अमृतसर यात्रा भाग-7
(किरतपुर साहिब)
1जून 2019
28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले..रतलाम में मेरी भाभी भी आ गई ...तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,अमृतसर अच्छे से घूमकर आज सुबह हम अमृतसर से निकलकर माता चिंतपूर्णी के बाद माता ज्वालादेवी के दर्शन करके हम रात को आनंदपुर साहिब आये, रात हमने आनंदपुर साहिब में ही गुजरी,सुबह हम विरास्ते खालसा देखकर अब किरतपुर चल दिये, अब आगे...
"किरतपुर साहिब:---
कीरतपुर को किरतपुर साहिब के रूप में भी जाना जाता है...यह रूपनगर जिले के पंजाब राज्य में स्थित हैं, इस शहर में गुरुद्वारा पातालपुरी नाम का वो स्थान है जहाँ सिख-पंथ के अनुयायी अपने दिवंगत परिजनों की अस्थियों को विसर्जीत करते हैं।
9वें सिक्ख गुरू, गुरू तेग बहादुर सिंह जी को मुगल बादशाह औरंगजेब ने दिल्ली में मरवा दिया था तब गुरूजी के धड़ को एक भक्त अपने झोपड़े में ले गया था और झोपड़े को जलाकर अपने गुरु का अंतिम संस्कार किया था। उधर एक अन्य भक्ति गुरुजी के सर को अपनी गाड़ी में घास में छिपाकर इस स्थान पर लाया था... यहां उनका अंतिम संस्कार किया था । तब से ही ये स्थान गुरु स्थान बन गया और यहां सिक्ख -पंथ के अनुयायी अपने दिवंगत जनों की अस्तिया को विसर्जित करते हैं।इसलिए इस स्थान को सिक्खों का #काशी भी कहा जाता हैं ...
आनंदपुर साहिब से सिर्फ 10 km की दूरी पर हैं सिख धर्म का दूसरा ऐतिहासिक गुरद्वारा जिसे पातालपुरी के नाम से जाना जाता हैं...।
हर सिक्ख का ये सपना होता हैं कि मृत्यु के पश्चात उसका अस्ती-कलश किरतपुर साहिब में विसर्जित हो।
यहां सतलुज नदी बहती हैं जिसमें अस्थि विसर्जित होती हैं।
कीरतपुर साहिब :-- 1627 में 6 वें सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी द्वारा स्थापित किया गया था , जिन्होंने अपने बेटे, बाबा गुरदित्त के माध्यम से केलूर के राजा ताराचंद से जमीन खरीदी थी। यह स्थान एक मुस्लिम संत पीर बुद्धन शाह की स्मृति से भी जुड़ा हुआ है।
यह स्थान सतलुज नदी के तट पर आनंदपुर के दक्षिण में लगभग 10 किमी, रूपनगर के उत्तर में लगभग 30 किमी और नङ्गल रूपनगर- चंडीगढ़ सड़क (NH21) पर चंडीगढ़ से 90 किमी दूर स्थित है।
यह सिखों के लिए एक पवित्र स्थान है। गुरु नानक देव के बारे में कहा जाता है कि वे इस स्थान पर आए थे, छठे गुरु, गुरु हरगोविंद साहब ने अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्ष यहां बिताए थे... दोनों गुरु हरीरायजी और गुरु हरिकिशन जी भी इस जगह ही पैदा हुए थे और उन्होंने इसी जगह गुरु गद्दी प्राप्त कि थी।
फिल्म वीर-ज़ारा (2004) में इसी स्थान को दिखाया गया हैं जब प्रीति जिंटा पाकिस्तान से अपनी मुंह बोली दादी के अस्ती फूल विसर्जित करने आती हैं और रास्ते में शाहरुख खान मिलता हैं और यही से इनकी प्रेमकहानी शुरू होती हैं।
विरासत-ए- खालसा देखकर मन बहुत विचलित था..हम चुपचाप बैठे हुए थे ...गुरद्वारा पातालपुरी पहुंचकर हम गुरद्वारे के अंदर गए काफी सुंदर गुरद्वारा बना था मैं अंदर का एक फोटू खींचने लगी तो एक बन्दे ने आकर मना कर दिया लेकिन तब तक मैंने घर वालों को दिखाने के लिए एक फोटू खींच ही लिया था।😊
फिर मैंने अपना मोबाइल बैंग में रख लिया..यहां भाभी ने मेरे मम्मी -पापा ओर दोनों भाइयों के नाम की #अरदास करवाई तो मैंने भी अपने सास-ससुर ओर जेठजी के नाम की अरदास करवा दी...प्रसाद लेकर हम बाहर पवित्र नदी के पास आ गए ...
नहाने की बहुत इच्छा थी मगर टाइम कम था क्योंकि आज ही हमको मनिकरण पहुंचना था और वहां जाने में 7-8 घण्टे लगने थे तो हमने सिर्फ अपने बुजुर्गो के नाम का पानी छोड़ा और अपने ऊपर भी पानी का छिड़काव कर के वापस हो लिए...यहां भी लँगर हो रहा था मगर मुझे भूख नही थी लेकिन रुकमा ओर भाभी ने थोड़ा लँगर खाया फिर हम वापस कार में आ गए..आगे के सफर को चल दिये।
शेष अगले एपिसोट र्में😊
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