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रविवार, 9 अगस्त 2020

लौटते कदम

                          "कहानी" 


"लौटते कदम"

मेरे दिमाग में सीटियां बज रही थी
सरगोशियां अपने ज़ेहन से पर्दा हटाकर रास्ता देख रही थी।
दिमाग जैसे सुन्न पड़ गया था
अवचेतन मन अपने ख्याली स्वेटर बुन रहा था..
अचानक शून्य में एक खिड़की खुली ओर मेरे मानस पटल पर छा गई।
अपनी अधखुली आंखों से मैं उसके कंधे पर अपना सर रखे ,मसूरी की उस ठंडी सड़क पर बढ़ी जा रही थी, 
उसका हाथ मेरे इर्दगिर्द कमर से लिपटा हुआ था...फिजाओं में अमृत बरस रहा था...देवनार के लंबे लम्बे पेड़ हवा के झोंको से मस्ती में अटखेलिया कर रहे थें...फॉग भी पूरी रफ्तार से घाटी को अपने रूप जाल में फंसाने का असफल प्रयास कर रहा था.....

ओर मैं अपने खयालों के भंवर से निकलने को छटपटा रही थी।
दूर पहाड़ों की चोटी पर बर्फ चमक रही थी...सूरज अपनी अंतिम किरणों के साथ धरती से मिलने निकल पड़ा था.. ओर ठंडी हवा के झोंक मुझे अपने घेरे में समेट रहे थे।

मैं उसके नजदीक थोड़ा और सिमट गई थी और उसने भी अपनी बांहों का घेरा थोड़ा ओर कस लिया था।
कल सुबह उसको जाना था और ये हसीन पल आज धीरे धीरे अपनी शख्सियत खत्म कर रहा था।
शाम अब रात में तब्दील होने लगी थी दूर मैदान में देहरादून शहर रोशनी से जगमगा रहा था.. लेकिन मेरे मन के किसी कोने में व्याप्त डर अपनी सीमाएं लांघने को बेताब था।
मन किसी आशंका से ग्रस्त था --- "यदि वो फिर नही आया तो?"

मेरी तो सारी फिजाये खिजां में तब्दील होने में एक मिनट भी देर नही करेगी ...तब मैं क्या करूंगी 😢 .. 
ये बात दिमाग मे आते ही आंसू की एक बूंद मेरी आँखो से लुढ़क पड़ी..जिसे उसकी प्यासी निगाहों ने चूम लिया...मैं शर्म से दोहरी हो गई और उसके ठहाके मालरोड पर गूंजने लगे ...
ठंडी सड़क सिंदूरी आभा से चमकने लगी और मेरी निगाहें फॉग में अपने कल को ढूंढने लगी...उस पल को खोजने लगी जो हमने साथ गुजारे थे....
समय अपनी रफ्तार से बढ़ रहा था और मसूरी शहर कि सर्द रात अपने आगोश में धीरे धीरे सिमट रही थी और मैं लुटे हुये कदमों से अपने कॉटेज में लौट रही थी। 
"शायद कल वो आ जाये"😢

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