मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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बुधवार, 13 जून 2012

नैनीताल भाग 6




नैनीझील का सोंदर्य 

" आज सिर्फ फोटू खुबसूरत नैनीझील के"

नैनीझील में घुमने का अपना ही मजा हैं यहाँ आप चप्पू वाली नाव लेगे तो 150 रु. में पूरी नाव होगी और यदि आप पैडलवाली नाव लेगे तो 100 रु । पेडल वाली नाव को आप एक घंटे तक चला सकते हैं ।और चप्पूवाली को नाव वाला चलाता हैं जो आधा घंटे तक झील में राउंड लगवाता हैं ..झील में कुछ खाने का सामान  ले जाना मना हैं ..यदि किसी के हाथ में कोई पैकेट होता भी हैं तो उस पर फाइन लग जाता हैं...   क्योकि इसी झील का पानी पीने के लिए भी इस्तेमाल  होता हैं ..चप्पू वाली नाव में सुरक्षा ज़ैकेट पहनना जरुरी हैं वरना पुलिस फाईन लगाती हैं ..पर पैडल वाली में सुरक्षा जैकेट पहनना जरुरी नहीं हैं  क्यों? पता नहीं ..?  


नैनीताल भाग 1, भाग 2, भाग 3, भाग 4, भाग 5 पढने के लिए यहाँ क्लिक  करे ...    


इतिहास :---


नैनीताल शहर की खोज मिस्टर पी. बैरन ने 1840 में की थी । इस शहर के मध्य में स्थित हैं नैनीझील ,इसका आकर आँख की तरह हैं कहते हैं सती की एक आंख यहाँ गिरी थी ..यह पुरानी मान्यता हैं ...इस झील का रंग कभी  हरा तो कभी नीला हो जाता हैं...इसी में नौकायान द्वारा बहुत आन्नद मिलता हैं ...  

नैनीताल का इतिहास पोराणिक कथाओ में कितना सच हैं, यह कह नहीं सकते पर यह शहर  अंग्रेजों की हुकूमत का साक्षी हैं, यहाँ की हर चीज़ पर अंग्रेजी हुकुमरानो की छाप हैं,यहाँ का माल रोड़ अंग्रेजो ने दो हिस्सों में बाटा था एक निचे का मार्ग जो झील के साथ ही चलता हैं ..जिसे हिन्दुस्तानी इस्तेमाल करते थे ,दूसरा ऊपर का जो वो खुद इस्तेमाल करते  थे ,यहाँ हिन्दुस्तानियों को आने की मनाई थी ...  


     

यह हैं दोनों रास्ते ....ऊपर वाला अंगरेजों का निचे वाला हिन्दुस्तानियों का ..आज दोनों पर सिर्फ  हिन्दुस्तानी ही चल रहे हैं .....



शाम का सुहाना अंदाज -- मानो पानी में सूरज  उतर  आया हो ..."ये  शाम कुछ अजीब हैं ... "


" हम चार " 

किनारे पर नाववाले का  इन्तजार करते हुए 



दूर नैनादेवी का मंदिर और साथ ही गुरुद्वारा 




नाव पर सैर और दूर दीखते मकान 


"मांग के साथ तुम्हारा मैने मांग लिया संसार "


ग्रीन रंग,  ग्रीन पहाड़ियों की वजय से   



रुके हुए छोटे छोटे ड्रेगन ,जब झील में चलते हैं तो झील में चार चाँद जड़ जाते हैं 





पानी में तैरती ये सफ़ेद बदके, मानो  मोती तैर रहे हैं 


सरोवर की नगरी 

हनुमान जी का इकलोता मंदिर ...जहाँ वो राम भक्ति में लीन  हैं 



हुस्न पहाड़ो का क्या कहना हैं  

हुरे रे रे रे रे रे  फुल मस्ती 


हम भी किसी से कम नहीं 



तैरती  नौकाए  




झील में मटरगश्ती करके हम चल दिए  मालरोड की रंगीनियाँ  देखने और नैनी माता  के दर्शन करने   .....

जारी ----



शनिवार, 9 जून 2012

नैनीताल भाग 5





नैनीताल - केव गार्डन 



यह  मौसम सुहाना !यह  शमां भीगा भीगा !
बड़ा लुत्फ़  आता जो तुम्हारा साथ होता !   




