मेरे अरमान.. मेरे सपने..


Click here for Myspace Layouts

रविवार, 22 जुलाई 2012

नैनीताल भाग --11......रोप - वे


नैनीताल भाग --11 

रोप - वे यानी केबल -कार 



"साथ हमारा पल -भर ही सही ...
इस पल जैसा मुक्कमल कोई कल नहीं ..
हो शायद फिर मिलना हमारा कहीं---
तू जो नहीं तो तेरी यादें संग सही ...."




14 मई 2012 

हम तारीख 9 मई से मुंबई से निकले हैं ..आज 14 तारीख है ..हम वापस नैनीताल जा रहे है ..यह नैनीताल -यात्रा की आखरी कड़ी है .....

सुबह शर्माजी की मेड ने हमारे लिए आलू के परांठे बना दिए थे  .. वो तो नीचे अपने बैंक में चले गए थे ..हम परांठे खाकर, तैयार हो नैनीताल को चल दिए ..शर्माजी का धन्यवाद किया इतने बढियां अथिति -सत्कार पर .. यहाँ भी हमें  कोई डायरेक्ट नैनीताल नहीं ले जा रहा था , कोई 3 तो कोई 4 हजार रु माँग रहा था ..फिर मंगल सिंह जी ने अपने एक आदमी को हमारे साथ नैनीताल भेजा रु. 2000 हजार मैं ...मंगल सिंह जी कल के भी पैसे नहीं ले रहे थे ,बड़ी मुश्किल से हमने उन्हें सिर्फ पेट्रोल के 1000 हजार रु. दिए जो की बहुत ही  कम थे ...सब से विदा लेकर हम चल दिए नैनीताल वापस..... 

सुबह हम सोमेश्वर से  निकले तो शाम को 3 बजे  नैनीताल  पंहुँच गए ....रास्ते में एक जगह रुके जहाँ मंगल सिंह जी के आदमियों ने खाना खाया...हम तो सुबह परांठे  खाकर निकले थे .. हमने कुछ नहीं खाया ..रास्ते में मेरा मोबाईल बंद हो गया जिसके कारण मैं  किसी से बात नहीं कर सकी ..नैनीताल में वापसी में शास्त्रीजी से मिलने की इच्छा थी,पर नंबर न होने की वजय से बात नहीं हो पाई .. कमलेश और उनके दोस्त का शुक्रियां अदा नहीं कर  पाई हम नैनीताल में 3 बजे उन्होंने हमें वापस होटल जग्राति छोड़ दिया...हमारा रूम रेडी था ..कल हमने कौसानी से ही बुक करवा लिया था ..हम फटाफट तैयार हुए और चल दिए रोप -वे पर केबल कार में घुमने .....


शाम का समय और बढ़िया नजारा 



मालरोड की शानदार तफरीह  


खड़े है सडक किनारे कोई तो लिफ्ट देगा हा हा हा हा  


केबल -कार यानी रौप -वे जाने का मार्ग 





दूर बहुत दूर से दोनों केबल कारे ..दिखाई दे रही है ..आते हुए और जाते हुए ..

खुबसूरत द्रश्य ..दूर से लिया चित्र 

केबल -कार तक पहुँचने  का मार्ग 


लो ....वो आ गई ...अब हम चलते है इसमें बैठकर ..ऊपर की तरफ 




यह ..उड़न -तश्तरी है ..यानी केबल - कार इसका टिकिट है --बच्चों का 100 रु और बड़ों का 150 रु ..यह स्नो -पाइंट  तक जाती है ...जो 2270 मीटर्स है ...इसमें 10 लोगो के बैठने की व्यवस्था है ....इसका टिकिट  नीचे से ही मिलता है ..वो कहते है की एक घंटा रूककर वापस आ जाए ..पर आप जब तक इच्छा हो वहां धूम सकते है ....कहते है की सीज़न में यहाँ 2-3 दिन तक नंबर नहीं आता ..लोग आते ही यहाँ नंबर लगा लेते है फिर आराम से नैनीताल घूमते है ...और जब नंबर आने वाला होता है तो उन्हें कन्फर्म कर दिया जाता है .. वैसे इस तरह की केबल -कार में हम पहले भी बैठे थे .. 



उडन- तश्तरी  में सवार ..हम दोनों ..बड़ा ही रोमांचकारी सफ़र है ..




उपर से  लिया गया नैनीझील  का व्यूह 


बाहर निकलते हुए ..आप 2-3 घंटे यहाँ धूम सकते है और जब इच्छा हो वापस लौट सकते है 





यहाँ से नैनीझील का बहुत ही सुंदर द्रश्य  दिखाई देता है ..इसी लिए इसे लेक -व्यु कहते है  


लेक- व्यू  से नीचे  का नजारा ..खतरनाक ढलान 


सामने जो छोटा -सा टीला दिख रहा है ...वहां से हिमालय -दर्शन होते है ..पर आज बादलों की वजय से कुछ दू दिखाई नहीं देगा इस कारण मैं ऊपर नहीं चढ़ी ...बच्चें जाकर देख आये ..हम  वही मैंगो शेक पीने  बैठ गए  



सामने जो हैण्डलूम  की दूकान है ..वहाँ से हमने कश्मीरी कढाई  के कुछ सूट  ख़रीदे 



स्नो -व्यू  जाने का  बड़ा गेट ..अंदर बच्चो के खेलने के लिए काफी  खेल  है  



यह है स्नो -व्यू में  एक मंदिर  

मंदिर का पिछला हिस्सा ..यदि मौसम अच्छा  होता तो मेरे पीछे हिमालय- व्यू दिखाई देता ..


