*।।केरला-डायरी।।* भाग 2
28 दिसम्बर 2024
मेरी केरला-यात्रा 26 दिसम्बर से पनवेल से शुरू हुई थी जो 27 दिसम्बर को कोच्चीवेळी पहुँची थी। अब हम मुन्नार में थे आगे:-----
कल रात हम सब जैसे ही अपने शानदार बेड पर पसरे ही थे कि अचानक एक रोबीली आवाज़ याद आ गई जिसने डायनिंग टेबल पर ऐलान किया था कि --- "सब 7 बजे उठकर 8 बजे नाश्ते की टेबल पर आ जाए"।
ये हमारे ग्रुप के सबसे स्मॉर्ट बन्दे शर्मा जी थे। अब उनकी बात कौन टाल सकता था।पहले ही दिन उनकी घुड़की काम कर गई और सबसे पहले टेबल पर आने वाली मैं ही थी ।😂🤣😂
जैसे मुझे डर हो कि कहीं ये मुझे ग्रुप से खदेड़ न दे😂😂🤣
इस होटल में विष्णु नामके वेटर के साथ बड़ा बढ़िया एक्सपीरियेंस रहा। बड़ा प्यारा बच्चा था।हम कुछ भी बोलते वो उसके सर से 1km ऊपर से जाता था और वो अपने काले से मुखमंडल पर फैले धुँधरालु बालो को एक जोरदार झटका देकर सफेद बत्तीसी दिखा देता था।🤪🤪
ओर जब अनिताजी,उसके साथ पंजाबी में गल करती तो उसका मुंह शर्म से लाल हो जाता था।ओर हम सब जोरदार ठहाके लगाते थे😀😀😀
ठीक एक घण्टे बाद,हम सब गुलफाम बने मुन्नार देखने निकल पड़े। हमारी सजधज ऐसी थी मानो हम सब बेटे के लिए बहु देखने जा रहे हो 😛😛
हमसब सजेधजे किसी फिल्मी हीरो -हीरोइनें की तरह कातिल अंदाज में अपनी- अपनी सीट पर बिराजमान हो गए।
आज सबसे पहले हम मुन्नार के खूबसूरत चाय बगानों को देखने गए और एक ब्यूह पॉइंट पर जाकर ढेर सारी फोटू ओर वीडियो बना डाली।
फिर हम कुंडाला डैम (Kundala Dam) देखने निकल पड़े।वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि इस डेम के साथ एक खूबसूरत लेक भी हैं। लेक इतनी खूबसूरत थी कि आंखों में मदहोशी छाने लगी चारो ओर हरियाली छाईं हुई थी और झील ऐसी प्रतीत हो रही थी मानो प्रकृति ने अपने दोनों हाथों में अथाह जलराशि समेट रखी हो। नीले रंग की झील में रंग बिरंगी नावे ऐसे तैर रही थी जैसे लाल पीली मछलियां तैर रही हो।
मैंने तो आव देखा न ताव सबको पछाड़ती हुई लेक की तरफ दौड़ने लगी और धड़ाधड़ फोटू खींचने लगी । उधर जाते-जाते मैंने कनखियों से देखा की सोनाली तेजी से बस से लुडकती हुई अन्नानाश वाले ढ़ेले की ओर दौड़े जा रही थी। ओर बेचारे हमारे पप्पुकुट्टी उसका पर्स हाथों मे दबाए पीछे- पीछे खिंचे जा रहे थे 🙆
लेक के पास ही यूकोप्लीट्स के सुंदर पेडों की कतारें सजी हुई थी।जहाँ मैंने अपने सुस्त हुए पति को मोबाइल थमाया ओर ढेर सारे फोटू खिंचवाने लगी।फिर पास ही कुर्सी पर बैठकर अपनी अधखुली आँखों से झील को निहारने लगी । कुछ देर बाद मेरी तंद्रा भंग हुई तो मेरा मन बिल्लियों उछलने लगा और तन उस खूबसूरत झील की छाती पर टहलने का करने लगा। तो सोचा क्यो न मैं भी एक नाव में बैठकर फ़िल्म "मैंने प्यार किया" का वो फेमस गीत गाउ....
