मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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गुरुवार, 16 जुलाई 2015

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा भाग 1

एक बार फिर डलहौजी की यात्रा
भाग 1 





डलहौजी 





28  सितम्बर  2014

मैँ बड़ी बेटी , बेटा सन्नी और बहु किरण हम चारों  सुबह फटाफट उठकर तैयार हुए .आज सुपर फ़ास्ट जम्मूतवी ट्रेन से पठानकोठ जा रहे है ..वैसे तो हम शादी में जलन्धर जा रहे है पर वहां हमको 1-2  अक्टूम्बर को पहुंचना है इसलिए सोचा की  2 दिन के लिए डलहौज़ी भी हो आयेगे क्योकि सन्नी और किरण पहले वहां नहीं गए हुए थे ।
शादी किरण की भाभी के भाई की थी जो नवांशहर में होनी थी हमको भी उन्होंने इन्वाइट किया था काफी फ़ोर्स था इसलिए मुझे भी जाना पड़ा।
गाड़ी में काफी लोग थे दूल्हा उसके पापा- मम्मी,किरण की भाभी और किरण के मम्मी पाप भी थे ।सब साथ ही जा रहे है....गाड़ी में बहुत मज़े किये....सबके साथ इतना लम्बा सफ़र देखते ही देखते कब पास हो रहा था।
कोटा जंक्शन आते ही देवर देवरानी उनके दोनों बेटे दोनों बहुएं और मेरी एक ननद हमसे मिलने गाडी पर आये ।कोटा में करीब 20 मिनट गाडी रूकती है । बॉम्बे से चला रेलवे का सारा स्टाफ यहाँ बदलता है ।मिस्टर जब इस गाडी में आते थे तो कोटा अपने घर चले जाते थे और दूसरे दिन वापस दूसरी गाडी लेकर बॉम्बे आते थे। खेर , अब तो TT की नोकरी से रिटायर्ड हो गए है।
हा तो कोटा से काफी खाने का सामान और मिठाई आ गई थी। वैसे तो खाने का काफी सामान हमारे पास था।जिसे रास्ते भर हम खाते रहे ...

यहाँ एक रोचक मामला हुआ :-
हुआ यू की हम दिनभर थर्ड AC में बैठे बैठे बोर हो गए थे और हम कुछ लेडिस घूमने गाडी में निकल पड़े ।इस बोगी से उस बोगी में जाना हिलते हुए  बड़ा मज़ा आता है। हम जैसे ही पेंट्री-कार में पहुंचे वहां उन्होंने माताजी को बैठा रखा था नवरात्रि के दिन थे और माताजी की बहुत बढ़िया झांकी बना रखी थी । हम लोगो ने दर्शन किये और प्रसाद लिया ।लगे हाथो वेटरों ने हमको शाम को 7 बजे आरती में भी इन्वाइट कर लिया । अब हम 7 बजे का इंतजार करते रहे जैसे ही 7 बजे हम सब चल दिए पर हमको थोडा और जल्दी जाना था क्योकि ठीक 7 बजे उन्होंने आरती शुरू कर दी ।हम जब पहुँचे तब तक समापन हो चूका था । खेर ,उन्होंने कहा की अब आप भजन गा दो और हम लोग जो याद थे वो भजन गाने लगे  उनमें से एक ढोलकी बजाने लगा और हम सब तालिया । आसपास से भी कई मुसाफिर आ गए और सब तालियां बजाने लगे यह सब 1 घण्टे तक चला बहुत ही बढ़ियाँ माहौल हो गया था पर हमको बहुत गुस्सा आया क्योकि मोबाईल और कैमरा हम अपनी सीट पर ही छोड़कर आये थे वरना फोटु खीच लेते यादगार रहती ।हम लोगो ने सारे सफ़र में बहुत इंजॉय किया ....