नैनीताल भाग 1, भाग 2,  भाग 3, भाग 4 -देखे यहाँ  क्लीक कर के



अब तक आपने नैनीताल के 4 भाग देखे ..आज आप देखे नैनीताल भाग 5

जब हम एको -गार्डन पहुँचे तो 3 बज गए थे ..भूख बड़ी जोर  से लग रही थी ...सुबह के बटर -टोस्ट  कब के हजम हो चुके थे ..आसपास निगाहें दौड़ाई तो कुछ छोटे -मोटे ढ़ाबे  दिख रहे थे ...जहाँ  पहाड़ी औरते खाना बना कर खिला रही थी..पहाड़ी औरते बहुत  मेहनती होती हैं ..इनके  आदमी  तो दारु पीकर  पड़े  रहते हैं...यह घर और बाहर दोनों संभालती हैं ....खेर,  हमने वही चलने में अपनी समझदारी समझी....पर यह क्या ,सब जगह खाना ख़त्म हो गया था ..दाल -चावल भी नहीं  बचे थे ...बड़ी मुश्किल से एक जगह एक औरत ने हमें आलू के पराठे बनाकर खिलाए ...एक परांठा 20 रु .और दही 30 रु का एक कटोरी ..पर परांठे मोटे और स्वादिष्ट  थे ..दो -दो पराठे  खाकर  हमने भूख को शांत किया और चल दिए "एको - केव पार्क ' देखने ....


एको - केव पार्क

यह केव नैनीताल शहर के माल रोड से 1 किलो मीटर दूर हैं ...अन्दर जाने का टिकिट हैं --बड़ो  का 35रु ओर बच्चों का 25 रु  ..इसमें प्राकृतिक रूप से बनी 6 बड़ी और छोटी गुफाए हैं .. कई जगह तो लेटकर पार करनी होती हैं ..प्रकाश का पूरा इंतजाम हैं ....यहाँ एक शानदार बगीचा भी हैं ....जो काफी दूर तक फैला हुआ हैं ....

हमने टिकट  खरीदी तो काउंटर - मेन  बोला --' आप नहीं जा पाएगी क्योकि बहुत झुककर चलाना पड़ेगा !' यह सुनकर पतिदेव तो  बाहर ही रह गए ....पर  मुझे तो जाना था क्योकि लडकियों  को अकेले भी छोड़ नहीं सकती थी,  वैसे भी मेरा मन था  जाने का  आखिर यही घुमने तो आए हैं ... सो, हम तीनो निकल पड़ी  .....


इस छेल -छबीले नोजवान के साथ एक फोटू हो जाए 


अरे ,, इसके कपडे किसने उतार दिए  इतनी ठंडी में 




सही कथन 






पहली  गुफा ..टाइगर केव में जाने का रास्ता ..अन्दर ही पेंथर गुफा भी हैं .. यहाँ सिर्फ दो गुफाए ही हैं 



गुफा में जाने का रास्ता----ऊपर सीढियाँ हैं निचे काफी उतरना पड़ता हैं .. तो चले ---



आईईई .. ला.. ईत्ता नीचे हैं ...
यह गुफा का रास्ता हैं और एकदम ठंडा !अन्दर से हवा ऐसे आ रही थी मानो ऐ. सी. लगा हो  


वाह !!! यह असली प्राकृतिक गुफा हैं 


हमारे साथ कुछ डाक्टर्स भी थे ..अच्छी पहचान हो गई वो चंडीगड़  से आए थे 


अँधेरा नहीं हैं पर रौशनी कम हैं ..दोनों तरफ हाथ लगने से पत्थर चिकने हो गए हैं 



और यहाँ से हम निकले ..वाह ! गजब ! वंडरफुल ! 



यह गुफा बहुत ही सकरी और नीची थी ..इसमें 3 गुफाए थी ..मैं  इस में नहीं जा सकती थी क्योकि इसमें घुटने के बल रेंगकर चलना पडेगा, इसलिए मैं नहीं गई ...पर लड़कियां जिद करने लगी की हमें जाना हैं...अब अकेले कैसे जाने दू ...अभी 10 -15 लडको की टोली गई हैं और वो कुछ न कुछ खुरापात जरुर करेगे मैं रिश्क नहीं लेना चाहती थी ..यही सोच रही थी की इतने में तीनो डाक्टर्स दोस्त आ गए --बोले -'चलो बेटा, डर  क्यों रहे हो '.. उनके  साथ कोई डर नहीं था ...इसलिए लडकियों को भेज दिया और मैं बाहर ही इन्तजार करने लगी .....







