★अकेलापन ★
मैं अकेली हूँ ?
कल भी थी --
आज भी हूँ ?
ओर कल भी रहूंगी !!!!
दूर निकलना चाहती हूं ---
तेरी यादों के खंडहर से ?
खुली सांस में जीना चाहती हूँ।
रोज - रोज की पीड़ा से मुक्त होना चाहती हूँ।
थक गई हूँ तेरी सलीब को ढोते हुए,
पिंजर बनकर रह गई हूं।
अब मुक्कमल खामोशी चाहिए।
मुझे आजादी चाहिए।
कहने को तो मैं जिंदा हूं ?
होश भी है मुझको ---
फिर ये भटकाव कैसा ?
क्यों खोजती फिरती हूँ ---
उन अवशेषों को,
जो राख बन चुके है---
फिर भी उम्मीद पर जिंदा हूँ ।
अकेलेपन का ये अहसास,
मुझे महफ़िलों में जाने नही देता
खिलखिलाने नही देता !
मैं हंसना चाहती हूँ ...
गुनगुनाना चाहती हूं...
अपनी पूंजी किसी ओर पर लुटाना चाहती हूं।
काश, की कोई होता ---???
मेरी अधूरी चाहत को पूरा करता ?
काश, कोई होता ...............?
उम्मीद का दामन पकड़े आज भी इंतजार में हूँ !!!
---दर्शन के दिल से
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