सब लोग जालंधर उतर गए और अब हम चारो पठानकोट जा रहे थे अकेले हो गए थे इसलिए चुपचाप बैठे रहे ।


सुबह 11 बजे  हमारी गाडी चक्कीबैंक  पहुंची जो अब पठानकोट रोड के नाम से जाना जाता है .....वहां बेटे का FB दोस्त प्रीत अपनी कार से  लेने आ रहा  था हम स्टेशन पहुंचे तो प्रीत वहाँ आया नहीं था  हम उसका इंतजार करने लगे  वही एक मालगाड़ी  मिलिट्री का सामान लेकर खड़ी थी  हमने कुछ फोटु खिंचवाए  तब तक प्रीत भी आ गया और अब हम उसकी कार से डलहौज़ी जायेगे....
 खूबसूरत द्रश्य मन को मोह रहे  थे ठंडी हवा के झोके मन को धपकिया दे  रहे थे...और हमारी कार तेजी से डलहौजी जा रही थी ।रास्ते में बारिश भी हो जाती थी फिर बंद हो जाती थी
रास्ते में एक गाँव के पास प्रीत ने गाडि रोकी और वहां से हमारे लिए आम पापड़ ख़रीदे मैंने भी वहां से कुछ फ्रूट्स ख़रीदे जो एकदम फ्रेश थे और सस्ते भी थे 
 डलहौजी मैं इसके पहले 2010 में  जून में आई थी , उस समय भी हम प्रीत के साथ ही थे जो हमको डलहौजी  के एक होटल में छोड़कर चला गया  था । तब हमको ज्यादा आनन्द आया था।तब हमने खूब इंजॉय किया था।

शेष अगले अंक में जारी -----------





दूल्हे की मम्मी और मैं 








सन्नी और दूल्हा 


हमारा डिब्बा 


























शेष अगले अंक में -----

मंगलवार, 5 मई 2015

# कहानी # पथराई आँखों के सपने

"पथराई आँखों के सपने"
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#- उसकी गली से जब भी गुजरना होता था मेरा जाने क्यों मेरे कदम उसके दर के आगे रुक जाया करते थे एक लम्बी सांस लेकर फिर में  अचानक उस लम्बी सड़क को देखती जिस पर चलते हुए मैँ यहाँ तक पहुंची थी....
वो मेरा कुछ लगता तो नहीं था पर फिर भी मुझे उससे लगाव सा हो गया था -
कभी उस घर में जाने का सपना देखा था मैंने; वो बहुत संस्कारी और एजुकेटेड लोग थे कम से कम उनके 4 लड़को में से 2 लड़के डॉ थे । उन्ही में से एक लड़के पर मेरा दिल आ गया था ...शायद मैँ उससे प्यार करती थी...???
पता नहीं ?
उनका एक लड़का वकील था और जो सबसे छोटा था वो मेरी ही उम्र का था अभी पढ़ रहा था । मुझे वो पसन्द तो नहीं था पर अक्सर हम दोनों को दादा इंग्लिश पढ़ते थे ।
मैँ उनकी मम्मी को मौसी कहती थी और पापा को दादा कहती थी...दादा किसी कालेज में इंग्लिश के फ्रोफेसर थे। बहुत रोबीला व्यक्तित्व था उनका .... उनकी हाईट ही साढे 6 फिट थी।

अक्सर उनके घर में मेरा आना -जाना लगा रहता था । कभी माँ के काम से कभी मोसी के काम से मैँ उस घर की रौनक हुआ करती थी क्योकि उस घर में कोई लड़की नहीं थी तो सब मुझे बहुत प्यार करते थे और मैँ सिर्फ तुमसे प्यार करती थी- सिर्फ तुमसे .....

पर तुम मेरे प्यार से अनजान थे ? बात तो करते थे पर कुछ खास नहीं - न मुझे अपना दोस्त समझते थे न कोई और रिलेशन मानते थे...
मैँ व्यर्थ ही तुम्हारी राह जोहती थी । रात को जब तक तुम आ नहीं जाते मैँ सीढ़ियों पे तुम्हारा इंतजार करती थी ।मन ही मन तुम्हें पसन्द करती थी ।तुम्हारे सपने देखती थी।

फिर वो दिन आया ...
वो मनहूस काली शाम  मैँ कभी नहीं भूलूंगी जब  मेरे सपने टूटे थे ! जब मैँ जीते जी मर गई थी ! जब मेरा अस्तित्व ख़त्म हो गया था !जब मैँ तुमसे दूर बहुत दूर चली गई थी ....
तुम सब अपने गाँव गए हुये थे मुझे पता नहीं था क्योकि मैँ  अपने चाचाजी के घर गई थी # उस शाम मैँ बेधड़क तुम्हारे घर चली गई थी बहुत सन्नाटा था कोई नहीं था मैँ हर कमरे में तुम्हारा नाम लेकर घूम रही थी की अचानक एक कमरे से काफी आवाजे सुनाई दी तो मैंने झांककर देखा तो तुम्हारा भाई अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था # मुझे उसका ये रूप अलग ही नजर आया # मुझे देखकर उसकी आँखों में एक अनोखी चमक आ गई जिसे नजरअंदाज कर मैँ पलट पड़ी । मैँ बहुत सकते में थी इस मंदिर रूपी घर में शराब !!!छिः
मुझे कुछ स्पर्श हुआ देखा तो अजय था बोला # छाया यार कुछ खाने को बना दो ना मेरे और मेरे दोस्तों के लिए , बहुत भूख लगी है"।
# मैँ टाल देती तो अच्छा था शायद वो सब घिनोना नहीं होता जो हो गया था #
मैँ बड़बड़ाती हुई उसको गालियां देती हुई किचन में आ गई ...अनजान-सा भाभी वाला अधिकार कही मुंह उठा रहा था ,..
# लो छाया , कोल्डरिंग पी लो आज बहुत गर्मी है फिर आराम से बनाना # ठंडी ड्रिंक मेरी कमजोरी है वो जानता था । मैंने फटाफट ड्रिंक ख़त्म की और काम से लग गई ........

जब होश आया तो मैँ पलंग पर चित लेटी थी माँ रो रही थी और पिताजी कमरे में चक्कर काट रहे थे ।मैँ आवक थी !असहाय थी! दो दिन में मेरी दुनियां बदल गई थी।
वो मोसी बदल गई थी ? वो दादा बदल गए थे? वो प्यार बदल गया था ?वो घर बदल गया था ?रह गया था तो सिर्फ माहौल! क्रंदन ! खामोशी!!!!

मंगलवार, 31 मार्च 2015

बॉम्बे की सैर -- मेरी नजर में = भाग 8

केशव -सृष्ठि 
" कृषि तंत्र निकेतन"  




मुंबई सिर्फ सीमेंट ओर कंक्रीट का ही जंगल नहीं है , यहाँ कई प्राकृतिक वाड़ियां भी है जिन्हें "फार्म हाउस" भी कहते है। यहाँ आकर ऐसा लगता है मानो हम किसी गाँव में आ गए है ।लहराते पेड़ उनकी शीतल छाँव और ठंडा अहसास मानो उफनती हुई भीड़ को बहुत पीछे धेकल आये हो ।

इस बार सीनियर सिटीजन की टीम एक नए माहौल में ले गई ।सुबह 7 बजे हम निर्धारित जगह पर पहुँच गए ;सबको आने में समय लगा और बस साढे 7 को चली..रास्ते में हमको चॉकलेट और बिस्कुट का नाश्ता कराया गया । कुछ लोग गाना गाते हुए और हंसी मज़ाक करते हुए 2 घण्टे में केशव सृष्ठि पहुँच गए । पहाड़ों के बीच काफी हेक्टर जमीन पर बसा था केशव सृष्ठि

पोहे -चाय का नाश्ता कर के हम बागीचों की तरफ चल दिए....

यहाँ उगाई हुई सब्जियो में किसी भी प्रकार की किट नाशक दवाइयो का छिड़काव नहीं होता है ,पूर्णता: देशी तरीको से ही सब्जियां उगाई जाती है।
इस वाड़ी को श्री केशव जी ने बहुत छोटे पैमाने पर शुरू किया था आज इसका विस्तार देखते ही बनता है।
यहाँ कई आर्युवेदिक पेड़ लगे है जिनकी पहचान हम साधारण लोग नहीं कर सकते । इन्हीं पेड़ो से निकली सामग्री से ये लोग दवाइयाँ बनाते है जो यंहां बिकती भी है। कई रोगों के इलाज़ इन वनस्पतियो से कैसे होते है ये हमको बताया गया ।

यहाँ आंवला, बहेड़ा, हरड़, अश्वगन्धा, शतावरी,काली मिर्च,सफ़ेद मिर्च, कदम,सुपारी, डिकामाली,आजवाइन इनके पेड़ थे। और भी पेड़ है जिनके नाम समझ नहीं आये....
.
यहाँ एग्रीकल्चर डिप्लोमा सेंटर भी है जहाँ बच्चे वनस्पतियो से सम्बंधित ज्ञान अर्जित करते है और उन पर रिसर्च भी करते है। उनके रहने और खाने का इंतजाम यही होता है ।

यहाँ बायोगैस प्लान्ट भी है |

दोपहर को हमारे खाने पीने का इंतजाम था वही की उगाई हुई सब्जियां,दाल- चावल और सलाद परोसा गया। बहुत ही जायकेदार सब्जियां थी ।

बॉम्बे जैसे भीड़भाड़ वाले शहर में उत्तन गाँव में बसी केशव- वाड़ी सुकून देती है । पेड़ो की छाँव तले समीर के हलके थपेड़ो से एक मीठी नींद का झोंका आ जाना स्वाभाविक है ये ठण्डी बुहार दिल को तरोताजा कर जाती है...

































































गुरुवार, 5 मार्च 2015

परछाइयों का वहम !!!








उसको हमेशा मैंने उदास ही देखा है
परछाइयों के पीछे भागते हुए,,, 
छाया को पकड़ना मूर्खता है !
पर उसके वहम को तोडना मेरे लिए भी मुमकिन नहीं 

वो अपने मृत प्यार से जुड़ा है
पागलपन की हद तक
कई बार समझाया--
परछाई को पकड़ना संम्भव नहीं ?
तृष्णा के पीछे भागना मूर्खता है ?
पर वो अपने दिवा: स्वप्न से खुश है--
जानता है , पर मानता नहीं ?

उसको किसी और ने न चाहा हो ऐसा नही है।
मैंने उसको हर पल चाहा है .....
अपनी उपस्थिति उसके सम्मुख दर्ज की है ...
 इजहार -ए - मोहब्बत  की है ---
पर वो मेरे प्रति हमेशा ही उदासीन रहा
वो जानता है मैँ उसके लिए पागल हूँ ?
 फिर भी ,
वो किसी दूसरी ही दुनियाँ में खोया रहता है

कई बार सोचा ,
उससे दूर चली जाऊ,
पर हर बार मेरे प्यार का  पलड़ा,
उसकी बेरुखी से भारी ही पड़ा . ,
और मैं चाह कर भी दूर नहीं हो पाती ---
उसका सामना होते ही ,
मेरा दम्भ वही दम तोड़ देता है। 

फिर मैं पुनः जी उठती हूँ उसके अहम पर सर फोड़ने के लिए...
शायद यही नियति है हम दोनों के प्यार की!!!!!
वो अपने प्यार की लपटो में जल रहा है
और मैँ अपने प्यार में सुलग रही हूँ____?

--दर्शन कौर *

मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

"यह साल"


"यह साल"
********




साल निकल रहा है....
...कुछ नया होता हैँ....
कुछ पुराना पीछे रह जाता है....