यह  बेट्स गुफा हैं ,,.यह गुफा बहुत नीची हैं ..डाक्टर्स दोस्त जाने  का सोच रहे हैं ..पर जेस नहीं जाना चाहती थी वो वापस आने लगी तो  उनके कहने पर उसने अन्दर जाने का  साहस बना लिया और घुटने  टेक कर बेट्स -गुफा पार की लेकिन निक्की नहीं गई ...वो दूसरी तरफ से बाहर निकल आई ...काफी देर हो गई  मुझे चिंता होने लगी पर जेस दूसरी तरफ से बाहर आई ..
 बाहर आकर उसने कहा --'की अन्दर जो लड़के गए थे वो हमें डरा रहे थे की बाहर जाने का रास्ता बंद हो गया हैं ..हम डर गए थे ..पर डॉक्टर अंकल ने  उन लोगो को डांट कर भगा दिया ...बड़ी खतरनाक जगह हैं, यदि ऐसा हो जाता तो ? हम तो अंदर ही दब जाते..!'  भय और खुशी का मिलाजुला रंग उस पर आ जा रहा था पर वो खुश ज्यादा थी .... बहुत एडवेंचर्स रहा... .' मेरी जान में जान आई...'



 अब हम चल दिए गार्डन की तरफ ऊपर ...बहुत सुंदर लग रहा था काफी सीढियाँ थी पर सुंदर द्रश्यावाली देखने के लिए यह सीढियाँ तो चढनी ही पड़ेगी ..और हम चल दिए ..आप भी चले ......खुबसूरत नजारा देखने ....

.



" अगर हो सके तो आज चले आओ मेरी तरफ 
मिले भी देर हुई, और दिल भी उदास हैं ....!"




"आजा ! की तुझ बिन इस तरहां ऐ दोस्त धबराती  हूँ मैं ....
जैसे हर शै मैं किसी शै की कमी पाती हूँ  मैं ..."







यह  कौन चित्रकार हैं...ये कौन चित्रकार .. 

( जिसने इस स्राष्ठी  में रंग भरे ) 

   




न कोई वादा ! न कोई यकीं ! न कोई उम्मीद ! 
मगर  हमें  तो तेरा इंतिजार करना था ? 


 ऊपर से देखा तो मिस्टर बेंच पर बैठे हमारा इन्तजार कर रहे थे 



कितनी ऊपर खड़े थे हम,   दूर  ~~~ तक फैली  खामोशी ...और सुन्दरता ..





"ये खामोशियाँ ..ये तन्हाईयाँ ...मुहब्बत की दुनियां हैं कितनी जवाँ "







और यह हैं म्युझिकल  फाउन्टेन जो रात को चलता हैं ..सदाबहार गानों के साथ 


यहाँ हमने  डॉक्टर दोस्तों के भी खूब फोटू खींचे ..फिर उनसे विदा ली ... हम चल दिए निचे की और ,क्योकि मिस्टर बार -बार फोन कर रहे थे वो बेचारे विक्की की बकवास  सुन -सुनकर बोर हो गए होगे .....हा हा हा 

 और हम भी चलते हैं ' गवर्नर -हाउस' देखने ..वैसे यह स्थान अब तक देखे सभी स्थानों से अच्छा लगा ....शाम के 5 बज गए थे और विक्की थोडा परेशां था ..जब गवर्नर हाउस पहुंचे तो पता चला की वो 4.30 बजे ही बंद हो जाता हैं ,अब क्या करे ,कल देखेगे ...यह सोचकर कोई फोटू भी नहीं लिया ..अब मालुम हुआ की विक्की क्यों परेशां था  खेर,  वापस विक्की ने हमें हमारे होटल छोड़ .दिया और हम होटल पहुंचकर थोडा फ्रेश हुए और चल दिए झील की सैर करने ....

