# महिला दिवस #
~~~~~~~~~~~
'हा' --- "मैं एक लड़की हूँ ?"
महज...16 साल की
चलती हूँ जब भी सड़कों पर
लोग मुझे वासनामयी ,
निगाहों से ताकते है
मेरे जिस्म से कपड़े उतारकर
मुझे वस्त्रहीन कर देते है
और टूट पड़ते है अपने ख्यालो में,
मेरी देह पर ---
जैसे शेर टूटता है ---
मासूम हिरन पर।
ये पुरुष समाजी नहीं देखते
मेरी मजबूरी !
मेरी मासूमियत !!
उनको तो दीखता है
सिर्फ बिस्तर ?
क्षणिक सुख की खातिर
वो तार- तार कर देते है
मेरा जिस्म !
मेरी आत्मा!!
और सभ्य समाज में
मेरा तिरस्कार करते है ।
मैं सहम जाती हूँ -----
क्योकि मैं एक अबोध बाला हूँ ?
लेकिन ये बाला ,
कब ज्वाला बन जाये ---
पता नहीं .........
और कब तुम लोग काल के ग्रासी बन जाये
पता नहीं ........
इसलिए आज प्रण करो ,
औरत की इज्जत करो !
उसको माँ, बहन, बेटी की नजरों से सम्मान करो !
तभी *महिला दिवस* की सार्थकता है ।।
--- दर्शन के 💓से ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें