार में घुमने .....
सामने जो हैण्डलूम की दूकान है ..वहाँ से हमने कश्मीरी कढाई के कुछ सूट ख़रीदे
स्नो -व्यू जाने का बड़ा गेट ..अंदर बच्चो के खेलने के लिए काफी खेल है
आज ही हमारा वापसी का टिकिट था .. मन तो वापस जाने का नहीं था ,इन हसीं वादियों से भला कौन वापस जाना चाहेगा ... हम माल रोड से वापस अपने होटल में आ ही रहे थे की एक कार वाले ने हमें कहा की काठगोदाम चलना है क्या ? हमने पैसे पूछे तो उसने कहा 400 रु ...बस हमने 5 बजे आने का कहा और हम खाना खाने चल दिए ...आज रात को 9.30 बजे हमारी गाडी रानीखेत एक्सप्रेस थी ..कुछ शापिंग की ..दोस्तों के लिए उपहार ख़रीदे ..कुछ कपडे ख़रीदे ..और वापसी .....नैनीताल सलाम फिर दोबारा आयेगे ..क्योकि अभी बहुत कुछ छुट गया है देखने को ...
हमारा ड्रायवर बहुत नेक इंसान था ..वो आराम से हमें लेकर आया ..बातूनी भी बहुत था ...काठगोदाम का ही रहने वाला था ,हमारे पास टाइम बहुत था ..रास्ते में चीड के फल बहुत गिरे हुए थे उन्हें बच्चे उठा लाये ...तेजपत्ते के पेड से बहुत से ताजा तेजपत्ते तोड़े ...रास्ते के रेस्टोरेंट से चाय -पकोड़े खाते हुए हम काठगोदाम वापस लौट आये .....
शाम का समय और बढ़िया नजारा
मालरोड की शानदार तफरीह
केबल -कार यानी रौप -वे जाने का मार्ग
दूर बहुत दूर से दोनों केबल कारे ..दिखाई दे रही है ..आते हुए और जाते हुए ..
केबल -कार तक पहुँचने का मार्ग
लो ....वो आ गई ...अब हम चलते है इसमें बैठकर ..ऊपर की तरफ
यह ..उड़न -तश्तरी है ..यानी केबल - कार इसका टिकिट है --बच्चों का 100 रु और बड़ों का 150 रु ..यह स्नो -पाइंट तक जाती है ...जो 2270 मीटर्स है ...इसमें 10 लोगो के बैठने की व्यवस्था है ....इसका टिकिट नीचे से ही मिलता है ..वो कहते है की एक घंटा रूककर वापस आ जाए ..पर आप जब तक इच्छा हो वहां धूम सकते है ....कहते है की सीज़न में यहाँ 2-3 दिन तक नंबर नहीं आता ..लोग आते ही यहाँ नंबर लगा लेते है फिर आराम से नैनीताल घूमते है ...और जब नंबर आने वाला होता है तो उन्हें कन्फर्म कर दिया जाता है .. वैसे इस तरह की केबल -कार में हम पहले भी बैठे थे ..
उडन- तश्तरी में सवार ..हम दोनों ..बड़ा ही रोमांचकारी सफ़र है ..
उपर से लिया गया नैनीझील का व्यूह
बाहर निकलते हुए ..आप 2-3 घंटे यहाँ धूम सकते है और जब इच्छा हो वापस लौट सकते है
यहाँ से नैनीझील का बहुत ही सुंदर द्रश्य दिखाई देता है ..इसी लिए इसे लेक -व्यु कहते है
सामने जो छोटा -सा टीला दिख रहा है ...वहां से हिमालय -दर्शन होते है ..पर आज बादलों की वजय से कुछ दू दिखाई नहीं देगा इस कारण मैं ऊपर नहीं चढ़ी ...बच्चें जाकर देख आये ..हम वही मैंगो शेक पीने बैठ गए
सामने जो हैण्डलूम की दूकान है ..वहाँ से हमने कश्मीरी कढाई के कुछ सूट ख़रीदे
स्नो -व्यू जाने का बड़ा गेट ..अंदर बच्चो के खेलने के लिए काफी खेल है
यह है स्नो -व्यू में एक मंदिर
खुबसूरत जंगल स्नो -व्यू का ..पर हिमालय दर्शन नहीं हुए
नीचे उतारते हुए नैनीझील का द्रश्य और पास ही क्रिकेट का मैदान
दोपहर को हम नीचे उतर गए वापसी के लिए
खुबसूरत यादगार ..चीड के फूलो का गुलदस्ता
काठगोदाम के ऐ. सी. वेटिंग -रूम में ट्रेन का इन्तजार
" काश, जाते वक्त को हम रोक पाते ....
गुजरे लम्हों को हम जोड़ पाते........
कितनी यादें है ऐ 'नैनीताल' जो तुने दी---
काश, हम जिन्दगी को पीछे मोड़ पाते ....?"