 अगले भाग में देखे नैनीझील के मनोरम द्रश्य ...........
.
जारी ---  



यह हैं  गवर्नर हाउस ..चित्र --गूगल 



बुधवार, 6 जून 2012

नैनीताल भाग 4



नैनीझील 


नैनीताल भाग 1, भाग 2, भाग 3, पढने के लिए  यहाँ क्लिक करे  

  

खुरपाताल से हम निकले और गए लवर्स पॉइंट्स ! वहां की रंगीनियाँ और ऊँचे -ऊँचे पहाड़ देखने के बाद हम चले  'हिमालय -दर्शन ' को ....रास्ते में विक्की के किस्से चालु थे ..बहुत ही हंसमुख लड़का था ...और टाईम कितना भी लगे उसको कोई जल्दी नहीं थी वो आराम से सब जगह घुमा रहा था,इसका भुगतान हमें लास्ट में भुगतना पड़ा ! खेर,हमारी गाडी चली हिमालय व्यूह देखने ....


हम स -परिवार ता. 9 को मुम्बई से नैनीताल घुमने निकले हैं .....आज 11 तारीख हैं और हम आज ही सुबह नैनीताल पहुँचे हैं ..और अब होटल से तैयार होकर नैनीताल - साईट देखने  निकले हैं ...


3. हिमालय दर्शन :--

 अब आगे :--

हम हिमालय -दर्शन के लिए निकल पड़े यह पॉइंट नैनीताल शहर से 5 किलो मीटर दूर हैं .. इसकी उंचाई हैं 2300 मीटर  हैं   ! यहाँ से हिमालय का शानदार व्यूह दिखाई देता हैं और नैनीझील का खुबसूरत अक्स भी ..इस रोड को किलबरी रोड कहते हैं ..साफ़ -सुधरी रोड  पर चलना  अपने आप में सुखद अनुभव हैं ....पर हमें व्यू नहीं दिखाई दिया क्योकि आज काफी धुंध थी , वैसे  कहते हैं यहाँ से चाईना -वाल भी दिखती हैं ..पता नहीं सही हैं या झूठ , क्योकि जब चाँद से चाइना वाल दिखती हैं तो हम तो धरती पर ही खड़े हैं हा हा हा हा और यह धरती कहते हैं गोल हैं, तो जनाब हमने बहुत कोशिश की पर न तो वाल दिखी न हिमालय ...    आप भी देखिए :--
  


दूर तक फैले पहाड़ और ऊँचे -ऊँचे पेड साथ ही धुंध में लिपटा हुआ हिमालय ...



धुंध न हो तो हिमालय ऐसा दीखता हैं ---चित्र -गुगल जी से 

" हुश्न  पहाड़ो का क्या कहना हैं बारो महीने यहाँ मौसम जाड़ो का "


हिमालय का कोई दर्शन नहीं पर दर्शन के तो दर्शन  हो रहे हैं ...हा हा हा हा 
चाय के इन्तजार में मैं 





धुंध की वजय से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ..पर कुल मिलकर बड़ा सुहाना शमा था ..जब हम हिमालय दर्शन के लिए गए तो काफी भीड़ थी ..लोग चाय और मेगी खा रहे थे ,- कहीं -कहीं भुट्टे भी सिक रहे थे ..पर भीड़ बहुत थी ..कई लोग निशाने लगा रहे थे ..पास ही बंदूकें राखी हुई थी ...दूर पहाडियों पर करीने से  बोतले  टंगी  हई थी ..मैं  सोच रही थी की यहाँ  बोतले टांगी  कैसे होगी ..? इतनी ऊपर आखरी पेड़ की डाली पर कैसे कोई पहुँचा  होगा ...? खेर, हम चल दिए टेलिस्कोप से पहाडो का नजारा देखने ....



 सजी हुई बंदूके 







 टेलिस्कोप से काफी लोग  हिमालय का नजारा  देख रहे थे , मैने  पूछा कितने पैसे लोगे तो बोला--'एक आदमी के 30  रु. ! पर मैने कहा --'हमें नहीं देखना' ? वैसे भी कुछ दिखाई तो दे नहीं रहा था पर वो पीछे पड़ गया ,20 रु दे देना ...न -न करते -करते आखिर में  हम सब ने 30 रु. में टेलिस्कोप का मजा लिया ...हा हा हा हा ...

