जिंदगी किस करवट बैठेगी
कुछ पता नही
न आज का गम हैं।
न कल की खुशी हैं।
अंधेरे साये मेरे इर्द गिर्द मंडरा रहे हैं।
कल के ख़ौफ़नाक मंजर से शायद डर रही हूं।
कल, जो अकाल के क्रूर पंजे में दबा हुआ हैं
छटपटा रही हूँ,
खुद को बचाने का असफल प्रयास कर रही हूं।
मौत के गाल में समाना,
किसे पसन्द हैं।
पर लगता हैं किसी भंवर जाल में फंसती जा रही हूं।
हाथ पैर मार रही हूं!
खुद को बचाना चाहती हूं!
पर होनी को शायद कुछ और ही मंजूर हैं
तो क्या करूँ???
सिवाय इंतजार के😢
---दर्शन के दिल से
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