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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

"ओरछा की कहानी मेरी जुबानी"



"ओरछा की कहानी मेरी जुबानी"
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23 दिसम्बर 2016 


दिसम्बर की एक खूबसूरत शाम जब हम ओरछा के लिए निकले | ओरछा मध्यप्रदेश का एक ऐतिहासिक शहर है जो की झाँसी से18 किलोमीटर की दुरी पर है जिसे आप  आधे घण्टे में पार कर सकते है  ।यहाँ पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाईअड्डा है --खजुराहों  जो  मात्रा 163 किलोमीटर पड़ता है ।  झाँसी शहर किसी परिचय का मोहताज नहीं है हम सबने सुभद्रा कुमारी चौहान की फेमस पँक्तिया सुनी है ;-----
''   बुन्देलों हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी । ''


भारतीय इतिहास में ओरछा का अपना ही महत्व है । 

इतिहास 

ओरछा का इतिहास 8 वीं शताब्दी से शुरू होता है पंचम बुंदेला के वंशज सम्राट रूद्रदेव ने ओरछा शहर की स्थापना की  । यहाँ का भव्य किला बनवाया । इस शहर की सबसे रोचक कहानी यहाँ के मन्दिर की है । यहाँ के राजा मधुकर शाह 1554 ई. में ओरछा की गद्दी पर बैठे वो कृष्ण भक्त थे पर उनकी रानी गनेश कुँवर राम भक्त थी ,जब मधुकर शाह ने पत्नी को ब्रज चलने को कहा तो वो  बोली हम अवध चलेगे इस पर राजा क्रोधित हुए और उन्होंने रानी को आदेश दिया की जब तक वो अवध से राम को लेकर नहीं आएगी तब तक ओरछा न लौटे । रानी भी क्षत्रिय थी वचन दे दिया की रामलल्ला के साथ ही  लौटेगी । अवध पहुंचकर जब गणेश कुँवरी ने श्री राम को ओरछा चलने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया तब निराश हो रानी ने सरयू के तट पर  धोर तपस्या की जिससे प्रसन्न हो राम ओरछा चलने को तैयार हो गए  । लेकिन उनकी एक शर्त थी की --'' मैं चलूँगा पर  पहली बार तुम मुझे जहाँ स्थापित करोगी मैं वही रहूँगा ।'' रानी ने हा कर दी अब,  रानी श्री राम को लेकर ओरछा पहुंची तो राजा बहुत प्रसन्न हुए  लेकिन उस समय मन्दिर बना नहीं था इसलिए मूर्ति को रानी ने अपने रनिवास में ही स्थापित कर दिया ,जब मन्दिर का निर्माण हुआ और उसको चतर्भुज मन्दिर का नाम दिया ,निश्चित तारीख को जब मूर्ति स्थापित करने का टाईम आया तो मूर्ति अपने स्थान से हिली भी नहीं हारकर मूर्ति को रनिवास में ही रहने दिया और उसी को राम राजा मन्दिर का नाम दिया । इसी मन्दिर के चारो और शहर बसा है और हर साल रामनवमी यहाँ बड़े धूमधाम से मनाते है ।   

यहाँ के अन्य ऐतिहासिक जगह है ;---

1 जहाँगीरमहल    
2 राम राजा मन्दिर 
3  चतुर्भुज मन्दिर  
4े राय प्रवीण मन्दिर 
5  लक्ष्मीनारायण मन्दिर
6 फूलबाग 
7 सुंदर महल । 

यहाँ दो मीनारे ऐसी है जिन्हें कहते है की भादो के महीने में आपस में जुड़ जाती है । 

अब हमारी कहानी 

मेरा एक व्हाट्सअप ग्रुप है जिसका नाम है ---''घुमक्कड़ी.... दिल से '' जिसे घुमक्कड़ी करने वाले लोगो ने बनाया है जिसमें यात्रा ब्लॉक लिखने वाले लोग भी शामिल है और इसी कारण  मैं भी इस ग्रुप की सक्रिय सदस्य हूँ;उमर में सबसे बड़ी होने के कारण सभी मुझे  प्यार से बुआ कहते है और बहुत स्नेह रखते है ।   सभी घुमक्कड़ समय समय पर मिलते रहते है एक दिन विनोदगुप्ता  ने बातो बातो में एक मिलन की रुपरेखा बनाई  और सबने इस पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी  ,अब जाया कहाँ जाये ?इसको सुलझाया ओरछा निवासी   मुकेश कुमार पांडे'चन्दन'  जी ने जो वहां आबकारी अधीक्षक के पद पर असीन है । उन्होंने ही सारे इंतजाम किये ।  
और इसतरह हमारा महामिलन ओरछा में हुआ । 
ओरछा आना मेरा 99% नहीं था क्योंकि मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि मेरे परिवार वाले मुझे एक अंजान शहर में मेरी शारीरिक प्राब्लम की वजय से अकेले कभी नहीं जाने देगे । इसलिए मैंने भी ओरछा आना सीरियस नहीं लिया , न तो रिजर्वेशन  करवाया और न घर में जिक्र किया ।पर जब सभी प्यार से बहुत जोर देने लगे तो मैंने घर पर बात की और रिजल्ट वही ढाक के तीन पात ..... 

फिर एक दिन विनोद और प्रतिक जो बॉम्बे ही रहते है घर आये और उन्होंने सबको दिलासा दिलाया कि हम अपनी जुम्मेदारी पर ले जायेगे बुआ कोे ; इजाजत तो मिल गई पर सन्नी बेटे को फिर भी आशंका थी की मुझे कौन संभालेगा ।
खेर, तैयारी तो कर ली पर टिकिट इन दोनों की कम्फ़र्म नहीं थी ,मामला फिर टांय- टांय -फिसस्स ... सो, एक दिन पहले तत्काल में भी संजय कौशिक जो हमारे एडमिन है, के थ्रू टिकिट करवाई पर यहाँ भी 28 वेटिंग् आया तो मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया वो भी बर्फ वाला ।

मैंने गुस्से में बेग से सामान निकाल कर रख दिया अब तो श्योर था कि नहीं जाना हैं । संजय को बोला की टिकिट केंसिल करवा दो अब आना मुश्किल है ।

उधर उसी दिन मिस्टर का भी एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया और रही सही उम्मीदों पर पानी फेरने का काम हुआ। लेकिन ग्रुप का इतना आग्रह था कि मन मेरा तो 100% जाने का था।पर टिकिट कम्फ़र्म हो और सीट हो तो मिस्टर भी ना नहीं कहेंगे ,ऐसा मुझे विश्वास था।

और फिर एक हल्की सी किरण नजर आई जब 4.35 को पता चला की एक सीट कम्फ़र्म हो गई ,अब मन में आस की डोर बन्ध गई थी, प्रतिक ने भी उस ड़ोर की गांठ को कस दिया की आपको हर हालत में चलना ही है ,उधर हमारे एडमिन संजय कौशिक और किशन बाहेती  भी डटे हुए थे ।  डरते -डरते मिस्टर से पूछा तो उन्होंने एकदम  मना कर दिया की इतनी ठंडी में क्या करेगी ।
अब मेरी असमर्थता  आंसुओ में ढल गई ,और ये देखकर उनका भी दिल पसीज गया( महिलाओ का आखरी हथियार ) और मेरी जीत हुई ....

फिर क्या था 5 बज रहे थे और दादर से 7.55 की पंजाब मेल पकड़नी थी ,घर से दादर पहुँचने का टाईम 2 घण्टे तो फिक्स था और 15 मिनट तैयार होने में और 15 मिनट स्टेशन पहुँचने में लगना था ,फटाफट बेग जमाया स्वेटर और कम्बल लिए कपड़े पहने और 5:30 को घर से निकल गई ,6.00बजे की लोकल में बैठकर ऐसा लग रहा था मानो एक जंग तो जीत ली  । इतने कम टाईम में घर से निकलना जिंदगी का ये मेरा पहला अनुभव था ।

अब, दूसरी जंग थी मेरा टिकिट ,जो निकाला ही नहीं गया था बगैर टिकिट के ट्रेन में सवार हो गई , सोचा की रेल्वे कर्मचारी होने का लाभ उठाया जाय और टी टी पतिदेव के नाम का इस्तेमाल कर के ये जंग भी फतेह कर ली। .....