प्रकृति का मज़ा लुटते हुए ..न कोई मंदिर दिख रहा हैं न चीन की दिवार ..'जेस  कह रही हैं ..:)


यह स्कूल बना था फिल्म --"मैं हूँ ना " में ..पता नहीं स्कूल ही हैं या कुछ और ..


नैनीझील का लुत्फ़ लेते हुए --- हम -तुम 



खुबसूरत शमा प्यारा -प्यारा .."ये हंसी वादियाँ .. ये खुला आसमान .." यह नज़ारे फिर कहाँ ?


यहाँ से नैनीताल का विहंगम द्रश्य दीखता हैं और झील देवी की एक आँख की तरह नजर आती हैं ..




हमने  टेलिस्कोप से प्रकृति के नजारों का जायका लिया ..पर न तो वहाँ कोई मंदिर दिखा न कोई दिवार हा, दूर से वो घर दिखा जहाँ 'मैं हूँ न ' फिल्म की शूटिंग हुई थी जिसमें शाहरुख़ और जावेद की लड़ाई के द्रश्य हैं ..यहाँ पर हमने - गर्म  चाय पी  और हम चल दिए अपने अगले पड़ाव की तरफ .....


रात का नजारा नैनी झील का उपर से लिया चित्र ..गूगल जी की मेहरबानी से 




हिमालय व्यू देखकर हम चले सुखाताल देखने......

4. सुखाताल :--

सूखाताल इस तालो की नगरी में उसे कहते हैं ...जहाँ बारिश के दिनों मैं पानी भर जाता हैं और तालाब बन जाता हैं ..इस समय यह जगह खाली और बंजर दिख रही थी और लोग -बाग़ आराम से आ -जा रहे थे !यह सीन विक्की ने कार में बैठे - बैठे ही दिखा दिया ..इसलिए कोई फोटू नहीं  उतारा  ..वैसे यहाँ कुछ था भी नहीं ....:) 
  

5. हनुमान गाढ़ी :--

नैनीताल में यह स्थान ,पर्यटकों और धार्मिक यात्रियों के लिए बहुत महशूर  हैं ..यहाँ से पहाडो की कई चोटियों के दर्शन होते हैं ..मैदानी जगह भी सुंदर दिखाई देती हैं .यहाँ एक वेधशाला भी हैं ..जहाँ नक्षत्रों का अध्यन किया जाता हैं ....यहाँ एक हनुमानजी का बड़ा मंदिर हैं उस पर हनुमानजी की बड़ी आदमकद मूर्ति प्रतिष्ठित हैं ..शायद इसीलिए यहाँ का नाम 'हनुमान गाढ़ी ' हैं ...पर यहाँ फोटू खींचना मना हैं इसलिए कोई फोटू नहीं खिंच सके ......आँगन में एक प्यारा कुता बंधा था ..सफ़ेद रंग का ..हमें देख कर अपनी जंजीर खींचने लगा ..मेरे बच्चे उसके साथ खेलने लगे ..फिर हम उसकी एक तस्वीर खींचने लगे तो पुजारीजी ने कहा की आप 'बिट्टू' को भी बाहर ले जाए और खूब फोटू खींचे ..बच्चो ने बिट्टू  के फोटू  खींचे .....जिसे खुद पुजारीजी की पत्नी बाहर लेकर आई ...आप भी देखे ...



प्यारा-सा  कुता जिसका नाम था 'बिट्टू '


बिट्टू , जय -जय करता हुआ ..पुजारीजी की पत्नी के साथ 



इसके बाद हमारा काफिला चला ' एको -केव्ज ' की तरफ ...भूख भी लग रही थी ..2 बज गए थे अब हमने होटल ढूंढना शुरू किया तो हमें कहीं भी होटल नहीं मिला ...भूख बड़ी जोरो से लग रही थी ..हमें विक्की की बाते याद आने लगी की आगे कही भी खाना नहीं मिलेगा .... धुप भी बड़ी तेज थी पर हवा बहुत ठंडी चल रही थी.... ....अगले भाग में पढ़े  ..हमने क्या खाया ...? और मजेदार  प्राकृतिक गुफाए  ....

जारी ...