अमृतसर की यात्रा भाग 4
(ज्वाला माता)
31 मई 2019
28 मई को मैं ओर मेरी सहेली रुक्मणि बम्बई से अमृतसर गोल्डन टेम्पल ट्रेन से अमृतसर को निकले...रतलाम में मेरी भाभी भी आ गई... तीसरे दिन 30 मई को सुबह 6 बजे हम सब अमृतसर पहुँच गये,अमृतसर अच्छे से घूमकर
आज सुबह कार द्वारा हम अमृतसर से निकलकर माता चिंतपूर्णी के दर्शन कर के अब माता ज्वालादेवी के दर्शन करने जा रहे थे, अब आगे....
माता चिंतपूर्णी के मन्दिर से निकलकर हमारी गाड़ी ज्वालामाता के दरबार की ओर दौड़ रही थी।मैं पहले भी 1992 में अपनी शिंमला - मनाली यात्रा में यहां आ चुकी हूँ लेकिन तब में ओर अब में मन्दिर में काफी अंतर आ चुका होगा ओर फिर रुकमा ओर भाभी ने भी ये मन्दिर नही देखा था वैसे भी माता के जितने दर्शन किये जाय उतना कम है.. इसलिए यहां का प्रोग्राम बनाया गया।
ख़ेर, हमारी कार तेजी से आगे दौड़ रही थी और हम आपस में गप्पे लगा रहे थे,साथ ही रुकमा की लाई हुई चीजों पर हाथ भी साफ करते जा रहे थे😀 आनंद की कोई सीमा नही थी... कभी मैं तो कभी रुकमा आगे सरदार जी के पास वाली सीट पर बैठ जाते थे और ; इसी तरह हमारा सफर आगे बढ़ता जा रहा था अब सरदार जी भी हममें घुलमिल गए थे वो भी कुछ मजेदार ओर रोचक वाक़िये सुना रहे थे, उनको बहुत आश्चर्य हो रहा था कि हम अकेली तीन लेडिस कैसे घूमने निकल गई थी।
ज्वालामाता के मन्दिर के पास हमारी कार जब रुकी तो वहां भी स्टैंड पर कार रोककर सरदारजी ने स्थानीय ऑटो वाले को रोककर हमको उसमें चढ़ा दिया,ओर उस ऑटो वाले ने भी हमको एक गली से ले जाकर ठीक मन्दिर के पीछे उतार दिया, हमने भी उसको 20 रु देकर माता के मन्दिर की तरफ रुखसत किया।
मन्दिर एकदम बदला हुआ लग रहा था 92 जैसा मुझे कहीं कुछ नजर नही आ रहा था, जब 92 में मैं यहां अपने परिवार के साथ आई थी तब हम सब रात को यहां पहुंचे थे, उस समय माता के सायन की आरती होने वाली थी और माता को सुलाने के लिए बड़ी तैयारीयां हो रही थी ... वो दृश्य सचमुच अद्भुत था जब खाली पलँग पर पुजारी माता के कपड़े और ज़ेवर से माता का श्रृंगार कर रहा था और हम सब भक्त दूर बैठे देख रहे थे फिर आरती हुई और आरती खत्म होने के बाद हम नजदीक ही अपने होटल में चले गए थे और फिर सुबह माता के दरबार में आये थे तब रात को बच्चों ने बाहर रखें पीतल के शेर पर चढ़कर फोटू भी खिंचवाई थी। आज ये मन्दिर काफी बड़ा दिख रहा था ओर वो शेर भी दिख रहा था।
ख़ेर, हमने माता ज्वाला के साक्षात दर्शन किये,जहां-जहां से ज्वाला निकल रही थी वहां-वहां से सबके साथ माता ज्वाला के दर्शन किये ओर अंत में उधर गए जिधर अकबर की खुदाई हुई नहर में से माता ज्वाला के दर्शन होते हैं....यहां हमको लाईन में लगना पड़ा था क्योंकि यहां थोड़ी भीड़ हो गई थी क्योंकि यहां कुछ लोग ही उस नहर के मुहाने पर जाते है इसलिए लाईन लंबी हो गई थी। लेकिन यहां भी दर्शन अलग हुए पहले नहर के पानी में माचिस लगाने पर ज्वालामाता दिखती थी मगर अब पूरी नहर के पानी पर आग का भभका भड़कता हुआ दिखाया गया।
जो भी हो पर हमको दर्शन अच्छे से हुए ,बाहर अकबर का सोने का छत्र भी रखा था जो उसने माता को चढ़ाया था जो लोहे का हो गया था। दर्शन कर के हम बाहर निकल गए... अब हम लंबी सीढ़ियों से नीचे उतरे तो याद आया कि पहले हम इन्हीं सीढ़ियों से ही ऊपर मन्दिर में गए थे। नीचे माता के प्रसाद की दुकानें सजी हुई थी जहां से भाभी ने बेटी की बेटी के लिए कुछ खिलौने खरीदे ओर कुछ विशेष नही था। इसलिए हम सरदारजी की बताई हुई जगह पर आ गए ओर कार में बैठकर चल दिये अपने अगले डेस्टिनेशन पर जो कि वापस पंजाब था।
शेष अगले अंक में...
1992 की यात्रा
4 टिप्पणियां:
जय ज्वाला माता की
ज्वाला माता का स्वरूप अलज ही हैं
Mast
Mast
एक टिप्पणी भेजें