रास्ते में विनोद की लाई आलू -मटर की टेस्टी पूरी खाई और उसकी बकबक सुनते रहे , खंडवा से हमारे दो और साथी आ मिले  मनोज धारकर और अलोक अब हम कुल 5 लोग हो गए  सभी दोपहर 2 . 30  को झांसी स्टेशन उतर गए

झांसी में पांडे जी ने कार भेजी और साथ ही सूरज को भी जिसको पहली बार देखा, देखते ही सूरज ने पैर छूकर सम्मान दिया। ..  रास्ता सूरज की बातों में निकल गया और जैसे ही हाल में कदम रखा तो जिंदगी में ऐसा  सुनहरा पल कभी नहीं देखा ,चारो और से "बुआ - बुआ" का शोर मानो कोई VIP आ गया हो । सारे चेहरे जाने-पहचाने ख़ुशी की इतनी इन्तहां थी की कौन गले मिल रहा है और कौन पैर छू रहा है कुछ ध्यान ही नहीं , पहली बार मिल रही हूँ ऐसा एहसास तो था ही नहीं ,भतीजे तो भतीजे, उनकी पत्नियां और बच्चे भी गले मिल रहे थे और पैर छू रहे थे। यह दृश्य जिंदगी में कभी नहीं भूल सकती।और शायद जिंदगी में ये पल कभी आएगा भी नहीं ।

बच्चो की उमर के भतीजो से बुआ सुनना और अपने हम उमर रमेश जी से भी बुआ सुनना अपने आप में कम रोमांचक नहीं है ..
थैंक्स प्रतिक,विनोद, मनोज ,आलोक जिनके साथ सफर आराम से और मजे से गुजरा ।

संजय,किशन,रितेश ,बीनू और पांडे जी जिनके प्रयास और प्रोत्साहन की बदौलत मैं ओरछा आई और इस मीटिंग को अटेन्ड किया ।

मुकेश भालसे  और उनकी पत्नी कविता भालसे , हेमा,संजय कौशिक और उनकी पत्नी नीलम , रितेश और उनकी पत्नी रश्मी , प्रकाशजी और उनकी पत्नी नयना , सचिन त्यागी और उनकी पत्नी ,पांडेजी और उनकी पत्नी इन सबका सहयोग भी काफी रहा , महिलावर्ग में मैं सिर्फ कविता से परिचित थी लेकिन सभी बहुओं ने मुझे आदर और सम्मान दिया । इनका तहे दिल से धन्यवाद करती हूँ।

ग्रुप के वो भतीजे जिनसे पहली बार मिली तो लगा ही नहीं की आज पहली बार मिल रही हूँ ,जैसे ही शक्ल देखती तो नाम भूल जाती थी पर तुरंत याद आ जाता था कि ---"अरे ये तो वो है?

अंत मैं मुकेश पांडे जी का सबसे ज्यादा सहयोग और आग्रह के लिए धन्यवाद जिनके प्रयासों के तहत हम सब एक साथ इतने लोग जुड़े और मिले और इस मिलन को यादगार बनाया।
दो दिवसीय इस प्रोग्राम का उद्देश्य सिर्फ मिलना मिलाना ही नहीं था बल्कि वहां पेड़ भी लगाये गए और ओरछा का इतिहास जानने का मौका भी मिला। इतिहास की धरोहर ओरछा का किला , माँ समान बेतवा नदी और राजा राम मंदिर के दर्शन भी हुए जहाँ आज भी रामलल्ला को सरकारी ऑनर मिलता है ।देखकर बहुत ख़ुशी हुई ,
आरती के बाद यहाँ की ऐतिहासिक स्टोरी 'लाईट ऐंड साउंड' के माध्यम से देखना और सुनना काफी सुखद रहा । ऐसा महसूस हो रहा था मानो हम भी बुंदेलों के समय में पहुँच गए हो और चारों और से आवाजे आ रही हो की -- "बुंदेलों के मुख से हमने सुनी कहानी थी -----------"
वापसी में निकलते हुए कई यादगार पल थे , बिछोह का गम था, फिर मिलने का वादा था और एक और सेल्फी की भूख थी और याद था सबका स्नेह जो मैं साथ लेकर जा रहे थी  ...
जय माँ बेतवा और जय राजा राम की ।

अन्य मिलने वाले ;---
1 सचिन जांगड़ा 
2 नरेश सहगल 
3 कमल सिंह 
4 पंकज जी 
5 रोमेशजी  
6 प्रकाश यादव जी 
7 डॉ प्रदीप त्यागी जी 
8 डॉ सुमित शर्मा जी 
9 हेमा जी 
10 सुशांत सिंधल जी 
11 संजय कुमार सिंह जी 
12 रूपेश कुमार 
13 रामदयाल 
14 रजत 
15 नटवर लाल भार्गव 
16 हरेन्द्र  
17 सूरज मिश्रा
18 संदीप मन्ना 
सबका हार्दिक स्वागत है इस महामिलन के लिए अभिनन्दन । 

