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सोमवार, 22 मई 2023

तामिलनायडु डायरी#15

तमिलनाडुडायरी#15
कन्याकुमारी भाग #5
20 दिसम्बर 2022


रात आराम से गुजरी,क्योंकि कल बहुत थक गए थे।सुबह थकान से आंखें नहीं खुल रही थी कि अचानक कृष्णा का फोन आया–
"मैडमजी, आप रेडी हो? 
"काहे की रेडी रे!अभीज तो उठेलि है"😠 मैंने भुनभुनाकर बोला ओर फोन पटक दिया।
हम कंल ही कन्याकुमारी आये थे और आज वापस जाना था।अभी तो 2 फ़ेमस मन्दिर भी देखने थे और उसके बताये 5 स्थान भी।मैंने कन्याकुमारी घूमने के लिए 2 दिन रखे थे पर रामेश्वरम में ज्यादा दिन ठहरकर सब प्रोग्राम डिस्टब हो गया।
खेर,देखते हैं आज क्या क्या कवर होता हैं।ये सोचती हुई मैं बाथरूम में घुस गई।
1 घण्टे बाद हमने होटल से निकलकर नाश्ता किया और माता कन्याकुमारी के दर्शन को चल दिये। यहां महिलाओं की बहुत भीड़ थी। कहते है यहां शादीशुदा मर्दों का प्रवेश वर्जित है।
इतने में कृष्णा का फोन आ गया कि मैडम मैं नीचे खड़ा हूँ आप आ जाए। पर हम मन्दिर के बाहर खड़े थे और यहां 4 घण्टे से पहले नम्बर आना मुश्किल लग रहा था। ओर फिर मिस्टर को अंदर जाने नही देगे तो बेचारे वो कीधर रुकेंगे ये सोच कर हमने माता जी को बाहर से ही नमस्कार किया और अगली बार आने का वादा कर होटल आ गए।
जल्दी जल्दी होटल से चेक़ आउट कर के हमने अपने आपको कृष्णा के हवाले छोड़ दिया ओर हम कान्यकुमारी को छोड़ आगे बढ़ गए। 
करीब 10-12 km चलने पर हम सुचिन्द्रम नामक जगह पहुँचे यहां "स्थानुमलयन" नामक मन्दिर था।   दूर से मन्दिर ओर उसका भव्य सफेद रंग का गोपुरम दिखाई दे रहा था। कृष्णा ने बताया कि ये ब्रह्मा,विष्णु,महेश का इकलौता मन्दिर हैं।
यहां कृष्णा ने हमको उतार दिया और हम मन्दिर की तरफ चल दिये। मन्दिर का गोपुरम(द्वार) बहुत सुंदर था उस पर देवी देवताओं को उकेरा गया था।हम उस विशाल गोपुरम के अंदर चले गए। यहां मोबाइल जमा नही कर रहे थे  फोटु खींचने पर मनाही थी। अंदर कुछ लोग चेकिंग के टाइम 50₹ की पर्ची फाड़ रहे थे।मैंने देखा कि कोई भी पर्ची नही फड़वा रहा था और भीड़ भी नही थी तो मैंने भी नहीं फड़वाई ओर हम अंदर चले गए। साउथ के मंदिरों में गलियारे काफी लंबे लंबे होते है हम भी लम्बा गलियारा पार करते हुए मन्दिर के पास आ गए।यहां रास्ते में पंडित जी के कहने पर मिस्टर को अपनी शर्ट उतारनी पड़ी। साउथ के कुछ मंदिरों में पुरुष को ऊपर का वस्त्र उतारना पड़ता हैं। मन्दिर के अंदर दियों की रोशनी में साफ- साफ कुछ नजर नही आ रहा था।मूर्ति जैसा कुछ था जिस पर सफेद फूल फैले हुए थे ओर वो बहुत दूर थे इसलिए  कुछ नजर नही आ रहा था। कुछ देर रुककर हम हाथ जोड़कर बाहर आ गए ।ये साउथ के मंदिरों में लाइट क्यो नही जलाते यार😷 
मन्दिर के अंदर का दृश्य बाहर आकर पोस्टर देखा तो पता चला कि अंदर कोई प्रतिमा नही है सिर्फ लिंग  स्वरूप हैं।यानी कि पिंडी रूप में है।