खुबसूरत जंगल स्नो -व्यू का ..पर हिमालय दर्शन नहीं हुए 



और अब केबल- कार से वापसी ..नैनीताल शहर का नजारा ..

नीचे उतारते हुए  नैनीझील का द्रश्य और पास ही क्रिकेट का मैदान 


दोपहर  को हम नीचे उतर गए वापसी के लिए  

खुबसूरत यादगार ..चीड के फूलो का गुलदस्ता 

आज ही हमारा वापसी का टिकिट था  .. मन तो वापस जाने का  नहीं था ,इन हसीं वादियों से भला कौन वापस जाना चाहेगा ... हम माल रोड से  वापस अपने होटल में  आ ही रहे थे की एक कार वाले ने हमें कहा की काठगोदाम चलना है क्या ? हमने पैसे पूछे तो उसने कहा 400 रु ...बस हमने 5 बजे आने का कहा और हम खाना खाने चल दिए ...आज रात को 9.30 बजे हमारी गाडी रानीखेत एक्सप्रेस थी ..कुछ शापिंग की ..दोस्तों के लिए उपहार ख़रीदे ..कुछ कपडे ख़रीदे ..और वापसी .....नैनीताल सलाम  फिर दोबारा आयेगे ..क्योकि अभी बहुत कुछ छुट गया है देखने को ...


हमारा ड्रायवर बहुत नेक इंसान था ..वो आराम से हमें लेकर आया ..बातूनी भी बहुत था ...काठगोदाम का ही रहने वाला था ,हमारे पास टाइम बहुत था ..रास्ते में चीड  के फल बहुत गिरे हुए थे उन्हें बच्चे उठा लाये ...तेजपत्ते के पेड से बहुत से ताजा तेजपत्ते तोड़े ...रास्ते के रेस्टोरेंट से चाय -पकोड़े खाते हुए हम काठगोदाम वापस लौट आये .....

काठगोदाम के ऐ. सी. वेटिंग -रूम में ट्रेन का इन्तजार 


" काश, जाते वक्त को हम रोक पाते ....
गुजरे लम्हों को हम जोड़  पाते........ 
कितनी यादें है ऐ 'नैनीताल' जो तुने दी---
 काश, हम जिन्दगी को पीछे मोड़ पाते ....?"



शनिवार, 7 जुलाई 2012

नैनीताल भाग 10 कौसानी 2


नैनीताल भाग 10 -- कौसानी 2 


कौसानी की एक सुबह 


13 मई 2012:--






रात को हम ऐसे सोये की कुछ पता ही नहीं चला ...सुबह जल्दी तो उठना नहीं था क्योकि हमें मालुम था की सूर्योदय तो दिखाई देगा नहीं ?  पर फिर भी पहाड़ पर आओ और सुबह की सैर न करो तो पहाड़ पर आने का क्या मतलब कुछ मज़ा नहीं आता इसलिए सबको उठाया पर कोई उठने को तैयार ही नहीं था आख़िरकार हरिजी को उठाया और चल पड़े पहाड़ घुमने को ...
बहुत ही खुबसूरत नजारा था ..पहाड़ों पर दूर तक सूरज की किरने मचल रही थी ..ठंडी भी बहुत थी मैने तो शाल ले रखा था पर बड़ा ही आन्नद आ रहा था ,अफ़सोस था सिर्फ फोटू का, सेल  डाउन होने के कारण फोटू खिंच नहीं सकी ..मोबाईल से ही कुछ फोटू खिंच पाई ....

कौसानी में लम्बे -लम्बे पेड बहुत ही सुंदर लग रहे थे ..ऊंचे -ऊँचे पहाड़ उस पर लहराते टेढ़े -मेढ़े रास्ते ..जब हम काफी दूर निकल गए तो वापसी के लिए चल पड़े ..अभी मैं पलट ही रही थी की कुछ लाल बंदरो के झुड पेड़ से कूद पड़े ..मैने सोचा की फोटू उतारू पर मोबाईल भी अपनी अंतिम साँसे ले रहा था ...इतने में अचानक एक बन्दर ने  मेरी  पीछे से टांग पकड ली .. 'अरेरेरेरेरे..मैं जोर से चिल्लाई, पर उसने मेरी टांग नहीं छोड़ी ..इतने में हरिजी जो थोडा आगे चल रहे थे पलटकर आए और दूर से एक और आदमी आ रहा था वो भी जोर से चिल्लाया तब उस नटखट बन्दर ने पीछा छोड़ा ...अब, हरिजी कहने लगे आप पर तो हनुमानजी की विशेष कृपा हो गई जी ..मेरा तो डर के मारे बुरा हाल था ..और हंसी भी आ रही थी ..हम  काफी देर तक हँसते रहे ... तब तक दुकाने खुल गई थी हमने एक दुकान में जाकर गरमा गरम चाय पी..और होटल लौट आये ...लाईट आ गई थी ..पहले सेल चार्ज करने रखे ....सारे मोबाईल भी रखे ... 