झाँसी पहुंच गए ,प्रतिक ,विनोद ,मनोज ,आलोक और मैं 


खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी 

प्रतिक, मैं ,कविता,और मनोज 

 ओरछा की सुबह 

और ये वो अर्जुन का पेड़ है जहाँ 'कैटरीना' ने स्लाइस कोल्ड ड्रिंक  की मॉडलिंग की थी ।  मुझे भी vip फीलिंग हुई थी क्योकि देश के होनहार और हमारे ग्रुप के कैमरामैनों  ने अपने अपने कैमरों से मेरा फोटू खीचा था । 





 नटवर,कमल,मैं ,बीनू और पाण्डे जी 


 गरमा गर्म नाश्ता 


 पंकज जी की एक अदा  सेल्फी हो जाये रे 

एडमिनो की मीटिंग 


 बच्चो ने क्रिसमस भी धूमधाम से मनाया   
भतीजो के बीच बुआ 



प्रकाश यादव के कैमरे से ओरछा  

जंगल में मंगल दाल बाटी चूरमा के साथ  
मेरे पीछे भव्य ओरछा 


घुमक्कड़ी जिंदाबाद 

झाँसी स्टेशन पर वापसी 

 पीछे की दो मीनार जो आपस में जुड़ जाती है 

क्या बात 


राजाराम मन्दिर के बाहर दो तोपे 

प्रतिक, मन्ना,मुकेश और आलोक दूसरे गृह के प्राणी  


ओरछा की खूबसूरत गालिया 

ओरछा का लक्ष्मीनारायण मन्दिर 


अनिमेष बाबू , महिला वर्ग को आश्चर्य से देखते हुए 



सूर्यास्त 


राजाराम मन्दिर 


सचिन जांगड़ा 

लाईट ऐंड साउंड शो 


इंजॉय 
महिला वर्ग भी पीछे क्यों रहे   

माँ बेतवा के ग्रेनाइड पत्थरो पर विराजत साधु महाराज 

चतुर्भुज मंदिर की अट्टालिकाएं 


ये गालिया ये चोबारे यहाँ आएंगे दोबारे 




विनोद की मस्ती और  नोका विहार 



और अंत में हमारे ग्रुप के होनहार फोटूग्राफर मित्र सुशांत सिंघल जी अपनी ही मस्ती में मस्त 


जयपुर की सैर भाग == 11 ( Jaipur ki sair == bhag 11)



जयपुर की सैर  भाग ==11 
{वापसी }


एरोड्रम जयपुर 



तारीख 13 को  हम बॉम्बे से 3 सहेलियां निकली थी जयपुर जाने को  'सम्पर्क क्रांति ट्रेन ' से और वो  रात कयामत की रात थी। ... 

अब आगे -----

24 अप्रैल 2016  

कल की रात हमने अकेले दोस्तों के साथ बिताई , कल की रात जयपुर की हमारी आखरी रात थी जिसे हमने खूब इन्जॉय कर के गुजारी आधी रात बड़ी मुश्किल से सोये क्योकि आजादी की आखरी रात थी कल का सूरज फिर घरगृहस्थी की बेड़ियां ले कर आएगा और हम ख़ुशी ख़ुशी उन जंजीरो को चूमकर ,हँसते हुए " मेरा रंग दे बसन्ती चौला" गाते हुए अपने अपने घर का रुख करेगे ।

आज हम जयपुर से रवाना हो रहे है हमारी फ्लाईट ठीक 2 बजे की है और हम बहुत एक्साइट है क्योकि ये मेरी पहली हवाई यात्रा है। ..
 सुबह हम जल्दी  उठ गए और मस्त नाश्ता बनाया फिर मिलकर खाया  ।  फिर अरविंद आ गए और हम नीना को जयहिंद बोलकर निकल पड़े अपनी फ्लाईट पकड़ने ओर इस तरह हमारी जयपुर यात्रा पूर्ण हुई । 

    

 मैं ,अरविंद और अल्ज़िरा 











प्लेन में 





 जयपुर रन-वे पर 


 एयर इण्डिया का टेस्टी खाना  




 प्लेन से दिखता बॉम्बे शहर 


 आकाश की बुलन्दियो से  झांकते पर्वत और नदिया 





 लो जी मुम्बई आ गया 



 बॉम्बे का सहार एयरपोर्ट  







और अब बिदा