मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

मेरे गुरु की नगरी ~ हुजुर साहेब --पार्ट -2





तख़्त श्री सचखंड साहेब  'नांदेड ' 


गुरुद्वारा  संचखंड साहेब  


अन्दर का द्रश्य --यह खालिश सोना हैं 

हम तारीख10 सितम्बर  को  हुजुर साहेब नांदेड की यात्रा पर निकले थे --आज दूसरा दिन हैं ... मेरे साथ मेरी सहेली रेखा हैं ....

"मेरे गुरु की नगरी भाग १ --पढने के लिए यहाँ क्लिक करे "



आज  सुबह  -सुबह  हम फटाफट तैयार हुए --क्योकि आज हमें गुरुद्वारे के दर्शन  करना थे  --कल हम जा नहीं पाए --आज ही हमें दुसरे ५-७ गुरुद्वारों के भी दर्शन करने थे --तो चलते हैं  अंदर -------




अन्दर का द्रश्य ---सुबह की तैयारी चल रही हैं -- सुबह चारो दरवाजे खुल जाते हैं --स्नान कराकर गुरु का अमृत और प्रसाद का वितरण होता हैं --फिर आशा -दी - वार का पाठ होता हैं --जिसे संगत श्रद्धया  से  सुनती हैं --  कीर्तन से सारा माहौल भक्तिमयी हो जाता हैं --- अन्दर महाराज के शास्त्र रखे हैं और उनकी 'कलगी' रखी हैं..जिसे 'आपजी' अपने सर की पगड़ी में सजाते थे --रात को उनके शास्त्रों को संगत को दिखाया जाता हैं ..
    




( किसी  त्यौहार में  दरबार साहेब की रौनक .... चित्र --गूगल )





अन्दर क दरवाजा --गुरुद्वारे में चार दरवाजे हें जो सुबह और शाम को खुलते हैं इसमें किसी को अन्दर जाने की इजाजत नहीं हैं सिर्फ जत्थेदार ही जा सकते हैं -- जिन्होंने सेवा ले रखी हैं --इस समय यहाँ के जत्थेदार सरदार कुलवंत सिंह जी हैं -- जो सेवा में रहते हें--जत्थेदार  जीवन भर शादी नहीं करता ?
ऐसा  क्यो हैं  मुझे नहीं पता ? यहाँ गुरु-- शिष्य  परम्परा हैं ---जो काबिल होता हैं उसी को जत्थेदार बनाया जाता हैं जो अपने जीवन काल तक  सेवा  करता हैं --उसकी म्रत्यु के बाद दूसरा बनता  हैं---  





यह हैं  प्रसाद -घर ---यहाँ आप चाहे जितने का प्रसाद खरीदो आपको उतना ही मिलेगा चाहे आप 100 का खरीदो या 10 रु का --आपको एक समान ही मिलेगा  --


( बड़ा ही सुंदर हाथी -मेरे साथी-- दीपक हैं )


 (यह हैं गुरूद्वारे में जलती अखंड ज्योत )


(यह हैं गुरु  गोविन्द सिंहजी  का असली फोटो )
उनके चेहरे पर एक बड़ा सा मस्सा  हैं 




(यह  हैं  नगाड़ा --जो रात को अरदास के वक्त बजता हैं) 


(अन्दर की खुबसुरत सजावट --दीवारों पर सोने की कारीगरी  )


(और बाहर... दो खुबसूरत महिलाए ) 




यह हैं ऐतिहासिक बावली -- कहते हैं यहाँ रोज आज भी महाराज आकर स्नान करते हें --रात को उनके  कपडे यहाँ रखे जाते हैं जो सुबह गीले मिलते हैं -- ( मैने नहीं देखा ? ) सिर्फ सुना हैं , क्योकि यह सिर्फ सुबह ४बजे ही खुलता हैं संगत के दर्शन हेतु ....बाद में यह बंद रह्ता हैं --- 




(हजूर साहेब में मनाए  जाने वाले त्यौहार) 





(कीर्तन चल रहा हैं ---लंगर साहेब गुरुद्वारे में )



इतिहास :----


अब आपको बताती हूँ गुरु गोविन्दसिंहजी महाराज के  नांदेड आगमन की कथा--गुरूजी पंजाब छोड़कर नांदेड क्यों आए :----


" सचखंड वसे  निरंकार"   

गुरु गोविन्द सिंह जी का सम्पूर्ण जीवन (बचपन छोड़ कर )पंजाब की सरजमी पर व्यतीत हुआ --अंतिम सुनहरी यादे तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब को अर्पित हैं भारत के कोने -कोने को अपनी पावन भेट देकर पवित्र किया --अपने माता -पिता  और चारो बच्चो को देश और कौम और धर्म की खातिर न्योछावर करने के बाद उन्होंने  दमदमा साहिब (मालवा देश )में प्रवेश किया --औरंगजेब की मौत के बाद उसके बड़े बेटे बहादुर शाह को दिल्ली के तख्त पर बैठाया जो गुरु जी का मुरीद था -- फिर आपजी दक्षिण दिशा को रवाना हो गए ..