...कुछ ख्वाहिशें दिल में रह जाती है....
कुछ बिन मांगे मिल जाती है....
कुछ छोड़ कर चले गए....
...कुछ नए जुड़ेंगे इस सफ़र में...|

कुछ मुझसे ख़फा है?
...कुछ मुझसे बहुत खुश है...
कुछ मुझे भूल गए ?
..कुछ मुझे याद करते है ...
...कुछ शायद अनजान है?
कुछ बहुत परेशां है ......
कुछ को मेरा इंतजार है...
...वो मिलने को बेकरार है.....
कुछ का मुझे इन्तजार है...?
...पर वो मुझसे मिलने को तैयार नहीं |
कुछ सही है?
....कुछ गलत भी हैँ |
देखे नया साल क्या देता है...
..और क्या लेता है....

इस साल कुछ गलती हो गई तो माफ़ कीजियेगा....
...और कुछ अच्छा लगे तो याद कीजियेगा...


--- दर्शन कौर धनोए *$%&@#÷






शनिवार, 20 सितंबर 2014

जब तक है जान

 
"जब तक है जान की तर्ज पर "
 

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तेरे हाथो में मेरा हाथ ,
मेरे लबो पे तेरा प्यार ,
तेरा आगोश 
नहीं भूलूँगी मैं 
जब तक है जान
जब तक है जान । 

पहाड़ो पर तेरे साथ घूमने से 
हर बात पे तेरे साथ हँसने से 
तेरे साथ छत पे बाते करने से 
मोहब्बत करुँगी मैं 
जब तक है जान 
जब तक है जान । 

तेरे झूठे सच्चे वादो से 
तेरे परेशान जवाबो से 
तेरे बेरहम सवालो से 
नफरत करुँगी मैं 
जब तक है जान 
जब तक है जान । 

तेरी आँखों की शोख मस्तियों से
तेरी लापरवाह शरारतो से 
तेरा पीछे से बाँहो में भरना 
नहीं भूलूँगी मैं 
नहीं भूलूँगी मैं 
जब तक है जान 

जब तक है जान !!!!!!!!! 


मंगलवार, 9 सितंबर 2014

बॉम्बे की सैर -- मेरी नजर में = भाग 7


"पांडवकडा वॉटर फॉल "
खारघर की सैर 




7 सितम्बर 2014 
आज आपको नवी मुंबई  की सैर कराती  हूँ ----
हम सपरिवार पहुंचे CBD  बेलापुर ---ये 'नवी मुंबई ' में है -सिडको ने इसे प्लान से बहुत ही अच्छी तरह से बनाया है ---यह कई सेक्टर में फैला है -- यहाँ का प्राकृतिक नज़ारा देखने काबिल है ---ऊँचे -ऊँचे पहाड़ देखने से किसी हिल स्टेशन का आभास होता है --
मुंबई की जनसँख्या  देखते हुये इसे और खारघर को बसाया गया आज यहाँ का रियल स्टेट काफी उँचाई पर हैं --

इतिहास :--

यह नवी मुंबई (खारघर ) में है  -- CST   (छत्रपति शिवजी टर्मिनस ) से पनवेल जाने वाली हर्बल लाईन से यहाँ पंहुचा जा सकता है -- रोड से भी आप खारघर तक जा सकते है, ये मुंबई- पूना रोड पर आता है ---यहाँ एक गोल्फ ग्राउण्ड भी बना है और सड़क पर एक गुरुद्वारा भी है ---लेकिन यह सिर्फ रैनी सीजन्स में ही रहता है ।  

आज आपको बेलापुर से लगा दूसरा स्टेशन "खारघर "ले चलती हूँ यहाँ बारिश के मौसम में एक खूबसूरत वॉटर फॉल गिरता हैं जो केवल बारिश के मौसम में ही रहता हैं --- "कहते है की यहाँ पर बनी गुफा में  'पांडव ' अपने अज्ञातवास के दौरान छुपे हुए थे इसलिए ही इसका नाम "पांडवकडा " पड़ा --- 

