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बुधवार, 23 अगस्त 2017

यात्रा जगन्नाथपुरी ( YATRA JAGANNATHPURI -- 9 )



*यात्रा जगन्नाथपुरी* 

भाग -9  

बनारस भाग -2   



सीता जी 



28 मार्च को मेरा जन्मदिन था और इसी  दिन मैं अपनी सहेली और उसके परिवार के साथ जगन्नाथपुरी की यात्रा को निकल पड़ी |

3 अप्रैल 2017 

कल हमने भुवनेश्वर खूब घुमा रात को बहुत थकान हो गई थी इसलिए बाहर ही खाना खाकर आये और जो लुढ़के तो सुबह नींद खुली।  संब सो रहे थे क्योकि आज 12 ;30  बजे की ट्रेन से हमको बाराणसी यानी बनारस जाना था। ----हम है बनारसी बाबू  ... 

हम नाश्ता कर स्टेशन पर आ गए गर्मी बहुत थी। हमारी ट्रेन नीलांचल एक्सप्रेस ठीक अपने निर्धारित टाईम 12 ;30 पर भुवनेशवर स्टेशन पर आ गई और हमने ट्रेन में अपनी सीट पर पहुंचकर  A c की ठंडी हवा से राहत पाई ।  भुवनेश्वर से बनारस का रास्ता काफी लम्बा है 1098 KM का रास्ता तैय करती है ये ट्रेन और इसका आखरी मुकाम है नई दिल्ली। हम कल सुबह 6 बजे ही बनारस पहुंचेगे। रास्ते में गाना गाते गुनगुनाते और ताश खेलते कब सफर कट गया पता ही नहीं चला।

वाराणसी पहुंचकर हम कार से इलाहबाद पहुंचे त्रिवेणी में स्नान कर हम किनारे पहुंचे। .. अब आगे ----- 

गंगा स्नान कर हम कपड़े बदलकर सीतामढ़ी को चल दिए। 

इतिहास ;---
सीतामढ़ी ,उत्तरप्रदेश राज्य के भदौही जिले में स्थित है,हाल ही में भदौही जिले का नाम संत रविदास नगर भी रखा गया था ।जिला भदौही कॉरपेट सिटी के नाम से भी विख़्यात है यहाँ के कालीन दुनियां भर में फ़ेमस है। सीतामढ़ी मंदिर इलाहबाद और वाराणसी के मध्य स्थित है और जंगीगंज बाजार से 11 किलोमीटर दूर गंगा किनारे ही स्थित है कहते है यहाँ सीतामाता धरती में समा गई थी। यहाँ हनुमानजी  की 110 फीट ऊँची मूर्ति है। यह मूर्ति विश्व में सबसे ऊँची हनुमान जी की मूर्ति के लिए प्रसिध्य है।

  

सीता समाहित स्थल ;--

इस मंदिर के आसपास महुए के पेड़ बहुतयात में लगे थे गर्मी बहुत थी सामने ही हनुमान जी की 110 फीट उंच्ची प्रतिमा लगी हुई थी इस प्रतिमा की पूंछ टूट गई थी जिसके कारण निचे बना मंदिर भी टूट गया था और अब यहाँ उसका निर्माण हो रहा था। आगे जाकर हमको शिवजी का एक मंदिर मिला जिसको गुफा की तरह बनाया गया था और जिसके शिखर पर भगवान शिव खुद बिराजमान थे और उनकी जटाओ में से गंगा निकल रही थी। कुछ आगे सीतामाता का मंदिर बना हुआ था , यह मंदिर मुझे पुराना नहीं लगा नया ही बना हुआ लगा लेकिन यहाँ तक गंगा नदी आई हुई थी चारों और गंगा का पानी फैला हुआ था। हो सकता है पानी रोककर रखा  गया हो क्योकि कुछ दूर गंगा का घाट नजर आ रहा था। मंदिर के अंदर सीता माता की मूर्ति थी और ऊपर के माले पर एक बड़ा सा सीतामाता का स्टैचू बना हुआ था।
कुछ आगे जाकर लवकुश के जन्मस्थान और महर्षि वाल्मीकि के आश्रम भी बने हुए थे। पर ये सब मुझे नए ही बने हुए दिखे कोई भी पुरातन मंदिर मुझे नहीं मिला। 

यहाँ से निकलकर हम सीधे वाराणसी को चल दिए ,मुझे गंगा आरती देखनी थी क्योकि कल हमारी गाड़ी थी और आज ही सब निपटाना था। सारा दिन भूखे प्यासे घूम रहे थे खाना भी किसी ने नहीं खाया था इसलिए एक जगह रूककर सबने चाय पी और हल्का नाश्ता किया और फिर अपनी मंजिल को चल दिए। लेकिन, बनारस की छोटी- छोटी गलियों और रास्ते पर भयंकर जाम होने के कारन हम रात तक वाराणसी पहुंचे और गंगा आरती से महरूम हो गए। सूरज को जीप का 3300 किराया चुकाकर बिदा किया और दिनभर थकेहारे हम भी खाना खा अपनी धर्मशाला में आकर सो गए। 

कल बाबा विश्वनाथ के दर्शन और गंगा भ्रमण    

  

 हनुमान जी 110 फिट ऊँची प्रतिमा 



गूगल बाबा से लिया चित्र जब हनुमानजी की पूंछ सलामत थी 


 शिव जी का मंदिर 


और ये मैं ---शिव भक्तन 







 हमारी टीम 


 कहते है यही सीता जी घरती में समाई थी एक चित्रकार का बनाया चित्र 



हमारी टीम  



 चारों और गंगा बिच में बना मंदिर 


 मेरे पीछे गंगा नदी 



महुये का पेड़ 


 मंदिर का चित्र गूगल बाबा से 


सीतामाता का मंदिर 







3 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

महुआ के पेड खजुराहो में बहुत देखे थे।

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " 'बंगाल का निर्माता' की ९२ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Preeti 'Agyaat' ने कहा…

सुन्दर विवरण