दक्षिण दिशा जाते हुए जब वो नांदेड पहुंचे तो गोदावरी नदी के किनारे बसा यह नगर उन्हें बहुत भाया --यहाँ का  शांत वातावरण उनके मन को सुकून देने वाला था --पर यह इलाका बहुत खराब और बंज़र था  यहाँ की भूमि  उपजाऊ नहीं थी - -पर इस बंज़र भूमि को गुरूजी ने अपनी मधुर वाणी से आलोकिक किया --अपना आखरी समय उन्होंने यही गुज़ारा --संवत १६६५ कार्तिक सुदी  दूज के दिन गुरूजी ने खालसा पंथ को गुरु ग्रन्थ साहिब के चरणों में  सौप  दिया -- और गुरु की गद्धी को ग्रन्थ को सौपकर उस महान ग्रन्थ को गुरु का ख़िताब देकर आगे से गुरु परंपरा को  खत्म किया --जो गुरुग्रन्थ साहिब कहलाता हैं --सारे खालसा -पंथ को उन्होंने आदेश दिया ----

 "आगिया भई अकाल की तबै चलायो पंथ !
  सभ  सीखन  को हुकम हैं गुरु मानिओ ग्रन्थ !
गुरु ग्रन्थ को मानियो प्रगट  गुरां  की देह !
जो प्रभ को मिलबो चहै खोज शब्द मैं  लेह ! "
                                                 (पंथ प्रकाश )
   

(गुरु ग्रन्थ साहेब को गुरतागद्दी  सौपते हुए दशमेश पिता ) 


दसमेश पिताश्री गुरु गोविन्दसिंह जी का नांदेड की सरजमी के लिए  यह फरमान हैं की--- "मैं अपने हर सिक्ख का ६० साल  की आयु तक प्रतीक्षा करूँगा "---इसलिए हर गुरु के सिक्ख का यह फर्ज बनता हैं की वो अपनी भागदौड भरी जिंदगी से कुछ समय निकाल कर  इस स्थान का दर्शन करे और अपना जीवन सफल बनाए ....(शेष ..इतिहास अगली किस्त में )




"चलिए  दोपहर को बागीचे की सुंदरता  में चार चाँद लगाए" 



"तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल हैं
    जहाँ भी जाऊ ये लगता हैं तेरी महफिल हैं " 


(फूल---- आहिस्ता तोड़ो --फूल बड़े नाजुक होते हैं )


(सिर्फ तेरी कमी हैं --इस आशियाने में ?????



( बिन तेरे न इक  'पल' हो 
न बिन तेरे कभी 'कल' हो )


(" कितना हंसी हैं मौसम" ----चांदनी नहीं हैं  तो क्या ...धुप तो हैं ?


शेष अगली कड़ी में जारी ------




11 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

दरबार साहेब की रौनक तो देखने लायक है ।
अन्दर और बाहर की खूबसूरती भी बहुत भायी ।

गुरु गोविन्द सिंह जी के बारे में यह जानकारी बढ़िया लगी ।
आभार ।

रविकर ने कहा…

प्रभावशाली प्रस्तुति ||

बहुत-बहुत बधाई ||

शुभ विजया ||

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

खूबसूरत चित्रावली संग सुन्दर जानकारी परक पोस्ट...
सादर आभार....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

नयनाभिराम चित्रों के साथ ऐतिहासिक जानकारी बहुमूल्य है।
आपके साथ-साथ हमने भी भव्य गुरुद्वारे की परिक्रमा कर ली।
गुरु गोविंद सिंह जी को नमन।

मदन शर्मा ने कहा…

आदरणीय दर्शन कौर जी नमस्ते
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

SANDEEP PANWAR ने कहा…

जाना है जी तीसरी बार जल्द ही जाना है।

इसलिए हर गुरु के सिक्ख का यह फर्ज बनता हैं की वो अपनी भागदौड भरी जिंदगी से कुछ समय निकाल कर इस स्थान का दर्शन करे................
अगर यह होता कि हर सिक्ख का गुरु के लिये फ़र्ज बनता हैं की वो अपनी भागदौड भरी जिंदगी से कुछ समय निकाल कर इस स्थान का दर्शन करे................

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

@ संदीप कान इधर से पकड़ो या उधर से --बात बराबर ही हैं

Satish Saxena ने कहा…

बड़ी रौनक रही यहाँ ...
शुभकामनायें आपको !

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना ....

Rakesh Kumar ने कहा…

इस पोस्ट पर देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.
बहुत सुन्दर जानकारियाँ दीं हैं आपने.

'(फूल---- आहिस्ता तोड़ो --फूल बड़े नाजुक होते हैं )'

आपके फोटो और आपका अंदाज,वाह! क्या बात है.

सागर ने कहा…

गुरु गोविन्द सिंह जी के बारे में यह जानकारी बढ़िया लगी ।
आभार ।