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मंगलवार, 3 नवंबर 2020

कर्नाटक डायरी# 5

कर्नाटक-डायरी
#मैसूर - तमिलनाडु-यात्रा
#भाग=5
#ऊटी भाग= 2
#16 मार्च 2018

15 मार्च को हम मैसूर से ऊटी पहुंच गए ।कल हमने ऊटी लेक की यात्रा की ।
अब आगे----
रात को ऊटी में भयंकर ठंडी थी, उस पर बारिश ने गजब ढाह रखा था..ठंड इतनी तगड़ी थी कि पूछो मत 😊वैसे भी हम मुम्बईयों को ठंडी जरा ज्यादा ही लगती हैं😂😂😂
सुबह ऊटी का मौसम सुहाना हो गया था बारिश रुक गई थी और सूरज महाराज अपने सातों घोड़ों पर सवार शान से निकल गए थे। धूप खिलखिलाकर रही थी, जबकि हवा में अभी भी ठंडक थी। 
हम सब गरम पानी से नहाकर जब बाबूजी बनकर निकलने लगे तो थकान का नामोनिशान नही था।
पड़ोस की होटल से चाय मंगाकर सबने बिस्कुट ओर चाय का हल्का फुल्का नाश्ता किया और अपने अपने स्वेटर पहनकर बाहर आ गए।

ये कॉटेज ऊपर पहाड़ी पर थी, यहां से घाटी का दृश्य खूबसूरत दिख रहा था, नीचे घाटी में धुंध छाई हुई थी जिसे सूरज महाराज की किरणें साफ करने में लगी हुई थी.. बहुत ही अच्छा लग रहा था ऐसा लग रहा था कि यही बैठी इनको निहारती रहू।
लेकिन जब पीछे से किसी ने पुकारा तो ध्यान आया कि मैं यहां अकेली नही हूँ😊
कॉटेज के बाहर छोटा सा साफ सुधरा बगीचा था,जिसमें तरह -तरह के फूल खिले थे हमने यहां ढ़ेर सारे फोटू खिंचे फिर हम ऊपर से कार द्वारा छोटी पहाड़ी से नीचे उतर आये।

नीचे एक रेस्तरां में जाकर सबने अपनी अपनी पसन्द का नाश्ता किया,मैंने अपनी फ़ेवरेट ईडली मंगवाई ,लेकिन ये क्या सांभर में इतनी मिर्च! उफ़्फ़फ़!!!#@
मेरी आँखों मे आंसू आ गए और सारा मूढ़ खराब हो गया क्योकि तमिलनाडु का सांभर बहुत तीखा होता हैं, जबकि हमारे बॉम्बे में सांभर थोड़ा खट्टा मीठा होता हैं यानी कि दुनिया का सबसे बेस्ट सांभर बॉम्बे में मिलता हैं😂😂😂
भूख अभी भी लग रही थी तो कुछ और खाने के लिए जब मैंने नजर घुमाई तो देखा कि कुछ लोग पीली-पीली कोई चीज खा रहे हैं। तब मैंने वेटर से पूछा की "ये क्या हैं?" तो उसका जवाब था ये #हलवा  हैं। 
मैंने तुरंत एक प्लेट हलवा मंगवाया । क्योंकि हलवा मेरे साथ सभी का फ़ेवरेट था। ओर वाकई में हलवा बहुत टेस्टी था।😊

 मैं अक्सर जब भी बाहर जाती हूँ और खाने बैठती हूं तो सरसरी नजर सबकी प्लेटों में डाल लेती हूं (भुक्कड़ कहीं की)😂😂😂 अरे, उसी से तो पता चलता है कि यहां के स्थानीय लोग क्या खा रहे हैं ?😊🎂ओर मैं वही चीज आर्डर करती हूं। इससे यह होता हैं कि मुझे उस प्रदेश का खाना खाने को मिल जाता हैं। और एक अलग जायके का पता चल जाता हैं।👍

ख़ेर, नाश्ते से निपटकर हम बाहर निकले और ऊटी के फ़ेमस बॉटनिकल गार्डन की तरफ चल दिये।

#बोटेनिकल गार्डन:--
बोटेनिकल गार्डन बहुत ही खूबसूरत हैं यहां की हरियाली देखते ही बनती हैं यहां काफी पर्यटकों की भीड़ थी यहाँ लगे पेड़-पौधे बेहद खूबसूरत हैं
50 एकड़ के क्षेत्र में फैले इस हरे-भरे बगीचे को 1847 में ट्वीडेल के मार्क्विस ने एक पहाड़ी की ढलान पर बनाया था।यहां फूलों के पेड़ों की कई खूबसूरत प्रजातियाँ  हैं इस बगीचे में एक जीवाश्म का पेड़ है जो माना जाता है कि 20 मिलियन साल पुराना है। यहां कुछ टोडा झोपड़ियों भी थी जिसमें टोडास, नीलगिरी के मूल निवासी रहते हैं। यहां आयोजित होने वाले सालाना ग्रीष्मोत्सव में फ्लावर शो एक प्रमुख आकर्षण है।
गार्डन में पर पर्सन 25 रु इंट्री फीस देकर हम गार्डन के अंदर चल पड़े।

गार्डन सीढ़ीदार बना हुआ था आगे पुरानी तोपें रक्खी थी,सेल्फी पॉइंट भी बने थे,ओर पौधों को खूबसूरती से तराशा हुआ था ,ढेर सारे फूल खुशबू बखेर रहे थे। हम धीरे धीरे सीढ़िया चढ़ते हुए काफी ऊपर पहुंच गए, लेकिन मैंने पूरा ऊपर तक गार्डन नही देखा।फिर भी जो देखा वो बहुत ही खूबसूरत था।यहां कुछ गरम मसाले की दुकानें भी थी जिनमें से मैंने कुछ गरम मसाले खरीदे।
नीचे उतरकर हमने बगीचे में ही एक रेस्टोरेन्ट में जाकर खाना खाया।

ऊटी में कई तरह की चॉकलेट बनती हैं ओर चॉकलेट की बहुत फैक्ट्रियां हैं सारे मालरोड पर चॉकलेट, गरम मसाले ओर ऊटी चाय की बहुत सी दुकानें हैं ।मैंने भी कुछ चॉकलेट के पैकेट खरीदे । कुछ गिफ्ट कर दूँगी ओर कुछ अपने लिए रख लुंगी😊

बॉटनिकल गार्डन से हम सीधे रोज गार्डन गए लेकिन सड़क की मरम्मत के कारण रास्ता बंद कर रखा था। इसलिए हम रोज गार्डन न जा सके। 

रोज गार्डन:-- यहां गुलाब के पौधों की 20000 से ज़्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं ओर ये गार्डन विश्व मे 15 वें स्थान पर हैं इसे वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ रोज सोसाइटीज के द्वारा प्रतिष्ठित गार्डन ऑफ एक्सीलेंस अवार्ड मिल चुका है।
रोज गार्डन न देख पाने के कारण थोड़ी नर्वस थी पर कोई बात नही फिर कभी😊

रोज गार्डन कल पर छोड़कर हम  वापस सीधे अपने कॉटेज पर आ गये, ये सोचकर कि कुछ आराम करेंगे फिर शाम को मालरोड पर घूमने जाएंगे।
लेकिन वो शाम फिर न आई क्योकि शाम को जोरदार बारिश ने हमारे सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। और ठंडक बढ़ने के कारण हम कहीं भी नही जा सके।रूम में ही खाना मंगवाकर खाया और tv देखते हुए गप्पे मारते हुए कब सो गए पता ही नही चला।
बारिश काफी रात तक होती रही।
आज सुबह हमको ऊटी से 30 Km दूर कुन्नूर के लिए निकलना था।यहां की नीलगिरी माउंटेन रेल्वे की खिलौना ट्रेन का सफर अपने आपमें जोरदार था, इस ट्रेन की रिजर्वेशन यदि ऑन लाइन करवा ली जाए तो घूमने में आसानी रहती हैं। हमने ऑनलाइन रिजर्वेशन देखा तो गाड़ी एकदम फूल थी इसलिए हमने कुन्नूर जाना केंसिल कर दिया क्योकि रह -रह कर हो रही बारिश में जाने से कोई फायदा भी नही था। बारिश ने सारा मूढ़ खराब कर दिया और अब हम सब खिन्न मन से वापसी की तैयारी में जुट गए।

इसके अलावा ऊटी में घुमने के स्थान:--
डोबबेट्टा चोटी:--यह ऊटी का सबसे ऊँचा स्थान है जहाँ से आप नीलगिरी पहाड़ियों के मनोरम दृश्य देख सकते हैं। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 2623 मीटर है और ऊटी से इसकी दूरी केवल 10 km हैं। यहां एक टेलीस्कोप भी लगा है जिससे आप चोटी के आसपास के दृश्य देख सकते हैं।

कलहट्टी झरने:--
ऊटी से सिर्फ 13 किमी की दूरी पर ये झरने स्थित हैं। ये झरने पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। ये झरने नदियों और धाराओं के माध्यम से बनते हैं जो 36 मीटर नीचे एक स्थान पर गिरते हैं। कलहट्टी झरने, कलहट्टी घाटों का एक हिस्सा हैं। यह क्षेत्र अपने वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध है जिसमें पैंथर, भैंस, बाइसन और सांभर शामिल हैं।

ब्रिटिश ज़माने के चर्च:-- 
ऊटी में कई ऐतिहासिक चर्च हैं। सेंट स्टीफन यहां का सबसे पुराना चर्च हैं।  इसको गोथिक स्थापत्य शैली में सन् 1829 में बनवाया गया था और इसमें लकड़ी की बीम श्रीरंगापटनम में टीपू सुल्तान के महल की है।
सुबह उठकर तैयार हो हम वापस मैसूर जा रहे थे। आज मौसम बहुत सुहावना था बारिश का नामोनिशान नहीं था।
ऊटी आने के लिए जून से अक्टूम्बर तक का टाइम एकदम बढिया है ।वरना हमारी तरह बारिश कब मजा खराब कर देगी कुछ कह नही सकते👏😘
क्रमशः...












शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

कर्नाटक डायरी #4


#कर्नाटक-डायरी
#मैसूर - तमिलनाडु-यात्रा
#भाग=4
#ऊटी भाग= 1
#15 मार्च 2018

10 मार्च को मैसूर पहुंचकर हमने कल मैसूर पैलेस देखा आज शुक्रवार था तो 1 दिन की छुट्टी बेटी और दामाद ने ली और सण्डे शटरडे मिलाकर 3 दिन के लिए आज सुबह नाश्ता कर के हम दामाद की कार से तमिलनाडु राज्य के हिल स्टेशन ऊटी की यात्रा पर निकल पड़े।

अब आगे...
मैसूर से  ऊटी का करीब 125 km का रास्ता हैं जो कि सड़क मार्ग Nh 766 से हैं जिसमें 4-5 घण्टे लग जाते है। टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क बांदीपुर से जब गाड़ी निकली तो सबसे पहले हाथी महाराज के दर्शन हुए, हिरन तो इतने थे कि पूछो मत।लेकिन हम उतरे नही ओर बांदीपुर निकलकर आराम से 33 बेंड पार करके ऊटी पहुंच गए। 

 ऊटी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर बसा यह शहर मुख्य रूप से एक पर्वतीय स्थल (हिल स्टेशन) के रूप में जाना जाता है। कोयम्बटूर यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा है जो 88 km दूर है..सड़क के द्वारा यह तमिलनाडु और कर्नाटक के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है । इस पर्वत श्रृंखला पर शिंमला की तरह ट्रेन द्वारा भी आ सकते हैं जो कि कुन्नूर से चलती हैं इस खिलौना ट्रेन  का सफर रोचक,अद्भुत ओर आखों को सुकून देने वाला होता हैं ।

पहाड़ों की रानी ऊटी उधगमंडलम 
यानी ऊटी शहर का नया नाम है जो तमिल भाषा में  है। 
ऊटी समुद्र तल से लगभग  7,440 फीट 2,268 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है
तमिलनाडु का बेहद खूबसूरत और रोमांटिक स्थल ऊटी अपने मनोरम दृश्यों के लिए विश्व विख्यात है। इतना ही नहीं इसकी खूबसूरती के कारण इसे 'पहाड़ों की रानी' भी कहा जाता है। ऊटी कुदरत का खूबसूरत जीता जागता उदाहरण है जो अपने सौंदर्य के लिए तो जाना जाता ही है साथ ही यह हिन्दुस्तान फोटो फिल्म के कारखाने के लिए पर्यटकों के बीच खासा मशहूर है।

दूर तक फैली हसीन वादियां और उन वादियों में ढके आकर्षण वृक्ष ऐसे सुकून देते हैं जैसे कोई बच्चा नींद  की गोद में सुकून व आनंद महसूस करता हैं।

★इतिहास:--
नीलगिरि पर्वत श्रृंखला चेर साम्राज्य का भाग हुआ करते थे। फिर वे गंगा साम्राज्य के हाथों में चले गये  उसके बाद12वीं शताब्दी में होयसल साम्राज्य के राजा विष्णुवर्धन के राज्य में आ गये। 
टीपू सुल्तान ने 18वीं शताब्दी में नीलगिरी पर्वत श्रृंखलाओ पर कब्जा कर लिया। बाद में टीपू सुल्तान ने ये अंग्रेजों को सौप दिए।

पड़ोसी कोयम्बटूर जिले के गवर्नर, जॉन सुलिवान को यहाँ की आबो-हवा बहुत पसंद थी, उन्होंने स्थानीय लोगों से जमीन खरीदकर 1821 में ऊटी शहर की स्थापना की थी ।
यह पर्वतीय पर्यटन स्थल समुद्र तल से करीब 7,440 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां दूर-दूर तक फैली हरियाली, चाय के बागान, तरह-तरह की वनस्पतियां पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी हैं.

यहां स्थित दोदाबेट्टा पीक, लैम्ब्स रॉक, कोडानाडू व्यू प्वाइंट,रोज गार्डन, बोटेनिकल गार्डन्स, अपर भवानी झील, नीलगिरी माउंटेन रेल्वे के अलावा फूस की छतवाले चर्च, खूबसूरत सड़कें और सुंदर कॉटेज देखने लायक हैं.

प्रकृति प्रेमियों के बीच मशहूर इस वनस्पति उद्यान की स्थापना सन 1847 में की गई थी.  22 हेक्टेयर में फैले इस खूबसूरत बाग की देखरेख बागवानी विभाग करता है।
यहां एक पेड़ के जीवाश्म संभाल कर रखे गए हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि यह 2 करोड़ वर्ष पुराना है. इसके अलावा यहां पेड़-पौधों की 650 से ज्यादा प्रजातियां देखने को मिलती है
 ऊटी में मौज-मस्ती और घूमने के अलावा, दक्षिण भारतीय व्यंजनों का स्वाद जा सकता है. इसके साथ ही यहां कि मशहूर चाय, हाथ से बनी चॉकलेट, खुशबूदार तेल और गरम मसालों की खरीददारी भी की जा सकती है।
सुबह से निकले हमको काफी टाइम हो गया था इसलिए रास्ते में मिले काफी कैफे पर उतरकर हमने काफी पी ओर कुछ स्नेक्स खाये, यहां दूर से ही ऊटी के पहाड़ दिखाई दे रहे थे।
ऐसा लग रहा था कि ऊटी में जमकर बारिश हो रही हैं।
ओर यही बात सच हुई ,ऊटी में प्रवेश करते ही बारिश ने हमारा जोरदार स्वागत किया।बारिश इतनी तेज थी कि बाहर के कुछ भी दृश्य दिखाई नही दे रहा थे..
यहां दामाद ने एक कॉटेज बुक की थी ,2 बजे हम उस कॉटेज पर पहुंचे तो बारिश बन्द नही हुई थी। इस कॉटेज का 1 दिन का किराया  2500 रु था। पास ही ऑनर का होटल था जिसका खाना बहुत ही टेस्टी था। हमने खाना मंगवाया ओर खाकर आराम करने चल दिये।
कॉटेज 2मंजिला थी नीचे हम जाकर अपने बेड पर कुछ देर के लिए सो गए,बाहर बारिश थी इसलिए कही जा भी नही सकते थे।
4बजे सब आराम कर के उठे तो बारिश बन्द हो गई थी ।सब फटाफट तैयार हो ऊटी की फ़ेमस लेक पर चल दिये। 

★झील':--
ऊटी झील का निर्माण यहां के पहले कलेक्टर जॉन सुविलियन ने 1825 में करवाया था. यह झील 2.5 किमी लंबी है इसके अलावा यहां एक बगीचा और जेट्टी भी है. यहां हर साल तकरीबन 12 लाख पर्यटक आते हैं.
ऊटी झील किसी सितारे से कम नहीं लगती है। इसकी सौंदर्य को देख बस दिल हरा-भरा हो जाता है। इस झील में बोटिंग की अच्छी व्यवस्था है। साथ ही आप यहाँ घुड़सवारी का आनंद उठा सकते हैं और बच्चे यहाँ खिलौना गाड़ी में बैठकर खूब मस्ती करते हैं।
लेक पर पहुंचकर हमने बोटिंग का आनंद लिया। शाम को यहां काफी ठंडक हो गई थी इसलिए सबने स्वेटर् निकाल लिए थे।
रात को लेक से वापसी पर हमने खाना नही खाया क्योकि लेट खाना खाया था तो किसी को भी भूख नही थी।रात काफी ठंडी थी
फिर हम सब सो गए।
क्रमशः:----










बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

कर्नाटक डायरी#3

कर्नाटक-डायरी
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#मैसूर -यात्रा
#भाग=3
#कर्नाटका
#12मार्च 2018

10 मार्च को मैसूर पहुंचकर हमने रात को मैसूर के पैलेस की लाइटिंग देखी,फिर कल रेल्वे संग्रहालय देखा, अब आगे...

दोपहर का खाना खाकर हम कल की तरह ओला से मैसूर का फ़ेमस पैलेस देखने चल दिये...

पैलेस के सामने हमको ओला वाले ने उतार दिया ..हम बड़ा गेट पार कर के टिकिट खिड़की पर आ गए...
हमने भी टिकिट कटवा लिए,ओर अंदर चल दिये...अंदर बहुत रौनक थी, काफी विदेशी घूम रहे थे।

★मैसूर पैलेस★
महल में प्रवेश करते ही प्रवेशद्वार के दाहिने तरफ सोने के कलश से सजा गणपति मंदिर है और इसके दुसरे छोर पर भी वैसा ही मंदिर है जो कि दुर से देखने पर धुँधला नजर आता है। इनके विपरीत दिशा में मुख्य भवन है जो कि राजमहल हैं और बीच में एक बगीचा है। महल की दिवारों पर दशहरा के चित्र भी बने हैं जो कि सजीव लगते हैं।
 पैलेस दूर से ही काफी खूबसूरत दिख रहा था, भीड़ काफी थी ऊपर से गर्मी भी लग रही थी...हम सबके साथ ही एक लाईन में खड़े हो गए... यहां लोग लाईन में धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे आगे सब अपने-अपने जूते उतार रहे थे ...हमने भी सबके देखादेखी अपने जूते उतार दिए और जमा करके अपना टोकन संभालकर रख लिया और आगे बढ़ गए।

सबसे पहले महल में तोपें दिखाई दी जो करीने से सजी हुई थी ,ये करीब 20 से ज्यादा ही थी।...
इस महल को बेहद अद्भुत ढंग से बनाया गया है.. रोमन पद्धति से बना ये महल बहुत ही सुंदर दिखाई दे रहा था...मेरे देखे अब तक के कई महलों में ये नम्बर वन था..इसको स्लेटी ओर गुलाबी पत्थरों से सजाया गया था। 

 अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हॉल आता है जिसके गलियारे के कोने में थोड़ी थोड़ी दूर पर स्तंभ लगे हुए है। इस हॉल में स्तंभ और छत पर सुनहरी नक्काशी की गई है जो देखते ही बनती हैं।इसकी दिवारों पर कृष्णराजेंद्र वाडियार के जीवन से जुड़े चित्र लगे है जिनमें से ज्यादातर चित्र राजा राव वर्मा ने बनाए हैं हॉल के बीच में छत की जगह एक रंग बिरंगे शीशों से बना ऊँचा गुबंद है जो कि सूरज और चाँद की रोशनी की आभा दर्शाता है।