टेढ़े -मेढ़े  रास्ते 


ऊपर छोटा -सा लाल रंग का जो घर दिख रहा है वो अनाशक्ति आश्रम है 





सुबह का अलसाया चेहरा 


पर इधर आलस का नमो- निशान नहीं .. हमेशा की तरह खुश ..

यह है कविता विष्ट ..होटल की केयर टेकर-कम- रिसेप्शनिष्ट- कम- मालकिन ..हरिजी की इनसे दोस्ती हो गई ....और मेरी भी .... 


होटल  pine  और दूर खड़े बातूनी  हरिजी  ..बातो में मशगुल ...


हरी जी और मैं ----सुबह की सैर के बाद 


कमरे में आकर हम नहा धोकर निचे उतरे --मंगलसिंह जी आ गए थे --हमने सारा सामान  गाडी में रखवाया और नाश्ता करने निचे  रेस्टोरेंट में चल  दिए ...नाश्ता करके करीब 11 बजे हम चल दिए .. पाताल   भुवनेश्वर  देखने ...पाताल भुवनेश्वर  यहाँ से 70 किलो मीटर दूर है ऐसा मंगल सिंह जी ने बताया --हम दोपहर तक पहुँच जाएगे ऐसा उन्होंने बताया ... रास्ते में हमने काफी मस्ती की ..अन्ताक्षरी का दौर चला तो चलता गया ....हरी जी ने कुछ कविताएं सुनाई और मंगलसिंह जी ने वहाँ के गढ़वाली  लोक गीत सुनाये और साथ ही उन गीतों का अर्थ भी समझाया तो शमा बंध गया ...कैसे रास्ता कट गया पता ही नहीं चला .. पर शायद हमारी किस्मत में वहां जाना लिखा ही नहीं था, कैसे ? देखते है ....


यह है गरुड़  एक छोटा सा गाँव --यहाँ सिर्फ S B I बैंक ही है 



इस  जगह का नाम नहीं मालुम पर देखने से बहुत ही सुंदर गाँव लगा तो रुक कर कुछ फोटू खिंचवाए 


बहुत ही सुंदर जगह 


 चौकोड़ी गाँव 



मिस्टर और मंगलसिंह जी खाने में व्यस्त 



3 बजे हम चौकोड़ी गाँव पहुंचे ..कुछ भूख भी लग रही थी और इसके बाद खाना कहीं मिलना ही नहीं था सो,खाना खाने रुक गए  ..खाना ठीक ही था ...कढ़ी -पकौड़ी और चावल ..आन्नद आ गया ...शर्माजी कढ़ी नहीं खाते थे तो उन्होंने आमलेट खाया .. हमें यही 4 बज गए ..आगे की यात्रा के लिए हम फ्रेश होकर निकल पड़े ..चौकड़ी से चलने के बाद हमें पता चला की अभी तो हम आधे रास्ते में ही है और वहां तक पहुँचने में हमें शायद रात हो जायगी और रात को वहां रुकने की कोई जगह नहीं है ..हमें वापस चौकोडी ही आना पड़ेगा रात रुकने के लिए पर चौकोड़ी भी मेरे ख्याल से ज्यादा ठीक जगह नहीं लगी ...यह सब बाते हमको रास्ते में करीब 6 बजे मालुम हुई जब रास्ता बहुत खराब हो गया तो मिस्टर ने वापस चलने को कह दिया ..क्योकि उन्हें उल्टियां होने लगी थी इधर शर्माजी की तबियत भी खराब हो रही  थी और निक्की को भी धबराहट हो रही थी ..तो हम वापसी के लिए चल दिए ....सबकी राजी समझकर मैनें  भी वापसी के लिए हाँ  कर दी  ...

हम वापस लौट चले ..हमारी सबसे बड़ी गलती थी की हम सुबह देर से निकले फिर हमें ठीक से पातळ -भुवनेश्वर  की दुरी का पता नहीं था ..और बार -बार रुकने से टाईम की खराबी हुई जो अलग ..हमारा पूरा दिन खराब हुआ और हमने कुछ नहीं देखा ....खेर ऐसा होता है  ..पर उस दिन हमने बहुत आनन्द किया ...

रात को 10 बजे तक हम वापस शर्माजी के घर सोमेश्वर  आ गए "लौट के बुद्धू घर को आये " ......


सामने के होटल से शर्माजी ने खाना मंगवाया ...मेरा तो थकान से बुरा हाल था ...लेटते ही नींद आ गई ! सुबह और कई स्थानों की यात्रा का प्रोग्राम बनाया... पर बच्चों का मन ख़राब हो चूका था ..सबने एक ही स्वर मैं कहा वापस नैनीताल ही चलेगे ....और हम वापस नैनीताल को चल दिए ....

जारी ...