मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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रविवार, 21 जुलाई 2013

चंदा -मामा


चंदा -मामा 









कल देर रात चाँद बादलो में छिपा रहा ****
हमने पकड़कर खिंचा---तो बैचारा टूट गया ****
आधा हमारे हाथ आया---आधा छुट गया ****
हमने भी उसी से अपने दिल के सारे अरमान पूरे किए ****
पहले तो गुस्सा दिखाया ! फिर देर से आने का सबब पूछा ?
बैचारा हमारा डिमडोल देखकर पहले तो डर गया ****
फिर, हाथ जोड़कर पीछे पड़ गया ****

"मैडम --कहाँ -कहाँ दौड़ लगाऊँ---
किस -किस की प्यास बुझाऊँ---

एक दिन की छुट्टी पर ---
कब तक डियूटी बजाऊँ---


सदियों से दौड़ रहा हूँ ---
सालो से अत्याचार झेल रहा हूँ---.
अब, तो मुझे मुआफ करो ?
कोई दुसरे चंदा-मामा  को 'अपाइंट' करो---
कब तक मुझे दौडाओगे----
कुछ तो तरस खाओ ----


जल्दी करो दूसरी 'वेट' कर रही हैं ---
वहां न पहुंचा तो कयामत आ जाएगी --
यह सारी नारी जाति मेरे पीछे पड़ जाएगी --"

हमने भी उसका ज्यादा ' टाईम ' खराब नहीं किया ****
इसलिए, उसको देखा ! उसको पूजा !! फिर बिदा किया **********



10 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):) नारी जाति चंदा को कब से मामा कहने लगी :):)

Pallavi saxena ने कहा…

वैसे बात तो सही है सबको चाँद ही क्यूँ चाहिए होता है :)

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

:-)

अनु

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

beautiful

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह जी क्या बात है :))))

Dr ajay yadav ने कहा…

सुंदर लेखन |
चंदा मामा ....
एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

जल्दी करो दूसरी 'वेट' कर रही हैं ---
वहां न पहुंचा तो कयामत आ जाएगी --
यह सारी नारी जाति मेरे पीछे पड़ जाएगी --"

wah re mama :)

Unknown ने कहा…

बहुत खूब
कल की डिमांड देखते हुए फिर याद आ गई शायद

Sachin tyagi ने कहा…

आपने बहुत अच्छा लिखा है। अगर चांद भी पढ़ता तो आपको शुक्रिया अदा करता।