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रविवार, 21 मई 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI -- 4 )





*यात्रा जगन्नाथपुरी*

भाग--4  
कोणार्क मंदिर भाग 1  

मंदिर के ऊपर कभी चुंबक हुआ करता था  


31 मार्च 2017 
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28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी | 

आज मुझको पुरी आये दो दिन हो गए ,कल हमने जगन्नाथ मंदिर देखा और पुरी के अन्य धार्मिक स्थल देखे ,शाम को हमने पुरी का समुन्दर बीच भी देखा और रात को थके हारे सो गए। ... अब आगे ----

आज हमको कोणार्क मंदिर देखने जाना है। ..  

सुबह 4  बजे मेरी नींद खुल गई देखा तो ऐ. सी. बंद था गर्मी लगने लगी थी क्योकि पंखा भी बंद था और बाहर शोर सुनाई दे रहा था बाहर निकलकर देखा तो सब गेस्ट हॉउस के टेककेयर से झगड़ा कर रहे थे क्योकि लाईट नहीं थी कोई तार जल गया था चारो और अंधकार और गर्मी थी और मच्छर भी अपनी सेना   के साथ उपस्थित थे ,तो लाजमी था नींद तो आने से रही , कल के थके हुए थे और ८ बजे तक सोने का प्रोग्राम था लेकिन क्या करे मजबूरी थी यदि 7 बजे तक और  नींद आ जाती तो सब फ्रेश हो जाते खेर, सबने सोचा की बैठकर क्या करे तैयार हो कर निकल पड़ते है  आखिर 2 -3 घंटे बाद लाईट आई तब तक हम सब तैयार हो चुके थे , मन ही मन होटल वाले को गलियां देते हुए हम रूम से बाहर निकले। .. 

आज हमको कोणार्क का सूर्यमंदिर देखना था ,हमने पहले नाश्ता करने की सोची और बेड़ी हनुमान के पास के एक रेस्टोरेंट में गए ,ऑटो हमने कल ही नक्की कर लिया था 600  रु में उसको बुलाने की देर थी अब हमने ऑटो वाले को फोन किया और रेस्टोरेंट ही बुलवा लिया और सबने  टेस्टी आलू का पराठा दही नाल खाया तब तक ऑटो वाला भी आ गया था और हम सब अपनी अपनी सीट पर सुकड़कर बैठ गए। कल वाला ही रास्ता था लेकिन आज समुन्दर के किनारे- किनारे सड़क पर हमारा ऑटो चल रहा था जहाँ तेज हवा से हमारे बाल उड़ रहे थे। गर्मी का नामोनिशान नहीं था और हम भी कल की तरह मस्ती करते हुए नारियल पानी पीते हुए अपनी  मंजिल को बढ़ रहे थे  एक सुंदर सी जगह हम पहुंचे बहुत ही प्यारा बीच था हमने ऑटो रुकवाया लेकिन ऑटो वाला बोला की वापसी में आएंगे पर हम कहाँ मानने वाले थे  तुरंत कूद पड़े और बिच पर जाकर ही दम लिया। 

चंद्रभागा बीच  ;---
चंद्रभागा बीच कोणार्क से 3 किलोमीटर दूर और पुरी से 30 किलोमीटर दूर है ये गोल्डन बीच है और बंगाल की खाड़ी  पर स्थित है ऊँची-ऊँची भयंकर लहरे शोर मचा रही थी और सड़क के पास ही ये बीच था मुझे लगता है की जब समुन्द्र में ज्वार आता होगा तो शायद इसका पानी सड़क पर भी आ जाता होगा,क्योकि मैंने सड़क के पास काफी रेत देखि थी यहाँ की सफ़ेद रेत चांदी के सामान चमक रही थी। 

इतना ब्यूटीफुल बीच मैंने बॉम्बे में नहीं देखा यहाँ का सनसेट बहुत खूबसूरत होता है ऐसा मैंने सुना था पर हम तो यहाँ सुबह ही पहुंच गए थे खेर, हमने यहाँ खूब मस्ती की और फोटू खींचे। फिर हम आगे बढ़ गए।  

