अमृतसर यात्रा भाग6
(आनंदपुर साहिब)
1जून 2019
28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम में मेरी भाभी भी आ गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,अमृतसर अच्छे से घूमकर आज सुबह हम अमृतसर से निकलकर माता चिंतपूर्णी के बाद माता ज्वालादेवी के दर्शन करके हम रात को आनंदपुर साहिब आये, रात हमने आनंदपुर साहिब में ही गुजरी, अब आगे...
सुबह 7 बजे नींद अचानक खुल गई देखा तो रुकमा जोर- जोर से चिल्लाकर मुझे जगाने का असफल प्रयास कर रही थी और मैं अपने सारे घोड़े बेचकर बेसुद सोई पड़ी थी कि उसकी आखरी चीख़ से मेरी नींद टूट गई और मैं भौचक्की हो उसको देख रही थी,आज मेरी ख़ेर नही थी😊 उसको गुस्से में देख मैं चुपचाप फटाफट फ्रेश होने चल दी क्योंकि रुकमा ओर भाभी दोनों नहाधोकर गुलफ़ाम बनी मुझे घूर रही थी।
थोड़ी देर बाद मैं भी मेमसाब बन अपना समान अटैची में रख रही थी ..दरवाजे को लॉक कर के हम तीनों गुरद्वारे की तरफ चल दिये।
आनंदपुर साहिब:--
आनंदपुर साहिब हिमालय पर्वत श्रृंखला के निचले इलाके में बसा है। इसे ‘होली सिटी ऑफ ब्लेस ’ के नाम से भी जाना जाता है...इस शहर की स्थापना 9वें सिक्ख गुरू, गुरू तेग बहादुर साहेब ने की थी .. कहते हैं, बिलासपुर की रानी चंपा ने अपने पति राजा दीपचंद की शोकसभा में आने के लिए गुरूजी को जमीन का एक हिस्सा भेट स्वरूप दिया था।यही दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्ख धर्म की स्थापना की थी,पहले पांच साहसी पुरुषों को सिक्ख बनाया उनको गुरु बनकर अमृतपान करवाया फिर खुद शिष्य बनकर उनसे अमृतपान किये ओर सिक्ख बने। इस तरह सिक्ख-पंथ की स्थापना हुई👏
कल रात वाले दरवाजे से ही हम लोगों ने गुरद्वारे के अंदर प्रवेश किया मथ्था टेका ओर प्रसाद लेकर बाहर निकल पड़े।
थोड़ी देर ऊपर ही घुमते रहे..छत से सारा आनंदपुर साहिब दिख रहा था,गर्मी बहुत थी और छत तप रही थी तो हम वापस रूम में आये और समान लेकर कार तक आये, सामने ही हमारे ड्राइवर सरदारजी खड़े थे,समान गाड़ी में रखकर ऑफिस में जाकर चाबी लौटाई ओर अपना बकाया पैसा लेकर मैं वापस कार में बैठ गई अब हम लँगर खाने गुरद्वारे के निचले हिस्से में चल दिये क्योकि आज ऊपर से ही नीचे 4 माला उतरने का बिल्कुल भी मन नही था ,इसलिए कार से ही हम नीचे वाले एरिये में जायेगे। कल हम जिस सड़क से आये थे उधर से ही वापस हम लँगर हाल गए और लँगर खाया...लँगर बहुत टेस्टी था, वही हमने चाय भी पी ओर तुरंत गाड़ी में बैठकर विरास्ते- खालसा देखने चल दिये...
विरास्त-ऐ-खालसा 13 अप्रैल 1999 को बना था।विरासत-ए-खालसा सिक्ख धर्म का एक संग्रहालय है, जो पंजाब राज्य की राजधानी चंडीगढ़ के पास जिला रूपनगर शहर आनन्दपुर साहिब में स्थित है। संग्रहालय सिख इतिहास के 500 साल और खालसा-पंथ के जन्म की 300 वीं वर्षगांठ के जश्न में बनाया गया हैं इसको दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा लिखित शास्त्रों के आधार पर बनाया गया हैं यहां पर्यटकों और तीर्थयात्रियों का मेला लगा रहता है।
कुछ देर बाद हमारी कार वहां पहुंची
जहां काफी भीड़ थी क्योकि वहां टिकिट घर था,और टिकिट के लिए लंबी लाइन लगी थी... टिकिटघर हर दो घण्टे बाद खुलता था और जितनी कैपेसिटी थी उतने टिकिट वितरित किये जाते थे...यहां सीनियर सिटीजन की एंट्री फ्री थी जिसके लिए Id जरूरी था और एक सीनियर सिटीजन के साथ 10 बन्दे भी फ्री इंट्री कर सकते थे।
इसलिए हमने एक Id निकाली और 3 टिकिट लेकर सामने वाली खाली जगह में फैले विरासतें खालसा बिल्डिंग की ओर चल दिये...
यह एक लंबी पुलनुमा जगह थी जिसके एक तरफ पानी भरा हुआ था काफी सुंदर और भव्य जगह थी, पुल पार करते हुए हमने अंदर प्रवेश किया
...यहां कड़ाई से हमारा मुआवना हुआ फोन बंद करने का आदेश हुआ जिसे हमने तुरंत अमल किया और एक लम्बे ठंडे कमरे में प्रवेश किया।
यहां का शिल्प देखने काबिल हैं,लकड़ी की नक्कासी द्वारा ओर सिख इतिहास को लाईट के इफेक्ट से खूबसूरत जामा पहनाया गया हैं। एकदम साइलेंट Ac कमरों को पार करते हुए हम एक अलग ही दुनियां में खो से गये थे ...मूक आवाज़ निकाले इस कलात्मक दुनियां को देखकर हम हतप्रभ थे... मुंह मे जबान ही नही थी...इस जगह का वर्णन करना सूरज को दीपक दिखाने जैसा था ... विस्मयी आंखों से सारा इतिहास देखते हुए और पढ़ते हुए काफी समय गुजर गया और जब बाहर निकले तो तंद्रा भंग हुई आंखों से अश्रुधारा बह रही थी हमारा सिख इतिहास बहुत ही दर्दनाक था,हमारे गुरुओं के बलिदान से सर नतमस्तक था ।
बाहर निकलकर हम थोड़ी देर स्तब्ध होकर नकारा से बैठे रहे...दिमाग एकदम से सुन्न था ...
काफी देर तक हम पेड़ के नीचे बैठे रहे...रह -रहकर यही ख्याल आ रहा था कि कितनी खूबसूरती से विरास्ते खालसा टाउनशिप को बनाया गया हैं...ये सचमुच खालसा-पंथ की यादगार छबि पेश करता हैं...जिंदगी में एक बार ही सही पर सभी को यहां आकर ये जगह देखनी चाहिए..।
थोड़ी देर बाद हमने वही सरदारजी को कार सहित बुला लिया ओर आगे किरतपुर की तरफ चल दिये..।
शेष आगे...
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर चित्रण।
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