निचले कमरे को देखने ये पहले दो तल हैं जिसमें पहले तल की सीढ़ियाँ चौड़ी है और उसे पूजा स्थल कहा जाता है जिसमें देवी देवताओं की तस्वीर लगी हुई है ओर उसीके कारण हमको चप्पलें बाहर उतारनी पड़ी थी शायद!
दूसरी मंजिल पर दरबार हॉल है जिसमें बीच का एक भाग सुनहरे स्तम्भो द्वारा घिरा हुआ है। इस घेरे के दाईं और बाईं तरफ दो गोलाकार स्थान हैं। इसी मंजिल के पिछले भाग में एक कमरे में तीन सिंहासन है – महाराज, महारानी और युवराज के लिए ये चंदन की लकड़ियों से बने हुए हैं।
इस महल को संग्रहालय भी कह सकते  है। .महल में एक बड़ा सा दुर्ग भी है जिसके गुंबद सोने के पत्तरों से सजे हैं। ये सूरज की रोशनी में खूब जगमगाते हैं। 
यहाँ एक सोने का राजसिंहासन भी देखा, इस राजसिंहासन की दशहरे पर प्रदर्शनी लगाई जाती है।जिसे आम जनता देख सकती हैं।

 आगे गजद्वार हैं जहां दो गज पहरा देते हुए प्रतीत होते हैं। गजद्वार से हो कर महल के मध्य में पहुँचा जा सकता है यहाँ पर विवाह मंडप है। महल में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास भी है। यहाँ पर हथियार रखने के लिए भी हाल बने हुए है,जो राजा के राज्यकाल के समय के हैं।
ये पैलेस बहुत ही भव्य हैं।
इस पैलेस को अंबा पैलेस भी कहते है।

इतिहास
मैसूर पैलेस को महाराज राजर्षि महामहिम कृष्णराजेंद्र वाडियार चतुर्थ ने बनवाया था। इस महल को बनने में लगभग 15 साल का समय लगा था। इसका निर्माण कार्य 1897 में शुरू हुआ था और यह महल 1912 में बनकर तैयार हुआ था। पहले वाला राजमहल चंदन की लकड़ियों से बना हुआ था जलने के कारण इसका काफी भाग प्रभावित हुआ था। उसको अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया हैं।उसके बाद इस  नये  राजमहल का निर्माण करवाया गया जो इस समय हैं । नया राजमहल बनने के बाद इसमें फिर कोई बदलाव नहीं किया।

गुड़िया-घर
मैसूर पैलेस में गोम्बे थोट्टी यानी एक गुड़िया घर  भी हैं ,जो राजा का निजी संग्रहालय हैं... इसका टिकिट 100 रु हैं ... यहां 19वीं और 20 वीं सदी की गुड़ियाओ का काफी अच्छा संग्रह है। ईस संग्रह की आय यहां के राजा के पास जाती हैं।इस संग्रहालय में 84 किलो सोने से सजा लकड़ी का हौद है जिसे हाथी की सवारी के लिए लगाया जाता था जब राजा हाथी की पीठ पर सवार होते थे ।


महल देखकर हम बाहर निकले और अपनी चप्पल की खोजबीन की😊
इस पैलेस के आधे हिस्से में अभी भी रॉयल परिवार के सदस्य रहते हैं और बाग की देखरेख यही करते हैं।
बाकी आधा पैलेस सरकार के पास है और टिकिट से मिलने वाली आय सरकारी खजाने में जमा होती हैं।
बाहर आकर हम बैट्री से चलने वाली गाड़ी में बैठ गए ताकि सारा बाहरी पैलेस देख सके।
150₹ देकर हम तीनों उस वेन में बैठ गए और पूरे परिसर में घूमने लगे। फिर गणपति मन्दिर में गए।
शाम को थक हारकर हम घर को चल दिये।
क्रमशः...








          दशहरे पर राजपरिवार की पूजा

              दशहरे पर शहर की सजावट


                  बैट्री से चलने वाली वेन

                  गणपति मन्दिर