तमिलनाडुडायरी#13
कन्याकुमारी भाग 3
19 दिसम्बर 2022
हम आज सुबह ही कन्याकुमारी आये थे ।पहले सूर्योदय देखा फिर होटल में जाकर थोड़ा आराम किया और अब शिप में बैठकर विवेकानंद रॉक मेमोरियल देखने आए है अब आगे....
हम शिप में कचरे की तरह लुढ़कते लुढ़कते एक जगह पहुँच गए ।यहां से देखा तो काफी सुंदर चट्टान पर विवेकानंद स्मारक बना हुआ था।बहुत ही खूबसूरती से सजा रखा था।हवा बेहद तेज थी जिससे मेरे गिने चुने बाल उड़ रहे थे😀
विवेकानन्द स्मारक
भारत के कान्यकुमारी में समुद्र में स्थित यह स्मारक बना है।यह किनारे से लगभग 500 मीटर अन्दर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के ऊपर बना है।
कन्याकुमारी से 15 मिनट की फेरी की सवारी लेनी होती हैं जो मौसम के आधार पर सुबह 8 बजे से शाम 4:30 बजे तक या सुबह 7 बजे से शाम 5:30 बजे तक चलती है। टिकट की कीमत आमतौर पर 50₹ होती हैं।Vip की कीमत निश्चित नही हैं।मेरे टाइम 200₹ थी।
1970 में इस विशाल शिला पर ये भव्य स्मृति भवन स्वामी विवेकानंद के सम्मान में बनाया गया था।तब इसका उद्धाटन तत्कालीन राष्ट्रपति श्री V. V. गिरी ने किया था।कहते हैं स्वामी जी को इसी चट्टान पर बैठकर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
विवेकानंद स्मारक के पास ही दूसरी चट्टान पर प्राचीन तमिल कवि तिरुवल्लुवर की 133 फीट ऊंची विशाल मूर्ति है।मैंने देखा उसकी मरम्मत चल रही हैं। वहाँ किसी को जाने की अनुमति नहीं थी वरना जरूर जाती।
शिप से उतरकर हम एक गलियारे जैसे अलग से बने रास्ते से ऊपर की तरफ बढ़ चले।आगे चलकर हमको एक भव्य मंदिर दिखाई दिया।वाकई में बहुत सुंदर निर्माण हुआ हैं ।सामने ही बहुत सारी सीढ़िया ऊपर तक गई थी। सीढ़ियों के पास दोनोँ तरफ काले चमकदार पत्थर के हाथी बने हुए थे।हमने कुछ फोटु खिंचे ओर सीढ़ियों की तरफ कदम से कदम मिलाते हुए ऊपर चले गए।ऊपर फोटु लेना अलाउ नही था इसलिए मैंने मोबाइल पर्स में रख लिया।ऊपर तेज समुंद्री हवा चल रही थी ,हवा इतनी तेज थी कि मेरे पैरों का बैलेंस ही नही बन रहा था। बाल तो आपस में कबड्डी खेल रहे थे😃
आगे जाकर देखा तो एक लंबे चौड़े कमरे में स्वामी विवेकानंद जी की बड़ी -सी प्रतिमा खड़ी थी मानो अभी-अभी चलकर आई हो। मेरे मन मे स्वामी जी की एक अलग ही छबि बनी हुई हैं ।सम्मान उनकी छवि को अपने श्रध्या सुमन अर्पित कर हम दोनो दूसरी तरफ से नीचे उतर गए।
सामने ही गर्जन करता समुन्द्र था।कुछ देर समुन्द्र को निहारकर हम छोटी छोटी तरासी हुई सीढ़ियो से उतरकर नीचे आ गए। नीचे काफी लोग टहल रहे थे।नीचे ही जेंट्स ओर लेडिस वॉश रूम भी बने थे साफ और क्लीन।
नीचे एक लायब्रेरी भी थी जहां विवेकानन्द जी का साहित्य भरा पड़ा था ।हमने भी एक पुस्तक खरीदी ओर कुछ देर आराम कर के वापस अपनी शिप से किनारे लौट आये। लौटते वक्त भी 50 रु वाली टिकिट की लंबी लाइन लगी हुई थी।हमने एक ऑटो किया और अपने होटल के पास के एक रेस्तरां मे खाना खाया और वापस अपने कमरे में लौट आये।अब शाम को सूर्यास्त देखने जायेगे।
क्रमशः....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें