मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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मंगलवार, 27 मार्च 2012

मैं की परिभाषा ....








निर्झर  के निर्मल जल-सी मैं ..  
कभी चंचल, कभी मतवाली मैं  ..
कभी गरजती बिज़ली -सी मैं ...
कभी बरसती बदरी -सी मैं .....
कभी सलोनी मुस्कान-सी मैं ...
कभी आँखों में झिलमिलाते सपनो-सी मैं ..
कभी ख़्वाबों को तरसती मैं ...
कभी चाँद को लपकती  मैं ...
कभी दामन को पकडती  मैं ..
कभी काँटों से दिल बहलाती मैं ...
कभी जिन्दगी  के थपेड़ों से खुद को बचाती मैं  ..
कभी तपकर कुंदन बन चम् -चमाती मैं .....!





आँचल में अपने सपनों को सजा पिया घर आई मैं ...?
क्या होगा ? कैसा होगा ? कौन होगा ? बोराई -सी मैं ...
कजरारे नैनो में अपने प्रीतम का अक्स सजाए ----- ?
डोली में सवार अपने पिया के घर आई मैं ..?  

कभी शर्माती ? कभी धबराती ? कभी गुनगुनाती ? कभी मुस्कुराती मैं ...
कभी गम छुपाती ? कभी खुद पर आंसू  बहाती ....
कभी सहज हो जाती ? कभी जख्मो पर मरहम लगाती मैं ...?
कभी भोर की किरणों से खुद को गुदगुदाती ?
कभी मेहँदी की खुशबु चारो और फैलाती ?
कभी दुसरो के सामने बिन बात खिलखिलाती ?
कभी गुलशन में तितलीयो  की तरह मंडराती  ?
कभी इन्द्रधनुष को अपनी बांहों में समाती ?
कभी अपना वजूद भूलकर ओरो को सहलाती ?
बस, ऐसी ही हूँ  मैं ???????






कल तक एक अच्छी बेटी एक अच्छी बहन बनी थी मैं ...
आज एक अच्छी पत्नी,एक अच्छी माँ बन सकी हूँ या नहीं मैं ?

ख्वाहिशें बहुत थी अंजुमन में मेरी ----
खुदा भी किश्तों में अदा करता हैं  ----!!!


बुधवार, 21 मार्च 2012

जन्म दिन, ललित शर्मा का ....



* वेश बदलकर हम फकीरों का *
रोज तेरे दर पर सजदा करते हैं  






* हैप्पी बर्थ डे *






अपने सबसे अजीज मित्र के जन्म- दिन पर क्या  शुभकामना दू --यहीं सोच रही हूँ ...

दिल में अरमान हैं की तुम उगते हुए सूरज की तरह रोशन रहो ...तुम बुलंदी की सीढियाँ यु ही चढ़ते रहो ..कभी भी तुम्हारे कदमो में राहो के रोड़े न आए ---हमेशा फूल की तरह खिले रहो ...और यह दिन हम दोस्तों के साथ हमेशा मनाते रहो  ...खुश रहो ........आमीन !

( एक छोटी -सी कविता ललित को सप्रेम भेट हैं ..). 


दिल हैं  सोने वरगा तेरा ..
तन से लोहा लगते हो ...
दोस्तों के लिए बसंत हो तुम ?
सबके दिल में बसते हो .........!



यारो के लिए यार हो तुम ..
हर महफ़िल की शान हो तुम ...
दुःख तुमसे पनाह मांगते हैं ...
खुशियों पर निसार हो तुम .....!




मूंछे तेरी वल्लाह -वल्लाह ...
चेहरे पर यु फब्ती हैं ...
भोली -भाली आँखें तेरी ...
नीलकमल -सी दिखती हैं .....!


जिसके पीछे पड़ जाते हो ?
नानी याद दिला देते हो ?
बुरी नियत वालो को खुद ही --
कोंसो दूर भगा देते हो .....!

तुझसा दोस्त पाकर हमने ---
स्नेह से दामन भर लिया ---
अरमानो से सजा ली डोली ---
और खुशियों से मन तर लिया ---!



ऐसा ही प्रेम बनाए रखना ---
दिल से दूर कभी न करना ---
'दोस्ती' में यदि कोई अड़चन आए तो ---
कहना -सुनना ,,फिर माफ़ कर देना  ----!


यह दिन तुम्हारे  जीवन में हर दिन खुशियाँ लेकर आए !
इसी तरह मनाते रहो होली .और यु ही दिवाली भी आए ! 


इसी मंगल कामना के साथ तुम्हारी दोस्त ......दर्शन कौर ! 



बुधवार, 7 मार्च 2012

होली आई रे ...



होली आई रे कन्हाई रंग बरसे 


रंग हैं उमंग हैं आज ख़ुशी का संग हैं--
होली के इस जश्न में अबीर भी मलंग हैं --

नीले -पीले और गुलाबी ----
रंग उडाए पिचकारियाँ  ---
गालो को भी लाल करे ---
आज मतवालों की टोलियाँ ----
बुरा न मानो होली हैं  भाई --
बुरा न मानो होली हैं  ऐ ऐ ऐ ऐ ---



आगे -आगे राधा दौड़े पीछे किशन-कन्हाई ---   
 मथुरा में होली खेले रुकमनी और गोसाई ---
हुई रंग से लाल चुनरियाँ ---- 
भीग गई हैं चोली ---
गोपिया भी चली ठुमकर--- 
कृष्ण की हरजाई हैं ---
बुरा न मानो होली हैं भाई ---
बुरा न मानो होली हैं ऐ ऐ ऐ ऐ ---- 


उतर गगन से परियां आई ----
अपने संग -संग तोहफे लाई ---
गुझियों की बहारे  लाई ----
मठरी और पपड़ी भी लाई --- 
भांग के पकौड़े खाकर --
हमने भी क्या घूम मचाई ---
बुरा न मानो होली हैं  भाई --- 
बुरा न मानो होली हैं ऐ ऐ ऐ ऐ ऐ  !




शिव -शंकर ने कैलाश पे चढ़कर ---
ठंडी -ठंडी भांग बनाई ---
हमने भी कुछ भांग चढाई --- 
सर पर मदहोशी हैं छाई ---
फिर रसगुल्लों ने धूम मचाई ---
अब तो ख़ैर नही हैं साईं --- 
बुरा न मानो होली हैं भाई ---
बुरा न मानो होली हैं ऐ ऐ ऐ ऐ -----


धरती ने क्या रूप रचाया ---  
फागुन ने क्या रंग जमाया ---
सबके दिलो में प्यार बसाया ---
आज ख़ुशी से दिल भर आया ----
रंगो ने कुछ सपने सजाए ---
इन्द्रधनुष ने रंग दिखाए ---
होली ने रंग डाला सबको ---
बुरा न मानो होली हैं भाई ---
बुरा न मानो होली हैं ऐ ऐ ऐ ऐ --- 







गिले  -शिकवे सब दूर भगाओ --
आज गले मिलकर जश्न मनाओ--
बुरा न मानो होली हैं भाई ---
बुरा न मानो होली हैं ऐ ऐ ऐ ऐ --- 




बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

जीवन की चाह ......






जीवन की इस रेल -पेल में ..इस भाग दौड़  में 
जिन्दगी जैसे ठहर -सी गई थी ...
कोई पल आता तो कुछ क्षण हलचल होती ..
फिर वही अँधेरी गुमनाम राहें ,तंग गलियां ...
रगड़कर ..धसिटकर चलती जिन्दगी ...

वैसे तो कभी भी मेरा जीवन सपाट नहीं रहा ..
हमेशा कुछ अडचने सीना ठोंके  खड़ी ही रही ..
उन अडचनों को दूर करती एक सज़क पहरी की तरह 
मैं हमेशा धुप से धिरी जलती चट्टान पर अडिग ,
अपने पैरों के छालो की परवाह न करते हुए --
खुद ही मरहम लगाती रही  .....?

निर्मल जल की तरह तो मैं कभी भी नहीं बहि..
बहना नहीं चाहती थी ,यह बात नहीं हैं ..
पर मेरा ज्वालामुखी फटने को तैयार ही नहीं था ?
अपनी ज्वाला में मैं खुद ही भस्म हो रही थी ...
न राख ही बन पाई न चिंगारी ही ...







सिर्फ दहक रही थी उसकी प्रेम -अगन में  ..
उसके प्रेम -पाश से मोहित हो ..
खुद से ही दूर र्र्र्रर्र्र्र होती जा रही थी ..
मैं जानती थी की ये मोह की जंजीरे व्यर्थ हैं ..
अब, कुछ भी शेष नहीं ?????
पर, फिर भी मन के किसी कोने में एक नन्हीं -सी आस बाकी थी -
आस थी तो विश्वास भी था  ....
जबकि हर बार विश्वास रेत के घरोंधे की तरह बिखर जाता था ..
हर बार टूटता ....???
मैं हर बार टूटने से बचाने में जुट जाती  ....?



वो हर बार मेरे घरोंधे को एक ही झटके में तोड़ देता ..?
थप्पड़ मारना शायद उसकी प्रवृति बन चूका था ..
जिसे वो एक अमली जामा पहना देता था ..?
उसका अहम् था या उसके बनाए कानून , मुझे नहीं पता ?
पर हमेशा मेरा प्यार उसके आगे धुटने टेक देता था ..
 तब मेरा मन कहता ---

"अगर वो मेरा बन न सका तो ,
मैं उसकी बन जाउंगी .."

 और मैं  पुल्ल्कित हो उठती ..
फूलो की तरह खिल जाती ...
पर वो कठोर पाषण  बना "ज्यो -का - त्यों " पड़ा रहता ....!






उसने अपने चारों और एक कोट खड़ा कर रखा था ...
उस किले को भेदना नामुमकिन ही नहीं असम्भव भी था ..
पर, अक्सर मैं उन दीवारों के छेदों से झांक लेती थी ..
जहाँ वो अपनी चाहत की अंतिम साँसे गिन रहा था .....
मुझे देखकर भी वो अनदेखा कर जाता था ..?
क्योकि वो जानता था की मेरी मुहब्बत की शिला बहुत मजबूत हैं ..
जो किसी छोटे -मोटे भूकम्प के झटको से तहस -नहस नहीं होने वाली ....?





पर वो न जाने क्यों ??????
अपने ही बनाए हुए नियमो को ढोने में व्यस्त था ....
इस बोझ से उसके कंधे दुखने लगे थे ,मैं जानती हूँ ---
पर वो हमेशा मुस्कुराता रहता था ..!
कई बार उसे विष -बाणों से गैरों ने लहुलुहान भी किया  ..
पर वो सहज बना अपना रास्ता तैय  करता रहता था  ...
सबके दिलो पर उसका राज चलता था ..
खूबसूरती का तो वो दीवाना था ..?
पर मेरी तरफ से वो सदा ही उदासीन ही रहा ....!


 कई  बार उसकी उदासीनता से हैरान मैने अपना दामन झटक लिया ..
पर वो बड़े प्यारे से अपने दंश से मुझे मूर्छित कर देता ...
और मैं वो प्रेम रूपी हाला पी जाती ..
फिर एक कामुक नागिन की तरह बल खाने लग जाती ..
 फुंफकारने लगती !!!!!
तब वो शिव बन मेरा सारा हलाहल पी जाता ..
मेरा फन कुचल देता ..
और मुझे एक नए चौगे में  परिवर्तित कर देता ...
जहाँ मैं फिर से घसीटने को तैयार हो जाती ......!




उस पाषण से दिल लगाने की कुछ तो सजा मिलनी चाहिए थी मुझे .....????



मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

एक 'कील' हूँ मैं **?









असम्भव की गहरी खाई में गिरी हुई ****
एक 'कील' हूँ मैं ***  ?
साधारण ***
जंग लगी ***
खुद से ही टूटी हुई **
थकी ???
 कमजोर !!!

तुम्हारा  तनिक -सा सपर्श ,,,
मुझे जिन्दगी दे सकता हैं प्रिये !









मुझे उठाकर अपने कॉलर पर सजा लो ****
मैं फूल बनकर खिल जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने पहलु में सुला लो ****
 मैं प्रेमिका बनकर लिपट जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने सीने में छिपा लो ****
मैं याद बनकर छिप जाउंगी !
मुझे उठाकर अपने प्याले में ढाल लो ****
मैं नशा बनकर छा जाउंगी !
मुझे उठाकर अपनी राह का हमसफ़र बना लो ****
 मैं राह के रोड़े हटा कलियाँ बिखरा दूंगी!
मुझे उठाकर सर का ताज बना लो ****
मैं दुनियां को तुम्हारे क़दमों में झुका दूंगी !





मैं तुम्हे सपनों के हिंडोले में बैठकर ,
तीसरी दुनियां की सैर करवाउंगी !
मैं तुम्हारे क़दमों में आँचल बिछा कर, 
तुम्हें कांटो से बचाउंगी !
मैं तुम्हें मन -मंदिर का देवता बनाकर, 
दिनरात तुम्हारी पूजा करुँगी !
मैं तुम्हें अपना सर्वस्त्र देकर, 
अमर -लता की तरह लिपट जाउंगी !
मैं तुम्हारी ख्वाहिश में ही अपना मंका ढूंढ कर ,
तुम्हारे साथ ही बह जाउंगी !











नजर नहीं आती मुझे कोई मंजिल ?
डोल रही हैं मेरी किश्ती भंवर में,
अगर तेरे प्यार का सहारा मिल जाए तो, 
इस 'जंग' लगी 'कील' का जीवन संवर जाए ...


"तुम्हें अपना बनाना मेरे प्यार की इन्तेहाँ होगी ?
तुमसे बिछड़ना मेरे जीवन की नाकामयाबी ??  " 

  

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

पहाड़ो का शहर ...









पहाडों पर दूर तक जमी बर्फ----
सनसनाती हुई हवाऐ----
हड्डियों को कंपकपाती हुई ठंड----
पेंड़ो से गिरते पत्ते----
 घाटियों में गूंजती आवाजें ---.
और कल -कल बहती नदी का शोर ----

तेरी याद दिलाने के लिए काफी था ----!
जब तेरी तस्वीर उठाकर देखी तो---
ओंस की कुछ बूंदे पड़ी थी---- 
गिला -गिला अजीब -सा नज़ारा था ?
जैसे अभी रोकर उठी हो ???
मेरी उन खोई हुई आँखों में ..
एक पल को उदासी तैर गई---!


ऐसी वीरान ! ठहरी हुई जिन्दगी तो मैनें कभी नहीं चाही थी ----?
फिर क्यों चला आया मैं यहाँ सबकुछ छोड़कर ---
पहाड़ों पर मेरा दम निकलता हैं, ऐसी तो बात नहीं-----?
पर यहाँ का सन्नाटा--- !
अकेलापन ----!
तीर की तरह चलती ठंडी हवाएं ---- !
मेरे कलेजे को चीरती हैं ----!






मैं उदास अपने हाथो को जोड़े होटल की बालकनी में खड़ा हूँ---
           दूर ~~क्षितिज में हिमालय की चोटियों पे बर्फ चमक रही हैं---
मानो किसी के सर पर चांदी का ताज जड़ा हो----!


और मैं खोज रहा हूँ अपनी गुजरी हुई जिन्दगी ---
"जहाँ सब मेरे अपने थे "
जहाँ खुशियाँ थी ? खिलखिलाहटे थी ? दोस्त थे ?
-----और तुम थी ?

क्यों आ गया मैं इस अजनबी शहर में----?
इस पत्थरों के शहर में ,
जहाँ चारों और पहाड़ ही पहाड़ हैं----
आवाज देता हूँ तो पत्थरों का सीना चीर कर लौट आती हैं ----


हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
तेरी खनकती हुई हंसी !!!
जैसे मेरे कानों में शहद टपक रहा हो ----?
अभी बोल उठेगी ---"कहाँ हो, मेरी जान"
"यही हूँ, तुम्हारे पास " मैं कह उठूँगा !


अचानक मेरा चेहरा विदूषक हो उठा---
लगा ही नहीं की वो यहाँ नहीं हैं----?


मैं सहज ही उसकी मुस्कान में बंधा हुआ !
उसके बांहों के धेरे में सिमटा हुआ !!
   उसके चेहरे की कशिश में लिपटा हुआ !!!
मदहोश -सा बहा जा रहा हूँ ----
काश, तू होती ????
इन हसीं वादियों में ----
हम हाथों में हाथ डाले घूमते- फिरते----
तुम मुझ पर बर्फ के गोले मारती---
मैं तुम्हें  पकड़ता ..भागता ..चूमता----
तुम हंसती हुई भाग खड़ी होती और --
मैं तुम्हें प्यार से निहारता रहता---
इन ठंडी रातों में---
हम मालरोड पर घूमते----
ठंडी - ठंडी आइसक्रीम खाते ---
कभी ठंड से बचने के लिए---
सड़कों पर जलते अलावो पर हाथ सकते ----??? 
 चर---र्र --र्र  ---र्र-- र्र---र --


अचानक ! किसी गाडी की जोरदार आवाज से तन्द्रा भंग हुई 
मैनें चौंककर देखा ---'तू नहीं थी' ?
"अरे कहाँ गई अभी तो यहीं थी "?
मैं पागलों की तरह चारों और ढूंढता रहा --
"पर वो जा चुकी थी "


और मैं अकेला सुनसान सड़क पर खड़ा  था ---
उसका इन्तजार करता हुआ ---
मुझे पता हैं --"वो नहीं आएगी"
पराई जो हो गई हैं न वो ?  





मंगलवार, 31 जनवरी 2012

एक शाम मेरे दोस्तों के नाम .....


* मित्रता * 

(मेरी बचपन की सहेली ..रुक्मणी और मैं .... !)


" मित्रता में शीध्रता मत करो ,यदि करो तो अंत तक निभाओं  "


मेरी जिन्दगी में भी यही फलसफा हैं --की मित्रता में शीध्रता नहीं होनी चाहिए '--क्योकिं इंसान को जनम के साथ ही सभी रिश्ते मिल जाते हैं, मगर सिर्फ दोस्ती ही वो रिश्ता हैं जो इंसान अपने व्यवहार से बनाता हैं --दोस्ती वो जज्बा हैं जो हर किसी के नसीब में नहीं रहता ----
     

एक सच्चा दोस्त खुदा की बेमिसाल  नैमत है----


(हम तीनो हैं बचपन के दोस्त )


"दोस्ती मौसम नहीं ---
जो अपनी मुद्हत पूरी करे और रुखसत हो जाए ----!
दोस्ती सावन नहीं ---
जो टूटकर बरसे और थम जाए -----!
दोस्ती आग नही ---
जो सुलगे  और  बुझ जाए ---!
दोस्ती आफ़ताब नही ---?
जो चमके और डूब जाए --!
दोस्ती फूल नहीं ---?
जो खिंले और मुरझा जाए ---!
दोस्ती प्यास नहीं ---?
जो पीए और मिट जाए ----!
दोस्ती नींद नहीं ---?
जो खुले और टूट जाए ----!
दोस्ती --तो --सांस हैं --------------
जो चले...तो सबकुछ---और रुक जाए तो कुछ भी नहीं ----!!!!

जीवन के इन थपेड़ों में  मुझे बहुत ही अच्छे 'दोस्त' मिले हैं .... जिन्होंने मेरा साथ कदम -कदम  पर दिया हैं --मेरे ज्यादा तो दोस्त नहीं हैं पर जो हैं उन्हें मैनें बहुत ठोंक -बजाकर देखा हैं .. वो कहते हैं न की जिसका 'मंगल' अच्छा होता हैं, उसे यार - दोस्त भी अच्छे ही मिलते हैं ......तो मेरा मंगल बहुत अच्छा हैं .. क्योकिं मुझे सभी दोस्त अच्छे ही मिले ..
तुम सबका अभिनन्दन हैं मेरे दोस्तों, उम्र के इस पड़ाव में भी  मेरा साथ निभाने के लिए और मुझे समझने के लिए ;---

"अब मिलवाती हूँ मेरे कुछ चुंनिंदा दोस्तों से  "

(डॉ. दिलीप और मैं ..बचपन के साथी ..आजतक नहीं छूटे हैं  )


(रुक्मणी और मैं ..५० साल का साथ ....हम साथ- साथ हैं )


( रेखा और मैं...दोस्ती के आलावा और कुछ नहीं  ..)
तेरा साथ हैं  तो मुझे क्या कमी हैं 

 (कृष्णा शेखावत और मैं ..हम बचपन की सहेलियां हैं ...हमारी माँऐ  भी काफी गहरी सहेलियां थी --और हमारे पिताजी भी ..)



(बहुत पुराना फोटू हैं --साल याद नहीं ...बाएँ से तीसरी मैं और दाएं से पहली  कृष्णा शेखावत ..) 


(पूनम,रेखा और मैं ..हमारी मस्त तिगडी थी पर --अब पूनम नहीं रही )



(सुरमीत और मैं ..बचपन की सहेलियाँ और रिश्तेदार भी )



(कमल और मैं...उमर का फासला भी हमारी दोस्ती के आगे नहीं आया) 










और अब मिलवती  हूँ मैं अपने ब्लोगर दोस्तों से :--






(इनको तो आप सब लोग जानते ही हो ..नाम लिखना व्यर्थ हैं..
(ललित शर्मा ) 


(इनको भी काफी लोग जानते ही हैं ..हरी शर्मा )


(मुकेश कुमार सिन्हा ..जितने चुप दीखते हैं उतने ही प्रखर हैं ) 




( इंदु पूरी गोस्वामी..एक जिंदादिल शख्सियत  )


(अरुण कुमार शर्मा ....)
शर्मा मेरे ज्यादा दोस्त हो गए न ....? हा हा हा हा हा 








और अब मिलवाती हूँ मेरे फेसबुक  दोस्तों से :--




(सुनील खत्री )
( सबसे पहले बने मेरे अजीज दोस्त ..उमर जरुर कम हैं पर दोस्ती को क्या मालुम सामने वाला कितनी उमर का हैं ..हा हा हा हा .. )




(अरविन्द भट्ट....बहुत हंसमुख और खुशमिजाज़ इंसान .. )




(विनोद शर्मा....शांत और प्रतिभावान  )




(और आखरी दोस्त अल्ज़िरा लोबो ...मस्त,बेफिक्र, जिंदादिल..मुझसे अक्सर  पूछती हैं  की-- 'मुझ में क्या हैं जो इतनी जल्दी  भा गई'--तो उसको मेरा एक ही जवाब हैं :---


" जिन्दगी से यही गिला हैं मुझे 
      की तू बहुत देर बाद मिली हैं मुझे .."


*********************************



तो यह रहे हमारे दोस्त और यह रहे हम 






*अलविदा दोस्तों *


"वो दोस्ती क्या जिसको निभाना पड़े .
 वो प्यार क्या जिसको जतलाना पड़े. 
ये तो एक खामोश अहसास हैं दोस्तों-- 
वो अहसास क्या जो लफ्जों में बतलाना पड़े ."   





बुधवार, 25 जनवरी 2012

प्यार और दिल्लगी *****





चाहते ,प्यार, मस्ती  और  दिल्लगी 
अब ये  सब बाते गुजरे जमाने की लगती  
हमें कौन चाहेगा ..?
अब तो यह बातें झूठे फसाने की हैं ..!

 वो रूठना ,वो मनाना वो खिलखिलाना 
अब तो इन चीजों का नहीं कोई ठिकाना ..!


वो गलियों से गुजरना 
वो लड़कों का पीछे आना 
तिरछी निगाहों से उन्हें तकना 
फिर खुद ही शरमा जाना ...
अब कहाँ हैं वो बिजलियाँ गिराना 
अब कहाँ हैं  वो सब रूठना मनाना.....?

लटों को लहराकर बालों को झटकना 
फिर अदा से उन्हें जुड़े में फसाना 
पलकों की चिलमन से किसी को गिराना  
कभी निगाहों से किसी को सजदा करना 
अब कहाँ हैं वो अँखियो का लड़ाना ... 
कभी हंसना कभी खिलखिलाना .....
अब कहाँ हैं  वो सब रूठना मनाना ......? 