हम जब यहाँ पहुंचे तो 3 बज रहे थे ,कुछ सिपाही यहाँ खड़े लोगो को वॉटर -फॉल जाने के लिए रोक रहे थे ,उनका कहना था की यहाँ 2 लोग ऊपर से गिरे पत्थरो के कारण मर चुके है --काफी भीड़ थी लड़का  -लड़कियों के झुंड के झुंड खड़े थे पुलिस वालो से मन्नते हो रही थी हमने भी उनको कहा पर वो मानने वालो में नहीं दिख रहे थे।   
आखिर हम उनको छोड़ उदास से पास के गुरद्वारे में चले गए ---आधा घंटा वहाँ बिताकर जब हम वापस उसी स्थान पर आये तो  पुलिसमैन जा चुके थे और सारी भीड़ अब अंदर जाती हुई दिखी हम भी एक मिनट की देरी किये फटाफट अंदर को चले गए ---- झरना काफी दूर दिख रहा था ---जाते -जाते बैंड तो बजने वाली थी ----




ये है खारघर का गुरद्वारा 


यहाँ है वो फ़ेमस वाटर फॉल (दूर सड़क से दिखाई देता हुआ )
































कहते है इस गुफ़ा में पाण्डवाज़ ने अपने अज्ञातवास के कुछ दिन निकले थे  




और अब वापसी 

वापसी में पाण्डु हवलदार ऊपर आ  पहुंच चुके थे हमको भी एक गुस्से भरी नज़र फैंक कर सबको वहां से सिटी बजाकर वापस चलने को बोल रहे थे--शाम के 6 बज रहे थे और हम अब सेंट्रल पार्क घूमने चल दिए --  



शनिवार, 9 अगस्त 2014

रक्षा- बन्धन



रक्षा- बन्धन 


"भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना --- भैया मेरे ,छोटी बहन को न भुलाना ---" 

सावन की पूर्णिमा को राखी का त्यौहार आता हैं ---- साल भर हम इस दिन का इंतजार करते हैं कब ये दिन आये और हम अपने मायके जाए ---- 
आज बचपन की याद आ गई---
उन दिनों रेडियो पर सुबह से राखी के गीत आतें थे ---मैं एक दिन पहले से ही राखी के लिए हाथों  में मेहँदी लगा लेती थी ---सुबह उठते ही सबसे पहले ये देखना की मेहँदी कैसी रची है ;;फिर स्नान करके नया फ्राक पहनना ,नई  चूड़ियाँ पहनना ,बालो में वेणी बांधना ,नई  चप्पल पहनना और पैरो में पायल पहन कर यहाँ वहाँ  फुदकना --- कितने सुहावने दिन थे बचपन के ---
अम्मा , खाने में खीर पूरी पकोड़े और दही बड़े बनाती थी --तब तक मौसी की बेटी और तायाजी का बेटा भी राखी बंधवाने आ जाते थे --सब पहले खाना खाते थे फिर राखी का प्रोग्राम संपन्न होता था ---  चारो भाइयों को पहले तिलक लगा कर मुंह मीठा करती फिर राखी बांधकर बड़े फ़क्र से पैर पड़वाती थी ,और आज का नेग मांगती थी ---असल मैं मेरे लिए बचपन में राखी का मतलब बस नए कपडे पहनना और गिफ्ट  लेना होता था -- आज भी वो दिन याद आते है तो आँखें भर जाती है -- 





शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

पुनर्जनम या चमत्कार


पुनर्जनम या चमत्कार  

'ईश्वर' नाम एक अज्ञात शक्ति का है --जिसे न हम  देख सकते है ? न स्पर्श कर सकते है ? सिर्फ महसूस कर सकते है -मन में विश्वास का दूसरा नाम ही ईश्वर है -- 






इस घटना के बाद मुझे ईश्वर और उसकी शख्सियत के लिए नतमस्तक होना पड़ा ...