कोणार्क के सूर्यमंदिर का इतिहास 

कोणार्क मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइड पत्थरों से सन 1236 -1264 ईसा पूर्व में गंगवंश के राजा  नृसिंह देव द्वारा बनवाया गया था। यह भारत के सबसे प्रसिध्य स्थलों में से एक है इसे यूनेस्को द्वारा 1984 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था। कलिंग शैली में निर्मित सूर्य मंदिर रथ की शक्ल में बना है और सूर्य देव की भव्य यात्रा को दर्शाता है।  इसमें भगवान सूर्य के रथ की तरह ही सात घोड़े जुते हुए है पर अब एक ही घोडा नजर आता है। रथ के 12 पहिये है जो साल के 12 महीने दर्शाते है और  पहियों के अंदर 8 धारिया समय के आठ पहर को दर्शाती है । अब ये पहिये ही इस मंदिर की पहचान बन गए है। 

 इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है जहाँ कुचपुड़ी नृत्य शैली की कई कृतियाँ है जो उड़ीसा की फेमस नृत्यशैली को दर्शाती है, कहते है यहाँ नर्तकियां सूर्य को अर्पण करने के लिए नृत्य किया करती थी यहाँ कई मानव ,गंधर्व,देव, किन्नर आदि की आकृतियाँ उकेरी गई है। 

दूसरी तरफ मुख्य मंदिर के चारों तरफ कामसूत्र को दर्शाती अनेक शिल्प कृतियां है जो उस समय के पारिवारिक जीवन को दर्शाती है। कुछ मुर्तिया मुझे श्रृंगार करती हुई और हाई हिल पहनी हुई भी दिखी।
यह सूर्य मंदिर है तो यहाँ भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाएँ भी है जो क्रमशः बाल्यावस्था , युवावस्था और प्रौढ़ावस्था दर्शाती है। सूर्य का ये रूप प्रतिमाओ के जरिये दिखाया गया है जैसे बाल्यावस्था की प्रतिमा 8 फीट है तो युवावस्था की 9.5 फीट और प्रौढ़ावस्था की 3.5 फीट। 
लेकिन अब ये मंदिर खंडहर बन चूका है। उड़ीसा सरकार इसके रखरखाव पर ध्यान दे रही है। 
   
12 बजे 
हम जब मंदिर पहुंचे तो सूर्य अपनी प्रचंड किरणे फैला रहा था काफी घूप और गर्मी थी पर मंदिर देखने की इतनी बेताबी थी की हम बगैर परवाह किये चल पड़े यहाँ भी टिकिट लेकर हम अंदर गए तो एक गाईड महोदय पीछे पड़ गए फिर ये सोचकर की इनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल है तो हमने पैसे पूछे वो बोला  100 रु पर हमने 50 रु नक्की किये और चल पड़े। 
वो  हमको इतिहास बताता रहा और बारीकी से हर चीज दिखता रहा तब हमको भी लगा की गाईड करना महंगा सौदा नहीं था फिर 50 रु में आजकल क्या मिलता है।  
मंदिर देखकर जब हम निकले तो मन प्रसन्न था  बाहर काफी बड़ा बाजार लगा था जहाँ हैंडमेड चीजे थी और काफी सस्ती भी थी हमने काफी खरीदारी की और चल पड़े अगली डेस्टिनेशन पर। ... 

शेष अगले भाग में। .... 







           


 हमारा हॉलिडे गेस्ट हॉउस 




 नाश्ता करने पहुंची हमारी टीम 



गर्मागर्म पराठा 

   

चंद्रभागा बीच


कोणार्क की नृत्य करती गणिकाएं


प्रवेश द्धार के सामने खड़े दो सिंह 



रथ में जूते घोड़ों में  बचा इकलौता घोड़ा  

हमारी टीम 





प्रवेश द्धार पर लगा पहला पहिया 




सूर्य मंदिर का आखरी पहिया 



अगले भाग में चलेगे जगन्नाथ मंदिर के  ध्वज बदलने का दृश्य। 






5 टिप्‍पणियां:

Abhyanand Sinha ने कहा…

Sundar, rochak aur labhkari

Sachin tyagi ने कहा…

रथ के 12 पहिये है जो साल के 12 महीने दर्शाते है और पहियों के अंदर 8 धारिया समय के आठ पहर को दर्शाती है । अब ये पहिये ही इस मंदिर की पहचान बन गए है।
बढिया जानकारी बुआ।

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

धन्यवाद अभ्यनन्द जी

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

थैंक्स सचिन

Harshita ने कहा…

आदमी शेर और हाथी वाला फ़ोटो मैंने भी लिया था।