" दिल दीवाना बिन सजना के माने ना।
ये पगला हैं समझा ने से,समझे ना"
ओर मैं अपने आपको भाग्यश्री समझ ही रही थी की नामुराद काउंटर वाले ने मेरा नम्बर आने पर खिड़की ही बन्द कर दी 😡 बोला टिकिट खत्म हो गई। हैं भगवन ! मेरे सारे मंसूबों पर इस नामुराद ने पानी फेर दिया, अब क्या करूँ😢 मरता क्या न करता, मैंने भी उसको मन ही मन पंजाबी में जमकर गालियां दी– "कलमुंहे तेनु छित्तर पड़े ✊👊
मन शांत हुआ तो पता चला कि ये खूबसूरत झील तो बिल्कुल शूपर्णखा निकली । हमारे प्यारे बच्चे मनन का मोबाइल ही निगल गई। सबका मन खराब हो गया। मेरा भी दिल उदास हो गया।आज के दौर में भगवान मोबाइल तो दुश्मन का भी न छीने😪।
सब उदास मन से दूसरे डेम को देखने आगे बढ़ गए। जिसका नाम था मत्तूपेटी (Mattu Petty Dam) डेम ।ये भी मुन्नार का एक खूबसूरत डेम था। यहाँ काफी भीड़ थी जाम भी तगड़ा था तो हम कुछ लोग बस से उतर गए और पुल को पार करते हुए लेक की तरफ़ आ गए। यहाँ भी नावे चल रही थी और नव विवाहित जोड़े गले मे बाहें डाले नाव में घूम रहे थे। पर यहाँ लेक में वो बात नही दिखी जो कुण्डला लेक में थी ।वैसे भी दिल उदास था ।किसी का मन नही हुआ तो हमने सिर्फ चाय पी ओर आगे बढ़ गए।
आगे हमारी सवारी कारमिलगिरी बोटनिकल गॉर्डन में गई जिधर 50 रु का कर्ज अदा करके हम सब अंदर घुस गए। यहाँ हजारों की तादात में कैक्टस लगे हुए थे।इतनी वेराइटी में कैक्टस देखना मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नही था। इतनी खूबसूरती से कैक्टस ओर फूलों को सजाया गया था कि सबकुछ दिवा स्वप्न सा लग रहा था। यहाँ बहुत से सेल्फी पॉइंट्स भी बनाये गये थे जिधर हम सब महिलाओं ने दिल खोलकर फ़ोटुग्राफी की ।अंदर कुछ दुकानें भी थी जिधर अनिता जी और मैंने हेट पहनकर विभिन्न मुद्राओं में फोटू खिंचे ।
ओर उधर, सोनाली,योगिता ओर ललिता अपने घरों के लिए स्पाइसी सामान खरीदने में लगी हुई थी। आखिर में,मैं कैसे पीछे रहती मैंने भी आव देखा न ताव ओर देखा देखी में 800 रु का मसाला खरीद लिया ओर एक विजय मुस्कान चेहरे पर लाकर अपने आपको विजेता घोषित कर थैला हाथ मे लिए गार्डन से बाहर आ गई।
दोपहर हो चली थी और पेट मे चूहे दौड़ रहे थे पर खाने की किसी की भी चाहत दिखाई नही दे रही थी ।वैसे भी आसपास कोई अच्छी होटल दिख भी नही रही थी मजबूरी में हमारे बस वाले अन्ना ने हमारी बस रोज गार्डन के पास रोक दी अब सब रोज गार्डन देखने ऐसे निकले जैसे किसी शादी में खाने के पंडाल में जा रहे हो।
मैंने फिर कनखियों से झांका की सोनाली कीधर गई पर इस बार सोनाली को कोई अन्नानाश वाला नही मिला तो वो दोनों एक केक शॉप में घुस गए। शायद वहाँ कोई अन्नानाश फ़्लेवर का केक-शेक मिल जाये।🤭
इधर मैं भी खाने के जुगाड़ में इधर उधर भटकने लगी ।आखिर में एक टपरी दिखी जिधर हम दोनों भूखे प्यासे प्राणियों ने चाय ,ब्रेड और आमलेट से अपनी भूख मिटाई ।
अब तक बस के अन्य प्राणी गार्डन की कैंटीन में चाय समोसा खाकर खुद को हरा भरा कर रहे थे ।जब मैं वहाँ पहुँची तब तक सबकी तृप्ति हो चुकी थी और सारा गार्डन देखकर सब वापसी की कतार में खड़े थे।
जब मैं रोज गार्डन में पहुँची तो मैंने देखा कि यहाँ भी 50 रु की अर्जी कटवानी पड़ेगी।परन्तु मैं कैसे कटवाती क्योकि मेरे अंदर जाते ही सब बाहर निकल रहे होंगे तो? तो मैंने टिकिट लिया ही नही ओर ऐसे ही अंदर घुस गई।न किसी ने पूछा न मैंने किसी को बताया😛😛
ओर अंदर घुसते ही वही हुआ ,कुछ लोग बाहर निकलते नजर आये तो मैंने उनको अनदेखा कर एक खोपचे में घुसकर बाग के अंदर प्रवेश किया आखिर यहाँ के भी तो फोटू होने चाहिए थे। मैं अकेली ही अपनी शानदार सेल्फ स्टिक से अपने ही फोटू लेने लगी कि अचानक ग्रुप के शर्मा जी और नाहटा जी नजर आए और हम सबने मिलकर कुछ फोटू ओर वीडियो बनाये।
दिनभर घूमता परिंदा रात को अपने घोसले को निकल पड़ा। हम भी थके हारे अपनी मंजिल को आ रहे थे कि हमारी बस एक शानदार राजस्थानी रेस्टोरेंट के सामने रुकी जिसका नाम *पुरोहित* होटल था यहाँ हम भूखे भेड़ियों की तरह खाने पर टूट पड़े क्योंकि दोपहर को लंच किया नही था तो सबने छक कर खाया और थके हुए अपने नीड पर लौट आये ।
आज तो पैरों की वो हालत थी कि कोई गोद मे उठाकर ले जाता तो ईनाम का हकदार होता।
ओर इस तरह हमारा पहला दिन हर्षोल्लास से सम्पन्य हुआ।
शेष अगले एपिसोट में
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