इतिहास:--
इस स्थान का इतिहास बहुत पुराना है। पहले इस स्थान पर अरण्य नामक जंगल था। पौराणिक कथा के अनुसार इस स्थान पर गौतम ऋषि के श्राप से मुक्त होने के लिए  इंद्र ने तपस्या की थी। फिर गर्म जल के कुंड मैं स्नान कर स्वयं को पापमुक्त किया था। इंद्र ने अर्धरात्रि में पूजा की थी और पूजा खत्म होने पर देवलोक चले गए थे। इसी कारण इस स्थान का नाम सुचिन्द्रम पडा।
स्थानुमलयन मन्दिर:--
स्थानु का अर्थ है भगवान शिव, मल का अर्थ है भगवान विष्णु और यन का अर्थ है ब्रह्मा जी! 
इस प्रकार यहां ये तीन देवताओ के विराजमान होने से इस स्थान का नाम स्थानुमलयन पड़ा। मंदिर का जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में हुआ, लेकिन मंदिर के कई शिलापट्टों से 8वीं और 15वीं शताब्दी में मंदिर के निर्माण की जानकारी मिलती है।
कन्याकुमारी का ये मंदिर अपनी अद्भुत संरचनाओं के लिए जाना जाता है। यहां निर्मित सबसे पहले मंदिर का प्रमुख आकर्षण सफेद रंग का गोपुरम है। 134 फुट ऊचे इस गोपुरम में कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। मंदिर के दक्षिणी हिस्से में एक बड़ा जलकुंड है, जहां से मंदिर की गतिविधियों के लिए जल लाया जाता है। मंदिर के गर्भगृह के निकट भगवान विष्णु को समर्पित एक मंदिर है जहां उनकी अष्टधातु से बनी हुई प्रतिमा स्थापित है।

इसके अलावा गर्भगृह के दाईं ओर राम और माता सीता का मंदिर और नीचे की ओर गणेश जी का मंदिर बना है। मंदिर परिसर में ऐसे ही लगभग 30 छोटे मंदिर हैं जो कैलाशनाथ, गरुड़ और मुरुगन स्वामी आदि को समर्पित हैं। मंदिर का प्रमुख आकर्षण एक ही ग्रेनाइट पत्थर है जो हनुमान जी की लगभग 22 फुट की मूर्ति से बना है। हनुमान जी के अलावा 21 फुट लंबे, 10 फुट चौड़े और 13 फुट ऊंचे एक ही पत्थर से बने लगभग 900 साल पुराने नंदी की प्रतिमा भी भक्तों का मन मोह लेती है। मंदिर के गर्भगृह में लिंग रूप में तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) विराजमान हैं।
इस मंदिर को  म्यूजिकल पिलर्स (स्तंभ) के नाम से भी जाना जाता है। 1इस मंदिर में 1035 स्तंभ हैं जिनमें से 18 फुट ऊंचे 4 ऐसे स्तंभ हैं जिन्हें संगीत स्तंभ कहा जाता है। एक ही ग्रेनाइट पत्थर से बनाए गए ये स्तंभ थपथपाए जाने पर संगीत की ध्वनि निकालते हैं। संगीत की यह ध्वनियाँ इतनी स्पष्ट हैं कि इन्हें सुनने पर ऐसा लगता है मानो कोई संगीतकार किसी देवता का आव्हान कर रहा हो। जब मैंने  अपने कान स्तम्भ पर लगाये तो सुरीला संगीत सुनाई दिया। पंडित जी स्तम्भों पर हल्की थाप दे रहे थे मानो वो स्वयं वाद्य बजा रहे हो

सुचिन्द्रम के इस मंदिर को त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। 10 दिवसीय उत्सव यहां का प्रमुख त्योहार है जो दिसंबर या जनवरी में मनाया जाता है। इसके अलावा अगस्त में अवनि उत्सव, अप्रैल में चितिराई उत्सव और मार्च में मासी उत्सव भी मंदिरों के प्रमुख त्योहार हैं। 
मन्दिर में मिलने वाले प्रसाद में 50 ₹ का एक बड़ा लड्डू देखकर मन लड्डू खाने को मचलने लगा😀 प्रसादम लेकर हम बाहर आ गए। जब गर्भग्रह से निकल रहे थे तो वहां एक लाइन में मूर्तियां देखी। पूरे मन्दिर में फोटु खींचना अलाव नही था पर गर्भगृह में कोई नही था तो मेरे विचलित मन ने चुपचाप कुछ फोटु खींच लिए😀 
बाहर निकलकर कुछ फोटु खींचे, बाहर मौसम आशिकाना था बारिश होकर बन्द हुई थी हवा में ठंडक थी और हम गाड़ी में बैठ गए।
अब हम आगे जा रहे थे। देखते हैं कृष्ण महाराज अब कीधर ले जाते है।
क्रमशः.....


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