वो जलती दुपहरियां में कॉलेज को जाना
हमें देख लडको का सिटी बजाना 
गुस्से से नकली गुस्सा दिखाना 
फिर अपने ही अहम पर खुद मर जाना  
कभी किसी का समोसा खा जाना  
कभी किसी का प्रेम -पत्र  दिखाना  
कभी किसी की हवा को निकालना  
 कभी  भागकर साइकिल पर उड़ना 
वो मौजे -बहारे वो खिलखिलाना ..
अब कहाँ हैं वो रूठना मनाना .....?

पापा से बहाने बनाकर फिर पैसे  ऐठना 
चुपके से सिनेमा जाकर पिक्चर देखना 
भाभी की चम्मच बनकर गोलगप्पे खाना 
फिर मिर्ची का ठसका और आँखों का बहना 
 भैय्या से शाम को आइसक्रीम मंगाना   
कहाँ हैं वो बचपन वो हँसना- हँसाना 
वो कसमें -वादे वो खुशियों का खजाना 
अब कहाँ हैं वो रूठना मनाना .....?













आज  सबकुछ हैं पर वो साथ नहीं ?
साथी तो बहुत हैं पर वो बात नहीं ?

न वो प्यार न वो चाहतें ...
न वो हंसी न वो ठाहकें...

अब नहीं रही वो सुहानी जिन्दगी ...?
न कालेज का जमाना न खिलखिलाना  ...?
न कागज की नाव न बारिश का बरसना ...?
न दादी की कहानी न परियो का फसाना ..?
न सुबह की चिंता न शाम का ठिकाना ...?
न चाँद की चाहत न तितलियों का  दीवाना ..?
न खुशियों की बहार न हंसने का बहाना ...?
कहाँ गुम हो गया वो बचपन सुहाना ....?
वो वादे -बहारे वो अपना चहचहाना .......!!!









* कहाँ गुम हो गया वो बचपन का जमाना  *   



बुधवार, 11 जनवरी 2012

अनमोल -पल ....पिकनिक



उम्र का बदलाव तो दस्तूर -ऐ -जहाँ हैं !
अगर महसूस न करो तो, बुढ़ापा  कहाँ हैं !!

(*सदा प्रफुल्लित मैं और पतिदेव*) 


**जेष्ठ --नागरिकों के साथ एक दिन---पिकनिक **

ज्येष्ठ --नागरिक  कल्याणकारी -संध ..वसई 


(गणमान्य लोग --बस में सवार )


आज मुझे 'जेष्ठ -नागरिकों के साथ एक पिकनिक में जाने का सु-अवसर प्राप्त हुआ --पतिदेव उस समिति के गणमान्य  सदस्य हें --पिछले साल की पिकनिक मुझसे 'मिस' हो गई थी ,पर इस बार-- 'मैं जरुर जाउंगी' ऐसा फरमान मैने जारी कर दिया ---अब बेचारे पतिदेव की कहा बिसात जो टाल दे --थोड़ी ना -नुकुर के बाद आखिर 'यस ' हो ही गया ---


सुबह सात बजे निकला बसों से हमारा काफिला --सब में काफी जोश भरा हुआ था --कुछ तो ८५ के भी थे --लगता ही नहीं था की बुजुर्ग हैं --सब टिप -टाप! कुछ अकेले थे --कुछ पत्नियों के साथ थे !


(खुशगवार मौसम ---अभी सूरज की लालिमा फैल  रही हें )



( वो देखो ....भास्कर का उदय हो  रहा हें ) 


पहले गणेश वंदना की गई --फिर किसी ने भजन गाया ---तब तक बिस्कुट का  वितरण शुरू हो गया --एक जनाब ने गीत शुरू किया --" माना जनाब ने पुकारा नहीं --क्या मेरा प्यार भी गवारा नहीं ,मुफ्त  में बन के चल दिए तन के वल्लाह जबाब तुम्हारा नहीं "वाह !वाह !! का शोर शुरू हो गया --वैसे वो खुद भी देव साहेब के जरा ज्यादा ही प्रशंसक थे--क्योकि उनके कपडे ,केप और गले का मफलर यही कहानी कह रहा था --"ख़्वाब हो तुम या कोई हकीकत कौन हो तुम बतलाओ ...."    सब मस्ती में ताली बजने लगे --"दुखी मन मेरे  सुन मेरा कहना ,जहाँ नहीं चैना ....?????" इतना गाते ही सब चिल्लाने लगे दर्दीले  गीत नहीं --ख़ुशी भरे गीत गाओ ---" मैं  हूँ झूम --झूम --झूम --झूम झुमरू फक्कड बन के घुमु ......"


(देवसाहेब की अदा  )


रास्ते में एक मंदिर विश्वकर्मा आया सब उतर गए दर्शन करने चल दिए -----


(मंदिर के बाहर धुप सेकते विशिष्ठ जन )




( मंदिर के बाहर स्वागत करती कठपुतली  )




( गणेशजी की प्रतिमा )




( मंदिर में जगन्नाथ ,सुभद्रा ,बलराम की मूर्तियां ) 




(मंदिर में बुजुर्गो की प्रतिमाए  )






(दिलकश सुबह का मंज़र ) 



(जंगल में मंगल  )  



खुबसुरत रास्तो से गुजरते हुए आखिर हम रिसोर्ट पहुँच ही गए --बहुत अच्छा समां था--चारो और ठंडी -ठंडी पुरवैया बह रही थी --दिल मगन हो रहा था  ---हमारा स्वागत किया इस मेंडक जी ने ....




(देखिए हमें देख कितना खुश हो रहे  हैं ---मिस्टर मेंडक जी --फुले नहीं समां रहे हैं ---)

सबसे पहले रिसोर्ट पहुँच कर हमको नाश्ता दिया गया --गरमा -गरमा पोहें ,उपमा और वडे  ..छककर  नाश्ता किया फिर गर्म चाय पीकर चल पड़े ऊपर की तरफ जहां पानी की बड़ी -बड़ी स्लाइड लगी थी -पर शायद हममे से कोई वहां  जाने का साहस नहीं कर पाएगा --हाँ , रेन डांस और स्विंगपूल का सबने मज़ा लिया ----चलिए चलते हैं --- 






  (नाश्ता -हाल )


(मिस्टर एक दोस्त के साथ )




(रिसोर्ट का रास्ता )


(मिस्टर अपने दोस्तों के साथ )


(हम भी चले --ऊपर की तरफ .. जहां पानी के बड़े -बड़े स्लाइड लगे हैं )




(यह खुबसुरत काटेज हैं  ..जो किराए से मिलती हैं ) 




(और यह मैं हूँ  )


( ठंडे पानी से चींख निकल गई  )


(रेन -डांस का मजा ही कुछ और हैं )




(मजा ही मजा )










( "ओ--ओ -- सजना ..बरखा बहार आई ---रस की फुहार लाई --अखियों में प्यार लाई ---ओ ओ ओ सजना" )


(चलिए ,बहुत रैन -डांस हुआ ...थोडा धुप सेक ले ... बड़ी ठंडी हैं ..)




(नहाकर खाने का इन्तजार )


 खाना बहुत टेस्टी था ---छोले,पूरी आलू और मटर पनीर साथ में दाल- चावल और श्रीखंड ---वाह !  लंच के बाद  कुछ बुजुर्ग लोग आराम करने लगे ..वही बिछी हुई खटियो पर --कुछ गुट बना कर बतियाने लगे --और मै जमकर  झुला झूलने लगी --


( झुला झूलते हुए --सुहाने मौसम का मज़ा )


(खाने के बाद ....मनोरंजन के कुछ पल ..)



( कविता कहते हुए पाटिल साहेब --संचालक )




लंच के बाद रंजना जी ने  गीत गया ----

"हें ,नीले गगन के तले --धरती का प्यार पले --
ऐसे ही जग में आती हैं सुबह ही ऐसे ही शाम ढले .."

 गीत के बोल ऐसे थे --सच में हम नीले गगन के तले बैठे हुए थे --बहुत अच्छा लगा ...कई लोगो ने कविता -पाठ  किया ---फिर सबने गरबा भी खेला --चुटकुलों का दौर भी चला --हंस -हंस कर पेट दुखने लगा ..
५ बजे चाय आ गई ..और हम चल  पड़े वापस --एक अनमोल यादगार के साथ अपने -अपने घर ........जयहिंद !