यह घटना कोटा (राजस्थान ) की है ---

यहाँ मेरा ससुराल है ..कोटा शहर अपनी कोटा साडी के लिए मशहूर है आजकल यह कोचिंग का गढ़ बन गया है -- यहाँ कोचिंग के लिए दूर -दूर से विधार्थी आते है --यहाँ बहुत मात्रा में कोटा स्टोन भी पाया जाता है । यहाँ  'दाढ़ देवी' नाम की बहुत प्रसिध्य  देवी का मंदिर है  । जिस पर  हर साल मेला  भी लगता है ।  यह देवी बच्चो की मन्नत के लिए बहुत प्रसिध्य है । लोग -बाग़  बच्चे के मिलने के बाद देवी को खुश करने के लिए बकरे की बलि तक देते है ।मैंने खुद अपने बेटे के होने की ख़ुशी में यहाँ बकरा चढाया था --  
   
१९९० की बात है ..होली का दिन था ..सबलोग होली खेलकर अपने -अपने घर जा चुके थे ..मेरे देवर (निर्मलसिंह } और उनके २ दोस्त (जगेश और पप्पू ) शराब के नशे में चूर थे .. वैसे भी  देवर के घर नया -नया लड़के का जनम हुआ था ...इसलिए ख़ुशी जरा तगड़ी ही थी ...तीनो ने माता दाढ़देवी के यहाँ जाने का प्लान बनाया ..और चल दिए अपने स्कूटर पर ...दाढ़देवी का एक रास्ता जंगल से और दूसरा रास्ता नहर से होकर जाता है ।कहते है ये नहर सीधे चंडीगढ़ गई है ,गहरी भी बहुत है -- नहर वाले रास्ते से तीनो मग्न होकर जा रहे थे की अचानक उनका स्कूटर किसी चीज़ से टकराया और तीनो स्कूटर समेत सीधे नहर में जा गिरे ,नहर काफी गहरी थी और पानी का बहाव भी तेज था  ...

तैरना तीनो को आता था ,पप्पू और जगेश तो तैरकर बाहर आ गए पर निर्मल का कोई पता नहीं था। जल्दी ही उस झील का चौकीदार भी दौड़कर आ गया और कई लोग आसपास के रुक गए ...दोनों दोस्त उसे पानी में जाकर दोबारा ढूंढ आये पर निर्मल का कोई पता नहीं चला ,चौकीदार बोला- " यहाँ जो डूब जाता है वो वापस नहीं आता  भईया"।       

दोनों दोस्त रोने लगे--करीब आधा घंटा निकल गया था की अचानक निर्मल का सर पानी में दिखा और वो आराम से तैरता हुआ बाहर आया । न उसके पेट में पानी था, न साँसों में पानी गया था।  हा, वो कुछ बौखलाया हुआ जरुर था ..। 

उसने बाद में हमें एक हैरत अंगेज़ वाकिया सुनाया जो आश्चर्य जनक था ----
"वो बोल-- "जब मैं पानी में  गिरा तो सीधे तलहठी में पहुँच गया ...धबरा कर ऊपर आने को जोर मारने लगा तो देखता  क्या हूँ  की कोई मेरी ही शक्ल का आदमी मेरे ऊपर लेटा हुआ हैं और तैर रहा है वो मुझे बड़े प्यार से देख रहा था उसके और मेरे  बीच जरा भी दुरी नहीं थी न पानी की एक बूंद थी ; मैं आराम से साँसे ले रहा था वो काफी देर तक मुझे देखता रहा और मुस्कुराता रहा फिर अचानक वो मुझे ऊपर तक खीँच लाया और मैं नहर के ऊपर आ गया; फिर आराम से तैरकर बाहर आ गया । "
हम सब आश्चर्यचिकित थे ????

इस धटना को आज कई साल गुजर चुके है ...पर ये वाकिया हम लोग भूल नहीं पाते है ....इस धटना को क्या कहे ? ईश्वर का चमत्कार या कुछ और ...???